Sunday, November 22, 2020

‘लव जिहाद’ प्रेम नहीं, राजनीति

देश में भाजपा-शासित कम से कम पाँच राज्यों ने धर्मांतरण के लिए किए जा रहे अंतर-धर्म विवाहों यानी लव जिहाद पर रोक लगाने के लिए कानून बनाने की तैयारी कर ली है। उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और असम ने इसमें पहल की है और संभव है कि कुछ और राज्यों के नाम सामने आएं। इन कानूनों की परिणति क्या होगी, फिलहाल कहना मुश्किल है, पर इतना साफ लगता है कि अगले साल पश्चिम बंगाल, असम, केरल और तमिलनाडु के विधानसभा चुनाव में यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनेगा।

सिद्धांततः अंतर-धर्म विवाहों पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती है, पर यह बहस विवाह की नहीं धर्मांतरण की है। अंतर-धर्म विवाहों का यह झगड़ा आज का नहीं है। यह उन्नीसवीं सदी से चला आ रहा है। यह मामला केवल भाजपा-शासित राज्य उठा रहे हैं, दूसरी तरफ राजस्थान जैसे कांग्रेस शासित राज्यों ने इस किस्म के कानून की संभावनाओं को अनुचित ठहराया है। देखना होगा कि राजनीतिक दल जनता तक इसका संदेश किस रूप में ले जाते हैं।

Saturday, November 21, 2020

भारतीय नेवीगेशन सिस्टम को वैश्विक मान्यता


गत 11 नवंबर को इंटरनेशनल मैरीटाइम ऑर्गनाइजेशन (आईएमओ) ने भारत के इंडिपेंडेंट रीजनल नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम (आईआरएनएसएस) को वर्ल्ड वाइड रेडियो नेवीगेशन सिस्टम (डब्लूडब्लूआरएनएस) के अंग के रूप में मान्यता देकर भारत को इस क्षमता वाले चौथे देश के रूप में मान्यता दे दी। अब हमारी नेवीगेशन देश की सीमा के बाहर 1500 किलोमीटर तक जीपीएस का स्थान ले सकती है। भारत को यह मान्यता मिलने में करीब दो साल का समय लगा। भारत के जहाजरानी महानिदेशक (डायरेक्टर जनरल, शिपिंग) अमिताभ कुमार के अनुसार अब भारतीय समुद्र के आसपास से गुजरने वाले पोत ज्यादा आधुनिक और ज्यादा सही नेवीगेशन प्रणाली का लाभ उठा सकते हैं।
आईआरएनएसएस भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा विकसित स्‍वतंत्र क्षेत्रीय मार्ग निर्देशन तंत्र है। इसे न केवल भारतीय प्रयोक्ताओं बल्कि अपनी सीमा के बाहर 1500 किमी के दायरे, में आनेवाले सभी क्षेत्रों में सटीक स्थिति संबंधित सूचनाएं उपलब्‍ध कराने के लिए डिजाइन किया गया है। यह इसका मूल सेवा क्षेत्र है। इसका विस्तारित क्षेत्र मूल सेवा क्षेत्र तथा 30 डिग्री दाक्षिण से 50 डिग्री उत्तरी अक्षांश  तथा 30 डिग्री पूर्व से 130 डिग्री पूर्व देशांतर में अवरत चतुर्भुज के सभी क्षेत्रों में व्याप्त है।

तुर्की का कट्टरपंथी उभार


अब से दस साल पहले तुर्की एक प्रगतिशील देश था। भूमध्य सागर क्षेत्र और पश्चिम एशिया और खासतौर से मुस्लिम देशों में उसकी विदेश-नीति की बहुत तारीफ होती थी। दस साल पहले उसके तत्कालीन विदेशमंत्री अहमत दावुतुगोलू ने पड़ोसी देशों के साथ ‘जीरो प्रॉब्लम्स’ नीति पर चलने की बात कही थी। आज यह देश पड़ोसियों के साथ जीरो फ्रेंडली रह गया है। वह अफगानिस्तान से लेकर फलस्तीन तक की समस्याओं के समाधान में मध्यस्थ बनता जा रहा था। यहाँ तक कि अमेरिका और ईरान के रिश्तों को सुधारने का जिम्मा भी तुर्की ने अपने ऊपर ले लिया था। पर अब सीरिया, लीबिया और आर्मेनिया-अजरबैजान के झगड़े तक में तुर्की ने हिस्सा लेना शुरू कर दिया है।

सबसे बड़ी बात है कि तुर्की संकीर्ण कट्टरपंथी सांप्रदायिक शब्दावली का इस्तेमाल कर रहा है। हाल में फ्रांस में हुए हत्याकांडों के बाद उसके राष्ट्रपति एर्दोगान ने इस्लामोफोबिया को लेकर जैसी बातें कहीं, वे ध्यान खींचती हैं। एर्दोगान ने मुस्लिम देशों से कहा कि वे फ्रांसीसी सामान का बहिष्कार करें। मैक्रों पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा, ‘फ्रांस की बागडोर जिनके हाथों में है वह राह भटक गए हैं।’

लगता नहीं है यह वही तुर्की है, जिसे बीसवीं सदी में अतातुर्क कमाल पाशा ने आधुनिक देश बना दिया था, जो धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था का हामी था। तुर्की की नई विदेश नीति पश्चिम विरोधी है। शायद उसका आकलन है कि पश्चिमी देशों का प्रभाव घट रहा है और उसे चीन और रूस जैसे देशों के साथ अपने ताल्लुकात बढ़ाने चाहिए। तुर्की के व्यवहार से ऐसा भी लगता है कि इस्लामी देशों की बची-खुची एकता समाप्त हो रही है।

Friday, November 20, 2020

क्या चीन चाहता है कि अमेरिकी खेमे में जाए भारत?


एक धारणा है कि लद्दाख में चीनी आक्रामकता के कारण भारत ने अमेरिका का दामन पकड़ा है। यदि चीन का खतरा नहीं होता, तो भारत अपनी विदेश-नीति को संतुलित बनाकर रखता और अमेरिकी झुकाव से बचा रहता। क्या आप इस बात से सहमत हैं? इस बीच एक आलेख मुझे ऐसा पढ़ने को मिला, जिसमें कहा गया है कि चीन ने भारत को अमेरिकी खेमे में जाने के लिए जान-बूझकर धकेला है, ताकि दुनिया में फिर से दो ध्रुव तैयार हों। भारत के रहने से दो ध्रुव ठीक से बन नहीं पा रहे थे और चीन के खेमे में भारत के जाने की संभावनाएं थी नहीं।

इंडियन एक्सप्रेस में श्रीजित शशिधरन ने लिखा है कि लद्दाख में चीनी गतिविधियों की तुलना इतिहास की एक और घटना से की जा सकती है, जिसे सेवन ईयर्स वॉर के नाम से याद किया जाता है, जिसके कारण दुनिया की राजनीति में बड़ा बदलाव आया। 1756 से 1763 के बीच फ्रांस और इंग्लैंड के बीच वह युद्ध एक तरह से वैश्विक चौधराहट के लिए हुआ था। क्या भारत-चीन टकराव के निहितार्थ उतने ही बड़े हैं? शशिधरन के अनुसार चीन की कामना है कि उसका और रूस का गठबंधन बने और दुनिया सीधे-सीधे फिर से दो ध्रुवों के बीच बँटे। उसकी इच्छा यह भी है कि भारत किसी न किसी तरह से अमेरिका के खेमे में जाए।

Thursday, November 19, 2020

हाफिज सईद को सजा या सब नौटंकी है?


पाकिस्तान की एक अदालत ने मुंबई हमले के सरगना और जमात-उद-दावा के मुखिया हाफिज सईद को आतंकवाद के दो और मामलों में 10 साल जेल की सजा सुनाई है। दोनों मामले आतंकवाद के लिए पैसे जुटाने से जुड़े हुए हैं। यह खबर जितने जोरदार तरीके से भारतीय मीडिया में प्रकाशित की जा रही है, उतने जोरदार तरीके से पाकिस्तानी मीडिया में नहीं है। पाकिस्तान के डॉन और ट्रिब्यून जैसे अखबारों की वैबसाइट पर यह खबर इन पंक्तियों के लिखे जाते समय यानी शाम 6.00 बजे के आसपास आई भी नहीं थी।

सोशल मीडिया पर भारत के लोगों की पहली प्रतिक्रिया यह है कि यह भी किसी किस्म की नौटंकी है। शायद फरवरी में होने वाली एफएटीएफ बैठक की पेशबंदी है। सच यह है कि पाकिस्तान सरकार ने पिछले साल संरा सुरक्षा परिषद से अनुरोध करके हाफिज सईद की पेंशन बँधवाई थी। हाफिज सईद को सजा दी गई है इसका मतलब साफ है कि यह किसी बात की पेशबंदी है। वह तो पाकिस्तानी सेना से जुड़ा व्यक्ति है और उसे देश का हीरो माना जाता है। बीबीसी के एक विश्लेषण के अनुसार विशेषज्ञों का मानना है कि अगर पाकिस्तान लगातार एफएटीएफ को निराश करता है और उसे ब्लैकलिस्ट कर दिया जाता है तो इसके गंभीर वित्तीय और कूटनीतिक नतीजे होंगे।