पिछले दो-तीन हफ्ते के घटनाक्रम से लगता है कि कांग्रेस पार्टी के भीतर गम्भीर अंतर्मंथन चल रहा है। यह अंतर्मंथन सायास नहीं है। पार्टी हाल में राजस्थान के संकट से बाहर आई है। राजस्थान में कांग्रेस को विजयी मानें भी, तो यह भी मानना होगा कि सचिन पायलट के रूप में एक ‘रुष्ट’ युवा राजनेता पार्टी के भीतर बैठा है। ऐसे नाराज नेताओं की संख्या बढ़ती जा रही है। 23 वरिष्ठ नेताओं का पत्र भी यही बता रहा है। इनमें से कुछ और ज्यादा नाराज होंगे और कुछ अपनी नाराजगी को छोड़कर जैकारा लगाने लगेंगे। इधर कपिल सिब्बल ने कहा है कि हमने क्या गलत बात की? हम एक प्रक्रिया की बात कर रहे हैं। बीजेपी पर हम आरोप लगाते हैं कि वह संविधान का पालन नहीं करती है। पर हम क्या करते हैं? हमने जो बातें कहीं, उनका जवाब नहीं दिया गया, बल्कि हमारी आलोचना की गई और किसी ने हमारे पक्ष में नहीं बोला।
अब सवाल तीन हैं। क्या कांग्रेस सन 1969 के आसपास के दौर में आ गई है, जब पार्टी के भीतर दो साफ धड़े बन गए थे? क्या यह दौर भी ‘गांधी परिवार’ के पक्ष में गया है? तीसरा सवाल है कि यदि धड़ेबाज़ी चलने वाली नहीं है और पार्टी एक ही रहेगी, तो वर्तमान असंतोष की तार्किक परिणति क्या है? कुल मिलाकर नरेंद्र मोदी की बीजेपी का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस के पास अब क्या बचा है? उसे कौन बचाने वाला है?