संसद से नागरिकता संशोधन विधेयक पास होने के बाद पूर्वोत्तर
के राज्यों में आंदोलन खड़े हो गए हैं। ज्यादा उग्र आंदोलन असम में है। उसके अलावा
त्रिपुरा और मेघालय में भी घटनाएं हुई हैं, पर अपेक्षाकृत हल्की हैं। असम में
अस्सी के दशक के बाद ऐसा आंदोलन अब खड़ा हुआ है। दिलचस्प यह है कि दिल्ली के
जामिया मिलिया इस्लामिया या अलीगढ़ विश्वविद्यालय के छात्र जो विरोध
प्रदर्शन कर रहे हैं, उसके पीछे वही कारण नहीं हैं, जो असम के आंदोलनकारियों के
हैं। मुसलमान छात्र मानते हैं कि यह कानून मुसलमान-विरोधी है, जबकि पूर्वोत्तर के
राज्यों में माना जा रहा है कि उनके इलाकों में विदेशियों की घुसपैठ हो जाएगी। खबरें
हैं कि असम
में आंदोलन शांत हो रहा है, पर बंगाल में उग्र हो रहा है। दोनों राज्यों के
आंदोलनों में बुनियादी अंतर है। असम
वाले किसी भी विदेशी के प्रवेश के विरोधी हैं, वहीं बंगाल वाले मुसलमानों को
देश से निकाले जाने के अंदेशे के कारण उत्तेजित हैं। यह अंदेशा इसलिए है, क्योंकि अमित शाह ने घोषणा की है
कि पूरे देश के लिए भी नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) बनाया जाएगा।
लगता है कि सरकार को पूर्वोत्तर की प्रतिक्रिया का आभास
नहीं था। सरकार ने इस
कानून को छठी अनुसूची में रखा है, जिसके तहत इनर लाइन परमिट
वाले राज्यों में नागरिकता नहीं मिल सकेगी, फिर भी आंदोलनों को देखते हुए लगता है
कि सरकारी तंत्र अपने संदेश को ठीक से व्यक्त करने में असमर्थ रहा है। सरकार ने
इंटरनेट पर रोक लगाकर आंदोलन को दूसरे इलाकों तक फैलने से रोकने की कोशिश जरूर की
है, पर इस बात का जनता तक गलत संदेश भी गया है। यह बात सामने आ रही है कि सरकार ने पहले से तैयारियां नहीं की थीं और इस
कानून के उपबंधों से इस इलाके के लोगों को ठीक समय पर परिचित नहीं कराया था। अब
सरकार ने राज्य के डीजी पुलिस को बदल दिया है और संचार-संपर्क को भी बढ़ाया है।