संसदीय कार्य मंत्री
प्रह्लाद जोशी ने शुक्रवार को कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी से उनके घर
जाकर मुलाकात की। इसे एक सामान्य और औपचारिक मुलाकात कह सकते हैं, पर यह उतनी सामान्य नहीं है, जितनी दूर से
लगती है। इस मुलाकात का व्यावहारिक अर्थ कुछ समय बाद ही स्पष्ट होगा, पर इसे एक नई शुरुआत के रूप में देख सकते हैं। देश के
इतिहास में सम्भवतः सबसे कड़वाहट भरे लोकसभा चुनाव के बाद जो सरकार बनी है, उसपर काफी जिम्मेदारियाँ हैं। सबसे बड़ी जिम्मेदारी है
कड़वाहट के माहौल को खत्म करके रचनात्मक माहौल की स्थापना। और दूसरी जिम्मेदारी है
देश को विकास की नई राह पर ले जाने की।
सरकार ने शायद कुछ सोचकर
ही सोनिया गांधी की तरफ हाथ बढ़ाया है। यों ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। नवम्बर, 2015 में संसद के शीत सत्र के पहले दो दिन संविधान
दिवस के संदर्भ में विशेष चर्चा को समर्पित थे। उस चर्चा के फौरन बाद नरेन्द्र
मोदी के साथ सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह की मुलाकात हुई थी। उस रोज संसद में
नरेन्द्र मोदी ने इस बात का संकेत दिया था कि वे आमराय बनाकर काम करना पसंद
करेंगे। उन्होंने देश की बहुल संस्कृति को भी बार-बार याद किया। उस चर्चा के अंत
में लोकसभा अध्यक्ष ने भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता का श्रेय डॉ भीमराव आम्बेडकर
के अलावा महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल,
मौलाना आजाद तथा
अन्य महत्वपूर्ण राजनेताओं को दिया।
नरेन्द्र मोदी ने अपने
वक्तव्य में खासतौर से जवाहर लाल नेहरू का नाम लिया। यह सच है कि सरकार को तब
जीएसटी जैसे महत्वपूर्ण विधेयक को पास कराने के लिए कांग्रेस के समर्थन की जरूरत
थी। यह बात नोटबंदी के एक साल पहले की है। उस साल कांग्रेस ने पहली बार मॉनसून
सत्र में आक्रामक रुख अपनाया था और पूरा सत्र धुल गया था। यह कटुता उसके बाद बढ़ती
गई। कांग्रेस की नई आक्रामक रणनीति कितनी कारगर हुई या नहीं, यह अलग से विश्लेषण का विषय है, हमें उन बातों के बरक्स नए हालात पर नजर डालनी चाहिए।