दो तरह की खबरों को एकसाथ पढ़ें, तो समझ में आता
है कि लोकसभा चुनाव करीब आ गए हैं. नीति
आयोग और सांख्यिकी मंत्रालय ने राष्ट्रीय विकास दर के नए आँकड़े जारी किए हैं. इन
आँकड़ों की प्रासंगिकता पर बहस चल ही रही थी कि दिल्ली
में हुई दो दिन की किसान रैली ने देश का ध्यान खींच लिया. दोनों परिघटनाओं की
पृष्ठभूमि अलग-अलग है, पर ठिकाना एक ही है. दोनों को लोकसभा चुनाव की प्रस्तावना
मानना चाहिए.
संसद के शीत-सत्र की तारीखें आ चुकी हैं. किसानों
का मसला उठेगा, पर इससे केवल माहौल बनेगा. नीतिगत बदलाव की अब आशा नहीं है. इसके
बाद बजट सत्र केवल नाम के लिए होगा. जहाँ तक किसानों से जुड़े दो निजी विधेयकों का
प्रश्न है, यह माँग हमारी परम्परा से मेल नहीं खाती. ऐसे कानून बनने हैं, तो
विधेयक सरकार को लाने होंगे, वैसे ही जैसे लोकपाल विधेयक लाया था. यों उसका हश्र
क्या हुआ, आप बेहतर जानते हैं.