Monday, November 14, 2016

नेहरू को बिसराना भी गलत है

पिछले साल जब सरकार ने योजना आयोग की जगह ‘नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया’ (राष्ट्रीय  भारत परिवर्तन संस्थान) यानी ‘नीति’ आयोग बनाने की घोषणा की थी तब कुछ लोगों ने इसे छह दशक से चले आ रहे नेहरूवादी समाजवाद की समाप्ति के रूप में लिया. यह तय करने की जरूरत है कि वह राजनीतिक प्रतिशोध था या भारतीय रूपांतरण के नए फॉर्मूले की खोज. वह एक संस्था की समाप्ति जरूर थी, पर क्या योजना की जरूरत खत्म हो गई? नेहरू का हो या मोदी का विज़न या दृष्टि की जरूरत हमें तब भी थी और आज भी है.

Sunday, November 13, 2016

काले धन पर वार तो यह है

काफी लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि नोटों को बदल देने से काला धन कैसे बाहर आ जाएगा। अक्सर हम काले धन का मतलब भी नहीं जानते हैं। कुछ लोगों को लगता है कि बड़ी मात्रा में  किसी के पास कैश हो तो वह काला धन है। कैश का मतलब हमेशा काला धन नहीं है। पर प्रायः कैश के रूप में काला धन होता है। यदि नकदी का विवरण किसी के पास है और वह व्यक्ति उसमें से उपयुक्त राशि टैक्स वगैरह के रूप में जमा करता है तो वह काला धन नहीं है। 
फिलहाल दुनिया में समझ यह बन रही है कि लेन-देन को नकदी के बजाय औपचारिक रिकॉर्डेड तरीके से करना सम्भव हो तो 'काले धन' का बनना कम हो जाएगा। इनफॉर्मेशन तकनीक ने इसे सम्भव बना दिया है। भारत में गरीबी, अशिक्षा और तकनीकी नेटवर्क के अधूरे विस्तार के कारण दिक्कतें हैं। उन्हें दूर करने की कोशिश तो करनी ही होगी। 

Thursday, November 10, 2016

ट्रम्प से ज्यादा महत्वपूर्ण है अमेरिकी सिस्टम


अमेरिकी मीडिया के कयास के विपरीत डोनाल्ड ट्रम्प का जीतना कुछ लोगों को विस्मयकारी लगा, जिसकी जरूरत नहीं है। अमेरिकी चुनाव की प्रक्रिया ऐसी है कि ज्यादा वोट जीतने वाला भी हार सकता है। यदि वे हार भी जाते तो उस विचार की हार नहीं होती, जो इस चुनाव के पीछे है। लगभग कुछ दशक की उदार अमेरिकी व्यवस्था के बाद अपने राष्ट्रीय हितों की फिक्र वोटर को हुई है। कुछ लोग इसे वैश्वीकरण की पराजय भी मान रहे हैं। वस्तुतः यह अंतर्विरोधों का खुलना है। इसमें किसी विचार की पूर्ण पराजय या अंतिम विजय सम्भव नहीं है। अमेरिका शेष विश्व से कुछ मानों में फर्क देश है। यह वास्तव में बहुराष्ट्रीय संसार है। इसमें कई तरह की राष्ट्रीयताएं बसती हैं। हाल के वर्षों में पूँजी के वैश्वीकरण के कारण चीन और भारत का उदय हुआ है। इससे अमेरिकी नागरिकों के आर्थिक हितों को भी चोट लगी है। ट्रम्प उसकी प्रतिक्रिया हैं। क्या यह प्रतिक्रिया गलत है? गलत या सही दृष्टिकोण पर निर्भर है। पर यह प्रतिक्रिया अस्वाभाविक नहीं है। दुनिया के ऐतिहासिक विकास की यह महत्वपूर्ण घड़ी है। अमेरिकी चुनाव की खूबसूरती है कि हारने के बाद प्रत्याशी विजेता को समर्थन देने का वायदा करता है और जीता प्रत्याशी अपने आप को उदार बनाता है। ट्रम्प ने चुनाव के बाद इस उदारता का परिचय दिया है। अमेरिकी प्रसासनिक व्यवस्था में राष्ट्रपति बहुत ताकतवर होता है, पर वह निरंकुश नहीं हो सकता। अंततः वह व्यवस्था ही काम करती है। 
अमेरिका में राष्ट्रपति पद का जैसा चुनाव इस बार हुआ है, वैसा कभी नहीं हुआ। दोनों प्रत्याशियों की तरफ से कटुता चरम सीमा पर थी। अल्ट्रा लेफ्ट और अल्ट्रा राइट खुलकर आमने-सामने थे। डोनाल्ड ट्रम्प के बारे में अभी कुछ भी कहना मुश्किल है, सिवाय इसके कि वे धुर दक्षिणपंथी और राष्ट्रवादी राष्ट्रपति साबित होंगे। पर सबसे बड़ा खतरा यह है कि उनके ही कार्यकाल में अमेरिका की अर्थ-व्यवस्था पहले नम्बर से हटकर दूसरे नम्बर की बनने जा रही है।

Wednesday, November 9, 2016

काले धन पर सरकार का ‘सर्जिकल स्ट्राइक’

2014 के चुनाव के पहले भारतीय जनता पार्टी ने कहा था कि विदेश में 400 से 500 अरब डॉलर का भारतीय कालाधन विदेशों में जमा है. विदेश में जमा काला धन अंतरराष्ट्रीय कानूनों के मकड़जाल में फंस कर रह गया. इस वजह से मोदी सरकार को जवाब देते नहीं बनता है. काले धन का मसला राजनीति और गवर्नेंस दोनों से जुड़ा है. हाल में भारत सरकार ने अघोषित आय को घोषित करने की जो योजना 1 जून 2016 से लेकर 30 सितंबर 2016 तक के लिए चलाई थी वह काफी सफल रही.

योजना की समाप्ति के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बताया कि अघोषित आय घोषणा योजना के माध्यम से 64,275 लोगों ने 65 हजार 250 करोड़ रुपए की संपत्ति घोषित की. सवाल है कि क्या 64 हजार लोगों के पास ही अघोषित आय है? फिर भी ये अब तक की सबसे बड़ी अघोषित आय थी. पर अनुमान है कि इससे कहीं बड़ी राशि अभी अघोषित है. नोटों को बदलने की योजना आजादी के बाद काले धन को बाहर निकालने की शायद सबसे बड़ी कोशिश है. इसके मोटे निहितार्थ इस प्रकार हैं-

Tuesday, November 8, 2016

क्या सरकार ने घबराकर एनडीटीवी का बैन हटाया?

एनडीटीवी इंडिया को एक दिन के लिए ऑफ-एयर करने के सरकारी आदेश का अनुपालन रोकने की खबर 7 नवम्बर को आने के बाद से दो तरह की बातें सामने आ रही हैं। एनडीटीवी पर पाबंदी लगाने के समर्थकों का कहना है कि सरकार ने यह कदम गलत उठाया है। सवाल है कि क्या सरकार ने यह कदम एनडीटीवी पर कृपा करके उठाया है या इसलिए उठाया है कि चैनल अदालत चला गया था और सरकार घबरा गई थी?

एनडीटीवी इंडिया की वैबसाइट पर खबर में कहा गया है कि इस फैसले की चौतरफा आलोचना के बाद बैन सम्बंधी आदेश को स्थगित किया गया।  यह फैसला तब आया जब सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को इस बैन पर स्‍टे संबंधी याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया।

इस संबंध में सोमवार की दोपहर NDTV के प्रतिनिधियों ने सूचना और प्रसारण मंत्री से मुलाकात की। उन्‍होंने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि एनडीटीवी इंडिया ने जनवरी में पठानकोट के एयरफोर्स बेस पर हमले के संबंध में संवेदनशील ब्‍यौरे का प्रसारण नहीं किया। साथ ही कहा कि चैनल को अपनी तरफ से साक्ष्‍य पेश करने का उपयुक्‍त मौका नहीं दिया। चैनल ने ऐसी कोई सूचना प्रसारित नहीं की जो उस वक्‍त बाकी चैनलों और अख़बारों से भिन्‍न रही हो।