Wednesday, November 2, 2016

पाकिस्तानी उच्चायोग में जासूसी

 1 नवम्बर के डॉन में खबर थी कि पाकिस्तान सरकार सम्भवतः अपने चार राजनयिकों को वापस बुलाएगी। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि जिस राजनयिक को भारत ने जासूसी के आरोप में वापस भेजा है उसने पुलिस से पूछताछ के दौरान कुछ नाम बताए हैं, जिन्हें वापस लेने पर भारत सरकार दबाव बना रही है। खबर यह भी है कि इन्हें वापस बुलाने के साथ-साथ पाकिस्तान भारत के कुछ और राजनयिकों को भारत वापस भेजेगी। इस प्रकार राजनयिकों का यह जवाबी संग्राम अब शुरू हुआ है। 3 नवम्बर के डॉन में भारतीय उच्चायोग के आठ सदस्यों को अंडरकवर जासूस बताया गया। उधर भारतीय मीडिया में खबरें थीं कि भारत ने पाकिस्तान के छह राजनयिकों को वापस उनके देश भेजा है। 

डॉन के अनुसार  
The government is considering pulling out from India four of its officers posted in Pakistan’s High Commission in New Delhi, days after Indian authorities declared one official persona non grata.

“This is under consideration. A final decision would be taken shortly,” a source at the Foreign Office said on Monday.

The names of the officers — commercial counsellor Syed Furrukh Habib and first secretaries Khadim Huss­ain, Mudassir Cheema and Shahid Iqbal — were made public after Indian officials released to media a recorded statement of a high commission staffer Mehm­ood Akhtar, who was expelled from India after being declared persona non grata.
डॉन में पढ़ें पूरी खबर

उधर आज भारत के अखबार डीएनए ने खबर दी है कि दूतावास में पाकिस्तान के कॉमर्शियल काउंसलर सैयद फर्रुख हबीब आईएसआई के एजेंट हैं। उनके अलावा भी दूतावास के कई कर्मचारी केवल जासूसी का काम कर रहे हैं।
डीएनए के अनुसार
The reverberations of the Pakistani spy ring saga continue to impact New Delhi and Islamabad. What has baffled intelligence agencies in India is that the person in-charge of India-Pakistan trade relations has turned out to be a top Inter-Services Intelligence (ISI) officer and chief of intelligence operations in India.

This came to light after the interrogation of Mehmood Akhtar last week. Akhtar, an ISI officer and Pakistani High Commission staffer, was part of the spy ring.
Intelligence officers said that the top ISI officer, Syed Furrukh Habib, was posted as Commercial Counsellor in the Pakistani High Commission. This is a big worry for India's intelligence officials as it shows that Pakistan has even made trade as a means to gather intelligence.
डीएनए में पढ़ें पूरी खबर

Tuesday, November 1, 2016

सिमी एनकाउंटर से जुड़े सवाल

रविवार और सोमवार के बीच यानी 30-31 अक्तूबर की आधी रात प्रतिबंधित संगठन सिमी (स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया) से जुड़े आठ युवक भोपाल के केन्द्रीय कारागार से भाग निकले। सरकारी जानकारी के अनुसार जेल की चारदीवारी को फांदने के लिए इन कैदियों ने चादरों का इस्तेमाल किया। जाते-जाते उन्होंने एक हैड कॉन्स्टेबल की हत्या भी कर दी। इन कैदियों के भागने की खबर सुबह भारतीय मीडिया में प्रसारित होने के कुछ देर बाद ही आठों के मारे जाने की खबर आई। यह खबर ज्यादा विस्मयकारी थी। इतनी तेजी से यह कार्रवाई किस तरह हुई, यह जानने की इच्छा मन में है। 
जितनी तेजी में एनकाउंटर की खबर आई उतनी तेजी से तमाम सवाल भी उठने लगे। देखते ही देखते कुछ वीडियो भी सोशल मीडिया में अपलोड हो गए। भोपाल के आईजी योगेश चौधरी के मुताबिक जेल से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ईंटखेड़ी गांव में इन आठों ‘आतंकियों’ को पुलिस मुठभेड़ में मार गिराया गया। पुलिस के मुताबिक इन कैदियों के पास हथियार मौजूद थे, जिनकी वजह से यह एनकाउंटर लगभग एक घंटे तक चला। कैदियों और पुलिस के बीच क्रॉस-फायरिंग में पुलिस के दो जवान भी घायल हुए हैं।
जो कैदी फरार हुए उनके नाम हैं : अमज़द, ज़ाकिर हुसैन सादिक़, मुहम्मद सालिक, मुजीब शेख, महबूब गुड्डू, मोहम्मद खालिद अहमद, अक़ील और मजीद। मध्य प्रदेश सरकार ने पुलिस की पीठ थपथपाई है,  साथ ही जेल से भागने की घटना की जांच कराने की घोषणा भी की है। फिलहाल लगता है कि यह मामला तूल पकड़ेगा। इसका राजनीतिक निहितार्थ जो भी हो, देश की पुलिस और न्याय-व्यवस्था से जुड़े सवाल अब उठेंगे। कोई आश्चर्य नहीं कि मामला सबसे ऊँची अदालत तक जाए। कांग्रेस इस मामले को राजनीतिक नजरिए से उठा रही है, पर यह केवल बीजेपी-कांग्रेस का मामला नहीं है। यह हमारी पुलिस व्यवस्था से जुड़ा मसला है। इस बात को नहीं भुलाना चाहिए कि एनकाउंटरों की यह शैली कांग्रेसी शासन में ही विकसित हुई है। यदि प्रशासन ने उसी वक्त पुलिस के खिलाफ कार्रवाई की होती तो यह इतनी नहीं बढ़ती। 

Monday, October 31, 2016

सपा के तम्बू में वर्चस्व का संग्राम

कुछ दिन पहले तक समाजवादी पार्टी पर वंशवाद का आरोप था। अब उसके भीतर प्रति-वंशवाद जन्म ले रहा है। बारह दूने आठ का यह नया पहाड़ा  वंशवाद का बाईप्रोडक्ट है। सवाल उत्तराधिकार का है। समझना यह होगा कि सन 2012 में जब मुलायम सिंह ने अखिलेश को अपना उत्तराधिकारी बनाया था तब वजह क्या थी और आज उन्हें अपने किए पर पछतावा क्यों है?

Sunday, October 30, 2016

बिहार के रास्ते पर यूपी की राजनीति?

क्या उत्तर प्रदेश बिहार के रास्ते जाएगा?

प्रमोद जोशी
वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए

उत्तर प्रदेश के राजनीतिक आकाश पर जैसे शिकारी पक्षी मंडराने लगे हैं. चुनाव नज़दीक होने की वजह से यह लाज़िमी था. लेकिन समाजवादी पार्टी के घटनाक्रम ने इसे तेज़ कर दिया है. हर सुबह लगता है कि आज कुछ होने वाला है.

प्रदेश की राजनीति में इतने संशय हैं कि अनुमान लगा पाना मुश्किल है कि चुनाव बाद क्या होगा. कुछ समय पहले तक यहाँ की ज्यादातर पार्टियाँ चुनाव-पूर्व गठबंधनों की बात करने से बच रही थीं.

भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने दावा किया था कि वे अकेले चुनाव में उतरेंगी. लेकिन अब उत्तर प्रदेश अचानक बिहार की ओर देखने लगा है. पिछले साल बिहार में ही समाजवादी पार्टी ने 'महागठबंधन की आत्मा को ठेस' पहुँचाई थी. इसके बावजूद ऐसी चर्चा अब आम हो गई है.

बहरहाल, अब उत्तर प्रदेश में पार्टी संकट में फँसी है तो महागठबंधन की बातें फिर से होने लगीं हैं.
सवाल है कि क्या यह गठबंधन बनेगा? क्या यह कामयाब होगा?

सपा और बसपा के साथ कांग्रेस के तालमेल की बातें फिर से होने लगी हैं. इसके पीछे एक बड़ी वजह है 'सर्जिकल स्ट्राइक' के कारण बीजेपी का आक्रामक रुख.

उधर कांग्रेस की दिलचस्पी अपनी जीत से ज्यादा बीजेपी को रोकने में है, और सपा की दिलचस्पी अपने को बचाने में है. कांग्रेस, सपा, बसपा और बीजेपी सबका ध्यान मुस्लिम वोटरों पर है. बीजेपी का भी...

मुस्लिम वोट के ध्रुवीकरण से बीजेपी की प्रति-ध्रुवीकरण रणनीति बनती है. 'बीजेपी को रोकना है' यह नारा मुस्लिम मन को जीतने के लिए गढ़ा गया है. इसमें सारा ज़ोर 'बीजेपी' पर है.

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वक्त के साथ रूप बदलती दीवाली!

प्रेम से बोलो, जय दीवाली!

जहां में यारो अजब तरह का है ये त्यौहार।
किसी ने नकद लिया और कोई करे उधार।। 
खिलौने, खीलों, बताशों का गर्म है बाज़ार
हरेक दुकान में चिरागों की हो रही है बहार।।
मिठाइयों की दुकानें लगा के हलवाई।
पुकारते हैं कह--लाला दीवाली है आई।।
बतासे ले कोई, बरफी किसी ने तुलवाई।
खिलौने वालों की उन से ज्यादा है बन आई।।

नज़ीर अकबराबादी ने ये पंक्तियाँ अठारहवीं सदी में कभी लिखी थीं. ये बताती हैं कि दीवाली आम त्यौहार नहीं था. यह हमारे सामाजिक दर्शन से जुड़ा पर्व था. भारत का शायद यह सबसे शानदार त्यौहार है. जो दरिद्रता के खिलाफ है. अंधेरे पर उजाले, दुष्चरित्रता पर सच्चरित्रता, अज्ञान पर ज्ञान की और निराशा पर आशा की जीत. यह सामाजिक नजरिया है, ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय.’ ‘अंधेरे से उजाले की ओर जाओ’ यह उपनिषद की आज्ञा है. यह एक पर्व नहीं है. कई पर्वों का समुच्चय है. हम इसे यम और नचिकेता की कथा के साथ भी जोड़ते हैं. नचिकेता की कथा सही बनाम गलत, ज्ञान बनाम अज्ञान, सच्चा धन बनाम क्षणिक धन आदि के बारे में बताती है. पर क्या हमारी दीवाली वही है, जो इसका विचार और दर्शन हैआसपास देखें तो आप पाएंगे कि आज सबसे गहरा अँधेरा और सबसे ज्यादा अंधेर है। आज आपको अपने समाज की सबसे ज्यादा मानसिक दरिद्रता दिखाई पड़ेगी। अविवेक, अज्ञान और नादानी का महासागर आज पछाड़ें मार रहा है।