Friday, December 26, 2014

धर्मांतरण पर बहस का दायरा और बड़ा कीजिए

बहस धर्मांतरण की हो या किसी दूसरे मसले की उसे खुलकर सामने आना चाहिए। अलबत्ता बातें तार्किक और साधार होनी चाहिए। धार्मिक और अंतःकरण की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण मानवाधिकार है, पर हमें धर्म, खासतौर से संगठित धर्म की भूमिका पर भी तो बात करनी चाहिए। जितनी जरूरी धार्मिक स्वतंत्रता  है उतनी ही जरूरी है धर्म-विरोध की स्वतंत्रता। धर्म का रिश्ता केवल आस्तिक और नास्तिक होने से नहीं है। वह विचार का एक अलग मामला है। व्यक्ति के दैनिक आचार-विचार में धर्म बुनियादी भूमिका क्यों अदा कर रहे हैं? उनकी तमाम बातें निरर्थक हो चुकी हैंं। धार्मिकता को जितना सुन्दर बनाकर पेश किया जाता है व्यवहार में वह वैसी होती नहीं है। इसमें अलग-अलग धर्मों की अलग-अलग भूमिका है। रोचक बात यह है कि नए-नए धर्मों का आविष्कार होता जा रहा है। हम उन्हें पहचान नहीं पाते, पर वे हमारे जीवन में प्रवेश करते जा रहे हैं। अनेक नई वैचारिक अवधारणाएं भी धर्म जैसा व्यवहार करती हैं। सामान्य व्यक्ति की समझदारी की इसमें सबसे बड़ी भूमिका है। चूंकि बातें कांग्रेस-भाजपा और राष्ट्रीय स्वंसेवक संघ को लेकर हैं इसलिए तात्कालिक राजनीति का पानी इसपर चढ़ा है।   धर्म निरपेक्षता के हामियों का नजरिया भी इसमें शामिल है। दुनिया में कौन सा धर्म है जो अपने भीतर सुधार के बारे में बातें करता है? जिसमें अपनी मान्यताओं को अस्वीकार करने  और बदलने की हिम्मत हो? हम जिस धार्मिक स्वतंत्रता की बात कर रहे हैं उसका कोई लेवल फील्ड है या नहीं? आज के सहारा में मेरा एक लेख छपा है इसे देखें:-


हमारा देश धर्म-निरपेक्ष है, पर वह धर्म-विरोधी नहीं है। संविधान में वर्णित स्वतंत्रताओं में धर्म की स्वतंत्रता और अधिकार भी शामिल है। इस स्वतंत्रता में धर्मांतरण भी शामिल है या नहीं, इसे लेकर कई तरह की धारणाएं हैं। देश के पाँच राज्यों में कमोबेश धर्मांतरण पर पाबंदियाँ हैं। इनके अलावा राजस्थान में इस आशय का कानून बनाया गया है, जो राष्ट्रपति की स्वीकृति का इंतज़ार कर रहा है। अरुणाचल ने भी इस आशय का कानून बनाया, जो किसी कारण से लागू नहीं हुआ। तमिलनाडु सरकार ने सन 2002 में इस आशय का कानून बनाया, जिसे बाद में राजनीतिक विरोध के कारण वापस ले लिया गया। ये ज्यादातर कानून धार्मिक स्वतंत्रता के कानून हैं, पर इनका मूल विषय है धर्मांतरण पर रोक। धर्मांतरण क्या वैसे ही है जैसे राजनीतिक विचार बदलना? मसलन आज हम कांग्रेसी है और कल भाजपाई? पश्चिमी देश धर्मांतरण की इजाजत देते हैं, पर काफी मुस्लिम देश नहीं देते।

Wednesday, December 24, 2014

Modi year ends on Modi note आज के कुछ पठनीय आलेख

आज के अखबारों में जम्मू-कश्मीर और झारखंड के चुनाव परिणाम छाए हैं। मीडिया अभी तय नहीं कर पा रहीा है कि मोदी वेव थमी है या चल रही है। यह वेव कभी थी भी या नहीं। ज्यादातर लोग अपनी पूर्व निर्धारित धारणाओं के आधार पर फैसले कर रहे हैं। ज्यादातर निष्कर्ष कश्मीर को लेकर हैं। कश्मीर की राजनीति अचानक देश की सुर्खियों में है। इस राज्य में बीजेपी की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो सकती है, पहले ऐसा सोचा न गया होगा। देखें आज की कुछ कतरनें
हिंदू में केशव का कार्टून
आज के कुछ पठनीय आलेख
No rabbit in his hat
Suhas Palshikar in Indian express

The distance between Jammu and Kashmir
Muzamil Jaleel in Indian Express

क्षेत्रीय दलों के बिखराव का नतीजा

प्रभात खबर, रांची

प्रभात खबर, रांची
‘राज्य’ से आगे निकलता ‘राष्ट्रीय’
प्रभात खबर, रांची

क्या नरेंद्र 'अटल' बनेंगे

अमर उजाला

अमर उजाला

Tuesday, December 23, 2014

राजनीति अब और करवट लेगी

राष्ट्रीय राजनीति में भारी बदलाव की आहट

  • 3 मिनट पहले
जम्मू-कश्मीर, चुनाव
भारत प्रशासित जम्‍मू कश्‍मीर राज्य और झारखंड के विधानसभा चुनाव परिणामों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रभाव क्षेत्र के विस्तार को स्थापित किया है.
दोनों राज्यों में उसे अब तक की सबसे बड़ी सफलता हासिल हुई है. जम्मू-कश्मीर में पार्टी पहली बार असाधारण रूप से महत्वपूर्ण स्थिति में पहुँच गई है.
इससे केवल राज्य की राजनीति ही प्रभावित नहीं होगी, बल्कि इसका व्यापक राष्ट्रीय असर होगा. सम्भवतः भाजपा की अनेक अतिवादी धारणाएं पृष्ठभूमि में चली जाएंगी.
उसे राष्ट्रीय राजनीति के बरक्स अपने भीतर लचीलापन पैदा करना होगा.

पढ़ें लेख विस्तार से

भाजपा, समर्थक
भाजपा का दावा है कि जम्मू-कश्मीर का मौजूदा चुनाव उसकी दीर्घकालीन राजनीति का एक चरण है. यानी वह राज्य में ज़्यादा बड़ी भूमिका निभाने का इरादा रखती है.
इसकी परीक्षा अगले एक-दो दिन में ही हो जाएगी. देखना यह होगा कि क्या पार्टी कश्मीर में सरकार बनाने की कोशिश करेगी.
दूसरी ओर झारखंड में भाजपा को पिछली बार की तुलना में सफलता ज़रूर मिली है, पर उसे गठबंधन का सहारा लेना होगा.
यानी राज्य को गठबंधन-राजनीति से पूरी तरह मुक्ति नहीं मिलेगी. इसका मतलब यह भी है कि पार्टी ने सही समय पर वक़्त की नब्ज़ को पढ़ा और आजसू (ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन) से गठबंधन किया.

Monday, December 22, 2014

कट्टरता का जवाब है वैचारिक समझदारी


आज के इंडियन एक्सप्रेस के दो आइटम ध्यान खींचने वाले हैं। अखबार के एक्सप्रेस अड्डा कार्यक्रम में अमर्त्य सेन ने नरेंद्र मोदी के साथ अपने मतभेदों का जिक्र करते हुए यह भी कहा कि मोदी ने इस उम्मीद को कायम किया कि बहुत कुछ हो भी सकता है। उन्होंने मोदी के शौचालय कार्यक्रम की प्रशंसा की और यह भी माना कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने दूसरे कार्यकाल में काम करके दिखा नहीं पाए। आज के एक्सप्रेस ने गोवा के एक कार्यक्रम से सुषमा स्वराज के एक वक्तव्य को उधृत किया है, जिसमें स्वराज ने उदारता और सहिष्णुता के रास्ते को उचित बताया है। हार्डकोर हिन्दुत्व से जुड़े बयानों के बीच सुषमा स्वराज का यह बयान आश्वस्तिकारक है। आज के एक्सप्रेस में पाकिस्तानी पत्रकार हामिद मीर का लेख भी कुछ बुनियादी सवाल उठाता है। एक्सप्रेस में पाकिस्तान के पूर्व विदेशमंत्री खुरशीद महमूद कसूरी का इंटरव्यू भी पढ़ने लायक है, जिसमें उन्होंने ट्रैक टू की बातचीत को उपयोगी बताया है। 


Sunday, December 21, 2014

कांग्रेस का सबसे डरावना साल

कांग्रेस के लिए यह साल आसमान से जमीन पर गिरने का साल था। दस साल पहले कुछ ऐसी परिस्थितियाँ बनीं जिनमें कांग्रेस पार्टी को न केवल सत्ता में आने का मौका मिला बल्कि नेहरू-गांधी परिवार को फिर से पार्टी की बागडोर हाथ में लेने का पूरा मौका मिला। इस साल अचानक सारी योजना फेल हो गई और अब पार्टी गहरे खड्ड की और बढ़ रही है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सबसे बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। उसके ठीक पहले और बाद में हुए सभी विधानसभा चुनावों में भी उसकी हार हुई। इन दिनों हो रहे जम्मू-कश्मीर और झारखंड विधानसभा चुनावों के परिणाम 23 दिसम्बर को आने के बाद पराभव का पहिया एक कदम और आगे बढ़ जाएगा।