Sunday, January 26, 2014

गणतंत्र का दर्शन

आज सुबह अखबारों में प्रकाशित राष्ट्रपति के भाषण से लगा कि इसपर राजनीति का असर है। दूसरी ओर विचार करते हैं तो लगता है कि यह एक तटस्थ संरक्षक की राय है। प्रणब मुखर्जी बेशक राजनेता हैं, पर अनेक कारणों से वे तटस्थ पर्यवेक्षक लगते हैं। आज के अखबारों में अरविंद केजरीवाल का गणतंत्र दिवस भाषण भी छपा है। इसमें बाकी बातें पीछे रह गईं, सबसे आगे उनकी मीडिया को लेकर कड़वाहट सामने आई। किसी न किसी मौके पर हमें अपना मीडिया अराजक लगने लगता है। इस पर विचार किया जाना चाहिए।यों आज के अखबारों में गणतंत्र के दर्शन पर काफी सामग्री है। कम्प्यूटर ऑन करने पर सबसे पहले दर्शन होते हैं गूगल लोगो के


नवभारत टाइम्स

भागो नहीं, जागो और बदलो

अक्सर लोग पूछते हैं कि गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस में फर्क क्या है? मोटे तौर पर इसका मतलब है संविधान लागू होने का दिन। संविधान सभा ने 29 नवम्बर 1949 को संविधान को अंतिम रूप दे दिया था। इसे उसी रोज लागू किया जा सकता था या 1 दिसम्बर या 1 जनवरी को लागू किया जा सकता था। पर इसके लिए 26 जनवरी की तारीख मुकर्रर की गई। वह इसलिए कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दिसम्बर 1929 में हुए लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पास किया गया और  26 जनवरी, 1930 को कांग्रेस ने भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के निश्चय की घोषणा की और अपना सक्रिय आंदोलन आरंभ किया। उस दिन से 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त होने तक 26 जनवरी पूर्ण स्वराज्य दिवस के रूप में मनाया जाता रहा। पर स्वतंत्रता मिली 15 अगस्त को। 26 जनवरी का महत्व बनाए रखने के इसे आगामी 26 जनवरी 1950 से लागू करने का फैसला किया गया।

Saturday, January 25, 2014

मीडिया और राजनीति की साख के सवाल

आज राष्ट्रपति का राष्ट्र के नाम संदेश आ रहा है, झूठे वादे न करें नेता। देर रात तक पता लगेगा कि देश ने किन-किन महान व्यक्तियों को पद्म पुरस्कार देकर पुरस्कृत किया। इनमें मीडियाकर्मी भी होंगे। उन्हें सम्मान क्यों मिला या बहुत से लोगों को क्यों नहीं मिला, इसपर कल बात करेंगे। अलबत्ता आज सोमनाथ भारती ने पहले मीडिया पर हमला किया, फिर माफी माँगी। इसके पहले अरविंद केजरीवाल भी मीडिया पर हमला बोल चुके हैं। आज आप में मीडिया से आए आशुतोष ने मीडिया को सलाह दी कि वह आत्म निरीक्षण करे।  आज के अखबार लोकसभा चुनाव के ओपीनियन पोल और दिल्ली में आप और केंद्र सरकार की डांड़ामेड़ी से भरे रहे। दिन में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हल्का रहा। जिस रोज कोई सनसनीखेज बात नहीं होती इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हक्का-बक्का रह जाता है। खबर की परिकल्पना ही नहीं है उसके पास। सनसनीखेज खबरें और फिर उनपर प्रतिक्रिया के नाम पर या तो शोर या जानबूझकर किसी खास पक्ष को उठाने या गिराने की कोशिश के कारण इसकी साख कम हो गई है। इसका मतलब यह नहीं कि लोग इसे देखते नहीं। हार्डन्यूज का सबसे अच्छा माध्यम फिलहाल यही है। पर अगले दो-एक साल में यह इजारेदारी खत्म होने जा रही है। आज के अखबारों से मैने विचार पक्ष को सामने लाने की कोशिश की है। इंडियन एक्सप्रेस में सुरजीत भल्ला का आप की चुनाव सम्भावनाओं पर लेख है। जागरण में गुरचरण दास का आप पर लेख और नवभारत टाइम्स में मार्क टली का इंटरव्यू मुझे पठनीय लगा। नजर डालें कुछ कतरनों परः-

नवभारत टाइम्स

उदारीकरण और भ्रष्टाचार, कैसे लड़ेंगे राहुल?

कांग्रेस का नया पोस्टर है राहुल जी के नौ हथियार दूर करेंगे भ्रष्टाचार। इन पोस्टरों में नौ कानूनों के नाम हैं। इनमें से तीन पास हो चुके हैं और छह को संसद के अगले अधिवेशन में पास कराने की योजना है। यह पोस्टर कांग्रेस महासमिति में राहुल गांधी के भाषण से पहले ही तैयार हो गया था। राहुल का यह भाषण आने वाले लोकसभा चुनाव का प्रस्थान बिन्दु है। इसका मतलब है कि पार्टी ने कोर्स करेक्शन किया है। हाल में हुए विधानसभा के चुनावों तक राहुल मनरेगा, सूचना और शिक्षा के अधिकार, खाद्य सुरक्षा और कंडीशनल कैश ट्रांसफर को गेम चेंजर मानकर चल रहे थे। ग्राम प्रधान को वे अपने कार्यक्रमों की धुरी मान रहे थे। पर 8 दिसंबर को आए चुनाव परिणामों ने बताया कि शहरों और मध्य वर्ग की अनदेखी महंगी पड़ेगी।

सच यह है कि कोई पार्टी उदारीकरण को राजनीतिक प्रश्न बनाने की हिम्मत नहीं करती। विकास की बात करती है, पर इसकी कीमत कौन देगा यह नहीं बताती। राजनीतिक समझ यह भी है कि भ्रष्टाचार का रिश्ता उदारीकरण से है। क्या राहुल इस विचार को बदल सकेंगे? कॉरपोरेट सेक्टर नरेंद्र मोदी की ओर देख रहा है। दिल्ली में आप की सफलता ने साबित किया कि शहर, युवा, महिला, रोजगार, महंगाई और भ्रष्टाचार छोटे मुद्दे नहीं हैं। 17 जनवरी की बैठक में सोनिया गांधी ने अपनी सरकार की गलतियों को स्वीकार करते हुए मध्य वर्ग से नरमी की अपील की। और अब कांग्रेस के प्रवक्ता बदले गए हैं। ऐसे चेहरे सामने आए हैं जो आर्थिक उदारीकरण और भ्रष्टाचार विरोधी व्यवस्थाओं के बारे में ठीक से पार्टी का पक्ष रख सकें।

Friday, January 24, 2014

आप, मोदी और मुलायम

हिंदू में केशव का कार्टून
आज के हिंदू में केशव का कार्टून 'टॉम एंड जैरी' की थीम पर है। दो रोज पहले चेतन भगत ने आप को राजनीति की आइटम गर्ल कहा था। इसके पहले आप को कांग्रेस का भस्मासुर कहा गया था। तमाम रूपक उस मनोदशा को बताते हैं, जिसमें टिप्पणी करने वाला खुद को पाता है। आप अब शुरूआती लोकप्रियता के खोल से बाहर आ रही है। सोमनाथ भारती को लेकर नारीवादी और मानवाधिकारवादी संगठनों ने अपनी गहरी आपत्ति व्यक्त की है। पिछले साल दिल्ली गैंगरेप के बाद पुलिस का मुखर विरोध करने वाले नारीवादी संगठन इस वक्त पुलिस के साथ नजर आते हैं। पर ऑटो और रिक्शा चलाने वाले, रेहड़ी वाले, सब्जी वाले पुलिस का समर्थन नहीं कर सकते। उनके अनुभव उन्हें दूसरी दिशा में ले जाते हैं। दो दिन के आंदोलन के बाद मीडिया के एक तबके ने निष्कर्ष निकाला कि  मध्य वर्ग का आप से मोहभंग हो रहा है। उसे मिलने वाला चंदा घट गया है। इकोनॉमिक टाइम्स ने इस आशय की स्टोरी दी और फर्स्ट पोस्ट ने भी। आज हिंदी के अखबार अमर उजाला ने भी ऐसी एक खबर दी है। कोलकाता के टेलीग्राफ में प्रभात पटनायक ने इसे नव-उदारवाद से जोड़ा है। हिंदी के अखबारों पर नरेंद्र मोदी की गोरखपुर रैली और मुलायम सिंह के साथ जवाबी कव्वाली हावी है। आज के अखबारों में एक खबर यह भी है कि कल नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिन पर संसद भवन परिसर में हुए समारोह में पहुँचे विशिष्ट व्यक्तियों में केवल लालकृष्ण आडवाणी ही थे। कोलकाता के टेलीग्राफ ने अपने पहले पेज पर बंगाल के गैंगरेप पर बड़ी खबर दी है। उत्तर भारत के  अखबारों में भी वह है, पर अपेक्षाकृत छोटे डिस्प्ले के साथ। इंडियन एक्सप्रेस में आशुतोष वार्ष्णेय और सुरजीत भल्ला के रोचक लेख हैं। दोनों के विषय अलग हैं, पर उनकी जमीन एक है। नोट बदले जाने पर भी कुछ अखबारों में खबरें हैं। नजर डालें आज के मीडिया कवरेज परः-
                                                  
                                          नवभारत टाइम्स