इधर जनरल वीके सिंह
और सरकार के बीच नोकझोंक की खबरें गर्म थीं कि जम्मू में फौजी कैम्प पर आतंकी हमले
की खबरें सुनाई पड़ीं। इसके दो रोज पहले पेशावर और केन्या के एक मॉल से खूंरेजी की
खबरें सुनाई पड़ीं। इन सारी बातों का रिश्ता नहीं है, पर ध्यान से देखें तो है। इन
सबके केन्द्र में पाकिस्तान का जेहादी ताना-बाना और हमारी सुरक्षा व्यवस्था के सवाल
हैं। इसमें दो राय नहीं कि जनरल वीके सिंह और सरकार के बीच तनातनी किसी बड़े सैद्धांतिक
कारण से नहीं थी। यह शुद्ध रूप से सेना के भीतर की गुटबाजी की देन थी। इस मामले को
ज्यादा बढ़ावा मिलने के पहले ही खत्म कराने की जिम्मेदारी राजनीतिक नेतृत्व की थी।
ऐसा हो नहीं पाया। धीरे-धीरे विवाद ऐसी शक्ल लेता जा रहा है जो देश के हित में नहीं
है। जनरल सिंह के इस वक्तव्य को लेकर काफी चर्चा है कि सेना कश्मीर के राजनीतिक नेताओं
को देश की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए धन का इस्तेमाल करती थी। इस वक्तव्य पर गौर करें
तो इसमें कोई ऐसी बात नहीं थी जो हमारे लिए असमंजस पैदा करे।
आगामी विधानसभा चुनावों में चार राज्यों की तस्वीर क्या होगी इसे लेकर क़यास शुरू हो गए हैं.
इन क़यासों को हवा दे रहे हैं चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण जिनपर भले ही यक़ीन कम लोगों को हो पर वे चर्चा के विषय बनते हैं.
हालांकि चुनाव तो पांच राज्यों में होने हैं लेकिन सर्वेक्षण करने वालों ने सारा ध्यान चार राज्यों पर केंद्रित कर रखा है.
हाल में जो सर्वेक्षण सामने आए हैं वे क्लिक करेंकांग्रेस के ह्रास और भारतीय जनता पार्टी के उदय की एक धुंधली सी तस्वीर पेश कर रहे हैं.
सर्वेक्षणों ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीगढ़ के बारे में कमोबेश साफ़ लेकिन दिल्ली के बारे में भ्रामक तस्वीर बनाई है.
इसकी एक वजह आम आदमी पार्टी यानी ‘आप’ की उपस्थिति है जो एक राजनीतिक समूह है. उसकी ताक़त और चुनाव को प्रभावित करने के सामर्थ्य के बारे में क़यास इस भ्रम को और भी बढ़ा रहे हैं.
तीन सर्वेक्षण तीन तरह के नतीजे दे रहे हैं जिनसे इनकी विश्वसनीयता को लेकर संदेह पैदा होते हैं. सर्वेक्षणों के बुनियादी अनुमानों में इतना भारी अंतर है कि संदेह के कारण बढ़ जाते हैं.
दिल्ली का महत्व
दिल्ली भारत के मध्य वर्ग का प्रतिनिधि शहर है. यहाँ पर होने वाली राजनीतिक हार या जीत के व्यावहारिक रूप से कोई माने नहीं हों पर प्रतीकात्मक अर्थ गहरा होता है. यहाँ से उठने वाली हवा के झोंके पूरे देश को प्रभावित करते हैं.
हाल में दिल्ली गैंगरेप के ख़िलाफ़ और उसके पहले अन्ना हज़ारे के आंदोलन की ज़मीन देश-व्यापी नहीं थी पर दिल्ली में होने के कारण उसका स्वरूप राष्ट्रीय बन गया. इसकी एक वजह वह क्लिक करेंख़बरिया मीडिया है, जो दिल्ली में निवास करता है.
दिल्ली की इसी प्रतीकात्मक महत्ता के कारण यहाँ के नतीजे महत्वपूर्ण होते हैं भले ही वे दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघों के हों या दिल्ली विधानसभा के.
हाल में भाजपा के मंच पर प्रधानमंत्री के प्रत्याशी का नाम घोषित करने की प्रक्रिया पर जो ड्रामा शुरू हुआ था उसका असर दिखाई पड़ने लगा है और इसमें भी पहल दिल्ली की है.
नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करने के साथ ही उनकी रैलियों का कार्यक्रम बन रहा है.