विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांज को जानने वालों की संख्या हमारे देश में ज्यादा नहीं है, पर जो जानते हैं वे उनके साहस की तारीफ करते हैं। विकीलीक्स धीरे-धीरे एक वैश्विक शक्ति बनता जा रहा है। यह पत्रकारिता वह मिशनरी पत्रकारिता है, जो इस कर्म का मर्म है। जिस तरह से विकीपीडिया ने ज्ञान की राह खोली है उसी तरह विकीलीक्स ने इस ज़माने की पत्रकारिता का रास्ता खोला है। पर यह रास्ता बेहद खतरनाक है। इसमें मुकाबला दुनिया की ताकतवर सरकारों से है। पर उसे यह भी साबित करना होगा कि यह न तो कोई खुफिया संस्था है और न अमेरिका-विरोधी। यह सिर्फ अनाचार और स्वयंभू सरकारों के विरुद्ध है। इसने अमेरिका, चीन, सोमालिया, केन्या और आइसलैंड तक हर जगह असर डाला है। कुछ समय पहले तक कोई नहीं जानता था कि इसके पीछे कौन है। बाद में ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार जूलियन असांज सामने आए। दुनिया की सबसे ताकतवर सरकारों के बारे मे निगेटिव सामग्री का प्रकाशन बेहद खतरनाक है। विकीलीक्स के पास न तो इतना पैसा है और न ताकत। अदालतें उसके खिलाफ कार्रवाई करतीं है। पर धीरे-धीरे इसे दुनिया के सबसे अच्छे वकीलों की सेवाएं मुफ्त मिलने लगीं हैं। जनता के दबाव के आगे संसदें झुकने लगीं हैं।
Monday, August 20, 2012
Saturday, August 18, 2012
अपने आप से लड़ता पाकिस्तान
पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद के करीब कामरा में वायुसेना के मिनहास बेस पर हमला काफी गम्भीर होती स्थितियों की ओर इशारा कर रहा है। पाकिस्तान का यह सबसे बड़ा एयरबेस होने के साथ-साथ यहाँ एटमी हथियार भी रखे गए हैं। जो शुरूआती जानकारी हासिल हुई है उसके अनुसार तकरीबन बारह हमलावर हवाई अड्डे में दाखिल हुए। इनमें से ज्यादातर ने आत्मघाती विस्फोट बेल्ट पहन रखे थे और एक ने खुद को उड़ा भी दिया था। सवाल केवल हवाई अड्डे की सुरक्षा का नहीं है, बल्कि ताकत का है जो इस तरह के हमलों की योजना बना रही है। अभी तक किसी ने इसकी ज़िम्मेदारी नहीं ली है, पर इसके पीछे तहरीके तालिबान पाकिस्तान का हाथ लगता है। इस्लामी चरपंथियों ने इससे पहले भी पाकिस्तान के फौजी ठिकानों को निशाना बनाया है। इनमें सबसे बड़ा हमला मई 2011 में कराची के पास मेहरान हवाई ठिकाने पर हुआ था। उसमें दस फौजी मारे गए थे, पर सबसे बड़ा नुकसान पी-3 ओरियन विमान को हुआ था, जो अत्याधुनिक टोही विमान है, जिसे अमेरिका ने गिफ्ट में दिया था।
Monday, August 13, 2012
खेलों को राष्ट्रीय प्रतिष्ठा से नहीं जोड़ पाए हैं हम
लंदन ओलिम्पिक खेल भारत के लिए अब तक के सफलतम ओलिम्पिक्स थे। इससे पहले बीजिंग में हमने तीन मेडल जीते थे। इस बार उससे ज्यादा जीतने में सफल रहे। पर हम उतनी सफलता हासिल नही कर पाए, जिसकी उम्मीद थी। खास तौर से हमारी हॉकी टीम का प्रदर्शन बेहद खराब था। अभी तक हॉकी में हमारी टीम की स्थिति दुनिया में दसवें नम्बर पर थी जो इस बार उससे भी नीचे चली गई। पर इस लेख का उद्देश्य खेल-समीक्षा नहीं है, बल्कि इस ओलिम्पिक के बहाने खेल और समाज के रिश्तों को समझना है। ओलिम्पिक खेल राष्ट्रीय प्रतिष्ठा से जुड़ते हैं। पर मामला केवल प्रतिष्ठा का नहीं है। सामाजिक, सांस्कृतिक संरचना का परिचय भी खेलों से मिलता है।
Monday, August 6, 2012
पाकिस्तान के साथ कारोबारी राह पर चलने में समझदारी है
पिछले बुधवार को भारत सरकार ने पाकिस्तान के निवेशकों पर भारत में लगी रोक हटा ली। अब पाकिस्तानी निवेशक रक्षा, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष कार्यक्रमों के अलावा अन्य कारोबारों में निवेश कर सकेंगे। हालांकि यह घोषणा अचानक हुई लगती है पर ऐसा नहीं है। पाकिस्तानी निवेश को स्वीकार करने का फैसला दोनों देशों के वाणिज्य मंत्रियों की अप्रेल में दिल्ली में हुई बैठक में कर लिया गया था। परोक्ष रूप में यह आर्थिक निर्णय लगता है और इसके तमाम महत्वपूर्ण आर्थिक पहलू हैं भी। फिर भी यह फैसला राजनीतिक है। उसी तरह जैसे पाकिस्तान की क्रिकेट टीम को भारत बुलाने का फैसला। दोनों देशों के रिश्ते बहुत मीठे न भी नज़र आते हों, पर ऐसा लगता है कि दोनों नागरिक सरकारों के बीच संवाद काफी अच्छे स्तर पर है। पाकिस्तान में एक बड़ा तबका भारत से रिश्ते बनाने के काम में लगातार अड़ंगे लगाता है। पर लगता है कि खेल, संगीत और कारोबारी रिश्ते दोनों देशों के बीच भरोसा कायम करने में मददगार होंगे।
Saturday, August 4, 2012
नए धमाके, पुराने सवाल
पुणे में एक घंटे के भीतर हुए चार धमाकों का संदेश क्या है? क्या यह नए गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे को सम्बोधित हैं? कल ही भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय ने घोषणा की थी कि पाकिस्तानी नागरिक और कम्पनियाँ भारत में निवेश कर सकेंगी। क्या किसी को सम्बन्ध सामान्य बनाना पसन्द नहीं? या फिर कोई और बात है। किसी ने इसका सम्बन्ध अन्ना हज़ारे के आन्दोलन से जोड़ने की कोशिश भी की है। अटकलबाज़ियों में हमारा जवाब नहीं। किसी ने उत्तरी ग्रिड फेल होने को भी अन्ना आंदोलन को फेल करने की सरकारी साज़िश साबित कर दिया था। बहरहाल पुणे के धमाकों का असर इसीलिए मामूली नहीं मानना चाहिए कि उसमें किसी की मौत नहीं हुई। धमाके करने वाला यह संदेश भी देना चाहता है कि वह बड़े धमाके भी कर सकता था। पर पहले यह निश्चित करना चाहिए कि इसके पीछे किसी पाकिस्तान परस्त गिरोह का हाथ है या कोई और बात है।
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