Monday, August 6, 2012

पाकिस्तान के साथ कारोबारी राह पर चलने में समझदारी है

पिछले बुधवार को भारत सरकार ने पाकिस्तान के निवेशकों पर भारत में लगी रोक हटा ली। अब पाकिस्तानी निवेशक रक्षा, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष कार्यक्रमों के अलावा अन्य कारोबारों में निवेश कर सकेंगे। हालांकि यह घोषणा अचानक हुई लगती है पर ऐसा नहीं है। पाकिस्तानी निवेश को स्वीकार करने का फैसला दोनों देशों के वाणिज्य मंत्रियों की अप्रेल में दिल्ली में हुई बैठक में कर लिया गया था। परोक्ष रूप में यह आर्थिक निर्णय लगता है और इसके तमाम महत्वपूर्ण आर्थिक पहलू हैं भी। फिर भी यह फैसला राजनीतिक है। उसी तरह जैसे पाकिस्तान की क्रिकेट टीम को भारत बुलाने का फैसला। दोनों देशों के रिश्ते बहुत मीठे न भी नज़र आते हों, पर ऐसा लगता है कि दोनों नागरिक सरकारों के बीच संवाद काफी अच्छे स्तर पर है। पाकिस्तान में एक बड़ा तबका भारत से रिश्ते बनाने के काम में लगातार अड़ंगे लगाता है। पर लगता है कि खेल, संगीत और कारोबारी रिश्ते दोनों देशों के बीच भरोसा कायम करने में मददगार होंगे।

Saturday, August 4, 2012

नए धमाके, पुराने सवाल


पुणे में एक घंटे के भीतर हुए चार धमाकों का संदेश क्या है? क्या यह नए गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे को सम्बोधित हैं? कल ही भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय ने घोषणा की थी कि पाकिस्तानी नागरिक और कम्पनियाँ भारत में निवेश कर सकेंगी। क्या किसी को सम्बन्ध सामान्य बनाना पसन्द नहीं? या फिर कोई और बात है। किसी ने इसका सम्बन्ध अन्ना हज़ारे के आन्दोलन से जोड़ने की कोशिश भी की है। अटकलबाज़ियों में हमारा जवाब नहीं। किसी ने उत्तरी ग्रिड फेल होने को भी अन्ना आंदोलन को फेल करने की सरकारी साज़िश साबित कर दिया था। बहरहाल पुणे के धमाकों का असर इसीलिए मामूली नहीं मानना चाहिए कि उसमें किसी की मौत नहीं हुई। धमाके करने वाला यह संदेश भी देना चाहता है कि वह बड़े धमाके भी कर सकता था। पर पहले यह निश्चित करना चाहिए कि इसके पीछे किसी पाकिस्तान परस्त गिरोह का हाथ है या कोई और बात है।

Friday, August 3, 2012

किसने बिगाड़ा हमारा खेल

हिन्दू में केशव का कार्टून

किसने सोख ली हमारी खेल प्रतिभा?

दो-दो एटम बमों से तबाह जापान ने विश्व युद्द के बाद बीस साल में जो चमत्कार किया उसे दिखाने के लिए उसने 1964 के तोक्यो ओलंपिक खेलों का इस्तेमाल किया। उस मौके का प्रतीक थी बुलेट ट्रेन जो ओलंपिक के मौके पर शुरू की गई थी। दूसरा विश्वयुद्ध न रोकता तो 1940 के ओलंपिक तोक्यो में होते। बहरहाल खेल और समाज का रिश्ता है। इस रिश्ते को जापान के बाद 1988 में दक्षिण कोरिया ने और 2008 में चीन ने शोकेस किया। ऐसी ही कोशिश 2010 के कॉमनवैल्थ गेम्स के मार्फत भारत ने की थी। सब कुछ ठीक रहता तो 2020 के ओलंपिक खेल भारत में कराने की पहल होती। पर अब ऐसा सम्भव नहीं है। 2016 के खेल ब्राज़ील में होंगे जिसे इस वक्त नई अर्थव्यवस्थाओं में भारत के साथ खड़ा किया जाता है। 2020 के खेल कहाँ होंगे इसका फैसला अगले साल सितम्बर में होगा। दावेदारों में इस्तांबूल और मैड्रिड के साथ तोक्यो भी है, भारत नहीं।

Tuesday, July 24, 2012

Amelia Earhart in Google Logo गूगल लोगो पर अमेलिया इयरहार्ट


आज का गूगल लोगो अमेलिया इयरहार्ट पर है।  इस जाँबाज़ हवाबाज़ को पहली बार अकेले अटलांटिक महासागर पार करने का श्रेय जाता है। 1937 में यह दुनिया का चक्कर लगाने के प्रयास में प्रशांत महासागर के ऊपर कहीं लापता हो गई और आजतक यादों में है। गूगल लोगो के सहारे मनोरंजन और ज्ञानवर्धन दोनों होते हैं। मैने इसके पहले अनंत पै के गूगल लोगों पर पोस्ट लिखी थी। 
Amelia Mary Earhart (/ˈɛərhɑrt/ air-hart; July 24, 1897 – disappeared 1937) was a noted American aviation pioneer and author.[1][N 1] Earhart was the first aviatrix to fly solo across the Atlantic Ocean[3]. She received the U.S. Distinguished Flying Cross for this record.[4].She set many other records,[2] wrote best-selling books about her flying experiences and was instrumental in the formation of The Ninety-Nines, an organization for female pilots.[5] Earhart joined the faculty of the Purdue University aviation department in 1935 as a visiting faculty member to counsel women on careers and help inspire others with her love for aviation. She was also a member of the National Woman's Party, and an early supporter of the Equal Rights Amendment.[6][7]
During an attempt to make a circumnavigational flight of the globe in 1937 in a Purdue-funded Lockheed Model 10 Electra, Earhart disappeared over the central Pacific Ocean near Howland Island. Fascination with her life, career and disappearance continues to this day.[N 2]



Friday, July 20, 2012

राहुल को चाहिए एक जादू की छड़ी

राहुल ने नौ साल लगाए राजनीति में ज्यादा बड़ी भूमिका स्वीकार करने में। उनका यह विचार बेहतर था कि पहले ज़मीनी काम किया जाए, फिर सक्रिय भूमिका निभाई जाए। पर यह आदर्श बात है। हमारी राजनीति आदर्श पर नहीं चलती। और न राहुल किसी आदर्श के कारण महत्वपूर्ण हैं। वे तमाम राजनेताओं से बेहतर साबित होते बशर्ते वे उस कांग्रेस की उस संस्कृति से बाहर आ पाते जिसमें नेता को तमाम लोग घेर लेते हैं। बहरहाल अब राहुल सामने आ रहे हैं तो अच्छा है, पर काम मुश्किल है। नीचे पढ़ें जनवाणी में प्रकाशित मेरा लेख
हिन्दू में सुरेन्द्र का कार्टून

राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के चुनाव में यूपीए की रणनीति को जितनी आसानी से सफलता मिली है उसकी उम्मीद नहीं थी। इसके लिए बेशक एनडीए का बिखराव काफी सीमा तक ज़िम्मेदार है, पर बिखरा हुआ तो यूपीए भी था। और आज भी कहना मुश्किल है कि आने वाला वक्त यूपीए या दूसरे शब्दों में कहें तो कांग्रेस के लिए आसान होगा। 7 अगस्त को उप राष्ट्रपति पद का चुनाव है और उसके अगले दिन 8 अगस्त से सरकार ने संसद का सत्र बुलाने का आग्रह किया है। उसके बाद अगले एक महीने में राष्ट्रीय राजनीति की कुछ पहेलियाँ बूझी जाएंगी।