भारतीय जनता पार्टी ने धमकी दी है कि प्रणव मुखर्जी राष्ट्रपति पद का चुनाव जीत भी गए तो उनके खिलाफ चुनाव याचिका दायर की जाएगी। रिटर्निंग अफसर वीके अग्निहोत्री द्वारा विपक्ष की आपत्ति खारिज किए जाने के बाद अब सोमवार को जनता पार्टी के नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी कुछ नए प्रमाणों के साथ एक नई शिकायत दर्ज कराएंगे। रिटर्निंग अफसर ने विपक्ष की इस आपत्ति को खारिज कर दिया था कि प्रणव मुखर्जी चूंकि भारतीय सांख्यिकी संस्थान के अध्यक्ष पद पर काम कर रहे हैं जो लाभ का पद है इसलिए उनका नामांकन खारिज कर दिया जाए। रिटर्निंग अफसर का कहना है कि प्रणव मुखर्जी ने 20 जून को यह पद छोड़ दिया था।
भाजपा नेता सुषमा स्वराज का कहना है कि प्रणव मुखर्जी नामांकन पत्र दाखिल करने के पहले इस्तीफा नहीं दे पाए थे। यह इस्तीफा बाद में बनाया गया, जिसमें प्रणव मुखर्जी के दस्तखत भी जाली हैं। यह इस्तीफा संस्थान के रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है। यह 20 जून को लिखा गया, उसी रोज कोलकाता भेजा गया, उसी रोज स्वीकार होकर वापस आ गया। यह फर्जी है। बहरहाल इस मामले में जो भी हो, देखने की बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी इतने तकनीकी आधार पर इस मामले को क्यों उठा रही है? इससे क्या उसे कोई राजनीतिक लाभ मिल पाएगा? दो महीने पहले लगता था कि इस बार कांग्रेस के लिए राष्ट्रपति चुनाव भारी पड़ेगा और एनडीए उसे अर्दब में ले लेगा, पर ऐसा हुआ नहीं। एनडीए ने एक ओर तो अपना प्रत्याशी तय करने में देरी की, फिर अपने दो घटक दलों शिव सेना और जनता दल युनाइटेड को यूपीए प्रत्याशी के समर्थन में जाने से रोक नहीं पाया। और अब यह तकनीकी विरोध बचकाना लगता है। शुरू में सुषमा स्वराज ने कहा था कि हम कांग्रेस प्रत्याशी का समर्थन नहीं करेंगे, क्योंकि 2014 के चुनाव में हम यूपीए से सीधे मुकाबले में हैं। यह हमारे लिए राजनीतिक प्रश्न है।
भाजपा नेता सुषमा स्वराज का कहना है कि प्रणव मुखर्जी नामांकन पत्र दाखिल करने के पहले इस्तीफा नहीं दे पाए थे। यह इस्तीफा बाद में बनाया गया, जिसमें प्रणव मुखर्जी के दस्तखत भी जाली हैं। यह इस्तीफा संस्थान के रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है। यह 20 जून को लिखा गया, उसी रोज कोलकाता भेजा गया, उसी रोज स्वीकार होकर वापस आ गया। यह फर्जी है। बहरहाल इस मामले में जो भी हो, देखने की बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी इतने तकनीकी आधार पर इस मामले को क्यों उठा रही है? इससे क्या उसे कोई राजनीतिक लाभ मिल पाएगा? दो महीने पहले लगता था कि इस बार कांग्रेस के लिए राष्ट्रपति चुनाव भारी पड़ेगा और एनडीए उसे अर्दब में ले लेगा, पर ऐसा हुआ नहीं। एनडीए ने एक ओर तो अपना प्रत्याशी तय करने में देरी की, फिर अपने दो घटक दलों शिव सेना और जनता दल युनाइटेड को यूपीए प्रत्याशी के समर्थन में जाने से रोक नहीं पाया। और अब यह तकनीकी विरोध बचकाना लगता है। शुरू में सुषमा स्वराज ने कहा था कि हम कांग्रेस प्रत्याशी का समर्थन नहीं करेंगे, क्योंकि 2014 के चुनाव में हम यूपीए से सीधे मुकाबले में हैं। यह हमारे लिए राजनीतिक प्रश्न है।