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Saturday, February 27, 2021

चीन में गरीबी का खात्मा


आज के बिजनेस स्टैंडर्ड में टीएन नायनन के इस लेख में चीन के इस दावे का विश्लेषण किया गया है कि वहाँ गरीबी को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है। इस दावे पर आप यकीन करें या नहीं करें, अलबत्ता टीएन नायनन इस बात पर जोर दे रहे हैं कि यह सूचना भारतीय संदर्भों में बहुत महत्वपूर्ण है। उनका लेख पढ़ें
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चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के मुताबिक उनके देश ने गरीबी का पूरी तरह खात्मा कर दिया है। इस बयान को चाहे जैसे देखा जाए लेकिन यह बहुत महत्त्वपूर्ण है। दुनिया के सबसे गरीब समाजों में से एक रहा और भारत के साथ दुनिया के अधिकांश गरीबों वाला चीन अब प्रति व्यक्ति आय के ऐसे स्तर पर (क्रय शक्ति समता के अनुसार) पहुंच गया है जो वैश्विक औसत के करीब है। चीन का दावा है कि उसने 85 करोड़ लोगों को गरीबी से उबारा।

चीन के तमाम आंकड़ों की तरह इसे लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। चीन मानक के रूप में विश्व बैंक द्वारा बताए गए गरीबी के स्तर के आय संबंधी बुनियादी आंकड़ों को अपनाता है जबकि उसे मध्य आय वाले देशों द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले उच्च आंकड़ों का इस्तेमाल करना चाहिए। परंतु उस हिसाब से भी देखा जाए तो चीन में गरीबी का आंकड़ा प्रति 20 लोगों में से एक ही निकलता है। भारत की बात करें तो उच्च स्तर के आंकड़ों के मुताबिक आधी आबादी गरीब निकलेगी जबकि निचले स्तर पर भी आबादी का 10 प्रतिशत गरीब है। भारत यह दावा जरूर कर सकता है कि वह दुनिया के सर्वाधिक गरीब लोगों वाला देश नहीं रह गया है। यह दर्जा अब नाइजीरिया को मिल गया है जबकि कॉन्गो दूसरे स्थान पर आ सकता है। यकीनन अगर कोविड (जिसने भारत में गरीबों की संख्या बढ़ाई) नहीं आया होता तो शायद हम भी संयुक्त राष्ट्र के 2030 के पहले गरीबी उन्मूलन के लक्ष्य के करीब पहुंच चुके होते।

Saturday, December 12, 2020

चीन को तुर्की-ब-तुर्की जवाब

 


भारत और चीन के बीच जवाबी बयानों का सिलसिला अचानक चल निकला है। गत बुधवार 9 दिसंबर को ऑस्ट्रेलिया के एक थिंकटैंक लोवी इंस्टीट्यूट में विदेशमंत्री एस जयशंकर के एक बयान के जवाब में अगले ही दिन चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने लद्दाख के घटनाक्रम की सारी जिम्मेदारियाँ भारत के मत्थे मढ़ दीं। उन्होंने कहा कि हम तो बड़ी सावधानी से द्विपक्षीय समझौतों का पालन कर रहे थे। इसके जवाब में शुक्रवार को भारतीय प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि चीन को अपने शब्दों और अपने कार्यों का मिलान करके देखना चाहिए। 

अब शनिवार को विदेशमंत्री एस जयशंकर ने फिर कहा है कि पिछले सात महीनों से लद्दाख में चल रहे गतिरोध में भारत की परीक्षा हुई है और इसमें हम सफल होकर उभरेंगे और राष्ट्रीय सुरक्षा की चुनौतियों पर पार पाएंगे। फिक्की की वार्षिक महासभा के साथ एक इंटर-एक्टिव सेशन में जयशंकर ने कहा कि पूर्वी लद्दाख में जो हुआ, वह वास्तव में चीन के हित में नहीं था। इस घटना-क्रम के कारण भारत के प्रति दुनिया की हमदर्दी बढ़ी है। 

Friday, December 11, 2020

भारत-चीन रिश्तों की बर्फ पिघलने के आसार नहीं


भारत और चीन के बीच तनाव कितना ही रहा हो, दोनों सरकारों के विदेश विभाग आमतौर पर काफी संयत तरीके से प्रतिक्रियाएं व्यक्त करते रहे हैं, पर इस हफ्ते दोनों देशों के व्यवहार में फर्क नजर आया। संयोग से इसी हफ्ते रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव का ऐसा वक्तव्य सामने आया, जिससे लगता है कि रूस को भारतीय विदेश-नीति के नियंताओं से शिकायत है।

पिछले बुधवार यानी 9 दिसंबर को भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ऑस्ट्रेलिया के थिंक टैंक लोवी इंस्टीट्यूट के एक ऑनलाइन इंटर-एक्टिव सेशन में कहा कि चीन ने लद्दाख में एलएसी पर भारी संख्या में सैनिक तैनात करने के बार में पाँच अलग-अलग स्पष्टीकरण दिए हैं। हालांकि उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि वे पाँच स्पष्टीकरण क्या हैं, पर उन्होंने इतना जरूर कहा कि चीन ने द्विपक्षीय समझौतों का बार-बार उल्लंघन किया। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले 30-40 साल में बने रिश्ते इस समय बहुत मुश्किल दौर में हैं।

Wednesday, December 2, 2020

चीनी यान चंद्रमा पर उतरा

चीन की समाचार एजेंसी शिनह्वा ने चंद्रमा की सतह पर उतरे अपने यान की यह तस्वीर जारी की है।

चीन ने मंगलवार 1 दिसंबर को अपना यान चंद्रमा पर उतारने में सफलता हासिल कर ली है। चीन ने चैंग ई-5 यान का प्रक्षेपण गत 24 नवंबर को किया था। यह यान चंद्रमा की सतह से वहाँ के नमूने लेकर धरती पर वापस आएगा। पौराणिक आख्यान में चैंग ई को चंद्रमा की देवी माना जाता है। यह मिशन चंद्रमा की सतह पर लावा के बने क्षेत्र ओशनस प्रोसीलैरम यानी तूफानों का सागर पर उतरा है, जहाँ इसके पहले धरती का कोई यान नहीं उतरा था। यह चंद्रमा से करीब दो किलोग्राम सामग्री लेकर वापस आएगा।

यह मिशन पूरा होने के बाद चीन ऐसा तीसरा देश होगा, जिसे चंद्रमा की सतह से नमूने धरती पर लाने में सफलता मिली होगी। इसके पहले अमेरिका और सोवियत संघ को इस काम में सफलता मिली है। चंद्रमा की सतह पर उतरने वाले वाहन की रोबोटिक भुजा सतह पर ड्रिलिंग करेगी और उससे प्राप्त सामग्री को वापस जाने वाले वाहन में रखेगी। यह वाहन वापस उड़ान भरेगा और चंद्रमा की कक्षा में चक्कर लगा रहे वाहन से जुड़ेगा, जो पृथ्वी पर वापस आएगा।

Monday, November 30, 2020

नेपाल में भारतीय पहल से घबराया चीन

प्रधानमंत्री ओली के साथ चीन के रक्षामंत्री

लगता है कि भारत ने नेपाल के साथ रिश्तों को सुधारने की जो कोशिश की है उसे लेकर चीन में किसी किस्म की चिंता जन्म ले रही है। रविवार 29 नवंबर को चीन के रक्षामंत्री वेई फेंगही नेपाल के एक दिन के दौरे पर आए। यह दौरा
अचानक ही बना। पर इसके पीछे भारत के थल सेनाध्यक्ष और विदेश सचिव के दौरे हैं, जो इसी महीने हुए हैं। उनके आगमन के कुछ दिन पहले 24 नवंबर को चीन के तीन अधिकारियों की एक टीम काठमांडू आई थी, पर इस तैयारी को अचानक हुई गतिविधि ही माना जाएगा। उन्होंने इस दौरान नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली, जो रक्षामंत्री भी हैं और राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी तथा नेपाली सेना के प्रमुख पूर्ण चंद्र थापा से मुलाकात की और शाम को यहाँ से पाकिस्तान रवाना हो गए।

इस दौरान चीन-नेपाल रिश्तों को लेकर बातें हुईं और कोरोना के कारण रुके हुए कार्यक्रमों को फिर से शुरू करने पर सहमति बनी। इनमें ट्रेनिंग और छात्रों के आदान-प्रदान का कार्यक्रम तथा कुछ शस्त्रास्त्र की आपूर्ति शामिल है। पर जिस तरह से यह यात्रा हुई, उससे लगता है कि कोई और महत्वपूर्ण बात इसके पीछे थी।

Friday, November 6, 2020

नियंत्रण रेखा पर चीनी धौंसपट्टी चलने नहीं देंगे

 


वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर भारत और चीन के बीच तनाव की खबरें कुछ समय से पृष्ठभूमि में चली गईं थी, पर आज (शुक्रवार 06 नवंबर) को चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल विपिन रावत की चेतावनी के साथ बातें फिर से ताजा हो गईं हैं। यह सिर्फ संयोग नहीं है कि आज से ही दोनों देशों के बीच सीमा पर तनाव कम करने के बातचीत का आठवाँ दौर शुरू हो रहा है।

जनरल रावत ने कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर यथास्थिति को बदलने की चीनी कोशिशों को हम स्वीकार नहीं करेंगे। भारतीय सेना की दृढ़ता और संकल्प-शक्ति के कारण चीनी सेना को इस क्षेत्र में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। नेशनल डिफेंस कॉलेज द्वारा आयोजित एक वेबिनार में जनरल रावत ने कहा कि चीन के साथ बड़े संघर्ष को खारिज नहीं किया जा सकता है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि फिलहाल इसकी संभावना कम है, पर चीन और पाकिस्तान की मिलीभगत के कारण टकराव बढ़ने (यानी एस्केलेशन) और क्षेत्रीय अस्थिरता पैदा होने का खतरा है।

Wednesday, October 28, 2020

चीन ने छोड़े तीन जासूसी उपग्रह

 


चीन ने 26 अक्तूबर को याओगान-30 रिकोनेसां उपग्रहों के सातवें समूह का प्रक्षेपण किया है, जिसपर अमेरिका और भारत दोनों की निगाहें हैं। इस साल चीन का यह 31वाँ अंतरिक्ष प्रक्षेपण था। आमतौर पर वैज्ञानिक भाषा में इन्हें सुदूर संवेदन उपग्रह (रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट) कहा जाता है, जिसे सरल भाषा में जासूसी उपग्रह कह सकते हैं। इनका उद्देश्य दुनियाभर में हो रही गतिविधियों पर नजर रखने का होता है।

इस नवीनतम प्रक्षेपण में चीन के शीचैंग उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र के एलसी-3 से लांग मार्च-2 सी रॉकेट पर तीन याओगान-30 उपग्रह छोड़े गए। इनके अलावा एक छोटा व्यावसायिक पेलोड भी इसके साथ छोड़ा गया।

Thursday, July 9, 2020

अपने ही बुने जाल में फँसे नेपाली प्रधानमंत्री ओली

China's Desperate Efforts To Save Nepal PM Oli May Bear Fruit, But ...

पिछले साल नवम्बर में जब सीमा के नक्शे को लेकर नेपाल में आक्रोश पैदा हुआ था, तब काफी लोगों को आश्चर्य हुआ। नेपाल तो हमारा मित्र देश है, वहाँ से ऐसी प्रतिक्रिया का आना विस्मयजनक था। वह बात आई-गई हो पाती, उसके पहले ही लद्दाख में चीनी घुसपैठ की खबरें आने लगीं। उन खबरों के साथ ही नेपाल सरकार ने फिर से सीमा विवाद को उठाना शुरू कर दिया और देखते ही देखते वहाँ की संसद ने संविधान संशोधन पास करके नया नेपाली नक्शा जारी कर दिया। इस घटनाक्रम से यह जरूर स्पष्ट हुआ कि नेपाल की पीठ पर चीन का हाथ है। यह भी कि किसी योजना के तहत नेपाल सरकार ऐसी हरकतें कर रही है। प्रकारांतर से देश के सेनाध्यक्ष मनोज मुकुंद नरवणे ने इशारों-इशारों में यह बात कही भी कि नेपाल किसी के इशारे पर यह सब कर रहा है।

नक्शा प्रकरण ठंडा पड़ भी नहीं पाया था कि नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के विरुद्ध उनकी ही नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर से आवाजें उठने लगीं। उनके प्रतिस्पर्धी पुष्प दहल कमल इस अभियान में सबसे आगे हैं, जो ओली के साथ पार्टी अध्यक्ष भी हैं। यानी ओली के पास दो पद हैं। एक प्रधानमंत्री का और दूसरे पार्टी अध्यक्ष का। उनके व्यवहार को लेकर पिछले कुछ महीनों से पार्टी के भीतर हस्ताक्षर अभियान चल रहा था। संभवतः इस अभियान से जनता का ध्यान हटाने के लिए ओली ने भारत के साथ सीमा का विवाद उठाया था।

Sunday, July 5, 2020

लद्दाख से मोदी की गंभीर चेतावनी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लद्दाख यात्रा जितनी सांकेतिक है, उससे ज्यादा सांकेतिक है उनका वक्तव्य। यदि हम ठीक से पढ़ पा रहे हैं, तो यह क्षण भारतीय विदेश-नीति के लिए महत्वपूर्ण साबित होने वाला है। मोदी के प्रतिस्पर्धियों को भी उनके वक्तव्य को ठीक से पढ़ना चाहिए। यदि वे इसे समझना नहीं चाहते, तो उन्हें कुछ समय बाद आत्ममंथन का मौका भी नहीं मिलेगा। बहरहाल पहले देखिए कि यह लद्दाख यात्रा महत्वपूर्ण क्यों है और मोदी के वक्तव्य की ध्वनि क्या है।

प्रधानमंत्री की इस यात्रा के एक दिन पहले रक्षामंत्री लद्दाख जाने वाले थे। वह यात्रा अचानक स्थगित कर दी गई और उनकी जगह अगले रोज प्रधानमंत्री खुद गए। सवाल केवल सैनिकों के मनोबल को बढ़ाने का ही नहीं है, बल्कि देश की विदेश-नीति में एक बुनियादी मोड़ का संकेतक भी है। अप्रेल के महीने से लद्दाख में शुरू हुई चीनी घुसपैठ के बाद से अब तक भारत सरकार और खासतौर से प्रधानमंत्री मोदी के बयानों में तल्खी नहीं रही। ऐसा लगता रहा है कि भारत की दिलचस्पी चीन के साथ संबंधों को एक धरातल तक बनाए रखने की है। भारत चाहता था कि किसी तरह से यह मसला सुलझ जाए।

Tuesday, June 30, 2020

चीन का सिरदर्द हांगकांग


China Threatens to Retaliate If U.S. Enacts Hong Kong Bill - Bloombergऔपचारिक रूप से हांगकांग अब चीन का हिस्सा है, पर एक संधि के कारण उसकी प्रशासनिक व्यवस्था अलग है, जो सन 2047 तक रहेगी। पिछले कुछ समय से हांगकांग में चल रहे आंदोलनों ने चीन की नाक में दम कर दिया है। उधर अमेरिकी सीनेट ने 25 जून 2020 को हांगकांग की सम्प्रभुता की रक्षा के लिए दो प्रस्तावों को पास किया है, जिससे और कुछ हो या न हो, हांगकांग की स्वतंत्र अर्थव्यवस्था को धक्का लगेगा।
चीन के नए सुरक्षा कानून के विरोध में अमेरिका ने यह कदम उठाया है। इस प्रस्ताव में उन बैंकों पर भी प्रतिबंध लगाने की बात है जो हांगकांग की स्वायत्तता के खिलाफ चीन का समर्थन करने वालों के साथ कारोबार करते हैं। ऐसे बैंकों को अमेरिकी देशों से अलग-थलग करने और अमेरिकी डॉलर में लेनदेन की सीमा तय करने का प्रस्ताव है।
हांगकांग ऑटोनॉमी एक्ट नाम से एक प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया, जिसका उद्देश्य उन व्यक्तियों और संस्थाओं पर पाबंदियाँ लगाना है, जो हांगकांग की स्वायत्तता को नष्ट करने की दिशा में चीनी प्रयासों के मददगार हैं। कानून बनाने के लिए अभी इसे हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स से पास कराना होगा और फिर इस पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हस्ताक्षर होंगे।

Monday, June 29, 2020

सिर्फ फौज काफी नहीं चीन से मुकाबले के लिए

लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ मुठभेड़ के बाद देश के रक्षा विभाग ने एलएसी पर तैनात सैनिकों के लिए कुछ व्यवस्थाओं में परिवर्तन किए हैं। सेना को निर्देश दिए गए हैं कि असाधारण स्थितियों में अपने पास उपलब्ध सभी साधनों का इस्तेमाल करें। खबर यह भी है कि रक्षा मंत्रालय ने सैनिकों के लिए सुरक्षा उपकरण तथा बुलेटप्रूफ जैकेट बनाने वाली कंपनियों से संपर्क किया है और करीब दो लाख यूनिटों का आदेश दिया है। इस बीच पता लगा कि ऐसे उपकरण बनाने वाली बहुसंख्यक भारतीय कंपनियाँ इनमें लगने वाली सामग्री चीन से मँगाती हैं।

क्या हम चीनी सैनिकों से रक्षा के लिए उनके ही माल का सहारा लेंगे? हम यहाँ भी आत्मनिर्भर नहीं हैं? नीति आयोग के सदस्य और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के पूर्व प्रमुख वीके सारस्वत ने चीन से आयात की नीति पर पुनर्विचार करने की सलाह दी है। पीएचडी चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने भी रक्षा सचिव को इस आशय का पत्र लिखा है। बात पहले से भी उठती रही है, पर अब ज्यादा जोरदार तरीके से उठी है।

स्वदेशी कवच

इस सिलसिले में आर्मी डिजाइन ब्यूरो ने ‘सर्वत्र कवच’ नाम से एक आर्मर सूट विकसित किया गया है, जो पूरी तरह स्वदेशी है। उसमें चीनी सामान नहीं लगा है। गत 23 दिसंबर को तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल विपिन रावत ने इसे विकसित करने पर मेजर अनूप मिश्रा को उत्कृष्टता सम्मान भी प्रदान किया था। इस कवच के फील्ड ट्रायल चल रहे हैं, इसलिए फिलहाल हमें चीनी सामग्री वाले कवच भी पहनने होंगे। साथ ही अमेरिका और यूरोप से सामग्री मँगानी होगी, जिसकी कीमत ज्यादा होगी।

Saturday, June 27, 2020

चीन का धन-बल और छल-बल


इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने हाल में लिखा है कि चीन शायद काफी समृद्ध और ताकतवर हो जाए, पर उस तरह से दोस्तों और प्रशंसकों को आकर्षित नहीं कर पाएगा, जिस तरह से अमेरिका ने किया है। उन्होंने हारवर्ड के विद्वान जोसफ नाय का हवाला देते हुए लिखा कि चीन के पास 'हार्ड पावर' तो है, लेकिन 'सॉफ्ट पावर' नहीं है। अपने वर्चस्व को कायम करने के लिए वह संकीर्ण तरीकों का इस्तेमाल करता है। इसीलिए उससे मुकाबला काफी जटिल है।

सोशल मीडिया पर इन दिनों एक अमेरिकी पत्रकार जोशुआ फिलिप का वीडियो वायरल हुआ है। उन्होंने बताया है कि चीन तीन रणनीतियों का सहारा लेता है। मनोवैज्ञानिक, मीडिया और सांविधानिक व्यवस्था की यह ‘तीन युद्ध’ रणनीति है। वह अपने प्रतिस्पर्धी देशों को उनके ही आदर्शों की रस्सी से बाँध देता है। उसके नागरिकों के पास अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है। प्रतिस्पर्धी देशों में है। वह इसके सहारे लोकतांत्रिक देशों में अराजकता पैदा करना चाहता है। अमेरिका के ‘एंटीफा’ आंदोलन के पीछे कौन है? दावे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता, पर किसी रोज परोक्ष रूप से चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े किसी समूह का हाथ दिखाई पड़े, तो विस्मय नहीं होना चाहिए। यों भी चीन को हांगकांग के आंदोलन में अमेरिकी हाथ नजर आता है, इसलिए बदला तो बनता है। 

Sunday, May 31, 2020

चीन पर कसती वैश्विक नकेल


भारत और चीन के रिश्तों में आई तल्खी को केवल वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चल रही गतिविधियों तक सीमित करने से हम सही निष्कर्षों पर नहीं पहुँच पाएंगे। इसके लिए हमें पृष्ठभूमि में चल रही दूसरी गतिविधियों पर भी नजर डालनी होगी। पिछले दिनों जब भारत और नेपाल के बीच सीमा को लेकर विवाद खड़ा हुआ, उसके साथ ही लद्दाख और सिक्किम में चीन की सीमा पर भी हरकतें हुईं। यह सब कुछ अनायास नहीं हुआ है। ये बातें जुड़ी हुई हैं।

सूत्र बता रहे हैं कि लद्दाख क्षेत्र में चीनी सैनिक गलवान घाटी के दक्षिण पूर्व में, भारतीय सीमा के भीतर तक आ गए थे। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के उस पार भी चीन ने अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा दी है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार सैटेलाइट चित्रों से इस बात की पुष्टि हुई है कि टैंक, तोपें और बख्तरबंद गाड़ियाँ चीनी सीमा के भीतर भारतीय ठिकानों के काफी करीब तैनात की गई हैं। सामरिक दृष्टि से पिछले साल ही तैयार हुआ भारत का दरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्दी मार्ग सीधे-सीधे चीनी निशाने पर आ गया है।

Monday, April 13, 2020

चीन के राजनीतिक नेतृत्व की ‘बड़ी परीक्षा’


बीसवीं सदी के तीसरे दशक की शुरुआत कोरोना वायरस जैसी दुखद घटना के साथ हुई है। जिस देश से इसकी शुरुआत हुई थी, उसने हालांकि बहुत जल्दी इससे छुटकारा पा लिया, पर उसके सामने दो परीक्षाएं हैं। पहली महामारी के आर्थिक परिणामों से जुड़ी है और दूसरी है राजनीतिक नेतृत्व की। राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने इस वायरस को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की बड़ी परीक्षा बताया है। वहाँ उद्योग-व्यापार फिर से चालू हो गए हैं, पर दुनिया की अर्थव्यवस्था पर संकट छाया हुआ है, जिसपर चीनी अर्थव्यवस्था टिकी है। सवाल है कि चीनी माल की वैश्विक माँग क्या अब भी वैसी ही रहेगी, जैसी इस संकट के पहले थी?

Monday, April 6, 2020

इस संकट का सूत्रधार चीन


पिछले तीन महीनों में दुनिया की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था में भारी फेरबदल हो गया है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण कोविड-19 नाम की बीमारी है, जिसकी शुरुआत चीन से हुई थी। अमेरिका, इटली और यूरोप के तमाम देशों के साथ भारत और तमाम विकासशील देशों में लॉकआउट चल रहा है। अर्थव्यवस्था रसातल में पहुँच रही है, गरीबों का जीवन प्रभावित हो रहा है। हजारों लोग मौत के मुँह में जा चुके हैं और लाखों बीमार हैं। कौन है इसका जिम्मेदार? किसे इसका दोष दें? पहली नजर में चीन।
हालांकि दावा किया जा रहा है कि चीन से यह बीमारी अब खत्म हो चुकी है, पर इस बीमारी की वजह से उसकी साख मिट्टी में मिल गई है। सवाल यह है कि क्या इस बीमारी का प्रभाव उसकी औद्योगिक बुनियाद पर पड़ेगा? दुनिया का नेतृत्व करने के उसके हौसलों को धक्का लगेगा? पहली नजर में उसकी छवि एक गैर-जिम्मेदार देश के रूप में बनकर उभरी है। पर क्या इसकी कीमत उससे वसूली जा सकेगी?  शायद भौतिक रूप में इसकी भरपाई न हो पाए, पर चीन के वैश्विक प्रभाव में अब भारी गिरावट देखने को मिलेगा। चीन ने सुरक्षा परिषद से लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन तक अपने रसूख का इस्तेमाल करके जो दबदबा बना लिया है उसकी हवा निकलना जरूर सुनिश्चित लगता है।

Sunday, March 29, 2020

इस त्रासदी का जिम्मेदार चीन


अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन पर कोरोना वायरस को लेकर चीन की तरफदारी का आरोप लगाया है। उधर अमेरिकी सीनेटर  मार्को रूबियो और कांग्रेस सदस्य माइकल मैकॉल कहा कि डब्ल्यूएचओ के निदेशक टेड्रॉस एडेनॉम गैब्रेसस की निष्ठा और चीन के साथ उनके संबंधों को लेकर अतीत में भी बातें उठी हैं। एक और अमेरिकी सांसद ग्रेग स्टीव का कहना ही कि डब्ल्यूएचओ चीन का मुखपत्र बन गया है। ट्रंप ने कहा है कि इस महामारी पर नियंत्रण पाने के बाद डब्ल्यूएचओ और चीन दोनों को ही इसके नतीजों का सामना करना होगा। पर चीन इस बात को स्वीकार नहीं करता। उसके विदेश विभाग के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने ट्विटर पर कुछ सामग्री पोस्ट की है, जिसके अनुसार अमेरिकी सेना इस वायरस की ईजाद की है।
अमेरिका में ही नहीं दुनिया के तमाम देशों में अब कोरोना को चीनी वायरस बताया जा रहा है। डब्लूएचओ के नियमों के अनुसार बीमारियों के नाम देशों के नाम पर नहीं रखे जाने चाहिए। खबरें हैं कि कोरोना मामले को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उठाने की कोशिशें भी हो रही हैं, जिनका चीन ने विरोध किया है। इस सिलसिले में चीन ने भारत से भी सम्पर्क साधा है। चीनी विदेशमंत्री वांग यी ने पिछले सप्ताह भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर के साथ फोन पर बात की और राजनयिक समर्थन माँगा। भारत ने खुद को इस विवाद से फिलहाल अलग रखा है और केवल वायरस से लड़ने के लिए विश्व समुदाय के सहयोग की कामना की है, पर आने वाले समय में यह विवाद बढ़ेगा।

Monday, August 19, 2019

हांगकांग ने किया चीन की नाक में दम

हांगकांग में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन थमने का नाम नहीं ले रहा है। पिछले तीन महीने से यहाँ के निवासी सरकार-विरोधी आंदोलन चला रहे हैं। पिछले हफ्ते पुलिस और आंदोलनकारियों के बीच कई झड़पे हैं हुई हैं। पुलिस ने आँसू गैस के गोले दागे। इस ‘नगर-राज्य’ की सीईओ कैरी लाम ने चेतावनी दी है कि अब कड़ी कार्रवाई की जाएगी। प्रेक्षक पूछ रहे हैं कि कड़ी कार्रवाई माने क्या?

चीन ने धमकी दी है कि यदि हांगकांग प्रशासन आंदोलन को रोक पाने में विफल रहा, तो वह इस मामले में सीधे हस्तक्षेप भी कर सकता है। यह आंदोलन ऐसे वक्त जोर पकड़ रहा है, जब चीन और अमेरिका के बीच कारोबारी मसलों को लेकर जबर्दस्त टकराव चल रहा है। शुक्रवार को अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर हुए प्रदर्शन के दौरान कुछ आंदोलनकारी अमेरिकी झंडे लहरा रहे थे।

चीन के सरकारी मीडिया का आरोप है कि इस आंदोलन के पीछे अमेरिका का हाथ है। चीनी मीडिया ने एक हांगकांग स्थित अमेरिकी कौंसुलेट जनरल की राजनीतिक शाखा प्रमुख जूली ईडे की एक तस्वीर प्रसारित की है, जिसमें वे एक होटल की लॉबी में आंदोलनकारी नेताओं से बात करती नजर आ रही हैं। इनमें 22 वर्षीय जोशुआ वांग भी है, जो सरकार विरोधी आंदोलन का मुखर नेता है। चायना डेली और दूसरे अखबारों ने इस तस्वीर को छापने के साथ यह आरोप लगाया है कि आंदोलन के पीछे अमेरिका का ‘काला हाथ’ है।

क्या चीन करेगा हस्तक्षेप?

हांगकांग से निकलने वाले चीन-समर्थक अखबार ‘ताई कुंग पाओ’ ने लिखा है कि जूली ईडे इराक में ऐसी गतिविधियों में शामिल रही हैं। चीन के सरकारी सीसीटीवी का कहना है कि सीआईए ऐसे आंदोलनों को भड़काता रहता है। चीन सरकार आगामी 1 अक्तूबर को कम्युनिस्ट क्रांति की 70वीं वर्षगाँठ मनाने जा रही है। हांगकांग का आंदोलन समारोह के माहौल को बिगाड़ेगा, इसलिए सरकार आंदोलन को खत्म कराना चाहती है। विधि विशेषज्ञों का कहना है कि यदि हांगकांग प्रशासन अनुरोध करेगा, तो चीन सरकार सीधे हस्तक्षेप कर सकती है। चीन को अंदेशा है कि हांगकांग में चल रही लोकतांत्रिक हवा कहीं चीन में न पहुँच जे। चीन सरकार पश्चिमी मीडिया की विरोधी है। चीन में गूगल, यूट्यूब और ट्विटर, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया पर पूरी तरह पाबंदी है।

Tuesday, August 23, 2016

चीन के ओलिम्पिक प्रदर्शन में गिरावट

सन 2016 के ओलिम्पिक खेलों में चीन का प्रदर्शन पहले के मुकाबले खराब रहा। ओलिम्पिक इतिहास में मेडल पाने वाले देशों में उसका स्थान सातवाँ हो गया है। सन 2008 के बीजिंग ओलिम्पिक में चीन को सबसे ज्यादा 100 मेडल मिले थे। उस बार मेडल तालिका में उसका स्थान पहला था। लंदन ओलिम्पिक में उसका स्थान दूसरा हो गया और अब तीसरा। चीन की ओर से इस सिलसिले में कुछ स्पष्टीकरण दिए गए हैं। इनमें से एक यह है कि इस बार हमारे खिलाड़ी कम अनुभवी थे। अलबत्ता बैडमिंटन में उसके अनुभवी खिलाड़ियों का प्रदर्शन पिछली बार से खराब रहा। एक स्पष्टीकरण यह भी है कि प्रतियोगिताओं के नियमों में बदलाव हुआ है। सच यह है कि दुनिया के दूसरे देशों ने भी अपने स्तर में खासा सुधार किया है। ब्रिटेन की टीम लंदन ओलिम्पिक में तीसरे स्थान पर थी, इसबार वह दूसरे स्थान पर आ गई। केवल नीचे दिए गए आँकड़ों से रोचक निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं।  

चीन के अंग्रेजी अखबार ग्लोबल टाइम्स की टिप्पणी भी पढ़ें

Monday, December 10, 2012

मालदीव में क्या चीनी चक्कर है?

खुदरा बाज़ार में एफडीआई के मसले और तेन्दुलकर की फॉर्म में मुलव्विज़ हमारे मीडिया ने हालांकि इस खबर को खास तवज्जो नहीं दी, पर मालदीव सरकार ने एक भारतीय कम्पनी को बाहर का रास्ता दिखाकर हमें महत्वपूर्ण संदेश दिया है। माले के इब्राहिम नासिर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की देखरेख के लिए जीएमआर को दिया गया 50 करोड़ डॉलर का करार रद्द होना शायद बहुत बड़ी बात न हो, पर इसके पीछे के कारणों पर जाने की कोशिश करें तो हमारी चंताएं बढ़ेंगी। समझना यह है कि मालदीव में पिछले एक साल से चल रही जद्दो-जेहद सिर्फ स्थानीय राजनीतिक खींचतान के कारण है या इसके पीछे चीन और पाकिस्तान का हाथ है।

Friday, November 16, 2012

चीन एक वैकल्पिक मॉडल भी है

चीनी व्यवस्था को लेकर हम कितनी भी आलोचना करें, दो बातों की अनदेखी नहीं कर सकते। एक 1949 से, जब से नव-चीन का उदय हुआ है, उसकी नीतियों में निरंतरता है। यह भी सही है कि लम्बी छलांग और सांस्कृतिक क्रांति के कारण साठ के दशक में चीन ने भयानक संकटों का सामना किया। इस दौरान देश ने कुछ जबर्दस्त दुर्भिक्षों का सामना भी किया। सत्तर के दशक में पार्टी के भीतर वैचारिक मतभेद भी उभरे। देश के वैचारिक दृष्टिकोण में बुनियादी बदलाव आया। माओ के समवर्ती नेताओं में चाऊ एन लाई अपेक्षाकृत व्यावहारिक थे, पर माओ के साथ उनका स्वास्थ्य भी खराब होता गया। माओ के निधन के कुछ महीने पहले उनका निधन भी हो गया। उनके पहले ल्यू शाओ ची ने पार्टी की सैद्धांतिक दिशा में बदलाव का प्रयास किया, पर उन्हें कैपिटलिस्ट रोडर कह कर अलग-थलग कर दिया गया और अंततः उनकी 1969 में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। उसके बाद 1971 में लिन बियाओ माओ के खिलाफ बगावत की कोशिश में मारे गए। 1976 में माओ जेदुंग के निधन के बाद आए हुआ ग्वो फंग और देंग श्याओ फंग पर ल्यू शाओ ची की छाप थी। कम से कम देंग देश को उसी रास्ते पर ले गए, जिस पर ल्यू शाओ ची जाना चाहते थे। चीन का यह रास्ता है आधुनिकीकरण और समृद्धि का रास्ता। कुछ लोग मानते हैं कि चीन पूँजीवादी देश हो गया है।  वे पूँजीवाद का मतलब निजी पूँजी, निजी कारखाने और बाजार व्यवस्था को ही मानते हैं। पूँजी सरकारी हो या निजी इससे क्या फर्क पड़ता है? यह बात सोवियत संघ में दिखाई पड़ी जहाँ व्यवस्था का ढक्कन खुलते ही अनेक पूँजीपति घराने सामने आ गए। इनमें से ज्यादातर या तो पुरानी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता हैं या कम्युनिस्ट शासन से अनुग्रहीत लोग। चीनी निरंतरता का दूसरा पहलू यह है कि 1991 में सोवियत संघ के टूटने के बावजूद चीन की शासन-व्यवस्था ने खुद को कम्युनिस्ट कहना बंद नहीं किया। वहाँ का नेतृत्व लगातार शांतिपूर्ण तरीके से बदलता जा रहा है। इसका मतलब यह हुआ कि वहाँ पार्टी का बड़ा तबका प्रभावशाली है, केवल कुछ व्यक्तियों की व्यवस्था नहीं है।