Thursday, November 23, 2023

मालदीव का बदला रुख और भारतीय-दृष्टि

मालदीव के राष्ट्रपति मुहम्मद मुइज़्ज़ू के साथ किरन रिजिजू

मालदीव में नव निर्वाचित राष्ट्रपति मुहम्मद मुइज़्ज़ू कार्यकाल शुरू हो गया है और अब देखना होगा कि ऐसे दौर में जब वैश्विक राजनीति लगातार टकरावों की ओर बढ़ रही है, मालदीव का सत्ता-परिवर्तन क्या गुल खिलाएगा. देश में चुनाव प्रचार के दौरान भारत को लेकर कड़वाहट का जो माहौल बना था, उसका व्यावहारिक असर अब देखने को मिलेगा.

भारत को भी सावधानी और समझदारी के साथ इस देश के साथ रिश्तों को संभालने और परिभाषित करने की जरूरत होगी. हालांकि यह बहुत छोटा देश है, पर हिंद महासागर के बेहद संवेदनशील इलाके में अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण यह महत्वपूर्ण है और उसे साधकर रखना जरूरी है. वैश्विक-राजनीति में भूमिका निभाने के साथ-साथ भारत को अपने इलाके में बेहतर संबंध बनाने होंगे. 

मालदीव के नए राष्ट्रपति अपनी संप्रभुता और राष्ट्रवादी जुनून से जुड़े दावे जरूर कर रहे हैं, पर वे डबल गेम नहीं खेल सकते. उन्हें भी भारत के साथ अपने रिश्तों को स्पष्ट परिभाषित करना होगा. भारत छोटा देश नहीं है, बल्कि इस इलाके का सबसे बड़ा देश है.

Tuesday, November 21, 2023

भारत-अमेरिका रिश्तों की अगली पायदान


भारत और अमेरिका के बीच हाल में हुई टू प्लस टू वार्ता आपसी मुद्दों से ज्यादा वैश्विक-घटनाक्रम के लिहाज से ज्यादा महत्वपूर्ण साबित हुई, फिर भी रक्षा-सहयोग और आतंकवाद से जुड़े कुछ मुद्दों ने खासतौर से ध्यान खींचा है।  कनाडा में खालिस्तानी आतंकियों को मिल रहे समर्थन के संदर्भ में भारत ने अपना पक्ष दृढ़ता से रखा, वहीं रक्षा-तकनीक में सहयोग को लेकर कुछ संदेह व्यक्त किए जा रहे हैं।

इन बातों को जून के महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका-यात्रा के दौरान किए गए फैसलों की रोशनी में भी देखना होगा, क्योंकि ज्यादातर बातें उस दौरान तय किए गए कार्यक्रमों से जुड़ी हैं। गज़ा में चल रहा युद्ध और भारत-कनाडा टकराव अपेक्षाकृत बाद का घटनाक्रम है, पर उनसे दोनों देशों के रिश्तों पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ा है। दोनों परिघटनाएं प्रत्यक्ष नहीं, तो परोक्ष रूप में पहले से चल रही थीं।  

Saturday, November 11, 2023

आइए अंधेरे को भगाएं


हमारा देश पर्वों और त्योहारों का देश है। मौसम और समय के साथ सभी पर्वों का महत्व है, पर इस समय जो पर्व-समुच्चय मनाया जा रहा है, उसका तुलना दुनिया के किसी भी समारोह से संभव नहीं है। श्री, समृद्धि, स्वास्थ्य और स्वच्छता का यह समारोह हमारे पूर्वजों के विलक्षण सोच-समझ को व्यक्त करता है। देश के सभी क्षेत्रों में ये पर्व अपने-अपने तरीके से मनाए जाते हैं, पर उत्तर भारत में इनका आयोजन खासतौर से ध्यान खींचता है। इसमें शामिल पाँच महत्वपूर्ण पर्वों में सबसे पहले धनतेरस आता है, जो इस साल कल 10 नवंबर को मनाया गया।

माना जाता है कि इस दिन भगवान धन्वंतरि हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान धन्वंतरि का जन्म समुद्र मंथन से हुआ था। धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि हाथ में सोने का अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। धन्वंतरि को प्राकृतिक चिकित्सक माना जाता है। धनतेरस के दिन नए झाडू, बर्तन, सोना चाँदी के आभूषण को खरीदना शुभ माना जाता है। दुनिया के सबसे बड़े सोने के उपभोक्ता देश भारत में इस साल सोने तथा चांदी की खरीदारी सोने की कीमतों में नरमी के साथ उपभोक्ता माँग में सुधार के चलते सकारात्मक रही। बाजार की रौनक को देखते हुए लगता है कि देश में समृद्धि का विस्तार होता जा रहा है।

Friday, November 10, 2023

आपके पास समाधान हों तो बताइए


फ्रांचेस्का ऑर्सीनी की किताब हिंदी का लोकवृत्त’ को पढ़ते हुए मैंने 2012 में लिखे अपने एक पुराने लेख को फिर से देखा। उसके एक अंश को मैं थोड़ा बदल कर फिर से अपने ब्लॉग में प्रकाशित कर रहा हूँ।

हमारा सामुदायिक जीवन क्या है? सोशल नेटवर्किंग में हम काफी आगे चले गए हैं। पर सारी नेटवर्किंग अपने व्यावसायिक हितों और स्वार्थों के लिए है। शाम को दारू-पार्टी पर बैठने और गॉसिप करने को हम सोशल होना मानते हैं। जो इसमें शामिल नहीं है, वह अन-सोशल है। दरअसल सोशल होने का मतलब व्यावहारिक रूप में ऊपर चढ़ने की सीढ़ियाँ तलाशना है। सामाजिक जीवन की गुत्थियों को सुलझाना या सामूहिक एक्शन के बारे में सोचना सोशल नेटवर्किंग का अंग नहीं है। लोग चाहें तो अपने आसपास की खराबियों को आपसी सहयोग से दूर कर सकते हैं। कई जगह करते हैं और ज्यादातर जगहों पर नहीं करते।

ज्यादातर लोग ऐसा क्यों नहीं करते? मुझे लगता है कि हम वैचारिक कर्म से भागते हैं और खुद को असुरक्षित मानते हुए आत्मकेंद्रित होते चले गए हैं। सोशल मीडिया पर देखें, तो पाएंगे कि ज्यादातर लोग छोटी, चटपटी और मसालेदार बातों को पसंद करते हैं। संज़ीदा बातों को भारी काम मानते हैं। मामूली सी बात को भी समझना नहीं चाहते। उनपर रास-रंग हावी है। उसमें भी खराबी नहीं, पर आप विमर्श से भागते क्यों हैं?

आपने गौर किया होगा नई कॉलोनियों की योजनाओं में जीवन की सारी चीजें मुहैया कराने का वादा होता है। मॉल होते हैं, मेट्रो होती है, ब्यूटी सैलून, जिम और स्पा होते हैं। मल्टीप्लेक्स, वॉटर स्पोर्ट्स होते हैं। जमीन पर अवैध कब्जा करके धर्म स्थल भी खड़े कर दिए जाते हैं, पर इस योजना में लाइब्रेरी नहीं होती। कम्युनिटी सेंटर होते हैं तो वे शादी-बारात के लिए होते हैं, बैठकर विचार करने के लिए नहीं। ऐसे सामुदायिक केंद्र की कल्पना नहीं होती, जो विमर्श का केंद्र बने। छोटा सा ऑडिटोरियम। पढ़ने, विचार करने, सोचने और उसे अपने एक्शन में उतारने को कोई बढ़ावा नहीं।

भौतिक रूप से चौपाल, चौराहों और कॉफी हाउसों की संस्कृति खत्म हो रही है। इस विमर्श की जगह वर्चुअल-विमर्श ने ले ली है। यह वर्चुअल-विमर्श ट्विटर और फेसबुक में पहुँच गया है। यहाँ वह सरलीकरण और जल्दबाज़ी का शिकार है। अक्सर अधकचरे तथ्यों पर अधकचरे निष्कर्ष निकल कर सामने आ रहे हैं। एकाध गंभीर ब्लॉग को छोड़ दें तो नेट का काफी बड़ी संख्या में विमर्श अराजक है। यह ज्यादा बड़े धरातल पर पूरे समाज की है।

Wednesday, November 8, 2023

हमास का खात्मा भी समस्या का समाधान नहीं है


गज़ा में इसराइली सेना की कार्रवाई से तबाही मची है. दस हजार से ज्यादा फलस्तीनियों की मौत इस दौरान हुई है. मरने वालों में ज्यादातर स्त्रियाँ, बच्चे और बूढ़े हैं. इलाके की दस फीसदी इमारतें खंडहरों में तब्दील हो चुकी हैं. इसराइली नाकेबंदी की वजह से ईंधन, पेयजल, खाद्य-सामग्री और चिकित्सा-सामग्री की जबर्दस्त किल्लत पैदा हो गई है, जिससे लाखों लोगों का जीवन खतरे में है.

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने लड़ाई फौरन रोकने का प्रस्ताव पास किया है, पर उसके रुकने की संभावना नज़र आ नहीं रही है. इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू खून का बदला खून से लेने और हमास को नेस्तनाबूद करने का दावा कर रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा है कि अब इसराइल गज़ा की सुरक्षा का काम हमेशा के लिए अपने हाथ में रखेगा. इसराइली जनरल मानते हैं कि इस समय वे जिस अभियान को चला रहे हैं, वह करीब एक साल तक जारी रहेगा. 

उन्हें अपने देश के लोगों का और पश्चिम के काफी देशों का समर्थन प्राप्त है. इसका एक मतलब यह भी है कि गज़ा का कब्ज़ा अब इसराइल नहीं छोड़ेगा, पर अमेरिका इस बात से पूरी तरह सहमत नहीं है. यह लड़ाई खत्म होने के बाद क्या होगा, इस विषय पर जापान में जी-7 देशों के विदेशमंत्री भी विचार कर रहे हैं.

दुनिया का और खासतौर से भारत का हित इस बात में है कि समस्या का स्थायी और शांतिपूर्ण समाधान हो. हमारा अनुभव है कि पश्चिम से उठी कट्टरपंथी आँधियाँ हमारे इलाके में भी आग भड़काती हैं.