Sunday, July 2, 2023

समान नागरिक संहिता के किंतु-परंतु


संसद का मॉनसून सत्र 20 जुलाई से 11 अगस्त के बीच होने की घोषणा हो गई है। कहा जा रहा है कि इस सत्र के दौरान समान नागरिक संहिता से जुड़ा विधेयक भी पेश हो सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में कहा है कि कुछ राजनीतिक दल समान नागरिक संहिता के नाम पर मुसलमानों को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरी तरफ उनके विरोधी नेताओं का कहना है कि यह मुद्दा मुसलमानों को टारगेट करने के लिए ही उठाया गया है। सच यह है कि इसका असर केवल मुसलमानों पर ही नहीं पड़ेगा। देश के सभी धर्मावलंबी और जनजातीय समुदाय इससे प्रभावित होंगे। फिर भी पर्सनल लॉ की चर्चा जब भी छिड़ती है तब हिंदू-मुसलमान पर चली जाती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इन दो समुदायों की संख्या बड़ी है और वोट के सहारे सत्ता हासिल करने में इन दो में से किसी एक का समर्थन हासिल करना उपयोगी होता है। इसे ध्रुवीकरण कहते हैं। इसकी वजह से पिछले 75 वर्ष में राजनीतिक वोट-बैंक की अवधारणा विकसित हुई है।

सब पर समान रूप से लागू होने वाला कानून अच्छा विचार है, पर वह तभी संभव है, जब समाज अपने भीतर सुधार के लिए तैयार हो। पता नहीं वह दिन कब आएगा। हिंदू कोड बिल ने सामाजिक की शुरुआत की, पर उससे ही हिंदू-राजनीतिको बल मिला। वह सुधार भी आसानी से नहीं हुआ। हिंदू-कोड बिल समिति 1941 में गठित की गई थी, पर कानून बनाने में14 साल लगे। वह भी एक कानून से नहीं तीन कानूनों, हिंदू-विवाह, उत्तराधिकार और दत्तक-ग्रहण, के मार्फत। कांग्रेस के भीतर प्रतिरोध हुआ। सरदार पटेल, पट्टाभि सीतारमैया, एमए अयंगार, मदन मोहन मालवीय और कैलाश नाथ काटजू जैसे नेताओं की राय अलग थी। इसी कानून को लेकर 1951 में भीमराव आंबेडकर ने कानून मंत्री पद से इस्तीफा दिया। डॉ राजेंद्र प्रसाद ने कहा, मैं इस कानून पर दस्तखत नहीं करूँगा। बिल रोका गया और बाद में नए कानून बने। फिर भी 1955 के कानून में बेटियों को संपत्ति का अधिकार नहीं मिला। यह अधिकार 2005 में मिला।

संविधान सभा में अनुच्छेद 44 पर बहस को भी पढ़ना चाहिए। अनुच्छेद 44 में शब्द यूनिफॉर्म का इस्तेमाल हुआ है, कॉमन का नहीं। इसका मतलब है समझने की जरूरत भी है। पचास के दशक की बहस के बीच श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने (तब जनसंघ का गठन नहीं हुआ था और श्यामा प्रसाद की राजनीति दूसरी थी) कहा कि समरूप (यूनिफॉर्म) नागरिक-संहिता बनाई जाए। बहरहाल हिंदू-कोड बिल आने के बाद कहा गया कि हिंदू-समाज परिवर्तन के लिए तैयार है, मुस्लिम-समाज नहीं। इस दौरान पाकिस्तान में पर्सनल लॉ में सुधार हुआ। इन सब बातों के कारण मुस्लिम-तुष्टीकरणएक राजनीतिक-अवधारणा बनकर उभरी, जिसने इस विचार को पनपने का मौका दिया। हमारा लोकतंत्र इतना प्रौढ़ नहीं है कि सामान्य वोटर इन बारीकियों को पढ़ सके। पर यह मानना भी ठीक नहीं कि संविधान निर्माताओं ने जिस समझदारी के साथ देश पर समान नागरिक संहिता लागू नहीं की, उसे देखते हुए यह मामला हमेशा के लिए जस का तस रह पाएगा। सवाल है कि वह समय कब आएगा, जब इसे को उठाया जाएगा? पर असली चुनौती उद्देश्य की नहीं, इरादों की है। साथ ही ऐसा कानून बनाने की, जिसे सभी समुदाय स्वीकार करें।

Wednesday, June 28, 2023

प्राइवेट-सेना की बगावत से स्तब्ध रूसी रणनीतिकार


यूक्रेन में लड़ रही रूसी सेनाओं के अभियान को पिछले शुक्रवार और शनिवार को अचानक उस समय धक्का लगा, जब उसका साथ दे रही वागनर  ग्रुप की प्राइवेट सेना ने बगावत कर दी. आग को हवा देने का काम किया राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की इस घोषणा ने कि वागनर ग्रुप के प्रमुख येवगेनी प्रिगोज़िन के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की जाएगी.

हालांकि बेलारूस के राष्ट्रपति के हस्तक्षेप से बगावत थम गई है, पर उससे जुड़े सवाल सिर उठाएंगे. रूसी सेना यूक्रेन में लंबी लड़ाई की रणनीति पर चल रही थी, ताकि पश्चिमी देश थककर हार मान लें, पर उसकी रणनीति विफल साबित हो रही है. उल्टे पिछले कुछ महीनों में यूक्रेन ने अपनी पकड़ बना ली है और रूसी सेना थकती नज़र आ रही है.

प्रिगोज़िन के साथ डील

बगावती प्राइवेट-सेना एक डील के तहत ही पीछे हटी है. रूसी सरकार ने प्रिगोज़िन को बेलारूस तक जाने के लिए सुरक्षित रास्ता देने की घोषणा की है. उनके सैनिकों को किसी भी प्रकार की सजा नहीं दी जाएगी, और उन्हें रूसी सेना के साथ एक कांट्रैक्ट पर दस्तखत करने का मौका दिया जाएगा.

सवाल है कि वागनर के सैनिक अब युद्धस्थल पर जाएंगे, तो क्या उनपर पूरा  भरोसा होगा? यदि उन्हें हाशिए पर डाला गया, तो करीब तीस से पचास हजार के बीच हार्डकोर लड़ाकों की कमी कैसे पूरी की जाएगी? एक अनुमान है कि अब पुतिन अपने रक्षामंत्री सर्गेई शोइगू का पत्ता भी साफ करेंगे, जो पिछले एक दशक से उनके विश्वस्त रहे हैं. इससे पूरी सेना की व्यवस्था गड़बड़ हो जाएगी.

Monday, June 26, 2023

पीएम मोदी की अमेरिका-यात्रा से भारत की हाईटेक-क्रांति का रास्ता खुला


भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका-यात्रा को कम से कम तीन सतह पर देखने समझने की जरूरत है. एक सामरिक-तकनीक सहयोग. दूसरे उन नाज़ुक राजनीतिक-नैतिक सवालों के लिहाज से, जो भारत में मोदी-सरकार के आने के बाद से पूछे जा रहे हैं. तीसरे वैश्विक-मंच पर भारत की भूमिका से जुड़े हैं. इसमें दो राय नहीं कि भारतीय शासनाध्यक्षों के अमेरिका-दौरों में इसे सफलतम मान सकते हैं.  

प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी संसद के संयुक्त अधिवेशन में कहा, भारत-अमेरिका सहयोग का यह नया सूर्योदय है, भारत बढ़ेगा, तो दुनिया बढ़ेगी. यह एक नज़रिया है, जिसके अनेक अर्थ हैं. भारत में आया बदलाव तमाम विकासशील देशों में बदलाव का वाहक भी बनेगा.

राजनीति में आमराय

अमेरिकी राजनीति में भी भारत के साथ रिश्तों को बेहतर बनाने के पक्ष में काफी हद तक आमराय देखने को मिली है. वहाँ की राजनीति में भारत और खासतौर से नरेंद्र मोदी के विरोधियों की संख्या काफी बड़ी है. उनके कटु आलोचक भी इसबार अपेक्षाकृत खामोश थे. कुछ सांसदों ने उनके भाषण का बहिष्कार किया और एक पत्र भी जारी किया, पर उसकी भाषा काफी संयमित थी.

'द वाशिंगटन पोस्ट' ने लिखा, अमेरिकी सांसदों ने सदन में पीएम मोदी का गर्मजोशी से स्वागत किया और खड़े होकर उनका जोरदार अभिवादन किया. जब वे तो दीर्घा में कुछ लोग मोदी-मोदी के नारे लगाए.  कई सांसद उनसे हाथ मिलाने के लिए कतार में खड़े थे.

अखबार ने यह भी लिखा कि मोदी की इस चमकदार-यात्रा का शुक्रवार को इस धारणा के साथ समापन हुआ कि जब अमेरिका के सामरिक-हितों की बात होती है, तो वे मानवाधिकार और लोकतांत्रिक मूल्यों पर मतभेदों को न्यूनतम स्तर तक लाने के तरीके खोज लेते हैं.

वॉशिंगटन पोस्ट मोदी सरकार के सबसे कटु आलोचकों में शामिल हैं, पर इस यात्रा के महत्व को उसने भी स्वीकार किया है. मोदी के दूसरे कटु आलोचक 'द न्यूयॉर्क टाइम्स' ने अपने पहले पेज पर अमेरिकी कांग्रेस में 'नमस्ते' का अभिवादन करते हुए नरेंद्र मोदी फोटो  छापी है. ऑनलाइन अखबार हफपोस्ट ने लिखा कि नरेंद्र मोदी की अमेरिकी यात्रा की आलोचना करने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं.

Sunday, June 25, 2023

भारत-अमेरिका रिश्तों का सूर्योदय


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका की राजकीय-यात्रा और उसके बाद मिस्र की यात्रा का महत्व केवल इन दोनों देशों के साथ रिश्तों में सुधार ही नहीं है, बल्कि वैश्विक-मंच पर भारत के आगमन को रेखांकित करना भी है। वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का भारत को लेकर दृष्टिकोण नया नहीं है। उन्होंने पहले सीनेट की विदेशी मामलों की समिति के अध्यक्ष के रूप में और बाद में जब वे बराक ओबामा के कार्यकाल में उपराष्ट्रपति थे, अमेरिका की भारत-समर्थक नीतियों को आगे बढ़ाया। उपराष्ट्रपति बनने के काफी पहले सन 2006 में उन्होंने कहा था, ‘मेरा सपना है कि सन 2020 में अमेरिका और भारत दुनिया में दो निकटतम मित्र देश बनें।’ उन्होंने ही कहा था कि भारत-अमेरिकी रिश्ते इक्कीसवीं सदी को दिशा प्रदान करेंगे। इस यात्रा के दौरान जो समझौते हुए हैं, वे केवल सामरिक-संबंधों को आगे बढ़ाने वाले ही नहीं हैं, बल्कि अंतरिक्ष-अनुसंधान, क्वांटम कंप्यूटिंग, सेमी-कंडक्टर और एडवांस्ड आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में नए दरवाजे खोलने जा रहे हैं। कुशल भारतीय कामगारों के लिए वीज़ा नियमों में ढील दी जा रही है। अमेरिका असाधारण स्तर के तकनीकी-हस्तांतरण के लिए तैयार हुआ है, वहीं आर्टेमिस समझौते में शामिल होकर भारत अब बड़े स्तर पर अंतरिक्ष अनुसंधान में शामिल होने जा रहा है। भारत के समानव गगनयान के रवाना होने के पहले या बाद में भारतीय अंतरिक्ष-यात्री किसी अमेरिकी कार्यक्रम में शामिल होकर अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (आईएसएस) पर काम करें। अमेरिका के साथ 11 देशों के खनिज-सुरक्षा सहयोग में शामिल होने के व्यापक निहितार्थ हैं। इस क्षेत्र में चीन की इज़ारेदारी खत्म करने के लिए यह सहयोग बेहद महत्वपूर्ण है। रूस और चीन के साथ भारत के भविष्य के रिश्तों की दिशा भी स्पष्ट होने जा रही है। भारत में अल्पसंख्यकों और मानवाधिकार से जुड़े कुछ सवालों पर भी इस दौरान चर्चा हुई और प्रधानमंत्री मोदी ने पैदा की गई गलतफहमियों को भी दूर किया।

स्टेट-विज़िट

यह तीसरा मौका था, जब भारत के किसी नेता को अमेरिका की आधिकारिक-यात्रा यानी स्टेट-विज़िटपर बुलाया गया था। अमेरिका को चीन के बरक्स संतुलन बनाने के लिए भारत की जरूरत है। भारत को भी बदलती अमेरिकी तकनीक, पूँजी और राजनयिक-समर्थन चाहिए। अमेरिका अकेला नहीं है, उसके साथ कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के कई देश हैं। जिस प्रकार के समझौते अमेरिका में हुए हैं, वे एक दिन में नहीं होते। उनकी लंबी पृष्ठभूमि होती है। प्रधानमंत्री की यात्रा के कुछ दिन पहले अमेरिकी रक्षामंत्री लॉयड ऑस्टिन भारत आए थे। उनके साथ बातचीत के बाद काफी सौदों की पृष्ठभूमि तैयार हो चुकी थी। जनवरी में भारत के रक्षा सलाहकार अजित डोभाल और अमेरिकी रक्षा सलाहकार जेक सुलीवन ने इनीशिएटिव फॉर क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी (आईसेट) को लॉन्च किया था। पश्चिमी देश इस बात को महसूस कर रहे हैं कि भारत की रूस पर निर्भरता इसलिए भी बढ़ी, क्योंकि उन्होंने भारत की उपेक्षा की। इस यात्रा के ठीक पहले भारत और जर्मनी के बीच छह पनडुब्बियों के निर्माण पर सहमति बनी। भारत के दौरे पर आए जर्मन रक्षामंत्री बोरिस पिस्टोरियस ने कहा कि भारत का रूसी हथियारों पर निर्भर रहना जर्मनी के हित में नहीं है।

रिश्तों की पृष्ठभूमि

भारत-अमेरिका रिश्तों के संदर्भ में बीसवीं और इक्कीसवीं सदी का संधिकाल तीन महत्वपूर्ण कारणों से याद रखा जाएगा। पहला, भारत का नाभिकीय परीक्षण, दूसरा करगिल प्रकरण और तीसरे भारत और अमेरिका के बीच लंबी वार्ताएं। सबसे मुश्किल काम था नाभिकीय परीक्षण के बाद भारत को वैश्विक राजनीति की मुख्यधारा में वापस लाना। नाभिकीय परीक्षण करके भारत ने निर्भीक विदेश-नीति की दिशा में सबसे बड़ा कदम अवश्य उठाया था, पर उस कदम के जोखिम भी बहुत बड़े थे। ऐसे नाजुक मौके में तूफान में फँसी नैया को किनारे लाने का एक विकल्प था कि अमेरिका से रिश्तों को सुधारा जाए। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को एक पत्र लिखा, हमारी सीमा पर एटमी ताकत से लैस एक देश बैठा है, जो 1962 में हमला कर भी चुका है। हालांकि उसके साथ हमारे रिश्ते सुधरे हैं, पर अविश्वास का माहौल है। इस देश ने हमारे एक और पड़ोसी को एटमी ताकत बनने में मदद की है। अमेरिका भी व्यापक फलक पर सोच रहा था, तभी तो उसने उस पत्र को सोच-समझकर लीक किया।

Saturday, June 24, 2023

प्राइवेट-सेना की बगावत से यूक्रेन-युद्ध में रूस साँसत में

वागनर ग्रुप के प्रमुख येवगेनी प्रिगोज़िन

यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूसी सेना अचानक अपने ही सहयोगी
वागनर-ग्रुप की बगावत के कारण अर्दब में आ गई है। वागनर ग्रुप एक प्रकार की प्राइवेट सेना है, जो अभी तक रूसी सेना के साथ यूक्रेन के युद्ध में शामिल रही है। अब लड़ाई में आधिकारिक सेना और भाड़े के इन सैनिकों के बीच टकराव पैदा हो गया है। इनके ज्यादातर लड़ाके रूसी जेलों से निकालकर लाए गए हैं। पश्चिमी देशों के मीडिया के अनुसार लड़ाई अब ऐसे मुकाम पर आ गई है, जहाँ राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की सत्ता को सीधे चुनौती मिलने जा रही है। राष्ट्रपति पुतिन ने वागनर ग्रुप के प्रमुख येवगेनी प्रिगोज़िन पर आरोप लगाया है कि वे सशस्त्र विद्रोह कर रूस को धोखा दे रहे हैं। पुतिन ने कहा है कि उन्होंने देश की पीठ में छुरा घोंपा है।

उधर प्रिगोज़िन का कहना है कि हमारा उद्देश्य सैन्य विद्रोह नहीं है, हम केवल न्याय के लिए अभियान छेड़ रहे हैं। यूक्रेन के ख़िलाफ़ युद्ध के दौरान संघर्ष की कमान संभाल रहे सेना प्रमुखों से उनका विवाद नया नहीं है, लेकिन अब इस विवाद ने विद्रोह की शक्ल ले ली है। पूर्वी यूक्रेन की सीमा के पास तैनात वागनर ग्रुप के लड़ाके सीमा पारकर दक्षिणी रूस के शहर रोस्तोव-ऑन-डॉन में प्रवेश कर गए हैं। उनका दावा है कि उन्होंने वहां मौजूद सैन्य ठिकानों को अपने नियंत्रण में ले लिया है।

पिछले साल लड़ाई शुरू होने के बाद पश्चिमी मीडिया में खबरें थीं कि रूस ने वागनर ग्रुप के 400 लड़ाकों को यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की की हत्या करने के लिए भेजा है। इसके पहले से ही यूक्रेन आरोप लगाता रहा है कि रूस ने इस प्राइवेट सेना को पूर्वी यूक्रेन के लुहांस्क और दोनेत्स्क इलाकों में भेजा है। यूक्रेन में यह समूह 2014 में पहली बार प्रकट हुआ था। रूस ने इस प्राइवेट सेना का इस्तेमाल सीरिया, लीबिया, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, माली, उत्तरी और सब-सहारा अफ्रीका में भी किया है। वैधानिक तरीके से इसे रूस की सेना नहीं कहा जा सकता, पर यह भी रूसी सेना है। पिछले साल दिसंबर में यूरोपियन यूनियन ने इस समूह पर भी पाबंदियाँ लगाई थीं।