Wednesday, October 21, 2020

कराची की सब्ज़ी मंडी में हरी मिर्च और शिमला मिर्च की क़ीमतें आसमान छूने लगीं


 पाकिस्तान के उर्दू डॉन अख़बार से देवनागरी में उर्दू का आनंद लें

20 अक्तूबर 2020। कराची में हरी मिर्च और शिमला मिर्च की क़ीमतें बुलंदी पर पहुँच गई हैं और ये 320 रुपये और 480 रुपये फ़ी किलो तक फ़रोख़्त हो रही हैं। डॉन अख़बार की रिपोर्ट के मुताबिक़ मार्केट ज़राए का कहना था कि हरी मिर्च और शिमला मिर्च की क़ीमतें रवां माह दबाव का शिकार रही, इस से क़बल शिमला मिर्च 180 से 200 रुपये फ़ी किलो जबकि हरी मिर्च 200 से240 रुपये फ़ी किलो में दस्तयाब थी। ताहम अब क़ीमतों में इज़ाफे़ के बाद मुख़्तलिफ़ सारिफ़ीन के लिए देसी खानों में इस्तेमाल होने वाली हरी मिर्च ख़रीदना मुश्किल हो गया है।

मार्केट में250 ग्राम यानी एक पाओ हरी मिर्च80 रुपये में दस्तयाब है जबकि बड़ी शिमला मिर्च40 से50 रुपये में फ़रोख़्त हो रही है। उधर कमिश्नर कराची की प्राइस लिस्ट के मुताबिक़ पीर को शिमला मिर्च के होलसेल और रिटेल रेट यक्म अक्तूबर के 130 और133 रुपये फ़ी किलो से बढ़कर 400 और 403 रुपये किलो तक पहुंच गए। इस से क़बल इतवार को शिमला मिर्च के होलसेल और रिटेल क़ीमतें330 और333 रुपये फ़ी किलो थीं। इसी तरह हर मिर्च की होलसेल और रिटेल क़ीमतों में भी इज़ाफ़ा हुआ और ये 110 और 113 रुपये फ़ी किलो से बढ़कर 240 और 243 रुपये फ़ी किलो तक पहुंच गईं।

वाज़ेह रहे कि मुल्क में चाइनीज़ और पैन एशियन रेस्टोरेंट्स की तादाद में इज़ाफे़ के बाइस गुज़श्ता कुछ बरसों में शिमला मिर्च की तलब में इज़ाफ़ा हुआ है। इस हवाले से डॉन से बात करते हुए एक रिटेलर का कहना था कि बैगन और लौकी मार्कीट में60 से70 रुपये किलो में दस्तयाब थी जबकि ईरान और अफ़्ग़ानिस्तान से सब्ज़ी के आने के बावजूद प्याज़ की क़ीमत 80 रुपये किलो से नीचे नहीं आ रही। उन्होंने कहा कि ज़्यादा-तर अश्या (चीजें) 100 रुपये फ़ी किलो से ऊपर फ़रोख़्त हो रही हैं जबकि दरआमदात (सप्लाई) के बावजूद टमाटर अब भी 160 रुपये किलो हैं।

कराची और इस्लामाबाद की शबर है कि दरआमदशुदा सब्ज़ियों की आमद से अवाम को कोई रिलीफ़ नहीं मिल सका क्योंकि टमाटर और प्याज़ की क़ीमतें 150-160 रुपये फ़ी किलो और 50-60 रुपये फ़ी किलो से बिलतर्तीब 200 रुपये फ़ी किलो और 80 रुपये फ़ी किलो की बुलंद तरीन सतह पर पहुंच गई हैं। डॉन अख़बार की रिपोर्ट के मुताबिक़ सारिफ़ीन पहले से ही दरआमदी अदरक के लिए 600 रुपये फ़ी किलो अदा कर रहे हैं, जबकि कुछ लालची ख़ुदरा फ़रोश उसको बेहतरीन मयार का क़रार देते हुए 700 रुपये फ़ी किलो का मुतालिबा कर रहे हैं। ख़ुदरा फ़रोशों का कहना है कि गुज़श्ता एक हफ़्ते के दौरान ईरानी टमाटर और प्याज़, जबकि अफ़ग़ान प्याज़ की आमद मोख़र होने की वजह से क़ीमतों में मज़ीद इज़ाफ़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि प्याज़ और टमाटर दोनों की बलोचिस्तान की फ़सलें अब तक नाकाफ़ी साबित हो चुकी हैं जिससे ईरान और अफ़ग़ानिस्तान से उन अश्या की दरआमद की राह हमवार होगी।

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पाँच वजहें जो डोनाल्ड ट्रंप को फिर बना सकती हैं राष्ट्रपति

राष्ट्रपति चुनाव में मतदाता कौन होंगे, इसका अनुमान लगाना एक चुनौती होता है. पिछली बार कुछ चुनावी सर्वे यही अनुमान लगाने में असफल साबित हुए.

डोनाल्ड ट्रंप को बिना कॉलेज डिग्री वाले गोरे अमरीकियों ने बढ़-चढ़कर वोट किया था, जिसका अंदाज़ा नहीं लगाया गया था.

हालाँकि, इस बार न्यूयॉर्क टाइम्स ने अनुमान लगाया है कि बाइडन का मौजूदा मार्जिन उन्हें 2016 जैसी स्थिति से बचाएगा. लेकिन, 2020 में सर्वे करने वालों के सामने कुछ नई बाधाएँ हैं.

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Tuesday, October 20, 2020

क्या पूरा होगा इलेक्ट्रॉनिक्स में सफलता का भारतीय सपना?

भारत में कई समाचार प्रतिष्ठानों ने रॉयटर्स का हवाला देते हुए ऐसे शीर्षक वाली खबरें जोर-शोर से चलाईं कि ऐपल अपने आईफोन विनिर्माण को चीन से हटाकर भारत ले जाने की योजना बना रही है। ऐपल की विनिर्माण साझेदार ताइवानी कंपनी फॉक्सकॉन के एक अरब डॉलर की लागत से चेन्नई के पास श्रीपेरुम्बदूर में लगाए जाने वाले संयंत्र में करीब 6,000 लोगों को रोजगार मिलने की बात भी कही गई।

हाल ही में आई एक और खबर में बताया गया कि भारत सरकार ने 10 मोबाइल फोन विनिर्माताओं समेत 16 इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों की प्रोत्साहन योजना के तहत की गई इनाम की अर्जी को मंजूर कर लिया है। इस योजना के तहत इन कंपनियों को 40,000 करोड़ रुपये का प्रोत्साहन दिया जाना है। इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में भले ही वैश्विक प्रभुत्व के लिए नहीं, कम-से-कम आत्म-निर्भरता के लिए ऐसे सपने देखना असल में भारत के लिए कोई नई बात नहीं है। आजादी के कुछ साल बाद ही 1950 के दशक में मध्य में बेंगलूर में भारत इलेक्ट्रॉनिक्स और इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज उपक्रमों की स्थापना की गई थी। 1980 के दशक के मध्य में सैम पित्रोदा आए और ग्रामीण टेलीफोन एक्सचेंजों के माध्यम से समूचे देश को जोड़ने के लिए सरकार ने सी-डॉट का गठन किया।

किसी टेलीविजन सीरियल की तरह सपनों एवं आकांक्षाओं के इस अनवरत दोहराव, सुर्खियां बनने वाली घोषणाओं, फंड के व्यापक प्रवाह और घरेलू विनिर्माण प्रयासों से केवल यही नजर आता है कि ये सपने दूर छिटक जाते हैं जबकि उद्योग बाएं या दाएं मुड़कर किसी अन्य दिशा में जाने लगता है। यह प्रयासों में शिद्दत की कमी नहीं है और न ही लगन की कमी या नेतृत्व प्रतिभा की कमी ही है। फिर किस वजह से ऐसा होता है?

बिजनेस स्टैंडर्ड में विस्तार से पढ़ें अजित बालकृष्ण का यह आलेख

 

एफएटीएफ की 'ग्रे लिस्ट’ से पाकिस्तान का फिलहाल निकल पाना मुश्किल

 

फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की 21 से 23 अक्तूबर को होने वाली सालाना आम बैठक के ठीक पहले लगता है कि पाकिस्तान इसबार भी न तो ग्रे लिस्ट से बाहर आएगा और न ब्लैक लिस्ट में डाला जाएगा। भारत सरकार के सूत्रों का कहना है कि एफएटीएफ ने पाकिस्तान को जिन 27 कार्य-योजनाओं की जिम्मेदारी दी थी, उनमें से केवल 21 पर ही काम हुआ है। शेष छह पर नहीं हुआ।

इसके पहले एफएटीएफ के एशिया प्रशांत ग्रुप की रिपोर्ट गत 30 सितंबर को जारी हुई थी, जिसमें पाकिस्तान को दिए गए कार्य और उस पर अमल करने के उपायों की समीक्षा की गई। इसका सारांश है कि पाकिस्तान फिलहाल प्रतिबंधित होने वाली सूची से तो बच सकता है, लेकिन उसे अभी निगरानी सूची में ही रहना होगा। एफएटीएफ ने पाकिस्तान को गैरकानूनी वित्तीय लेन-देन, बाहर से आने वाली फंडिंग को रोकने, एनजीओ के नाम पर काम करने वाली एजेंसियों की गतिविधियों पर लगाम लगाने व पारदर्शिता लाने के लिए कार्यों की सूची सौंपी है।

पेरिस में क्या होगा?

पेरिस स्थित मुख्यालय में एफएटीएफ की 21-23 अक्टूबर को वर्च्युअल बैठक होगी। एफएटीएफ ने हाल के महीनों में पाकिस्तान सरकार की तरफ से उठाए गए कुछ कदमों की तारीफ भी की है। खासतौर पर जिस तरह से गैरसरकारी संगठनों की गतिविधियों को पारदर्शी बनाने के लिए कदम उठाए गए हैं, उनकी तारीफ की गई है। पाकिस्तान में नई व्यवस्था लागू की गई है, जिससे हजारों एनजीओ की फंडिंग की निगरानी संभव हो सकेगी।

Monday, October 19, 2020

इस महामारी ने हमें कुछ दिया भी है

कोई आपसे पूछे कि इस महामारी ने आपसे क्या छीना, तो आपके पास बताने को काफी कुछ है। अनेक प्रियजन-परिजन इस बीमारी ने छीने, आपके स्वतंत्र विचरण पर पाबंदियाँ लगाईं, तमाम लोगों के रोजी-रोजगार छीने, सामाजिक-सांस्कृतिक समारोहों पर रोक लगाई, खेल के मैदान सूने हो गए, सिनेमाघरों में सन्नाटा है, रंगमंच खामोश है। शायद आने वाली दीवाली वैसी नहीं होगी, जैसी होती थी। तमाम लोग अपने-अपने घरों में अकेले बैठे हैं। अवसाद और मनोरोगों का एक नया सिलसिला शुरू हुआ है, जिसका दुष्प्रभाव इस बीमारी के खत्म हो जाने के बाद भी बना रहेगा। जो लोग इस बीमारी से बाहर निकल आए हैं, उनके शरीर भी अब कुछ नए रोगों के घर बन चुके हैं।

यह सूची काफी लम्बी हो जाएगी। इस बात पर वर्षों तक शोध होता रहेगा कि इक्कीसवीं सदी की पहली वैश्विक महामारी का मानवजाति पर क्या प्रभाव पड़ा। सवाल यह है कि क्या इसका दुष्प्रभाव ही महत्वपूर्ण है? क्या इस बीमारी ने हमें प्रत्यक्ष या परोक्ष कुछ भी नहीं दिया? बरसों से दुनिया मौसम परिवर्तन की बातें कर रही है। प्राकृतिक दुर्घटनाओं की बातें हो रही हैं, पर ऐसी कोई दुर्घटना हो नहीं रही थी, जिसे दुनिया इतनी गहराई से महसूस करे, जिस शिद्दत से कोरोना ने महसूस कराया है। विश्व-समुदाय की भावना को अब हम कुछ बेहतर तरीके से समझ पा रहे हैं, भले ही उसे लागू करने के व्यावहारिक उपकरण हमारे पास नहीं हैं।