बीजेपी की राजनीति का पहला निशाना कांग्रेस है और कांग्रेस का पहला निशाना बीजेपी है. दोनों पार्टियों के निशान पर क्षेत्रीय पार्टियाँ नहीं हैं, बल्कि दोनों की दिलचस्पी क्षेत्रीय दलों से गठजोड़ की है. इसके विपरीत क्षेत्रीय दलों की दिलचस्पी राष्ट्रीय दलों को पीछे धकेलकर केन्द्र की राजनीति में प्रवेश करने की है. देश में क्षेत्रीय राजनीति का उदय 1967 में कांग्रेस की पराजय के साथ हुआ था. इस
परिघटना के तीन दशक बाद जबतक बीजेपी का उदय नहीं हुआ, राष्ट्रीय पार्टी सिर्फ
कांग्रेस थी. सन 2004 तक एनडीए और उसके बाद यूपीए और फिर एनडीए सरकार के बनने से
ऐसा लगा कि राष्ट्रीय जनाधार वाले दो दल हमारे बीच हैं. पर, अब कांग्रेस के निरंतर
पराभव से अंदेशा पैदा होने लगा है कि उसकी राष्ट्रीय पहचान कायम रह भी पाएगी या
नहीं. उत्तर प्रदेश और बिहार में हिन्दी इलाके की राजनीति विराजती है, जो राष्ट्रीय
राजनीति की धुरी है. दोनों राज्यों से कांग्रेस का सफाया हो चुका है.
हाल
की घटनाओं पर नजर डालें तो दो बातें नजर आ रहीं है. एक, बीजेपी ने पूर्वोत्तर और
दक्षिण भारत में पैर पसारने की कोशिश की है. दूसरे दक्षिणी राज्यों समेत देश के
दूसरे इलाकों की राजनीति केन्द्र की तरफ बढ़ रही है. तेलुगु देशम ने मोदी सरकार के
खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का बिगुल बजाकर केवल आंध्र के आर्थिक सवाल को ही नहीं
उठाया है, बल्कि चंद्रबाबू नायडू की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को भी उजागर किया
है. इस अविश्वास प्रस्ताव से सरकार गिरेगी नहीं, पर क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं को
सामने आने का मौका जरूर मिला है.