Sunday, December 4, 2016

कहीं उल्टा न पड़े ममता का तैश और तमाशा

ममता बनर्जी की छवि तैश में रहने वाली नेता की है। मूलतः वे स्ट्रीट फाइटर हैं। उन्हें इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने वाम मोर्चा के मजबूत गढ़ को गिरा कर दिखा दिया। और यही तथ्य उन्हें लगातार उत्तेजित बनाकर रखता है। वाम मोर्चा अब सत्ता से बाहर है, पर ममता स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स की साख बनाए रखने के लिए उन्हें कुछ न कुछ करते रहना पड़ता है। केंद्र सरकार के नोटबंदी कार्यक्रम ने उन्हें इसका मौका दिया है।

Saturday, December 3, 2016

ड्रामा बनाम ड्रामा, आज मुरादाबाद में होगी आतिशबाजी

बीजेपी की परिवर्तन यात्राओं और नरेंद्र मोदी की रैलियों ने उत्तर प्रदेश में चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के पहले ही माहौल को रोचक और रंगीन बना दिया है. इन रैलियों की मदद से नरेंद्र मोदी एक ओर वोटर का ध्यान खींच रहे हैं, वहीं दिल्ली के रंगमंच पर तलवारें भाँज रहे अपने विरोधियों को जवाब भी दे रहे हैं.
ये रैलियाँ इंदिरा गांधी की रैलियों की याद दिलाती हैं, जिनमें वे अपने विरोधियों की धुलाई करती थीं. इस बात की उम्मीद है कि आज की मुरादाबाद रैली में मोदी अपने विरोधियों के नाम कुछ करारे जवाब लेकर आएंगे. पहले सर्जिकल स्ट्राइक और फिर नोटबंदी को लेकर पार्टी पर हुए हमलों का जवाब मोदी अपनी इन रैलियों में दे रहे हैं.

Sunday, November 27, 2016

आम आदमी ने तो सहन किया...

नोटबंदी के खिलाफ विरोधी दलों ने आंदोलन खड़ा कर दिया है। उनका कहना है कि इस फैसले से आम आदमी की मुश्किलें बढ़ गईं हैं। मोटे तौर पर यह बात सच भी है। पर ये मुश्किलें किस प्रकार की हैं और कितनी हैं तथा कब तक चलेंगी, इसके बारे में भी विचार किया जाना चाहिए। देवोत्थान एकादशी के बाद शादियाँ शुरू हो जाती हैं। जिन लोगों ने पहले से पैसे जमा करके रखे थे, उनके सामने दिक्कतें खड़ी हो गईं। जनवासे का इंतजाम, बैड की व्यवस्था, हलवाई का खर्चा और जेवरों की खरीदारी सारे काम नकदी से होते हैं। नेग-शगुन, पंडित जी को भी पैसे देने होते हैं।

Saturday, November 26, 2016

कांग्रेस एक पायदान नीचे

नोटबंदी के दो हफ्ते बाद राष्ट्रीय राजनीति में विपक्ष की भावी रणनीति भी सामने आने लगी है। इसमें सबसे ज्यादा तेजी दिखाई है ममता बनर्जी ने, जिन्होंने जेडीयू, सपा, एनसीपी और आम आदमी पार्टी के साथ सम्पर्क करके आंदोलन खड़ा करने की योजना बना ली है। इसकी पहली झलक बुधवार को दिल्ली में दिखाई दी। जंतर-मंतर की रैली के बाद अचानक ममता बनर्जी का कद मोदी की बराबरी पर नजर आने लगा है। पर ज्यादा महत्वपूर्ण है कांग्रेस का विपक्षी सीढ़ी पर एक पायदान और नीचे चले जाना। नोटबंदी के खिलाफ एक आंदोलन ममता ने खड़ा किया है और दूसरा आंदोलन कांग्रेस चला रही है। बावजूद संगठनात्मक लिहाज से ज्यादा ताकतवर होने के कांग्रेस के आंदोलन में धार नजर नहीं आ रही है। राहुल गांधी अब मुलायम सिंह, मायावती और नीतीश कुमार के बराबर के नेता भी नजर नहीं आते हैं।

Friday, November 25, 2016

विपक्ष के लिए एक मौका

नोटबंदी के दो हफ्ते बाद उसकी राजनीति ने अँगड़ाई लेना शुरू कर दिया है. बुधवार को संसद भवन में गांधी प्रतिमा के पास तकरीबन 200 सांसदों ने जमा होकर अपनी नाराजगी को व्यक्त किया. वहीं तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर जंतर-मंतर पर रैली की. गुरुवार को संसद के दोनों सदनों में कांग्रेस, सीपीएम तथा बसपा ने सरकार की घेराबंदी की. कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्री को इस फैसले के खिलाफ खड़ा किया, जबकि अमूमन मनमोहन सिंह बोलते नहीं हैं. कांग्रेस मनमोहन की विशेषज्ञता का लाभ लेना चाहती थी. पर मनमोहन सिंह ने इस फैसले की नहीं, उसे लागू करने वाली व्यवस्था की आलोचना की, उधर मायावती ने कहा कि हिम्मत है तो लोकसभा भंग करके चुनाव करा लो. पता लग जाएगा कि जनता आपके साथ है या नहीं. उम्मीद थी कि संसद के इस सत्र पर सर्जिकल स्ट्राइक हावी होगा, पर नोटबंदी ने विपक्ष की मुराद पूरी कर दी.