Sunday, October 9, 2016

‘सर्जिकल स्ट्राइक’ पर सियासत

सेना ने जब सर्जिकल स्ट्राइक की घोषणा की थी तो एकबारगी देश के सभी राजनीतिक दलों ने उसका स्वागत किया था। इस स्वागत के पीछे मजबूरी थी और अनिच्छा भी। मजबूरी यह कि जनमत उसके साथ था। पर परोक्ष रूप से यह मोदी सरकार का समर्थन था, इसलिए अनिच्छा भी थी। भारतीय जनता पार्टी ने संयम बरता होता और इस कार्रवाई को भुनाने की कोशिश नहीं की होती तो शायद विपक्षी प्रहार इतने तीखे नहीं होते। बहरहाल अगले दो-तीन दिन में जाहिर हो गया कि विपक्ष बीजेपी को उतनी स्पेस नहीं देगा, जितनी वह लेना चाहती है। पहले अरविन्द केजरीवाल ने पहेलीनुमा सवाल फेंका। फिर कांग्रेस के संजय निरूपम ने सीधे-सीधे कहा, सब फर्जी है। असली है तो प्रमाण दो। पी चिदम्बरम, मनीष तिवारी और रणदीप सुरजेवाला बोले कि स्ट्राइक तो कांग्रेस-शासन में हुए थे। हमने कभी श्रेय नहीं लिया। कांग्रेस सरकार ने इस तरह कभी हल्ला नहीं मचाया। पर धमाका राहुल गांधी ने किया। उन्होंने नरेन्द्र मोदी पर खून की दलाली का आरोप जड़ दिया।
इस राजनीतिकरण की जिम्मेदारी बीजेपी पर भी है। सर्जिकल स्ट्राइक की घोषणा होते ही उत्तर प्रदेश के कुछ शहरों में पोस्टर लगे। हालांकि पार्टी का कहना है कि यह सेना को दिया गया समर्थन था, जो देश के किसी भी नागरिक का हक है। पर सच यह है कि पार्टी विधानसभा चुनाव में इसका लाभ उठाना चाहेगी। कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों के लिए यह स्थिति असहनीय है। वे बीजेपी के लिए स्पेस नहीं छोड़ना चाहते। हालांकि अभी यह बहस छोटे दायरे में है, पर बेहतर होगा कि हमारी संसद इन सवालों पर गम्भीरता से विचार करे। बेशक देश की सेना या सरकार कोई भी जनता के सवालों के दायरे से बाहर नहीं है, पर सवाल किस प्रकार के हैं और उनकी भाषा कैसी है यह भी चर्चा का विषय होना चाहिए। साथ ही यह भी देखना होगा कि सामरिक दृष्टि से किन बातों को सार्वजनिक रूप से उजागर किया जा सकता है और किन्हें नहीं किया जा सकता। 

Saturday, October 8, 2016

वाजपेयी का नेहरू पर प्रहार क्या देशद्रोह था?

क्या भारतीय सेना और सरकार के कदमों पर उँगली उठाना देशद्रोह है? शुक्रवार को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के संवाददाता सम्मेलन के बाद हमारे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर इस बात को लेकर जो बहस शुरू हुई थी वह अब भी जारी है। इस सिलसिले में कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर ने सन 1962 के चीन युद्ध के समय राज्यसभा में अटल बिहारी वाजपेयी ने सरकार की जो आलोचना की थी उसका उल्लेख करते हुए कहा कि क्या अटल बिहारी वाजपेयी देशद्रोही साबित हुए? 8 नवम्बर 1962 की यह बहस सरकार की और से लाए गए आपातकाल प्रस्ताव के संदर्भ में शुरू हुई थी। इसमें वाजपेयी ने सवाल किया कि क्या नेहरू जी को पता था कि हमारी सेना नेफा में हमले का सामना करने के लिए तैयार थी? चीन ने पहली हमला 5 सितम्बर को और फिर दूसरा हमला 22 अक्तूबर को किया। इस बीच हमने तैयारी क्यों नहीं की? सेना की तैयारी क्यों नहीं थी और सैनिकों के पास पर्याप्त उपकरण क्यों नहीं थे? नेहरू जी ने विदेश यात्रा से लौटने के बाद चीन पर हमला करने का फैसला क्यों किया?

मणिशंकर अय्यर वाजपेयी के इस बयान का जिक्र पहले भी कर चुके हैं। सन 1962 में वाजपेयी ने नेहरू से कहा था कि राज्यसभा का सत्र बुलाया जाए। नेहरू ने इसे स्वीकार किया और वाजपेयी को निर्बाध बोलने का मौका दिया गया। उस दिन की राज्यसभा की कार्यवाही के दस्तावेजों में से मैने उस चर्चा के अंशों को निकाला है। ये कुछ पन्ने हैं सभी पन्ने यहाँ मिलेंगे

‘सर्जिकल स्ट्राइक’ पर कांग्रेसी दुविधा

कांग्रेस पार्टी ने कहा है कि हम सर्जिकल स्ट्राइक के मामले में भारतीय जवानों के साथ हैं, लेकिन इसे लेकर क्षुद्र राजनीति नहीं की जानी चाहिए। रणदीप सुरजेवाला का कहना है, ‘ हम सर्जिकल स्ट्राइक पर कोई सवाल नहीं उठा रहे हैं, लेकिन यह कोई पहला सर्जिकल स्ट्राइक नहीं है। कांग्रेस के शासनकाल में 1 सितंबर 2011, 28 जुलाई 2013 और 14 जनवरी 2014 को 'शत्रु को मुंहतोड़ जबाव' दिया गया था। परिपक्वता, बुद्धिमत्ता और राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनज़र कांग्रेस सरकार ने इस तरह कभी हल्ला नहीं मचाया।
भारतीय राजनीति में युद्ध की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। सन 1962 की लड़ाई से नेहरू की लोकप्रियता में कमी आई थी। जबकि 1965 और 1971 की लड़ाइयों ने लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी का कद काफी ऊँचा कर दिया था। करगिल युद्ध ने अटल बिहारी वाजपेयी को लाभ दिया। इसीलिए 28-29 सितम्बर की सर्जिकल स्ट्राइक के निहितार्थ ने देश के राजनीतिक दलों एकबारगी सोच में डाल दिया। सोच यह है कि क्या किसी को इसका फायदा मिलेगा? और क्या कोई घाटे में रहेगा?

Wednesday, October 5, 2016

सर्जिकल स्ट्राइक का विवरण जो प्रवीण स्वामी ने दिया


नियंत्रण रेखा के उस पार रह रहे कुछ चश्मदीद गवाहों ने इंडियन एक्सप्रेस के सामरिक तथा अंतरराष्ट्रीय मामलों के राष्ट्रीय सम्पादक प्रवीण स्वामी को बताया कि भारतीय सेना के सर्जिकल स्ट्राइक के बाद 29 सितम्बर की सुबह लश्करे तैयबा से जुड़े लोगों की लाशें ट्रकों पर लादकर दफनाने के लिए ले जाई गईं। उन्होंने रात में हुए संघर्ष का विवरण भी दिया, जिसमें जेहादियों के अस्थायी निर्माण ध्वस्त हो गए। ये वे जगहें थीं, जिन्हें भारतीय सेना ने आतंकियों के लांच पैड बताया है। यहाँ आकर आतंकी दस्ते रुकते हैं और मौका पाते ही भारतीय सीमा में प्रवेश करते हैं।

इन लोगों ने उन जगहों के बारे में जानकारी दी है, जिनका जिक्र भारतीय सेना ने किया है, पर जिनका विवरण नहीं दिया। अलबत्ता इनसे जो विवरण प्राप्त हुआ है उससे लगता है कि मरने वालों की तादाद भारत की अनुमानित संख्या 38-50 से कम है और जेहादियों के ढाँचे को उतना नुकसान नहीं हुआ, जितना बताया जा रहा है।

सर्जिकल स्ट्राइक का विवरण जो प्रवीण स्वामी ने दिया


नियंत्रण रेखा के उस पार रह रहे कुछ चश्मदीद गवाहों ने इंडियन एक्सप्रेस के सामरिक तथा अंतरराष्ट्रीय मामलों के राष्ट्रीय सम्पादक प्रवीण स्वामी को बताया कि भारतीय सेना के सर्जिकल स्ट्राइक के बाद 29 सितम्बर की सुबह लश्करे तैयबा से जुड़े लोगों की लाशें ट्रकों पर लादकर दफनाने के लिए ले जाई गईं। उन्होंने रात में हुए संघर्ष का विवरण भी दिया, जिसमें जेहादियों के अस्थायी निर्माण ध्वस्त हो गए। ये वे जगहें थीं, जिन्हें भारतीय सेना ने आतंकियों के लांच पैड बताया है। यहाँ आकर आतंकी दस्ते रुकते हैं और मौका पाते ही भारतीय सीमा में प्रवेश करते हैं।

इन लोगों ने उन जगहों के बारे में जानकारी दी है, जिनका जिक्र भारतीय सेना ने किया है, पर जिनका विवरण नहीं दिया। अलबत्ता इनसे जो विवरण प्राप्त हुआ है उससे लगता है कि मरने वालों की तादाद भारत की अनुमानित संख्या 38-50 से कम है और जेहादियों के ढाँचे को उतना नुकसान नहीं हुआ, जितना बताया जा रहा है।