Thursday, March 3, 2016

राज्य सभा से सन 2016 में रिटायर होने वाले सदस्यों की सूची

The Modi government can breathe easy – not just yet. After struggling to push through its legislative agenda in the Rajya Sabha for want of numbers, the Bharatiya Janata Party and its partners are set to improve on their tally in the Upper House. However, the equations will change considerably not during the Rajya Sabha elections in March, but in July.

Of the 76 Rajya Sabha members whose terms are ending this year, 12 are retiring in April. The election to these seats will not alter the composition of the 250-member Upper House. The government tally will go up – and the Congress strength dip – when the elections of the remaining 64 seats are held in July.

Of the 12 members being elected on March 21, five are from Punjab where the position of the parties remains unaltered. The Congress has retained its two seats for which it chose former Punjab Congress chiefs Pratap Singh Bajwa and Shamsher Singh Dullo with an eye on next year’s state assembly elections. The Shiromani Akali Dal has also kept its two seats, having given another term to its sitting members Naresh Gujral and Sukhdev Dhindsa. The BJP has replaced Avinash Rai Khanna by Shwet Malik, a former mayor of Amritsar.

Of the three seats which fell vacant in Kerala, the Congress has retained one – former minister AK Antony has got another term – while the Communist Party of India (Marxist) has been able to hold on to only one of the two seats it had. It lost its second seat to the United Democratic Front, which nominated Veerendra Kumar of the Janata Dal (United).

The Congress had one seat in Himachal Pradesh for which it nominated deputy leader in the Rajya Sabha Anand Sharma. Sharma has won unopposed. Similarly, the picture has not changed in Assam either – the Congress is keeping the two seats for which elections are to be held on Monday. The CPM has retained the lone seat from Tripura.

Changing equations

The National Democratic Alliance government is anxious to improve its numbers in the Rajya Sabha. Its floor managers were able to demonstrate in the first half of the on-going budget session of Parliament that it can do business by dividing the opposition and co-opting regional parties. But this success is not easy as it involves long back-channel parleys.

However, their burden is going to become lighter.

For starters, the government can improve its numbers from 48 to 55 immediately by filling the seven vacancies of nominated members who retired recently. While two members in this category, HK Dua and Ashok Ganguly, completed their terms last November, five more – Javed Akhtar, Mrinal Miri, Bhalchandra Mungekar, Mani Shankar Aiyar and B Jayashree – retired this month. Nominated members are theoretically free to vote according to their conscience but they usually go along with the party which nominates them.

Another breakthrough will come the ruling alliance’s way during the election for 64 Rajya Sabha seats in July. By then the Congress’s present tally of 66 is likely to fall by 14, which includes seven nominated members, while the BJP and its allies will pick up more seats, because of their increased numbers in the state assemblies of Haryana, Rajasthan, Maharashtra, Jharkhand and Madhya Pradesh.

Wrangling for seats

For starters, the BJP will be able to win all the four seats from Rajasthan, while the Congress has little chance of retaining its two seats in view of its virtual decimation in the last assembly election. Similarly, the Congress cannot hope to get a single seat in the states of Telangana and Andhra Pradesh. As a result, its members – Jairam Ramesh, JD Seelam and Hanumanth Rao will not be returning to the Upper House. Ramesh is said to be lobbying for a seat from Karnataka where the Congress can get two clear winners. The party has already announced that sitting member Oscar Fernandes will be repeated.

Several Union ministers, including Piyush Goel, Nirmala Sitharaman, M Venkaiah Naidu, Suresh Prabhu, Chaudhry Birender Singh, YS Chowdhary and Mukhtar Abbas Naqvi, are retiring this year but the government will not have any problems in getting them re-elected.

While Goyal and Prabhu will sail through from their home state Maharashtra, the BJP will have to do some hard bargaining with the Telugu Desam Party to accommodate Sitharaman. Naidu was elected from Karnataka last time along with Aayyamur Manjunath but the BJP can win only one seat from here. MJ Akbar is likely to be nominated from Jharkhand again as he had only got a one-year term last time.

The situation in Bihar is also interesting as five Janata Dal (United) will be retiring this year but the party can only get two members re-elected as it will now have to accommodate the Rashtriya Janata Dal and the Congress in view of their strength in the state assembly. Bihar Chief Minister Nitish Kumar has a tough task as he has to choose from Sharad Yadav, KC Tyagi, Pawan Verma, Ghulam Rasool Baliyawi and RCP Singh.

Sno
Name
State
Date of Notification
Date of Retirement
1
Nominated
22-03-10
21-03-16
2
Nominated
22-03-10
21-03-16
3
Nominated
22-03-10
21-03-16
4
Nominated
29-06-12
21-03-16
5
Nominated
22-03-10
21-03-16
6
Kerala
03-04-10
02-04-16
7
Tripura
03-04-10
02-04-16
8
Kerala
03-04-10
02-04-16
9
Assam
16-12-11
02-04-16
10
Assam
03-04-10
02-04-16

Wednesday, March 2, 2016

क्या हो सकते हैं पिछड़ेपन के नए आधार?

पिछले साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने जाटों को ओबीसी  कोटा के तहत आरक्षण देने के केंद्र के फैसले को रद्द करने के साथ स्पष्ट किया था कि आरक्षण के लिए नए आधारों को भी खोजा जाना चाहिए। अदालत की दृष्टि में केवल ऐतिहासिक आधार पर फैसले करने से समाज के अनेक पिछड़े वर्ग संरक्षण पाने से वंचित रह जाएंगे, जबकि हमें उन्हें भी पहचानना चाहिए। अदालत ने ‘ट्रांस जेंडर’ जैसे नए पिछड़े ग्रुप को ओबीसी के तहत लाने का सुझाव देकर इस पूरे विचार को एक नई दिशा भी दी थी। कोर्ट ने कहा कि हालांकि जाति एक प्रमुख कारक है, लेकिन पिछड़ेपन के निर्धारण के लिए यह एकमात्र कारक नहीं हो सकता।
आजाद भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने सामाजिक अंतर्विरोधों को दुरुस्त करने की है। दुनिया के तमाम देश ‘एफर्मेटिव एक्शन’ के महत्व को स्वीकार करते हैं। ये कार्यक्रम केवल शिक्षा से ही जुड़े नहीं हैं। इनमें किफायती आवास, स्वास्थ्य और कारोबार से जुड़े कार्यक्रम शामिल हैं। अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, मलेशिया, ब्राजील आदि अनेक देशों में ऐसे सकारात्मक कार्यक्रम चल रहे हैं। इनके अच्छे परिणाम भी आए हैं।

इरोम शर्मीला और हमारा असमंजस

देश का मीडिया जिस रोज आम बजट पर चर्चा कर रहा था उसी दिन एक खबर थी जो चैनलों और अखबारों के किनारे पर रही हो तो अलग बात है, सुर्खियों में नहीं थी। मणिपुर की मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मीला को इम्फाल की एक अदालत के आदेश के बाद सोमवार को न्यायिक हिरासत से रिहा कर दिया गया। खबर यह भी थी कि अस्पताल के वॉर्ड से निकल कर शर्मीला शहीद मीनार में फिर से अनशन पर जा बैठीं।

सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफस्पा) को खत्म करने की मांग को लेकर उनके अनशन के 15 साल पिछले नवम्बर में पूरे हुए हैं। अनोखा है उनका आंदोलन और अनोखी है उनकी प्रतिबद्धता। पर दूसरी ओर इस आंदोलन से जुड़े मसले भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं। क्या दोनों बातों के बीच कोई समझौता हो सकता है? सवाल यह भी है कि हम पूर्वोत्तर को लेकर कितने संवेदनशील हैं। पूर्वोत्तर के साथ मुख्यधारा के भारत का यह द्वंद कई सौ साल पुराना है।

Tuesday, March 1, 2016

ग्रामीण भारत को ‘मेगापुश’

मोदी सरकार ने चार राज्यों के चुनाव के ठीक पहले राजनीतिक जरूरतों का पूरा करने वाला बजट पेश किया है. इसमें सबसे ज्यादा जोर ग्रामीण क्षेत्र, इंफ्रास्ट्रक्चर, रोजगार और सामाजिक कल्याण के कार्यक्रमों पर है. राजकोषीय घाटे को 3.5 प्रतिशत रखने के बावजूद सोशल सेक्टर के लिए धनराशि का इंतजाम किया गया है. अजा-जजा उद्यमियों के लिए प्रोत्साहन कार्यक्रम भी इसका संकेत देते हैं. बजट का संदेश है कि अमीर ज्यादा टैक्स दें, जिसका लाभ गरीबों को मिले. हालांकि सरकार ने पूँजी निवेश के लिए प्रोत्साहन योजनाओं की घोषणा की है, पर कॉरपोरेट जगत में कोई खास खुशी नजर नहीं आती.

Wednesday, February 24, 2016

सरकारी पेशबंदी बनाम विपक्षी घेराबंदी

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के अभिभाषण के साथ ही मंगलवार को संसद के बजट सत्र शुरू हो गया। पिछले सत्रों की तरह ही इस बार भी बड़े विपक्षी दल जेएनयू और दूसरे मुद्दों पर सरकार को घेरने की योजना बना रहे हैं। राष्ट्रपति के अभिभाषण में सरकारी पेशबंदी भी दिखाई पड़ती है। राष्ट्रपति ने प्रतीकों के सहारे मोदी सरकार की प्राथमिकताओं को संसद के सामने रखा है। उन्होंने कहा कि हमारी संसद जनता की आकांक्षा को व्यक्त करती है। लोकतांत्रिक भावना का तकाजा है कि सदन में बहस और विचार-विमर्श हो। संसद चर्चा के लिए है, हंगामे के लिए नहीं। उसमें गतिरोध नहीं होना चाहिए।

Tuesday, February 23, 2016

क्या मोदी सरकार ने बर्र के छत्ते में हाथ डाला?

प्रमोद जोशी


भारतीय संसदImage copyrightAP
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से जादवपुर विश्वविद्यालय तक छात्र आंदोलन और जींद से झज्जर तक जाट आंदोलन ने केंद्र सरकार को बड़े नाजुक मौके पर साँसत में डाल दिया है.
संसद का बजट सत्र शुरू हो रहा है और चार राज्यों में चुनाव के नगाड़े बज रहे हैं.
जेएनयू के आंदोलन को देखकर लगता है कि मोदी सरकार ने बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया है.
Image copyrightTarendra
Image caption'रष्ट्रद्रोह' बनाम 'राष्ट्रभक्ति' का मुद्दा उठा सकती है भाजपा
राष्ट्रवाद और देश-द्रोह की बहस में मोदी सरकार अपने फ़ायदे का सौदा देख रही है, पर पार्टी के भीतर की एकता सुनिश्चित नहीं है.
जब भी नरेंद्र मोदी-अमित शाह नेतृत्व बैकफुट पर आया है, पार्टी के ‘दिलजलों’ ने खुशियाँ मनाई हैं.
साल 2002 के बाद से ही नरेंद्र मोदी अपने विरोधियों के निशाने पर हैं. पर पहले उन्हें अपने राज्य और राष्ट्रीय नेताओं का समर्थन मिलता था.
उनकी आज की रणनीति यही है कि ‘कोर वोटर’ उनकी ढाल बने. पर मामला पूरे देश का है, एक प्रदेश का नहीं.
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Image captionरोहित वेमुला के समर्थन में रैली
बहरहाल मोदी ने ‘विरोधियों की साजिश’ की ओर इशारा किया है.
कन्हैया के मुक़ाबले रोहित वेमुला की आत्महत्या से पार्टी ज्यादा घबराई हुई है. उसे उत्तर प्रदेश के दलित वोटरों की फ़िक्र है. दलित वैसे उसके पारंपरिक वोटर नहीं हैं, पर उनके एक हिस्से को वह अपनी ओर खींचना चाहती है.
उधर जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती के साथ बिगड़ती बात एक बार फिर ढर्रे पर आ रही है.
यह सत्र कांग्रेस को आख़िरी मौका देगा. उसके पास ज्यादा समय नहीं है.
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंजImage copyrightGetty
इस साल जून के बाद राज्यसभा की 76 सीटों पर चुनाव होंगे. समझा जाता है कि कांग्रेस की स्थिति पहले के मुक़ाबले कमज़ोर होगी. यह आने वाले वर्षों में और क़मजोर हो सकती है.
भाजपा को फ़ायदा हुआ भी तो इस बजट सत्र में तो नहीं होगा.
मोदी सरकार युवा उम्मीदों की जिस लहर पर सवार थी, वह लहर अब उतार पर है.

Thursday, February 18, 2016

भारतीय राष्ट्र-राज्य और 'आजादी' की रेखा

भारत की बरबादी तक जंग रहेगी, जंग रहेगी. या भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाल्लाह-इंशाल्लाह. क्या ये नारे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है? या इन्हें लगाने वालों को गोली मार देनी चाहिए जैसा कि भाजपा के विधायक ओपी शर्मा ने कहा है? दोनों बातें अतिवादी हैं. इस दौरान देश-द्रोह का सवाल खड़ा हुआ है. क्या अपने विचार व्यक्त करना देश-द्रोह है? क्या जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया के खिलाफ देश-द्रोह की धाराएं लगाना न्यायसंगत है? या इस घटना मात्र से हम जेएनयू को देश-द्रोही घोषित कर दें? दूसरे सवाल भी हैं. कन्हैया ने नारे लगाए भी या नहीं? नहीं लगाए, पर क्या वे इस माहौल के जिम्मेदार नहीं हैं? नारे लगाने वालों के खिलाफ वे क्यों नहीं बोले? जिन वीडियो के आधार पर हम अपनी राय दे रहे हैं वे क्या सही हैं? इस तकनीकी दौर में वीडियो बनाए भी जा सकते हैं. इन वीडियो की फोरेंसिक जाँच होनी चाहिए. पर सच यह है कि किसी ने नारे लगाए, जिन्हें पूरे देश ने सुना. एक तरफ नारेबाजी हुई तो दूसरी तरफ पटियाला हाउस में वकीलों ने मीडियाकर्मियों पर हमले करके मामले को दूसरी तरफ मोड़ दिया. अब जेएनयू की नारेबाजी पीछे चली गई, जबकि वह एक महत्वपूर्ण सवाल था.

Sunday, February 14, 2016

मुख्यधारा की राजनीति का थिएटर बना जेएनयू

दिल्ली में दो जगह भारत विरोधी नारे लगे। इसके पहले कश्मीर से अकसर खबरें आती थीं कि वहाँ भारत विरोधी नारे लगे या भारतीय ध्वज का अपमान किया गया। कश्मीर के साथ पूरे देश का अलगाव अच्छी तरह स्पष्ट है। इस अलगाव का विकास हुआ है। जो स्थितियाँ 1947 में थी वैसी ही आज नहीं हैं। इसमें नब्बे के दशक में चले हिंसक आंदोलन की भूमिका भी है, जो अफगानिस्तान के तालिबानी उभार की पृष्ठभूमि में चला था। पाकिस्तानी राजनीति के केन्द्र में कश्मीर है। भारतीय राजनीति के केन्द्र में भी कश्मीर को होना चाहिए था, क्योंकि भारतीय धर्मनिरपेक्षता की सफलता तभी है जब हमारे बीच मुस्लिम बहुमत वाला कश्मीर राज्य हो। परिस्थितियाँ ऐसी रहीं कि कश्मीर स्वतंत्र देश के रूप में खड़ा नहीं हो पाया। पर जेएनयू प्रकरण का कश्मीरी सवाल से वास्ता नहीं है। वहाँ कश्मीर समस्या को लेकर बहस नहीं है, बल्कि खुलकर मुख्य धारा की राजनीति हो रही है। ऐसा ही हैदराबाद में हुआ, जहाँ असली सवाल पीछे रह गया। 

Wednesday, February 10, 2016

थ्री-डी प्रिंटर : इंजीनियरी कल्पना से परे

आप एक मेज की कल्पना करें. उसके पाए लकड़ी को काटकर बनाए जाते हैं. फिर ऊपर का तख्ता अलग से काटा जाता है. इसी तरह उसके अलग-अलग हिस्से काटकर बनाए जाते हैं. फिर उन्हें जोड़ा जाता है. इसी मेज को छोटे से आकार में लकड़ी के बजाय मोम से बनाना हो तो आप एक सांचा बनाएंगे, फिर उसमें गर्म करके मोम भरेंगे. फिर ठंडा होने के बाद सांचे को हटा देंगे तो मोम की मेज बनी मिलेगी. सवाल है कि क्या लकड़ी की मेज इसी तरह नहीं बनाई जा सकती? इसके कई जवाब हैं. यदि लकड़ी को मोम की तरह पिघलाया जा सकता तो बन सकती थी. या फिर लकड़ी के बड़े टुकड़े को काट-तराश कर मेज निकाली जा सकती है. जैसे मूर्तिकार पत्थर से तराश कर मूर्ति बनाते हैं.
विज्ञान इसके आगे सोचना शुरू करता है. क्या मेज को पेड़ की तरह उगाया जा सकता है? पेड़ उगता है तो उसका आकार उसी तरह से बनता जाता है जैसा प्रकृति ने तय किया. उसके जैसे ज्यादातर पेड़, पौधे, फूल इसी तरह जन्म लेते हैं. वैज्ञानिकों ने अपने ज्ञान का इस्तेमाल करके इन पेड़-पौधों के साथ प्रयोग करके उनके रंग-रूप और शक्लो-सूरत में भी बदलाव कर लिया. पर यह उगाना था. किसी चीज को उगाने के लिए जिस सामग्री की जरूरत होती है उसे परिभाषित किया जाए तो वह आपकी इच्छानुसार उग सकती है.

Sunday, February 7, 2016

फिर ढलान पर उतरेगी राजनीति

संसद का पिछले साल का बजट जितना रचनात्मक था, इस बार उतना ही नकारात्मक रहने का अंदेशा है। कांग्रेस ने घोषणा कर दी है कि वह गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदी बेन के खिलाफ मामले उठाएगी। साथ ही रोहित वेमुला और अरुणाचल में राष्ट्रपति शासन के मामले भी उठाए जाएंगे। दो भागों में चलने वाला यह सत्र काफी लम्बा चलेगा और इसी दौरान पाँच राज्यों के विधान सभा चुनाव भी होंगे, इसलिए अगले तीन महीने धुआँधार राजनीति का दौर चलेगा। और 13 मई को जब यह सत्र पूरा होगा तब एनडीए सरकार के पहले दो साल पूरे हो रहे होंगे।

Thursday, February 4, 2016

टेक्नोट्रॉनिक राजनीति का नया दौर

हाल में खबर थी कि ओडिशा के बालासोर (बालेश्वर) जिले में भारत ज्ञान-विज्ञान समिति के 800 कार्यकर्ता घर-घर जाकर जानकारियाँ हासिल कर रहे हैं. बीजू जनता दल के लोकसभा सदस्य रवीन्द्र कुमार जेना का यह क्षेत्र है. गाँवों में काम कर रहे कार्यकर्ता इस सूचना को एक एप की मदद से टैबलेट्स में दर्ज करते जाते हैं. जानकारियों का वर्गीकरण किया गया है. ज्यादातर सूचनाएं स्कूलों, आँगनवाड़ी केन्द्रों, स्वास्थ्य सुविधाओं, पंचायती राज संस्थाओं, सड़कों, परिवहन, विद्युतीकरण और खेती के बारे में हैं. इस डेटा का विश्लेषण एक गैर-लाभकारी संस्था कर रही है, जो सांसद को इलाके का डेवलपमेंट प्लान बनाकर देगी.

Sunday, January 31, 2016

छोटे राज्यों की बड़ी राजनीति

आम आदमी पार्टी की निगाहें पंजाब और उत्तराखंड पर हैं। अभी वह दिल्ली में सत्तारूढ़ है। यदि उसे पंजाब और उत्तराखंड में सफलता मिले तो उसे राष्ट्रीय स्तर पर उभरने में बड़ी सफलता भी मिल सकती है। और वहाँ विफल रही तो आने वाले वक्त में दिल्ली से भी वह गायब हो सकती है। उसकी सफलता या विफलता के आधार दो छोटे राज्य बन सकते हैं। वाम मोर्चे की समूची राष्ट्रीय राजनीति अब केरल और त्रिपुरा जैसे दो छोटे राज्यों के सहारे है। कांग्रेस की राजनीति भी अब ज्यादातर छोटे राज्यों के भरोसे है। उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों का अपना महत्व है। वे लोकसभा में सीटें दिलाने का काम करते हैं, पर माहौल बनाने में छोटे राज्यों की भूमिका भी है। हाल में केरल और अरुणाचल इसीलिए महत्वपूर्ण बन गए हैं।

Tuesday, January 12, 2016

Global Innovation Index 2015

भारत में बड़ी खोज क्यों नहीं होती?

प्रयोगशाला

Image copyrightThinkstock

बीते 10 साल में भारत में दिए गए हर छह पेटेंट में से सिर्फ़ एक की खोज भारतीयों ने की थी.
इंडियास्पेंड ने अपने विश्लेषण में ये पाया कि बाकी के पांच पेटेंट देश में काम कर रही विदेशी कंपनियों को मिले, जो अपनी बौद्धिक संपदा की रक्षा करना चाहती थीं.
दूसरे अध्ययनों से भी पता चला है कि नई चीजों को खोजने या नई तकनीक विकसित करने मे भारत निहायत ही कमज़ोर है.
चार नोबेल पुरस्कार विजेताओं का कहना है कि ये भारत की पारंपरिक कमज़ोरी है और इसे ठीक करना बेहद ज़रूरी है.

Image copyrightReuters

इन नोबेल विजेताओं का कहना है कि भारत को मैनुफ़ैक्चरिंग का केंद्र बनाने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योजना 'मेक इन इंडिया' से पहले यह ज़रूरी है कि कंपनियां भारत में नई चीज़ें खोजें.
संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (डब्ल्यूआईपीओ) ने साल 2015 में जो ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स जारी किया उसमें भारत 81वें स्थान पर है.

बीबीसी हिन्दी की रपट पढ़ें यहाँ
Rank Country Score Value Percentage Rank S/W
1 Switzerland 68.3 - 1
2 United Kingdom 62.4 - 0.99
3 Sweden 62.4 - 0.99
4 Netherlands 61.6 - 0.98
5 United States of America 60.1 - 0.97
6 Finland 60 - 0.96
7 Singapore 59.4 - 0.96
8 Ireland 59.1 - 0.95
9 Luxembourg 59 - 0.94
10 Denmark 57.7 - 0.94
11 Hong Kong (China) 57.2 - 0.93
12 Germany 57.1 - 0.92
13 Iceland 57 - 0.91
14 Korea, Republic of 56.3 - 0.91
15 New Zealand 55.9 - 0.9
16 Canada 55.7 - 0.89
17 Australia 55.2 - 0.89
18 Austria 54.1 - 0.88
19 Japan 54 - 0.87
20 Norway 53.8 - 0.86
21 France 53.6 - 0.86
22 Israel 53.5 - 0.85
23 Estonia 52.8 - 0.84
24 Czech Republic 51.3 - 0.84
25 Belgium 50.9 - 0.83
26 Malta 50.5 - 0.82
27 Spain 49.1 - 0.81
28 Slovenia 48.5 - 0.81
29 China 47.5 - 0.8
30 Portugal 46.6 - 0.79
31 Italy 46.4 - 0.79
32 Malaysia 46 - 0.78
33 Latvia 45.5 - 0.77
34 Cyprus 43.5 - 0.76
35 Hungary 43 - 0.76
36 Slovakia 43 - 0.75
37 Barbados 42.5 - 0.74
38 Lithuania 42.3 - 0.74
39 Bulgaria 42.2 - 0.73
40 Croatia 41.7 - 0.72
41 Montenegro 41.2 - 0.71
42 Chile 41.2 - 0.71
43 Saudi Arabia 40.7 - 0.7
44 Moldova, Republic of 40.5 - 0.69
45 Greece 40.3 - 0.69
46 Poland 40.2 - 0.68
47 United Arab Emirates 40.1 - 0.67
48 Russian Federation 39.3 - 0.66
49 Mauritius 39.2 - 0.66
50 Qatar 39 - 0.65
51 Costa Rica 38.6 - 0.64
52 Viet Nam 38.3 - 0.64
53 Belarus 38.2 - 0.63
54 Romania 38.2 - 0.62
55 Thailand 38.1 - 0.61
56 TFYR Macedonia 38 - 0.61
57 Mexico 38 - 0.6
58 Turkey 37.8 - 0.59
59 Bahrain 37.7 - 0.59
60 South Africa 37.4 - 0.58
61 Armenia 37.3 - 0.57
62 Panama 36.8 - 0.56
63 Serbia 36.5 - 0.56
64 Ukraine 36.5 - 0.55
65 Seychelles 36.4 - 0.54
66 Mongolia 36.4 - 0.54
67 Colombia 36.4 - 0.53
68 Uruguay 35.8 - 0.52
69 Oman 35 - 0.51
70 Brazil 34.9 - 0.51
71 Peru 34.9 - 0.5
72 Argentina 34.3 - 0.49
73 Georgia 33.8 - 0.49
74 Lebanon 33.8 - 0.48
75 Jordan 33.8 - 0.47
76 Tunisia 33.5 - 0.46
77 Kuwait 33.2 - 0.46
78 Morocco 33.2 - 0.45
79 Bosnia and Herzegovina 32.3 - 0.44
80 Trinidad and Tobago 32.2 - 0.44
81 India 31.7 - 0.43

Saturday, January 9, 2016

‘फ्री बेसिक्स’ संचार महा-क्रांति या कमाई का नया फंडा?


नए दौर का सूत्र है नेट-साक्षरता. आने वाले वक्त में इंटरनेट पटु होना सामान्य साक्षरता का हिस्सा होगा. जो इंटरनेट का इस्तेमाल कर पाएगा वही सजग नागरिक होगा. वजह साफ है. जीवन से जुड़ा ज्यादातर कार्य-व्यवहार इंटरनेट के मार्फत होगा. इसीलिए इसका व्यावसायिक महत्व बढ़ रहा है. इंटरनेट की भावी पैठ को अभी से पढ़ते हुए नेट-प्रदाता और टेलीकॉम कंपनियां इसमें अपनी हिस्सेदारी चाहती हैं. सरकारों की भी यही कोशिश है कि नीतियाँ ऐसी हों ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को ऑनलाइन किया जा सके.
नेट के विस्तार के साथ-साथ कुछ अंतर्विरोधी बातें सामने आ रही हैं. इसके साथ दो बातें और जुड़ी हैं. एक है तकनीक और दूसरे पूँजी. इंटरनेट की सार्वजनिक जीवन में भूमिका होने के बावजूद इसका विस्तार निजी पूँजी की मदद से हो रहा है. निजी पूँजी मुनाफे के लिए काम करती है. सूचना-प्रसार केवल व्यावसायिक गतिविधि नहीं है. वह लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण कच्चा माल उपलब्ध कराने वाली व्यवस्था है. जानकारी पाना या देना, कनेक्ट करना और जागृत विश्व के सम्पर्क में रहना समय की सबसे बड़ी जरूरत है.  

Thursday, January 7, 2016

मुम्बई से पठानकोट तक के सबक

पठानकोट पर हुए हमले के बाद भारत में लगभग वैसी ही नाराजगी है जैसी 26 नवम्बर 2008 के बाद पैदा हुई थी. बाद में खबरें मिलीं कि तब भारत सरकार ने लश्करे तैयबा के मुख्यालय मुरीद्के पर हमले की योजना बनाई थी. तब दोनों देशों के बीच किसी प्रकार सहमति बनी कि पाकिस्तान हमलावरों की खोज और उन्हें सज़ा देने के काम में सहयोग करेगा. इसमें अमेरिका की भूमिका भी थी. इस बार भी खबर है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ ने मंगलवार को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन किया और एयरफोर्स बेस पर हुए हमले की जांच में हर संभव मदद का आश्वासन दिया. उसके पहले पाकिस्तान सरकार ने औपचारिक रूप से इस हमले की भर्त्सना भी की. बहरहाल टेलीफोन पर दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच हुई बातचीत में नरेंद्र मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि हमले के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की जाए. इससे पहले पाकिस्तानी विदेश विभाग ने सोमवार की रात एक बयान में कहा था कि भारत द्वारा उपलब्ध कराए गए 'सुरागों' पर पाकिस्तान काम कर रहा है.

‘ऑड-ईवन’ ने मौका दिया है तो सोचिए

दिल्ली में प्रदूषण रोकने के लिए सम और विषम संख्या की कारों का फॉर्मूला एक माने में बेहद सफल नजर आता है, भले ही वह अपने मूल उद्देश्य में विफल रहा हो। अब तक की जानकारी के अनुसार कारों पर पाबंदी की इस योजना से प्रदूषण को रोकने में किसी प्रकार की नाटकीय सफलता नहीं मिली है। बेशक कुछ प्रदूषण कम हुआ है, पर वह इतना कम नहीं हुआ कि इसे स्थायी समाधान मान लें। पर इस अभियान को जिस किस्म की सफलता मिली है, वह जरूर अविश्वसनीय है। इसे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि देश की जनता के भीतर अपनी समस्याओं के समाधान को लेकर जबर्दस्त ललक है। वह बड़े फैसले खुद नहीं कर सकती। उसके लिए उसे सरकारों का मुँह देखना पड़ता है, पर जब उसे किसी फैसले का महत्व समझ में आ जाता है तब वह उसे सफल बनाने में पीछे नहीं रहती।

Monday, January 4, 2016

पठानकोट के बाद

पठानकोट पर हमले के बाद देश के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की प्रतिक्रिया बेहद आक्रामक रही है, वहीं अखबारों की प्रतिक्रिया संतुलित है। आज के इंडियन एक्सप्रेस का सम्पादकीय है कि बातचीत जारी रहनी चाहिए। बात करना समर्पण नहीं है। अलबत्ता अखबार की सलाह है कि हमें काउंटर टैररिज्म सामर्थ्य को सुधारना चाहिए। आज के हिन्दूटाइम्स ऑफ इंडिया और हिन्दुस्तान टाइम्स ने  भी तकरीबन यही राय व्यक्त की है। पाकिस्तान के अखबार डॉन का भी यही कहना है। डॉन का यह भी कहना है कि सन 2008 के मुम्बई हमले को लेकर पाकिस्तान की ओर से जो कमी रह गई है उसका नुकसान उसे होगा। 

Indian Express

After Pathankot

Dialogue with Pakistan must go on. But India urgently needs counter-terrorism capacity-building.


Exactly a week after Prime Minister Narendra Modi landed in Lahore, hoping to “turn the course of history”, his ambitious project is being tested by fire. This weekend’s terrorist attack on Pathankot was no surprise; indeed, many in India’s intelligence community had predicted it. Each past effort at peace, after all, has provoked similar strikes. It is too easy, though, to attribute the strike to unnamed spoilers. The more complex truth is that while Pakistan’s all-powerful army seeks to avert a military crisis that would drain its energies at a time of grave internal turmoil, it does not seek normalisation. Pakistan’s army chief, General Raheel Sharif, has made it clear that he will not accept the status-quo on Kashmir. The strike on Pathankot, carried out by the Inter-Services Intelligence’s old client, the Jaish-e-Muhammad, serves a very specific purpose. It signals to Indian policymakers that the Pakistan army can inflict pain, but at a threshold below that which makes it worthwhile for New Delhi to retaliate. Barring reflexive hawks, after all, no one would argue that it makes sense for Delhi to risk even limited conflict after the strike on Pathankot. 

Sunday, January 3, 2016

अभी कई तीखे मोड़ आएंगे राष्ट्रीय राजनीति में

भारतीय राज-व्यवस्था, प्रशासन और राजनीति के लिए यह साल बड़ी चुनौतियों से भरा है। उम्मीद है कि इस साल देश की अर्थ-व्यवस्था की संवृद्धि आठ फीसदी की संख्या को या तो छू लेगी या उस दिशा में बढ़ जाएगी। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि संसद के बजट सत्र में क्या होता है। पिछले दो सत्रों की विफलता के बाद यह सवाल काफी बड़े रूप में सामने आ रहा है कि भविष्य में संसद की भूमिका क्या होने वाली है। देश के तकरीबन डेढ़ करोड़ नए नौजवानों को हर साल नए रोजगारों की जरूरत है। इसके लिए लगातार पूँजी निवेश की जरूरत होगी साथ ही आर्थिक-प्रशासनिक व्यवस्था को सुधारना होगा। व्यवस्था की डोर राजनीति के हाथों में है। दुर्भाग्य से राजनीति की डोर संकीर्ण ताकतों के हाथ में रह-रहकर चली जाती है।