गुरुवार, 2 जनवरी, 2014 को 17:05 IST तक के समाचार
Thursday, January 2, 2014
टेक्नोट्रॉनिक क्रांति 2014
हर रोज़ कुछ नया, कुछ अनोखा
हाल में दिल्ली में हुए
इंडो-अमेरिकन फ्रंटियर्स ऑफ इंजीनियरिंग सिंपोज़ियम में कहा गया कि सन 2014 में
बिगडेटा, बायोमैटीरियल, ग्रीन कम्युनिकेशंस और सिविल इंजीनियरी में कुछ बड़े काम
होंगे. बिगडेटा यानी ऐसी जानकारियाँ जिनका विवरण रख पाना ही मनुष्य के काबू के बाहर
है. मसलन अंतरिक्ष से जुड़ी और धरती के मौसम से जुड़ी जानकारियाँ. इनके विश्लेषण
के व्यावहारिक रास्ते इस साल खुलेंगे. सन 2014 में साइंस और टेक्नॉलजी की दुनिया
में क्या होने वाला है, इसपर नज़र डालते हैं.
Tuesday, December 31, 2013
आज का सूर्यास्त ‘आप’ के नाम
दिल्ली में शपथ लेने के बाद अरविंद केजरीवाल ने गीत गाया, ‘इंसान का इंसान से हो भाईचारा, यही पैगाम
हमारा.’ ऐसे तमाम गीत पचास के दशक की हमारी फिल्मों में होते
थे. नए दौर और नए इंसान की नई कहानी लिखने का आह्वान उन फिल्मों में था. पर साठ
साल में राजनीति के ही नहीं, फिल्मों, नाटकों, कहानियों और सीरियलों के स्वर बदल
गए. सन 1952 के चुनाव में आम आदमी पार्टी की ज़रूरत नहीं थी. सारी पार्टियाँ ‘आप’ थीं. तब से अब में पहिया पूरी तरह घूम चुका है.
जो हीरो थे, वे विलेन हैं.
Sunday, December 29, 2013
राहुल बनाम मोदी बनाम 'आप'
सन 2013 में साल की शुरुआत नौजवानों, खासकर महिलाओं की
नाराजगी के साथ हुई थी। दिल्ली गैंगरेप के खिलाफ वह आंदोलन किसी भी नज़रिए से राजनीतिक
नहीं था। पर उस आंदोलन ने बताया कि भारतीय राजनीति में युवाओं और महिलाओं की
उपस्थिति बढ़ रही है। राजनीति का समुद्र मंथन निरंतर चलता रहता है। साल का अंत
होते-होते सागर से लोकपाल रूपी अमृत कलश निकल कर आया है। रोचक बात यह है कि पार्टियों
की कामधेनु बने वोटर को यह अमृत तब मिला जब वह खुद इसके बारे में भूल चुका था। संसद
के इस सत्र में लोकपाल विधेयक पास करने की योजना नहीं थी। पर उत्तर भारत की चार
विधानसभाओं के चुनाव परिणामों ने सरकार को इतना भयभीत कर दिया कि आनन-फानन यह
कानून पास हो गया।
बावजूद इसके इस साल की सबसे बड़ी राजनीतिक घटना लोकपाल
विधेयक का पास होना नहीं है। बल्कि आम आदमी पार्टी का उदय है। विडंबना है कि जिस
लोकपाल कानून के नाम पर ‘आप’ का जन्म हुआ, वही इसकी सबसे बड़ी विरोधी है। ‘आप’ किसी सकारात्मक राजनीति का परिणाम न होकर विरोध की देन है। दिसंबर 2011
के अंतिम सप्ताह में लोकपाल विधेयक को लोकसभा से पास करके जिस तरह राज्यसभा में
अटका दिया गया, उससे अन्ना हजारे को नहीं देश की जनता के मन को ठेस लगी थी। अन्ना
के आंदोलन के साथ यों भी पूरा देश नहीं था। वह आंदोलन दिल्ली तक केंद्रित था और
मीडिया के सहारे चल रहा था। पर भ्रष्टाचार को लेकर जनता की नाराजगी अपनी जगह थी।
इस साल मार्च में पवन बंसल और अश्विनी कुमार को अलग-अलग कारणों से जब पद छोड़ने
पड़े तब भी ज़ाहिर हुआ कि जनता के मन में यूपीए सरकार के खिलाफ नाराज़गी घर कर
चुकी है। उन्हीं दिनों सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को ‘तोता’ नाम से विभूषित किया था।
सीले पटाखों से कैसे मनेगी कांग्रेस की दीवाली?
पाँच राज्यों की विधान सभाओं के चुनाव परिणाम आने के पहले राहुल
गांधी के चेहरे पर हल्की सी दाढ़ी बढ़ी होती थी। पिछली 22 दिसंबर को फिक्की की सभा
में राहुल गांधी का या दूसरे शब्दों में कांग्रेस नया चेहरा सामने आया। इस सभा में
राहुल चमकदार क्लीनशेव चेहरे में थे। उद्योग और व्यवसाय के प्रति वे ज्यादा
संवेदनशील नज़र आए। संयोग से उसी दिन पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन ने इस्तीफा
दिया था। उस इस्तीफे को लोकसभा चुनाव के पहले की संगठनात्मक कवायद माना गया था।
अंदरखाने की खबरें हैं कि देश के कॉरपोरेट सेक्टर को सरकार से शिकायतें हैं। विधानसभा
चुनाव के पहले तक राहुल गांधी का ध्यान गाँव और गरीब थे। अब शहर, मध्य वर्ग और
कॉरपोरेट सेक्टर भी उनकी सूची में है।
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