Thursday, November 7, 2013

स्पेस रिसर्च फिजूलखर्ची नहीं

 मंगलयान के प्रक्षेपण के बाद कुछ सवाल उठे हैं। गरीबों के देश को ऐसी फिजूलखर्ची क्या शोभा देती है? इसके बाद क्या भारत-चीन अंतरिक्ष रेस शुरू होगी? भारत की शान बढ़ेगी? क्या यह यूपीए सरकार की उपलब्धियों को शोकेस करना है? प्रक्षेपण के ठीक पहले व़ॉल स्ट्रीट जरनल ने लिखा, इस सफलता के बाद भारत अंतरग्रहीय अनुसंधान में चीन और जापान को पीछे छोड़ देगा. इकोनॉमिस्ट ने लिखा कि जो देश 80 करोड़ डॉलर (लगभग 5000 करोड़ रुपए) दीवाली के पटाखों पर खर्च कर देता है उसके लिए 7.4 करोड़ डॉलर (450 करोड़ रुपए) का यह एक रॉकेट दीवाली जैसा रोमांच पैदा करेगा. प्रक्षेपण के वक्त सुशील कुमार शिंदे भी यही बात कह रहे थे. पर क्या यह परीक्षण हमारे जीवन में बढ़ती वैज्ञानिकता का प्रतीक है? क्या हम विज्ञान की शिक्षा में अग्रणी देश हैं?   

Wednesday, October 30, 2013

बनता क्यों नहीं तीसरा मोर्चा?

 बुधवार, 30 अक्तूबर, 2013 को 11:22 IST तक के समाचार
तीसरे मोर्चे की संभावनाएं
दिल्ली में बुधवार 30 अक्तूबर को देश के तकरीबन एक दर्जन राजनीतिक दलों के नेता जमा होकर चुनाव के पहले और उसके बाद के राजनीतिक गठबंधन की सम्भावना पर विचार करने जा रहे हैं.
व्यावहारिक रूप से यह तीसरे मोर्चे की तैयारी है, पर बनाने वाले ही कह रहे हैं कि औपचारिक रूप से तीसरा मोर्चा चुनाव के पहले बनेगा नहीं. बन भी गया तो टिकेगा नहीं.
हाल में ममता बनर्जी ने संघीय मोर्चे की पेशकश की थी. यह पेशकश नरेन्द्र मोदी के भूमिका-विस्तार के साथ शुरू हुई. पर वे इस विमर्श में शामिल नहीं होंगी, क्योंकि मेज़बान वामपंथी दल हैं.
राष्ट्रीय परिदृश्य पर कांग्रेस और भाजपा दोनों को लेकर वोटर उत्साहित नहीं है, पर कोई वैकल्पिक राजनीति भी नहीं है. उम्मीद की किरण उस अराजकता और अनिश्चय पर टिकी है जो चुनाव के बाद पैदा होगा.
ऐसा नहीं कि क्लिक करेंतीसरे मोर्चे की कल्पना निरर्थक और निराधार है. देश की सांस्कृतिक बहुलता और सुगठित संघीय व्यवस्था की रचना के लिए इसकी ज़रूरत है.
पर क्या कारण है कि इसके कर्णधार चुनाव में उतरने के पहले एक सुसंगत राजनीतिक कार्यक्रम के साथ चुनाव में उतरना नहीं चाहते?

खतरों से लड़ने वाली राजनीति

ममता बनर्जी
ममता बनर्जी ने संघीय मोर्चे की पेशकश की थी.
हमारी राजनीति को ख़तरों से लड़ने का शौक है. आमतौर पर यह ख़तरों से लड़ती रहती है.
1967 के बाद से गठबंधनों की राजनीति को प्रायः उसके मुहावरे क्लिक करेंवामपंथी पार्टियाँदेती रहीं हैं. गठबंधन राजनीति के फोटो-ऑप्स में पन्द्रह-बीस नेता मंच पर खड़े होकर दोनों हाथ एक-दूसरे से जोड़कर ऊपर की ओर करते हैं तब एक गठबंधन का जन्म होता है. यह गठबंधन किसी ख़तरे से लड़ने के लिए बनता है.
जब तक नेहरू थे तब ख़तरा यह था कि वे नहीं रहे तो क्या होगा? इंदिरा गाँधी का उदय देश की बदलाव विरोधी ताकतों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए हुआ था. संयोग से वे बदलाव विरोधी ताकतें कांग्रेस के भीतर ही थीं, पर प्रतिक्रियावादी थीं. जेपी आंदोलन भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ था.

Sunday, October 27, 2013

पाक को भी चुकानी होगी इस तनाव की कीमत

अमेरिका ने आधिकारिक रूप से नवाज़ शरीफ की इस सलाह को खारिज कर दिया कि कश्मीर-मामले में उसे मध्यस्थता करनी चाहिए। अमेरिका का कहना है कि दोनों देशों को आपसी संवाद से इस मसले को सुलझाना चाहिए। अमेरिकी विदेश विभाग की प्रवक्ता जेन पसाकी ने ट्विटर पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा कि हमारे दृष्टिकोण में बदलाव नहीं हुआ है। अमेरिका दोनों देशों के बीच संवाद को बढ़ावा देता रहेगा। उधर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सीमा पर लगातार गोलीबारी को लेकर नवाज़ शरीफ के प्रति अपनी निराशा को व्यक्त किया है। नियंत्रण रेखा पर शांति बनाए रखने के लिए दोनों देशों के बीच सन 2003 में जो समझौता हुआ था, वह पिछले दस साल से अमल में आ रहा था। अब ऐसी क्या बात हुई कि पिछले 10 महीनों से लगातार कुछ न कुछ हो रहा है।

Saturday, October 26, 2013

भावनाओं के भँवर में गोते लगाते राहुल

लगता है कि राहुल गांधी के भाषणों को लिखने वाले या उनके इनपुट्स तय करने वाले तीन-चार दशक पुरानी परम्परा के हिसाब से चल रहे हैं। उन्हें लगता है कि नेता जो बोल देगा उसका तीर सीधे निशाने पर जाकर लगेगा। उसके बाद अहो-अहो कहने वाली मंडली उस बात को आसमान पर पहुँचा देगी। मुज़फ्फरनगर के युवाओं के पाकिस्तानी खुफिया एजेंटों के सम्पर्क में आने वाली बात कह कर राहुल ने नासमझी का परिचय दिया है। नरेन्द्र मोदी के हाथों उनकी फज़ीहत हुई सो अलग किसी दूसरे समझदार व्यक्ति को भी यह बात समझ में नहीं आएगी। उन्हें अपने भाषणों में सावधानी बरतनी होगी।
राहुल गांधी अपने राजनीतिक जीवन के बेहद महत्वपूर्ण मोड़ पर हैं। निर्णायक रूप से उनके सफल या विफल होने में अभी कुछ महीने बाकी हैं, पर अंतर्विरोध उजागर होने लगे हैं। उनकी विश्व-दृष्टि और राजनीतिक मिशन को लेकर सवाल उठे हैं। अपनी पार्टी का भविष्य वे किस रूप में देख रहे हैं और इसमें व्यक्तिगत रूप से वे क्या भूमिका निभाना चाहते हैं? ऐसे समय में जब उन्हें दृढ़-निश्चयी, सुविचारित और सुलझे राजनेता के रूप में सामने आना चाहिए, वे संशयी और उलझे व्यक्ति के रूप में नज़र आ रहे हैं। पहले अपनी माँ, फिर पिता, फिर दादी का ज़िक्र करते वक्त बेशक वे अपनी भावनाओं को व्यक्त कर रहे हैं और इसका उन्हें अधिकार है। पर इससे विसंगति पैदा होती है। उनके परिवार की त्रासदी पर पूरे देश की हमदर्दी है। वे कहते हैं कि उन्होंने मेरे पिता को मारा, मेरी दादी की हत्या की और शायद एक दिन मेरी भी हत्या हो सकती है। ऐसा कहते ही वे अपने पारिवारिक अंतर्विरोधों का पिटारा खोल रहे हैं।

Thursday, October 24, 2013

पाकिस्तान से निपटने का विकल्प क्या है?

जम्मू-कश्मीर में गोलाबारी अब चिंताजनक स्थिति में पहुँच गई है. मंगलवार को पाकिस्तानी सेना ने लाउडस्पीकर पर घोषणा करके केरन सेक्टर के एक आदर्श गाँव में कम्युनिटी हॉल का निर्माण रुकवा दिया. सन 2003 में दोनों देशों ने नियंत्रण रेखा के आसपास के गाँवों में जीने का माहौल बनाने का समझौता किया था. लगता है वह खत्म हो रहा है. पिछले दस महीनों से कड़वाहट बढ़ती जा रही है. जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी कार्रवाई चाहते हैं. उन्होंने कहा कि यदि पाकिस्तान लाइन ऑफ कंट्रोल पर संघर्ष विराम का उल्लंघन करना जारी रखता है तो केंद्र सरकार को अन्य विकल्पों पर विचार करना चाहिए. विकल्प क्या है? उधर नवाज शरीफ ने अमेरिका से हस्तक्षेप की माँग करके घाव फिर से हरे कर दिए हैं. नवाज शरीफ रिश्तों को बेहतर बनाने की बात करते हैं वहीं भारत को सबसे तरज़ीही मुल्क का दर्ज़ा देने भर को तैयार नहीं हैं. उनका कहना है कि इस मामले पर भारत के चुनाव के बाद बात होगी. क्या मौज़ूदा तनाव का रिश्ता लोकसभा चुनाव से भी जुड़ा है? क्या पाकिस्तान को लगता है कि भारत में सत्ता-परिवर्तन होने वाला है? सत्ता-परिवर्तन हो भी गया तो क्या भारतीय विदेश नीति में कोई बड़ा बदलाव आ जाएगा?