मुम्बई में एक बार फिर से हुए धमाकों से घबराने या परेशान होकर
बिफरने की ज़रूरत नहीं है। यह स्पष्ट भले न हो कि इसके पीछे किसका हाथ है, पर यह स्पष्ट
है कि वह हाथ किधर से आता है। पहला शक इंडियन मुजाहिदीन पर है। सन 2007 में लखनऊ और
वाराणसी में हुए धमाकों और 2008 में जयपुर और अहमदाबाद के धमाकों की शैली से ये धमाके
मिलते-जुलते हैं। पर इन मुजाहिदीन की मुम्बई के निर्दोष लोगों से क्या दुश्मनी? दहशत के जिन थोक-व्यापारियों
की यह शाखा है, उन तक हम नहीं पहुँच पाते हैं।
घूम-फिरकर संदेह का घेरा लश्करे तैयबा और तहरीके तालिबान पाकिस्तान
वगैरह पर जाता है। अब यह जानना बहुत महत्वपूर्ण नहीं कि उनके पीछे कौन है। वे जो भी
हैं पहचाने हुए हैं। और उनके इरादे साफ हैं। महत्वपूर्ण है उनका धमाके कराने में कामयाब
होना। और धमाके रोक पाने में हमारी सुरक्षा व्यवस्था का विफल होना। यह भी सच है कि
सुरक्षा एजेंसियाँ अक्सर धमाकों की योजना बनाने वालों की पकड़-धकड़ करती रहतीं है।
ऐसा न होता तो न जाने कितने धमाके हो रहे होते। देखना यह भी चाहिए कि मुम्बई में ऐसा
क्या खास है कि वह हर दूसरे तीसरे बरस ऐसी खूंरेजी का शिकार होता रहता है। क्या वजह
है कि वहाँ का अपराध माफिया इतना पावरफुल है?