Sunday, March 20, 2011

प्रकृति बगैर कैसी प्रगति?



उन्नीसवीं सदी के शुरू में यह आशंका पैदा हुई कि दुनिया की जनसंख्या जिस तेजी से बढ़ रही है, उसके अनुरूप अन्न का उत्पादन नहीं होता। अंदेशा था कि कहीं भुखमरी की नौबत न आ जाए। ऐसा नहीं हुआ। दुनिया में एक के बाद एक कई हरित क्रांतियां हुईं। भुखमरी का अंदेशा आज भी है। पर यह खतरा गरीबों के लिए है। और उनके लिए यह अंदेशा हमेशा रहा। औद्योगिक क्रांति की बुनियाद में थी भाप की ताकत। धरती के गर्भ में मौजूद पेट्रोलियम और कोयले ने उन्नीसवीं और बीसवीं सदी में दुनिया को कहां से कहाँ पहुँचा दिया। दोनों फॉसिल फ्यूल अब खत्म हो रहे हैं। पर इनका खत्म होना उतना महत्वपूर्ण नहीं है। खौफनाक है इनका खतरनाक हो जाना। जबर्दस्त कार्बन उत्सर्जन के कारण धरती का तापमान बढ़ता जा रहा है। कार्बन उत्सर्जन इंसान के विकास की देन है। विकास भी ऐसा जिसमें करोड़ों लोग आज भी भूखे सोते हैं।

Wednesday, March 16, 2011

भारतीय भाषाओं के मीडिया की ताकत और बढ़ेगी




पिछले दिनों इंडियन एक्सप्रेस में खबर थी कि आम बजट के रोज हर चैनल किसी न किसी वजह से नम्बर वन रहा। टैम के निष्कर्षों को सारे चैनल अपने-अपने ढंग से पेश करते हैं। कुछ ऐसा ही प्रिंट मीडिया के सर्वे के साथ होता है। औसत पाठक को एआईआर और टोटल रीडरशिप का फर्क मालूम नहीं होता। अखवार चूंकि सर्वेक्षण के नतीजों का इस्तेमाल अपने प्रचार के लिए करते हैं, इसलिए जो पहलू उनके लिए आरामदेह होता है वे उसे उठाते हैं। मसलन आयु वर्ग या आय वर्ग। किसी खास भौगोलिक क्षेत्र में या किसी खास शहर में।

पाठक सर्वेक्षणों के बारे में चर्चा करने के पहले यह समझ लिया जाना चाहिए कि ये अनुमान हैं, वास्तविक संख्या नहीं। इनकी निश्चित संख्या से यह नहीं मान लेना चाहिए कि पाठक संख्या यही है। अखबारों के प्रिट ऑर्डर के एबीसी ऑडिट के आधार पर निष्कर्ष अलग तरह के होते हैं। भारत में एनआरएस और फिर आईआरएस के पीछे मूल विचार विज्ञापन उद्योग के सामने मीडिया के प्रसार और प्रभाव की तस्वीर पेश करना है। इस प्रक्रिया को पाठक के सामने रखने का उद्देश्य सिर्फ यह बताना हो सकता है कि कौन सा अखबार लोकप्रिय है। यों भी पाठक अपनी मर्जी का अखबार पढ़ता है। वह यह देखकर अखबार नहीं लेता कि उसे कितने पाठक और पढ़ रहे हैं।

Tuesday, March 15, 2011

भारत से जुड़े विकीलीक्स हिन्दू में

भारत से जुड़े विकीलीक्स के केबल का गेट भी खुल गया है। चेन्नई के अखबार हिन्दू ने अमेरिकी दूतावास द्वारा भेजे गए केबल 15 मार्च के अंक से छापने शुरू कर दिए हैं।

हिन्दू द्वारा प्रकाशित केबलों के संदर्भ में आज अखबार के सम्पादक एन राम ने पहले सफे पर लिखा है कि विकीलीक्स के साथ हमारी बातचीत दिसम्बर में शुरू हुई थी। उन्होंने लिखा है-- 

The India Cables have been accessed by The Hindu through an arrangement with WikiLeaks that involves no financial transaction and no financial obligations on either side. As with the larger 'Cablegate' cache to which these cables belong, they are classified into six categories: confidential, confidential/noforn (confidential, no foreigners), secret, secret/noforn, unclassified, and unclassified/for official use only.

Our contacts with WikiLeaks were initiated in the second week of December 2010. It was a period when Cablegate had captured the attention and imagination of a news-hungry world.

नीचे मैने वह लिंक भी दिया है जहाँ से आप इन केबल्स को सीधे पढ़ सकते हैं। दरअसल इन्हें पढ़ने और समझने में समय लगाना पड़ेगा। हिन्दू में आज एन राम के अलावा पाँच वरिष्ठ पत्रकारों की आलोख और छपे हैं। इनके नाम हैं सुरेश नामबथ, निरुपमा सुब्रह्मण्यम, सिद्धार्थ वर्दराजन, पी साईनाथ और हसन सुरूर। हिन्दू का दृष्टिकोण आमतौर पर अमेरिका विरोधी होता है। और वह भारतीय विदेशनीति में अमेरिका-समर्थक तत्वों को पसंद नहीं करता। इसलिए उसके आलेख इसी किस्म के हैं, पर यह रोचक है कि भारत में विकीलीक्स का पहला शेयर हिन्दू को मिला. 


Monday, March 14, 2011

आपदाओं से निपटना जापान से सीखें


भूकम्प और सुनामी से तबाह हुए इलाके में किसी बालक को मिले पुरस्कार
 प्रमाणपत्र के चिथड़े को पढता एक बालक।

मैने यह लेख जब लिखा था तब न्यूक्लियर रिएक्टरों वाली बात उभरी नहीं थी। रेडिएशन के खतरे ने जापानी त्रासदी को इंसानियत के सामने सबसे बड़े खतरों की सूची में दर्ज कर दिया है। शायद अब यह सोचना होगा कि जिन इलाकों में भूकम्प इतने ज्यादा आते हों वहाँ नाभिकीय ऊर्जा का विकल्प खारिज करना चाहिए। इसमें दो राय नहीं कि आपदाओं से जूझने के मामले में हमें जापान से सीखना चाहिए। 

सुनामी से जूझते जापान पर नज़र डालें तो आपको उससे सीखने के लिए बहुत कुछ मिलेगा। दुनिया का अकेला देश जिसने एटम बमों का वार झेला। तबाही का सामना करते हुए इस देश के बहादुर और कर्मठ नागरिकों ने दूसरे विश्व युद्ध के बाद सिर्फ दो दशक में जापान को आर्थिक महाशक्ति बना दिया। तबाहियों से खेलना इनकी आदत है। सुनामी शब्द जापान ने दिया है। यह देश हर साल कम से कम एक हजार भूकम्पों का सामना करता है। सैकड़ों सुनामी हर साल जापानी तटों से टकरातीं हैं। पर इस बार उनके इतिहास का सबसे जबर्दस्त भूकम्प आया है।

Sunday, March 13, 2011

राष्ट्रीय धुलाई की बेला



पिछले महीने 16 फरवरी को टीवी सम्पादकों के साथ बातचीत के दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा, मैं इस बात को खारिज नहीं कर रहा हूँ कि हमें गवर्नेंस में सुधार की ज़रूरत है। उसके पहले गृहमंत्री पी चिदम्बरम ने वॉल स्ट्रीट जर्नल को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, बेशक कुछ मामलों में गवर्नेंस में चूक है, बल्कि मर्यादाओं का अभाव है। अभी 3 मार्च को सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने हसन अली के मामले में सरकार पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा, ऐसे उदाहरण हैं जब धारा 144 तक के मामूली उल्लंघन में व्यक्ति को गोली मार दी गई, वहीं कानून के साथ इतने बड़े खिलवाड़ के बावजूद आप आँखें मूँदे बैठे हैं। उसी रोज़ मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडिया की अध्यक्षता में तीन जजों की बेंच ने चीफ विजिलेंस कमिश्नर के पद पर पीजे थॉमस की नियुक्ति को रद्द करते हुए कि यह राष्ट्रीय निष्ठा की संस्था है। इसके साथ घटिया खेल मत खेलिए।