Wednesday, February 16, 2011

प्रधानमंत्री की प्रभावहीन टीवी कांफ्रेंस


 इसे सम्पादक सम्मेलन कहने को जी नहीं करता। सबसे पहले हिन्दी चैनल आज तक के सम्पादक के नाम पर आए उसके मालिक अरुण पुरी ने अंग्रेजी में सवाल किया। आज सुबह के टेलीग्राफ में राधिका रमाशेसन की खबर थी कि दो चैनलों के मालिकों को खासतौर पर आने को कहा गया है। दूसरे सम्पादक से उनका आशय बेशक प्रणय रॉय होंगे। प्रणय़ रॉय को हम मालिक कम सम्पादक ज्यादा मानते हैं। आज के सम्मेलन में उन्होंने ही सबसे सार्थक सवाल पूछे। अर्णब गोस्वामी के तेवरों पर ध्यान न दें तो वाजिब सवाल उनके भी थे।

Tuesday, February 15, 2011

सं रा सुरक्षा परिषद में बदलाव


हाल में ग्रुप-4 के देशों की न्यूयॉर्क में हुई बैठक के बाद जारी वक्तव्य में उम्मीद ज़ाहिर की गई है कि इस साल जनरल असेम्बली के सत्र में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सुधारों की दिशा में कोई ठोस कदम उठा लिया जाएगा। जी-4 देशों में भारत, जर्मनी, जापान और ब्राजील आते हैं। ये चार देश सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के दावेदार हैं।

Monday, February 14, 2011

मुज़फ्फरपुर जिले का एस्बेस्टस कारखाना


मेरे ब्लॉग पर गिरिजेश कुमार का यह दूसरा आलेख है। इसमें वे विकास से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों को उठा रहे हैं। क्या इस कारखाने को स्वीकार करते वक्त पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी हुई है। बेहतर हो कि यदि किसी के पास और जानकारी हो तो भेजें। इस आलेख के साथ दो चित्र हैं।  ये विरोध मार्च की तस्वीरें हैं| इसी मुद्दे पर पटना में १० फ़रवरी को आयोजित इस मार्च में कई बुद्धिजीवी शामिल हुए थे|  

Saturday, February 12, 2011

मिस्री बदलाव का निहितार्थ

 हुस्नी मुबारक का पतन क्या मिस्र में लोकतंत्र की स्थापना का प्रतीक है? मेरा ख्याल है कि मिस्र की परीक्षा की घड़ी अब शुरू हो रही है। हुस्नी मुबारक क्या अकेले तानाशाही चला रहे थे? वे सत्ता की कुंजी जिनके पास छोड़ गए हैं क्या वे लोकतंत्र की प्रतिमूर्ति हैं? मिस्र का दुर्भाग्य है कि वहाँ लम्बे अर्से से अलोकतांत्रिक व्यवस्था चल रही थी। लोकतंत्र जनता की मदद से चलता है पर उसकी संस्थाएं उसे चलातीं हैं। भारत में लोकतांत्रिक संस्थाएं खासी मजबूत हैं, फिर भी आए दिन घोटाले सामने आ रहे हैं।मिस्र को अभी काफी लम्बा रास्ता तय करना है। हाँ एक बात ज़रूर है कि इस आंदोलन से राष्ट्रीय आम राय ज़रूर बनी है।

Wednesday, February 9, 2011

स्कूल स्तर पर यौन शिक्षा

मैने अपने ब्लॉग पर दूसरे लेखकों की रचनाएं भी आमंत्रित की हैं। मेरा उद्देश्य इस प्लेटफॉर्म के मार्फत विचार-विमर्श को बढ़ावा देना है। आज इस सीरीज़ में यह पहला आलेख है। इसे पटना के श्री गिरिजेश कुमार ने भेजा है। उनका परिचय नीचे दिया गया है। लेख के अंत में मैने दो संदर्भ सूत्र जोड़े हैं। बेहतर हो कि आप अपनी राय दें। 


बचपन को विकृत करने की साज़िश 
गिरिजेश कुमार
काले परदे के पीछे भूमंडलीकरण का निःशब्द कदम धीरे-धीरे सभ्यता का प्रकाश मलिन कर जिस अंधकारमय जगत की ओर लोगों को ले जा रहा है वह चित्र देखने लायक आँखऔर समझने लायक मन आज कितने लोगों में हैप्रेम जैसी सुन्दर अनुभूति को भुलाकरचकाचौंध रोशनी के बीच शरीर का विकृत प्रदर्शन और सेक्स के माध्यम से समाज को विषाक्त बनाने की कोशिश हो रही हैइसी परिकल्पित प्रयास का ही एक नाम है- स्कूल स्तर पर यौन शिक्षा|