Thursday, September 21, 2023

फलस्तीन के समाधान जुड़ा है प.एशिया कॉरिडोर


जी-20 की बैठक के दौरान भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप आर्थिक कॉरिडोर की घोषणा तो हो गई, पर विशेषज्ञों के मन में इसकी सफलता को लेकर कुछ संदेह हैं. सबसे बड़ा संदेह फलस्तीन की समस्या को लेकर है. जब तक इस समस्या का समाधान नहीं होगा, इस कॉरिडोर की सफलता में संदेह बने रहेंगे.

प्रस्तावित कॉरिडोर का एक सिरा इसरायल के हाइफ़ा तक जाएगा, जहाँ से वह यूरोप का रास्ता पकड़ेगा. जब तक इसराइल और अरब देशों, खासतौर से सऊदी अरब की सहमति नहीं होगी, तबतक हाइफ़ा को कॉरिडोर में शामिल करने की कल्पना नहीं की जा सकती है.

फलस्तीनियों से संवाद

खबरें इस आशय की भी हैं कि अमेरिकी मध्यस्थता में सऊदी अरब और इसराइल के बीच संबंध सामान्य करने को लेकर संभावित ऐतिहासिक समझौते में फ़लस्तीनियों ने अरबों डॉलर और जॉर्डन नदी के पश्चिमी किनारे में इसराइल के पूर्ण कब्ज़े वाली ज़मीन पर नियंत्रण की मांग रखी है.

इस आशय की एक खबर आई थी कि बुधवार 4 सितंबर को रियाद में फ़लस्तीन अथॉरिटी और सऊदी अरब के अधिकारियों के बीच वार्ता हुई. और यह भी कि जल्द ही अमेरिकी अधिकारियों से उनकी मुलाकात होने वाली है.

Sunday, September 17, 2023

ग्लोबल सप्लाई-चेन का हब बनेगा भारत


जी-20 के शिखर-सम्मेलन में भारत को मिली सफलताओं से भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर कुछ संभावनाएं पैदा हुई हैं। पिछले साल अप्रेल में बेंगलुरु में आयोजित तीन दिन के सेमीकॉन इंडिया कॉन्फ्रेंस-2022 के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, भारत आने वाले समय में सेमीकंडक्टर का हब बनेगा। प्रधानमंत्री ने उन कुछ कारणों को गिनाया जिनकी वजह से भारत सेमीकंडक्टर और टेक्नोलॉजी के लिए एक आकर्षक मुकाम होगा। बुनियादी डिजिटल ढांचे का निर्माण और अगली टेक-क्रांति का रास्ता भारत तैयार कर रहा है। 5जी, आईओटी और क्लीन एनर्जी-टेक का विस्तार हो रहा है। हमारे पास दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ने वाला स्टार्टअप इको-सिस्टम है। 21वीं सदी की जरूरतों के लिए हम युवा-कौशल प्रशिक्षण में भारी निवेश कर रहे हैं। हमारे पास दुनिया के 20 फीसदी सेमीकंडक्टर डिजाइन इंजीनियरों का असाधारण टेलेंट पूल है। दुनिया की शीर्ष 25 कंपनियों के सेमीकंडक्टर डिजाइन सेंटर हमारे यहाँ हैं। जब सारी दुनिया महामारी से लड़ रही थी, भारत न केवल लोगों के, बल्कि अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य को सुधार रहा था और उसने विनिर्माण के अपने इंफ्रास्ट्रक्चर में भारी बदलाव किए हैं।

आसन्न बदलाव

सवा साल पहले कही गई उस बात पर काफी लोगों ने ध्यान नहीं दिया, पर इस विषय पर नज़र रखने वालों ने उसके पहले देख लिया था कि ग्लोबल सप्लाई-चेन में बदलाव आने वाला है। इसके पीछे एक वजह चीन की बढ़ती आक्रामकता है। पिछले तीन दशकों में पश्चिमी देशों ने चीन में भारी निवेश और तकनीकी हस्तांतरण करके उसे वैश्विक सप्लाई-चेन का हब तो बना दिया, पर उसके भू-राजनीतिक निहितार्थ पर ध्यान नहीं दिया। चीन ने सबको आँखें दिखानी शुरू कर दी हैं। सप्लाई चेन का मतलब है कि चीन का वैश्विक-कारखाने के रूप में तब्दील हो जाना। यह केवल उत्पादन तक सीमित नहीं होती, बल्कि इसमें उत्पादन के विभिन्न चरण शामिल होते हैं। मसलन डिजाइन, असेंबली, मार्केटिंग, प्रोडक्शन और सर्विसिंग वगैरह। ये उत्पाद दूसरे उत्पादों के लिए सहायक होते हैं। मसलन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का विकास इस चेन पर निर्भर करता है। इससे दुनिया को सस्ता माल मिलेगा और इन कार्यों पर लगी पूँजी पर बेहतर मुनाफा।

Thursday, September 14, 2023

हिंदी का विस्तार और आपकी भूमिका


हर साल हम 14 सितंबर को हिंदी दिवस का समारोह मनाते हैं। हालांकि यह हिंदी के सरकारीकरण का दिन है, फिर भी बड़ी संख्या में लोगों का अपनी भाषा से प्रेम इस बहाने व्यक्त होता है। खासतौर से सरकारी दफ्तरों में तमाम लोग हिंदी के काम को व्यक्तिगत प्रयास से और बड़े उत्साह के साथ करते हैं। बेशक वाचिक भाषा के रूप में हिंदी का विस्तार हुआ है। यानी कि मनोरंजन, खेल और राजनीति की भाषा वह बनी है। वह पैन इंडियन भाषाभी बन गई है। मतलब मुंबइया, कोलकाता, बेंगलुरु और हैदराबादी हिंदी की शैलियाँ बनती जा रही हैं। पर ज्ञान-विज्ञान की भाषा के रूप में उसका वैसा विकास नहीं हुआ, जैसा होना चाहिए। हमें सोचना चाहिए कि ऐसा क्यों नहीं हुआ।

खबरिया और मनोरंजन चैनलों की वजह से हिंदी जानने वालों की तादाद बढ़ी है। हिंदी सिनेमा की वजह से तो वह थी ही। सच यह भी है कि हिंदी की आधी से ज्यादा ताकत गैर-हिंदी भाषी जन के कारण है। गुजराती, मराठी, पंजाबी, बांग्ला और असमिया इलाकों में हिंदी को समझने वाले काफी पहले से हैं। भारतीय राष्ट्रवाद को विकसित करने में हिंदी की भूमिका को सबसे पहले बंगाल से समर्थन मिला था। 1875 में केशव चन्द्र सेन ने अपने पत्र ’सुलभ समाचार’ में हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार करने की बात उठाई थी।

बंकिम चन्द्र चटर्जी भी हिंदी को ही राष्ट्रभाषा मानते थे। महात्मा गांधी गुजराती थे, फिर भी दक्षिण अफ्रीका से उन्होंने अंग्रेजी में अपना अखबार निकाला, तो उसमें हिंदी, तमिल और गुजराती को भी जगह दी। दो पीढ़ी पहले के हिंदी के श्रेष्ठ पत्रकारों में अमृत लाल चक्रवर्ती, माधव राव सप्रे, बाबूराव विष्णु पराडकर, लक्ष्मण नारायण गर्दे, सिद्धनाथ माधव आगरकर और क्षितीन्द्र मोहन मित्र जैसे अहिंदी भाषी थे।

जैसे-जैसे हिंदी का विस्तार हो रहा है, उसके अंतर्विरोध भी सामने आ रहे हैं। दक्षिण के लोगों को भी समझ मे आ गया है कि बच्चों के बेहतर करिअर के लिए हिंदी का ज्ञान भी ज़रूरी है। इसलिए नहीं कि हिंदी में काम करना है। इसलिए कि हिंदी इलाके में नौकरी करनी है तो उधर की भाषा का ज्ञान होना ही चाहिए। हिंदी की जानकारी होने से एक फायदा यह होता है कि किसी तीसरी भाषा के इलाके में जाएं और वहाँ अंग्रेजी जानने वाला भी न मिले तो हिंदी की मदद मिल जाती है। पर राजनीतिक कारणों से उसका विरोध भी होता है।

हिंदी को आज पूरे देश का स्नेह मिल रहा है और उसे पूरे देश को जोड़ पाने वाली भाषा बनने के लिए जिस खुलेपन की ज़रूरत है, वह भी उसे मिल रहा है। यानी भाषा में शब्दों, वाक्यों और मुहावरों के प्रयोगों को स्वीकार किया जा रहा है। पाकिस्तान को और जोड़ ले तो हिंदी या उर्दू बोलने-समझने वालों की संख्या बहुत बड़ी है। यह इस भाषा की ताकत है।

पश्चिम-एशिया कॉरिडोर में होगी पश्चिमी-प्रतिबद्धता की परीक्षा


जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि शीघ्र ही भारत से पश्चिम एशिया के रास्ते से होते हुए यूरोप तक एक कनेक्टिविटी कॉरिडोर के निर्माण का कार्य शुरू होगा. इस परियोजना में शिपिंग कॉरिडोर से लेकर रेल लाइनों तक का निर्माण किया जाएगा. सैकड़ों साल पुराना भारत-अरब कारोबारी माहौल फिर से जीवित हो रहा है.

इस परियोजना में दो कॉरिडोर बनेंगे. एक पूर्वी कॉरिडोर, जो भारत से जोड़ेगा और दूसरा उत्तरी (या पश्चिमी) कॉरिडोर, जो यूरोप तक जाएगा. इसके पहले ईरान और मध्य एशिया के देशों के रास्ते यूरोप तक जाने वाले उत्तर-दक्षिण कॉरिडोर पर भी काम चल रहा है. उसमें भी भारत की भूमिका है, पर ईरान और रूस के कारण पश्चिमी देशों की भूमिका उस कार्यक्रम में नहीं है.

एशिया में प्रतिस्पर्धा

पश्चिम एशिया में इंफ्रास्ट्रक्चर विकास उस परियोजना का हिस्सा नहीं जरूर नहीं है, पर चीन की दिलचस्पी भी इस इलाके में है और हाल में चीन ने ईरान, सऊदी अरब और यूएई के साथ संबंधों को प्रगाढ़ किया है. एक तरह से यह चीन के बीआरआई और पश्चिम के बी3डब्लू (बिल्ड बैक बैटर वर्ल्ड) के बीच प्रतियोगिता होगी.

Tuesday, September 12, 2023

वैश्विक-मंच पर भारत के आगमन का संदेश


सम्मेलन का समापन हो गया. अब कोई कार्यक्रम नहीं है, सिर्फ प्रतिक्रियाएं हैं. सम्मेलन के निष्कर्ष और निहितार्थ भी धीरे-धीरे समझ में आ रहे हैं. कुछ मेहमान अभी रुके हुए हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण हैं सऊदी अरब के शहज़ादे मोहम्मद बिन सलमान अब्दुलअज़ीज़ अल सऊद.

आज उनके साथ पीएम मोदी की द्विपक्षीय बातचीत हुई है. यह वार्ता दोनों देशों के दीर्घकालीन सहयोग का संकेत दे रही है. एक दिन का यह दौरा दोनों देशों के संबंधों को और मजबूत करेगा.

कुल मिलाकर वैश्विक मंच पर यह भारत के आगमन की घोषणा है. वैसे ही जैसे 2008 के ओलिंपिक खेलों के साथ चीन का वैश्विक मंच पर आगमन हुआ था. पर्यवेक्षकों की आमतौर पर प्रतिक्रिया है कि भारत में हुआ शिखर सम्मेलन और भारतीय अध्यक्षता कई मायनों में अभूतपूर्व रही है.

ऐसा मानने के दो कारण हैं. एक, आयोजन की भव्यता और दूसरे, ऐसे दौर में जब दुनिया में कड़वाहट बढ़ती जा रही है, सभी पक्षों को संतुष्ट कर पाने में सफल होना. भारत ने जी-20, जी-7, ईयू, रूस और चीन जैसे विभिन्न हितधारकों के बीच अधिकतम सहमतियाँ बनाने की कोशिश की है.