Friday, September 8, 2023

‘सुपर-पावर’ बनने के द्वार पर भारत


भारत-उदय-06

भारत की आर्थिक-प्रगति और वैश्विक-मंचों पर उसकी भूमिका को देखते हुए यह कहा जाने लगा है कि भारत आज नहीं तो कल सुपर-पावर होगा. कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि वह अगले दशक में और कुछ मानते हैं कि 2025 तक सुपर-पावर की श्रेणी में आ जाएगा. कुछ मानते हैं कि वह सुपर-पावर है.  

पहला सवाल यही होना चाहिए कि सुपर-पावर से आपका मतलब क्या है? सच यह है कि किसी भी देश का सम्मान केवल उसके उदात्त आदर्शों के कारण नहीं होता. उसके दो तत्व बेहद महत्वपूर्ण होते हैं. एक, राष्ट्रीय हितों की पूर्ति और दूसरा राष्ट्रीय-शक्ति. कमजोर देश अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा नहीं कर सकते. अंतरराष्ट्रीय राजनीति के प्रसिद्ध अध्येताओं में एक हैंस जोकिम मॉर्गेनथाऊ ने इसीलिए राष्ट्रीय शक्ति को यथार्थ से जोड़ने का सुझाव दिया था.

Wednesday, September 6, 2023

ठंडा क्यों पड़ा दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय-सहयोग?

 


भारत-उदय-05

भारतीय विदेश-नीति की सबसे बड़ी परीक्षा अपने पड़ोसी देशों के साथ अच्छे रिश्ते कायम करने में है. दुर्भाग्य से अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम कुछ इस प्रकार घूमा है कि दक्षिण एशिया की घड़ी की सूइयाँ अटकी रह गई हैं. भारत ने दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय एकीकरण की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए ‘नेबरहुड फर्स्ट नीति’ को अपनाया है. ‘नेबरहुड फर्स्ट’ का अर्थ अपने पड़ोसी देशों को प्राथमिकता देने से है.

इस उदार दृष्टिकोण के बावजूद दक्षिण एशिया दुनिया के उन क्षेत्रों में शामिल है, जहाँ क्षेत्रीय-सहयोग सबसे कम है. हम आसियान के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट कर सकते हैं, पर दक्षिण एशिया में उससे कहीं कमतर समझौता भी पाकिस्तान से नहीं कर सकते. 1985 में बना दक्षिण एशिया सहयोग संगठन (दक्षेस) आज ठंडा पड़ा है. इसकी सबसे बड़ी वजह है कश्मीर.

पश्चिम एशिया का बदलता परिदृश्य और भारत

 


भारत का उदय-04

दक्षिण अफ्रीका में हुए ब्रिक्स के शिखर सम्मेलन में छह नए देशों को सदस्यता देने का फैसला हुआ है. अब अगले साल अर्जेंटीना, इथोपिया, ईरान, मिस्र, सऊदी अरब और यूएई भी ब्रिक्स के सदस्य बन जाएंगे. इन छह में से चार मुस्लिम देश हैं, जिनके साथ भारत के परंपरागत रूप से बहुत अच्छे रिश्ते हैं. फिर भी हमें बदलती परिस्थितियों को समझने की जरूरत होगी.

ईरान और सऊदी अरब को ब्रिक्स में शामिल करने के पीछे चीन की भूमिका है, जिसने इन दोनों देशों के बिगड़े रिश्तों को ठीक किया है. चीन ने इस इलाके में अपनी गतिविधियाँ तेज की हैं. यूएई और सऊदी अरब तथा इस इलाके के दूसरे देशों की दिलचस्पी तेल की अर्थव्यवस्था से हटकर नए कारोबारों में पूँजी निवेश करने की है.

इन देशों के हमारे साथ भी रिश्ते इसीलिए अच्छे हैं. दुनिया में आ रहे तकनीकी, कारोबारी और भू-राजनीतिक बदलावों के साथ हमें भी कदम मिलाकर चलने की जरूरत है.

Tuesday, September 5, 2023

हिंद-प्रशांत और ‘एक्ट-ईस्ट पॉलिसी’ का केंद्र-बिंदु आसियान


 भारत-उदय-03

हाल के वर्षों में भारतीय विदेश-नीति में सबसे ज्यादा हिंद-प्रशांत शब्द का इस्तेमाल हुआ है. इसकी वजह को समझने की कोशिश करनी चाहिए. हिंद-प्रशांत विशाल भौगोलिक-क्षेत्र है, जिसका कुछ हिस्सा भारत के पश्चिम में है, पर ज्यादातर हिस्सा पूर्व में है. पूर्व में भारत की दिलचस्पी के दो कारण हैं. एक, कारोबार और दूसरा चीनी-विस्तार को रोकना.

भारत का आसियान के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट है. और अब हम अलग-अलग देशों के साथ आर्थिक सहयोग के समझौते भी कर रहे हैं. पर यह हमेशा याद रखना चाहिए कि आर्थिक शक्ति की रक्षा के लिए सामरिक शक्ति की ज़रूरत होती है.

भारत को किसी देश के खिलाफ यह शक्ति नहीं चाहिए. हमारे जीवन में दूसरे शत्रु भी हैं. सागर मार्गों पर डाकू विचरण करते हैं. आतंकवादी भी हैं. इसके अलावा कई तरह के आर्थिक माफिया और अपराधी हैं. इन्हीं बातों के संदर्भ में भारत को अपने राष्ट्रीय-हितों की रक्षा करने के लिए तैयार रहना है.

Monday, September 4, 2023

भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका और जी-20

 


भारत-उदय-02

दिल्ली में हो रहे शिखर सम्मेलन में रूस और चीन की भूमिकाओं को लेकर कई तरह के संदेह हैं, पर कुछ नई बातें भी हो रही हैं. भारत ने पहल करके अफ्रीकन यूनियन को जी-20 की पूर्ण-सदस्यता की पेशकश की है. इस प्रकार दुनिया की एक बड़ी आबादी को जी-20 के साथ जुड़कर अपने विकास का मौका मिलेगा. जी-20 की सदस्यता देश या संगठन की वैधानिकता और प्रभाव को व्यक्त करती है और उसे बढ़ाती भी है.

संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के दौरान दुनिया की सुरक्षा केवल सैनिक-संघर्षों को टालने तक की मनोकामना तक सीमित थी. पिछले सात दशकों में असुरक्षा का दायरा क्रमशः बड़ा होता गया है. आर्थिक-असुरक्षा या संकट इनमें सबसे बड़े हैं. इसके अलावा जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण ऐसा क्षेत्र है, जिसका विस्तार वैश्विक है. हाल के वर्षों में इंटरनेट से जुड़े हमलों और अपराधों के कारण सायबर-सुरक्षा एक और नया विषय सामने आया है.

जी-20 का गठन मूलतः आर्थिक-संकटों का सामना करते हुए हुआ है. पर उसका दायरा बढ़ रहा है. दुनिया के 19 देशों और यूरोपियन यूनियन का यह ग्रुप-20 दुनिया की 85 फीसदी अर्थव्यवस्था और करीब दो तिहाई आबादी का प्रतिनिधित्व करता है, पर  अभी तक इसमें अफ्रीका महाद्वीप से केवल दक्षिण अफ्रीका ही इस ग्रुप का सदस्य है.