गत 28 अगस्त को अपने चीन ने अपने राष्ट्रीय
मानचित्र का नया संस्करण प्रकाशित किया है,
जिसमें
उसने अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को अपना हिस्सा बताया है। इस नक्शे में समूचे
दक्षिण चीन सागर को भी चीनी सीमा के भीतर दिखाया गया है, जिसकी वजह से भारत के अलावा
फिलीपींस,
मलेशिया,
वियतनाम और ताइवान की सरकारों ने भी आपत्ति व्यक्त की है। उन्होंने कड़े
शब्दों में आरोप लगाया है कि चीन उनके इलाकों पर दावा कर रहा है। फिलीपींस ने 2013
में चीन के राष्ट्रीय मानचित्र के प्रकाशन का विरोध भी किया था,
जिसमें कलायान द्वीप समूह या स्प्राटली के कुछ हिस्सों को चीन की
राष्ट्रीय सीमा के भीतर रखा गया था। चीनी नक्शा अचानक जारी नहीं हो गया है। पिछले
कई वर्षों से जो बात मुँह-जुबानी कही जा रही थी, उसे अब उसने आधिकारिक रूप से जारी
कर दिया है। अपने आर्थिक-विकास की बिना पर चीन ने न केवल सामरिक-शक्ति का खुला
प्रदर्शन शुरू कर दिया है, बल्कि अपने नेतृत्व में एक नई विश्व-व्यवस्था बनाने की
घोषणा भी की है। इसके लिए उसने अमेरिका से सीधा टकराव मोल ले लिया है। यूक्रेन में
रूसी सैनिक-कार्रवाई के बाद से नए शीत-युद्ध की स्थितियाँ पैदा हो गई हैं। यह
टकराव ताइवान में सैनिक-टकराव के अंदेशों को जन्म दे रहा है। चीनी राष्ट्रपति शी
चिनफिंग ने इस हफ्ते दिल्ली में हो रहे जी-20 शिखर सम्मेलन से अलग रहने का इशारा
करके भी भारत पर दबाव डालने की कोशिश की है। पुतिन भी इस सम्मेलन में नहीं आएंगे। हालांकि
पुतिन के नहीं आने के पीछे भारत से जुड़ी वजह नहीं है, पर इतना स्पष्ट है कि भारत
उस पाले में नहीं है, जिस पाले में रूस और चीन हैं। हालांकि आज की परिस्थितियाँ
शीत-युद्ध के दौर जैसी नहीं है और आज का भारत पचास के दशक जैसा भारत भी नहीं है।
व्यापारिक-युद्ध
अमेरिका के साथ चीन का व्यापारिक-युद्ध भी चल
रहा है। इस दौरान चीनी अर्थव्यवस्था ने अपने आपको वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ
अच्छी तरह जोड़ लिया है, इसलिए उसका अलगाव आसान नहीं है। अमेरिका भी आज उतनी बड़ी
ताकत नहीं है कि चीन को दबाव में ले सके। इसके साथ चीन ने कई तरह के कार्यक्रम
शुरू किए हैं, जिनमें बॉर्डर रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) एक महत्वपूर्ण पहल है। उसने
अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और पश्चिम एशिया में अपने लिए दोस्त खोजने शुरू किए हैं। पाकिस्तान
में ग्वादर के बंदरगाह का विकास वह कर ही रहा है। कई तरह के विवादों के बावजूद
सीपैक पर उसका काम चल रहा है। इस बहाने पाक अधिकृत कश्मीर के कुछ हिस्सों में उसके
सैनिक भी तैनात हैं।
चीन की आक्रामक-नीतियों के कारण भारत का झुकाव धीरे-धीरे
पश्चिमी देशों की ओर हो रहा है। भारत ने वैश्विक सप्लाई चेन में महत्वपूर्ण भूमिका
निभाने का फैसला किया है, जिसका मतलब है कि चीन के साथ कारोबार में कमी आएगी। यह
काम बहुत जल्दी संभव नहीं है, पर अब जरूरी हो गया है। अमेरिका ने भी फंदा कसना
शुरू कर दिया है, जिसकी वजह से चीनी अर्थव्यवस्था में अचानक तेजी से गिरावट आ रही
है। चीन ने इस दबाव के जवाब में पश्चिम एशिया में सऊदी अरब, ईरान और यूएई को अपने
पाले में खींचने के प्रयास किए हैं, जिसमें उसे सफलता भी मिली है। दूसरी तरफ पिछले
कुछ महीनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जापान, ऑस्ट्रेलिया,
अमेरिका और फ्रांस की यात्राओं और एससीओ के शिखर सम्मेलन से भारतीय
विदेश-नीति की दिशा स्पष्ट होने लगी है। पश्चिमी देशों के साथ भारत अपने सामरिक और
आर्थिक रिश्तों को मजबूत कर रहा है।