आज़ादी के सपने-09
कई साल से देश में एक कहावत चल रही है, ‘सौ में नब्बे बेईमान, फिर भी मेरा भारत महान.’ यह बात ट्रकों
के पीछे लिखी नजर आती है. यह एक प्रकार का सामाजिक अंतर्मंथन है कि हम अपना मजाक
उड़ाना भी जानते हैं. दूसरी तरफ एक सचाई की स्वीकृति भी थी.
हताश होकर हम अपना मजाक उड़ाते हैं. पर हम
विचलित हैं, हारे नहीं हैं. सच यह है कि भारत जैसे देश को
बदलने और एक नई व्यवस्था को कायम करने के लिए 76 साल काफी नहीं होते. खासतौर से तब
जब हमें ऐसा देश मिला हो, जो औपनिवेशिक दौर में बहुत कुछ खो चुका
हो.
मदर इंडिया
फिल्म ‘मदर इंडिया’ की रिलीज के कई दशक बाद एक
टीवी चैनल के एंकर इस फिल्म के एक सीन का वर्णन कर रहे थे, जिसमें
फिल्म की हीरोइन राधा (नर्गिस) को अपने कंधे पर रखकर खेत में हल चलाना पड़ता है.
चैनल का कहना था कि हमारे संवाददाता ने
महाराष्ट्र के सतारा जिले के जावली तालुक के भोगावाली गाँव में खेत में बैल की जगह
महिलाओं को ही जुते हुए देखा तो उन्होंने उस सच को कैमरे के जरिए सामने रखा,
जिसे देखकर सरकारें आँख मूँद लेना बेहतर समझती हैं.
1957 में रिलीज़ हुई महबूब खान की ‘मदर इंडिया’
उन गिनी-चुनी फिल्मों में से एक है, जो आज भी हमारे
दिलो-दिमाग पर छाई हैं. स्वतंत्रता के ठीक दस साल बाद बनी इस फिल्म की कहानी के
परिवेश और पृष्ठभूमि में काफी बदलाव आ चुका है. यह फिल्म बदहाली की नहीं, बदहाली
से लड़ने की कहानी है.
भारतीय गाँवों की तस्वीर काफी बदल चुकी है या बदल रही है, फिर भी यह फिल्म आज भी पसंद की जाती है. टीवी चैनलों को ट्यून करें, तो आज भी यह कहीं दिखाई जा रही होगी. मुद्रास्फीति की दर के साथ हिसाब लगाया जाए तो ‘मदर इंडिया’ देश की आजतक की सबसे बड़ी बॉक्स ऑफिस हिट फिल्म साबित होगी.