Wednesday, July 12, 2023

डॉ अल ईसा लाए हैं शांति और इंसान-परस्ती का संदेश


भारतीय संस्कृति, सभ्यता और विरासत की तारीफ करते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने मंगलवार 11 जुलाई को दिल्ली में कहा कि भारत एक समावेशी लोकतंत्र है और सभी नागरिकों को जगह देता है. यहाँ उन संस्कृतियों और धर्मों का मिश्रण रहा है, जो सदियों से सद्भाव से रह रही हैं. उन्होंने यह भी  कहा कि भारत में कोई भी धर्म संकट में नहीं है.

डोभाल ने कहा कि देश में धार्मिक समूहों के बीच इस्लाम एक अद्वितीय और महत्वपूर्ण गौरव का स्थान रखता है. उन्होंने यह टिप्पणी इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में हुए एक कार्यक्रम के दौरान की, जिसे मुस्लिम वर्ल्ड लीग के महासचिव शेख डॉ. मोहम्मद बिन अब्दुलकरीम अल-ईसा ने भी संबोधित किया.

शेख डॉ. अल-इसा पूर्व में सउदी अरब के न्याय मंत्री रहे हैं और उनकी गिनती प्रगतिशील इस्लामिक विद्वानों में होती है. मंगलवार को उन्होंने पीएम नरेन्द्र मोदी से भी मुलाकात की. हाल में उदारवादी विचारधारा के कई इस्लामिक विद्वानों ने भारत की यात्रा की है. मई, 2023 में मिस्र की सबसे बड़ी मस्जिद के मुफ्ती इब्राहिम अब्दल करीम आलम भारत आए थे।

वैश्विक-इस्लाम की मानवीय और उदारवादी छवि बनाने की दिशा में काम कर रही मुस्लिम वर्ल्ड लीग के महासचिव डॉ मुहम्मद बिन अब्दुल करीम अल ईसा का भारत दौरा बहुत महत्वपूर्ण समय पर हो रहा है. दुनिया में मुसलमानों की दूसरी या तीसरी सबसे बड़ी आबादी भारत में निवास करती है, उसके लिए और साथ ही दूसरे धर्मावलंबियों के लिए वे महत्वपूर्ण संदेश लेकर भारत आए हैं.

इस्लाम को लेकर दुनिया में बहुत सी भ्रांतियां हैं, जिन्हें दूर करना भी मुस्लिम वर्ल्ड लीग और डॉ ईसा का एक उद्देश्य है. इस संस्था के महासचिव बनने के पहले डॉ ईसा सउदी अरब के न्याय मंत्री के रूप में कार्य कर चुके हैं. उन्होंने कई प्रकार के सुधार-कार्यों को पूरा किया है. इनमें न्यायिक-सुधार, पारिवारिक मामले, युवा और स्त्रियों तथा मानवाधिकार से जुड़े मसले शामिल हैं.

Tuesday, July 11, 2023

महाराष्ट्र में ‘पवार-राजनीति’ की विसंगतियाँ


महाराष्ट्र में चल रहे घटनाक्रम का असर राष्ट्रीय-राजनीति और खासतौर से 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी पर भी पड़ेगा। लोकसभा सीटों के लिहाज से उत्तर प्रदेश के बाद देश में महाराष्ट्र दूसरा सबसे बड़ा राज्य है, जहाँ से 48 सीटें हैं। इस घटनाक्रम का गहरा असर विरोधी-एकता के प्रयासों पर भी पड़ेगा। शरद पवार विरोधी-एकता की महत्वपूर्ण कड़ी हैं। हालांकि अभी स्थिति पूरी तरह स्पष्ट नहीं है, पर लगता इस घटना से महा विकास अघाड़ी की राजनीति पर भी सवालिया निशान लग गए हैं।

फिलहाल एनसीपी की इस बगावत की तार्किक-परिणति का इंतज़ार करना होगा। क्या अजित पवार दल-बदल कानून की कसौटी पर खरे उतरते हुए पार्टी के विभाजन को साबित कर पाएंगे? क्या उन्हें 36 या उससे ज्यादा विधायकों का समर्थन प्राप्त है?  क्या वे एनसीपी के नाम और चुनाव-चिह्न को हासिल करने में सफल होंगे? कुछ पर्यवेक्षक मानते हैं कि यह शरद पवार का ही डबल गेम है। प्रकटतः उनकी राजनीतिक संलग्नता कहीं भी हो, वे बीजेपी के संपर्क में हमेशा रहे हैं। बीजेपी ने उनकी मदद से ही राज्य में शिवसेना की हैसियत कमज़ोर करने में सफलता प्राप्त की थी। इस समय उनकी समस्या अपनी बेटी को उत्तराधिकारी बनाने के कारण हुई है।

Sunday, July 9, 2023

महाराष्ट्र ने बदला राष्ट्रीय-परिदृश्य


राष्ट्रीय-राजनीति की दृष्टि से देश में उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र सबसे महत्वपूर्ण राज्य है, जहाँ से लोकसभा की 48 सीटें हैं। वहाँ हुआ राजनीतिक-परिवर्तन राष्ट्रीय-राजनीति को दूर तक प्रभावित करेगा। इस घटनाक्रम का गहरा असर विरोधी-एकता के प्रयासों पर भी पड़ेगा। हालांकि अभी स्थिति पूरी तरह स्पष्ट नहीं है, पर लगता है कि अजित पवार ने अपने चाचा शरद पवार को उन्हीं के तौर-तरीकों से मात दे दी है। इस घटना से महा विकास अघाड़ी की राजनीति पर सवालिया निशान लग गए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के अनुसार 2019 में शिवसेना ने बीजेपी की पीठ में छुरा घोंपने का जो काम किया था, उसका ‘बदला’ पूरा हो गया है। अजित पवार की बगावत से महाराष्ट्र के महा विकास अघाड़ी गठबंधन की दरारें उजागर होने के साथ ही 2024 के चुनाव के लिए राष्ट्रीय स्तर पर विरोधी-महागठबंधन की तैयारियों को धक्का लगा है।

भविष्य की राजनीति

फिलहाल एनसीपी की इस बगावत की तार्किक-परिणति का इंतज़ार करना होगा। क्या अजित पवार दल-बदल कानून की कसौटी पर खरे उतरते हुए पार्टी के विभाजन को साबित कर पाएंगे? क्या वे एनसीपी के नाम और चुनाव-चिह्न को हासिल करने में सफल होंगे? ऐसा हुआ, तो चाणक्य के रूप में प्रसिद्ध शरद पवार की यह भारी पराजय होगी। कुछ पर्यवेक्षक मानते हैं कि यह शरद पवार का ही डबल गेम है। उनकी राजनीतिक संलग्नता कहीं भी रही हो, वे बीजेपी के संपर्क में हमेशा रहे हैं। बीजेपी ने उनकी मदद से ही राज्य में शिवसेना की हैसियत कमज़ोर करने में सफलता प्राप्त की थी। इस समय उनकी पराजय अपनी बेटी को उत्तराधिकारी बनाने के कारण हुई है। एमवीए की विसंगतियों की पहली झलक पिछले साल शिवसेना में हुए विभाजन के रूप में प्रकट हुई। दूसरी झलक अब दिखाई पड़ी है। ताजा बदलाव का बीजेपी और एकनाथ शिंदे की शिवसेना पर भी असर होगा। तीनों पार्टियाँ इस अंतर्विरोध को किस प्रकार सुलझाएंगी, यह देखना होगा।

बगावत क्यों हुई?

अजित पवार, प्रफुल्ल पटेल और छगन भुजबल जैसे बड़े नेताओं की बग़ावत ने उस पार्टी को विभाजित कर दिया है, जिसे शरद पवार ने खड़ा किया था। इसके दो कारण समझ में आते हैं। एक, दीर्घकालीन राजनीतिक हित और दूसरे व्यक्तिगत स्वार्थ। यह विभाजन केवल पार्टी का ही नहीं है, बल्कि पवार परिवार का भी है। शरद पवार ने अपनी विरासत भतीजे को सौंपने के बजाय अपनी बेटी को सौंपने का जो फैसला किया, उसकी यह प्रतिक्रिया है। पार्टी के कार्यकर्ता इस फैसले से आश्वस्त नहीं थे। वे सत्ता के करीब रहना चाहते हैं, ताकि उनके काम होते रहें। अजित पवार, प्रफुल्ल पटेल और अन्य नेताओं के खिलाफ चल रही ईडी वगैरह की कार्रवाई को भी एक कारण माना जा रहा है। प्रफुल्ल पटेल ने एक राष्ट्रीय दैनिक को बताया कि बगावत के दो प्रमुख कारण रहे। एक, शरद पवार स्वयं अतीत में बीजेपी की निकटता के हामी रहे हैं.. और दूसरे उनकी बेटी अब उनके सारे निर्णयों की केंद्र बन गई हैं और वे अपने फैसले को सब पर थोप रहे हैं। ईडी की कार्रवाई के बारे में उन्होंने कहा, एजेंसियों को मेरे खिलाफ कुछ मिला नहीं है। यों भी ईडी के मामलों से सामान्य कार्यकर्ता प्रभावित नहीं होता। उनकी दिलचस्पी तो अपने काम कराने में होती है।

Wednesday, July 5, 2023

विसंगतियों की शिकार विरोधी-एकता

राष्ट्रीय-राजनीति का परिदृश्य अचानक 2019 के लोकसभा-चुनाव के एक साल पहले जैसा हो गया है। मई, 2018 में कर्नाटक विधानसभा के चुनाव परिणामों की शुरुआती गहमागहमी के बाद कांग्रेस के समर्थन से एचडी कुमारस्वामी की सरकार बनी, जिसके शपथ-ग्रहण समारोह में विरोधी दलों के नेताओं ने हाथ से हाथ मिलाकर एकता का प्रदर्शन किया। एकता की बातें चुनाव के पहले तक चलती रहीं। 2014 के चुनाव के पहले भी ऐसा ही हुआ था। और अब गत 23 जून को पटना में हुई विरोधी-दलों की बैठक के बारे में कहा जा रहा है कि इससे भारतीय राजनीति का रूपांतरण हो जाएगा। (यह लेख पाञ्चजन्य में प्रकाशित होने के बाद महाराष्ट्र में राकांपा के अजित पवार एनडीए सरकार में शामिल हो गए हैं। इस परिघटना के दौरान एनसीपी के कुछ अंतर्विरोध भी सामने आए हैं। मसलन माना जा रहा है कि एनसीपी के ज्यादातर विधायक बीजेपी के साथ जाना चाहते थे और यह बात शरद पवार जानते थे। इतना ही नहीं शरद पवार ने भी 2019 के चुनाव के बाद बीजेपी के साथ सरकार बनाने का समर्थन किया था। महाराष्ट्र की इस गतिविधि के बाद अब कहा जा रहा है कि जदयू में भी विभाजन संभव है।)

बैठक के आयोजक नीतीश कुमार को भरोसा है कि वे बीजेपी को 100 सीटों के भीतर सीमित कर सकते हैं। केजरीवाल-प्रसंग पर ध्यान न दें, तो इस बैठक में शामिल ज्यादातर नेता इस बात से खुश थे कि शुरुआत अच्छी है। संभव है कि बंद कमरे में हुई बातचीत में गठजोड़ की विसंगतियों पर चर्चा हुई हो, पर बैठक के बाद हुई प्रेस-वार्ता में सवाल-जवाब नहीं हुए। तस्वीरें खिंचाने और बयान जारी करने के अलावा लिट्टी-चोखा, गुलाब जामुन, राहुल गांधी की दाढ़ी और शादी जैसे विषयों पर बातें हुईं। इसलिए अब 17-18 जुलाई को बेंगलुरु में होने वाली अगली बैठक का इंतजार करना होगा। 

केंद्र में या परिधि में?

पटना और बेंगलुरु, दोनों बैठकों का उद्देश्य एक है, पर इरादों के अंतर को समझने की जरूरत है। पटना-बैठक नीतीश कुमार की पहल पर हुई थी, पर बेंगलुरु का आयोजन कांग्रेसी होगा। दोनों बैठकों का निहितार्थ एक है। फैसला कांग्रेस को करना है कि वह गठबंधन के केंद्र में रहेगी या परिधि में। इस एकता में शामिल ज्यादातर पार्टियाँ कांग्रेस की कीमत पर आगे बढ़ी हैं, या कांग्रेस से निकली हैं। जैसे एनसीपी और तृणमूल। कांग्रेस का पुनरोदय इनमें से कुछ दलों को कमजोर करेगा। फिर यह किस एकता की बात है?

देश में दो राष्ट्रीय गठबंधन हैं। एक, एनडीए और दूसरा यूपीए। प्रश्न है, यूपीए यदि विरोधी-गठबंधन है, तो उसका ही विस्तार क्यों नहीं करें? गठबंधन को नया रूप देने या नाम बदलने का मतलब है, कांग्रेस के वर्चस्व को अस्वीकार करना। विरोधी दलों राय है कि लोकसभा चुनाव में अधिकाधिक संभव स्थानों पर बीजेपी के प्रत्याशियों के खिलाफ एक प्रत्याशी उतारा जाए। इसे लेकर उत्साहित होने के बावजूद ये दल जानते हैं कि इसके साथ कुछ जटिलताएं जुड़ी हैं। बड़ी संख्या में ऐसे चुनाव-क्षेत्र हैं, जहाँ विरोधी-दलों के बीच प्रतिस्पर्धा है। कुछ समय पहले खबरें थीं कि राहुल गांधी का सुझाव है कि सबसे पहले दिल्ली से बाहर तीन-चार दिन के लिए विरोधी दलों का चिंतन-शिविर लगना चाहिए, जिसमें खुलकर बातचीत हो। अनुमान लगाया जा सकता है कि विरोधी-एकता अभियान में कांग्रेस अपनी केंद्रीय-भूमिका पर ज़ोर देगी।

रूस-चीन प्रवर्त्तित नई ‘विश्व-व्यवस्था’ के संकेत


भारत की अध्यक्षता में मंगलवार 3 जुलाई को हुआ शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइज़ेशन (एससीओ)  का वर्चुअल शिखर सम्मेलन रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की उपस्थिति के कारण सफल रहा. इस सम्मेलन के दौरान रूस और चीन की नई विश्व-व्यवस्था की अवधारणा के संकेत भी मिले, जिसके समांतर भारत भी अपनी विश्व-व्यवस्था की परिकल्पना कर रहा है. इस सम्मेलन के दौरान भारत ने चीन के 'बेल्ट एंड रोड' कार्यक्रम को स्वीकार करने से इंकार भी किया है.  

इस सम्मेलन में इन तीनों ने हर प्रकार के आतंकवाद की निंदा की. भारत के पीएम मोदी ने भी इन नेताओं की मौजूदगी में चरमपंथी गतिविधियों को लेकर चिंता जताई. इस सम्मेलन में ईरान ने नए सदस्य के रूप में इस संगठन में प्रवेश किया.

दिल्ली घोषणा

बैठक के बाद नई दिल्ली घोषणा को स्वीकार किया गया. इसके अनुसार सदस्य देश आतंकवादी, अलगाववादी और चरमपंथी संगठनों की एकीकृत सूची बनाने के लिए सामान्य सिद्धांत और दृष्टिकोण विकसित करने का प्रयास करेंगे. इन चरमपंथी संगठनों की गतिविधियां शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों में प्रतिबंधित हैं. सदस्‍य देशों ने सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों के सैन्यीकरण का विरोध किया. इसके अलावा मादक पदार्थों के बढ़ते उत्पादन, तस्करी और दुरुपयोग तथा मादक पदार्थों की तस्करी से प्राप्त धन का आतंकवाद के वित्तपोषण के रूप में इस्‍तेमाल करने के खतरों के बारे में चिंता व्यक्त की गई.

इस बैठक के दौरान पीएम मोदी ने मूल रूप से चरमपंथ, खाद्य संकट और ईंधन संकट पर अपनी बात रखी. उन्होंने कहा, आतंकवाद क्षेत्रीय एवं वैश्विक शांति के लिए प्रमुख ख़तरा बना हुआ है. इस चुनौती से निपटने के लिए निर्णायक कार्रवाई आवश्यक है. कुछ देश, क्रॉस बॉर्डर टेररिज्म को अपनी नीतियों के अंग के रूप में इस्तेमाल करते हैं. वे आतंकवादियों को पनाह देते हैं. एससीओ को ऐसे देशों की निंदा करने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए. ऐसे गंभीर विषय पर दोहरे मापदंड के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए.

प्रधानमंत्री ने एससीओ की भाषा सम्बन्धी बाधाओं को हटाने के लिए भारत के एआई आधारित लैंग्वेज प्लेटफॉर्म 'भाषिणी' को सभी के साथ साझा करने की पेशकश भी की. समावेशी प्रगति के लिए डिजिटल टेक्नोलॉजी का यह एक उदाहरण बन सकता है. किसी भी क्षेत्र की प्रगति के लिए मज़बूत कनेक्टिविटी का होना बहुत ही आवश्यक है. बेहतर कनेक्टिविटी आपसी व्यापार ही नहीं, आपसी विश्वास भी बढ़ाती है. ईरान की एससीओ सदस्यता के बाद हम चाबहार पोर्ट के बेहतर उपयोग के लिए काम कर सकते हैं. मध्य एशिया के चारों ओर से भूमि से घिरे देशों के लिए इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर इंडियन ओशन तक पहुँचने का, एक सुरक्षित और सुगम रास्ता बन सकता है. हमें इनकी पूरी संभावनाएं को फायदा उठाना चाहिए.