भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की
अमेरिका-यात्रा को कम से कम तीन सतह पर देखने समझने की जरूरत है. एक सामरिक-तकनीक
सहयोग. दूसरे उन नाज़ुक राजनीतिक-नैतिक सवालों के लिहाज
से, जो भारत में मोदी-सरकार के आने के बाद से पूछे
जा रहे हैं. तीसरे वैश्विक-मंच पर भारत की भूमिका से जुड़े हैं. इसमें
दो राय नहीं कि भारतीय शासनाध्यक्षों के अमेरिका-दौरों में इसे सफलतम मान सकते
हैं.
प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी संसद के संयुक्त
अधिवेशन में कहा, भारत-अमेरिका सहयोग का यह नया सूर्योदय है, भारत बढ़ेगा, तो
दुनिया बढ़ेगी. यह एक नज़रिया है, जिसके अनेक अर्थ हैं. भारत में आया बदलाव तमाम
विकासशील देशों में बदलाव का वाहक भी बनेगा.
राजनीति में आमराय
अमेरिकी राजनीति में भी भारत के साथ रिश्तों को
बेहतर बनाने के पक्ष में काफी हद तक आमराय देखने को मिली है. वहाँ की राजनीति में
भारत और खासतौर से नरेंद्र मोदी के विरोधियों की संख्या काफी बड़ी है. उनके कटु
आलोचक भी इसबार अपेक्षाकृत खामोश थे. कुछ सांसदों ने उनके भाषण का बहिष्कार किया
और एक पत्र भी जारी किया, पर उसकी भाषा काफी संयमित थी.
'द वाशिंगटन पोस्ट' ने
लिखा, अमेरिकी सांसदों ने सदन में पीएम मोदी का गर्मजोशी से स्वागत किया और खड़े
होकर उनका जोरदार अभिवादन किया. जब वे तो दीर्घा में कुछ लोग ‘मोदी-मोदी’ के नारे लगाए. कई सांसद उनसे हाथ मिलाने के लिए कतार
में खड़े थे.
अखबार ने यह भी लिखा कि मोदी की इस
चमकदार-यात्रा का शुक्रवार को इस धारणा के साथ समापन हुआ कि जब अमेरिका के
सामरिक-हितों की बात होती है, तो वे मानवाधिकार और लोकतांत्रिक मूल्यों पर मतभेदों
को न्यूनतम स्तर तक लाने के तरीके खोज लेते हैं.
वॉशिंगटन पोस्ट मोदी सरकार के सबसे कटु आलोचकों में शामिल हैं, पर इस यात्रा के महत्व को उसने भी स्वीकार किया है. मोदी के दूसरे कटु आलोचक 'द न्यूयॉर्क टाइम्स' ने अपने पहले पेज पर अमेरिकी कांग्रेस में 'नमस्ते' का अभिवादन करते हुए नरेंद्र मोदी फोटो छापी है. ऑनलाइन अखबार हफपोस्ट ने लिखा कि नरेंद्र मोदी की अमेरिकी यात्रा की आलोचना करने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं.