Wednesday, May 3, 2023

वैश्विक-राजनीति पर असर डालेंगे तुर्की के चुनाव-परिणाम


इस महीने 14 मई को तुर्की में होने वाले संसदीय और राष्ट्रपति पद के चुनाव पर दुनिया की निगाहें हैं. तुर्की की आंतरिक स्थिति और विदेश-नीति दोनों लिहाज से ये चुनाव महत्वपूर्ण होंगे. सबसे बड़ा सवाल राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगान के भविष्य को लेकर है. चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों से लगता है कि वे हार भी सकते हैं. ऐसे में संभव है कि एर्दोगान सत्ता के हस्तांतरण में आनाकानी करें. 

एर्दोगान की हार या जीत से तुर्की की आंतरिक और विदेश-नीति दोनों प्रभावित होंगी. अमेरिका, यूरोप, पश्चिम एशिया के देशों, यहाँ तक कि भारत के साथ रिश्तों पर भी इनका असर होगा. सत्ता परिवर्तन हुआ, तो बदलाव भी होंगे, पर उनमें समय लगेगा. मसलन यदि देश संसदीय-प्रणाली की ओर वापस ले जाने का प्रयास किया जाएगा, तो उसे पूरा होने में समय लगेगा. इस लिहाज से केवल राष्ट्रपति पद के चुनाव का ही नहीं साथ में हो रहे संसदीय चुनावों का भी महत्व है.

एर्दोगान-विरोधी मोर्चा

देश के छह विरोधी दलों ने संयुक्त रूप से चुनाव लड़ने का फैसला किया है और राष्ट्रपति पद के लिए एर्दोगान के खिलाफ पीपुल्स रिपब्लिकन पार्टी (सीएचपी) के कमाल किलिचदारोग्लू को अपना प्रत्याशी बनाया है. उन्हें कुर्द-पार्टी एचडीपी का भी समर्थन हासिल है. आरोप है कि एर्दोगान के नेतृत्व में तुर्की की व्यवस्था निरंकुश होती जा रही है. देश में जबर्दस्त वैचारिक ध्रुवीकरण है. इस प्रवृत्ति को विपक्ष रोकना चाहता है.

एर्दोगान विरोधी मोर्चे की घोषणा है कि यदि हम जीते तो यूरोपियन यूनियन की सदस्यता हासिल करने की कोशिश करेंगे और अमेरिका का जो भरोसा खोया है, उसे वापस लाएंगे. मुद्रास्फीति की दर अगले दो साल में दस फीसदी के अंदर लाने की कोशिश करेंगे और सीरिया से आए करीब 36 लाख शरणार्थियों को उनकी सहमति से वापस भेजेंगे. 

तुर्की नेटो का सदस्य है, पर यूक्रेन के युद्ध के कारण उसके अंतर्विरोध हाल में उभरे हैं. हाल में उसकी नीतियों में कुछ बदलाव भी आया है. उसने नेटो में फिनलैंड की सदस्यता को रोक रखा था, जिसकी स्वीकृति अब दे दी. नेटो में नई सदस्यता के लिए सर्वानुमति जरूरी होती है.

Sunday, April 30, 2023

एससीओ में भारत की चुनौतियाँ


वैश्विक राजनीति और भारतीय विदेश-नीति की दिशा को समझने के लिए इस साल भारत में हो रही जी-20 और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठकों पर ध्यान देना होगा। पिछले दिनों भारत में जी-20 के विदेशमंत्रियों की बैठक में वैश्विक अंतर्विरोध खुलकर सामने आए थे, वैसा ही इस शुक्रवार को नई दिल्ली में एससीओ रक्षामंत्रियों की बैठक में हुआ। विदेश-नीति के लिहाज से भारत और चीन के रक्षामंत्रियों की रूबरू बैठक से यह भी स्पष्ट हुआ कि दोनों देशों के रिश्तों में जमी बर्फ जल्दी पिघलने के आसार नहीं हैं। ऑप्टिक्स के लिहाज से यह बात महत्वपूर्ण थी कि रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने चीनी रक्षामंत्री ली शांगफू से सम्मेलन में हाथ नहीं मिलाया। वैश्विक-राजनीति की दृष्टि से पिछले साल समरकंद में हुए एससीओ के शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ रूसी राष्ट्रपति पुतिन की आमने-सामने की बैठक ने दुनिया के मीडिया ने ध्यान खींचा था और उम्मीद बँधी थी कि यूक्रेन की लड़ाई को रोकने में मदद मिलेगी। मोदी ने प्रकारांतर से पुतिन से कहा था कि आज लड़ाइयों का ज़माना नहीं है। यूक्रेन की लड़ाई बंद होनी चाहिए। पुतिन ने जवाब दिया कि मैं भारत की चिंता को समझता हूँ और लड़ाई जल्द से जल्द खत्म करने का प्रयास करूँगा। पर तब से अब तक दुनिया काफी आगे जा चुकी है और रिश्तों में लगातार तल्खी बढ़ती जा रही है। रक्षामंत्रियों की बैठक के बाद आगामी 4-5 मई को विदेशमंत्रियों की बैठक होने वाली है, उसमें भी किसी बड़े नाटकीय मोड़ की आशा नहीं है, सिवाय इसके कि उसमें पाकिस्तान के विदेशमंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी आने वाले हैं।

Wednesday, April 26, 2023

अमेरिकी डॉलर का घटता प्रभाव


 हाल में भारत और बांग्लादेश ने आपसी व्यापार रुपये में करने का फैसला किया है. बांग्लादेश 19 वाँ ऐसा देश है, जिसके साथ भारत का रुपये या बांग्लादेशी टका में व्यापार होगा. पिछले साल यूक्रेन-युद्ध शुरू होने के बाद अमेरिका और यूरोपियन यूनियन ने जबसे रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं, अनेक देश डॉलर के बजाय अपनी मुद्राओं में सीधे कारोबार करने का फैसला कर रहे हैं. इसे डीडॉलराइज़ेशनकी प्रक्रिया कहा जा रहा है. 

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से डॉलर ने वस्तुतः वैश्विक मुद्रा का स्थान ले लिया है, पर अब लगता है कि अब डॉलर से हटने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. इस प्रक्रिया की गति बहुत तेज नहीं है, पर संकेत मिलने लगे है. इसमें खासतौर से रूस और चीन की इसे तेज करने में अग्रणी भूमिका है. क्या यह अमेरिका के घटते प्रभाव की सूचक है, या केवल एक छोटे से दौर की मामूली घटना है? इसका जवाब देना मुश्किल है, पर इतना कहा जा सकता है कि यह इतनी छोटी परिघटना नहीं है कि जिसकी अनदेखी की जाए.

रूस, चीन और ईरान

ईरान ने चीन और रूस के साथ डॉलर में कारोबार बंद कर दिया है. सऊदी अरब ने घोषणा की है कि हम पेट्रोडॉलर के माध्यम से कारोबार बंद कर रहे हैं और उसके स्थान पर पेट्रोयुआन स्वीकार कर रहे हैं. हाल में फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा कि यूरोप को भी अमेरिकी डॉलर का सहारा लेना बंद करना चाहिए.

Sunday, April 23, 2023

जातीय-जनगणना: प्रतिगामी या प्रगतिगामी


भारतीय जनता पार्टी के हिंदुत्व के जवाब में विरोधी दलों ने सामाजिक न्याय के लिए एकताबद्ध होने का निश्चय किया है। गत 3 अप्रेल को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने विरोधी दलों की बैठक इसी इरादे से बुलाई थी। हाल में कोलार की एक रैली में राहुल गांधी ने नारा लगाया,  ‘जितनी आबादी, उतना हक। वस्तुतः यह बसपा के संस्थापक कांशी राम के नारे का ही एक रूप है, जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी। राहुल गांधी ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जातीय आधार पर आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तक रखी है, उसे खत्म करना चाहिए। इसके पहले रायपुर में हुए पार्टी महाधिवेशन में इस आशय का एक प्रस्ताव पास भी किया गया है। ज़ाहिर है कि पार्टी ने मंडल-राजनीति का वरण करके आगे बढ़ने का निश्चय किया है। पार्टी की जिन दलों के साथ गठबंधन की बातें चल रही हैं, उनमें से ज्यादातर मंडल-समर्थक हैं। इन पार्टियों की माँग है कि देश में जाति-आधारित जनगणना होनी चाहिए। बिहार सरकार ने इस मामले में पहल की है, जहाँ इन दिनों जातीय आधार पर जनगणना चल रही है, जो मई में पूरी होगी। इसके अलावा 2011 में हुए सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्टों को सार्वजनिक करने की माँग भी की गई है। केंद्र सरकार इन दोनों बातों के लिए तैयार नहीं है। जुलाई 2022 में केंद्र सरकार ने संसद में बताया कि 2011 में की गई सामाजिक आर्थिक जातिगत जनगणना में हासिल किए गए जातिगत आंकड़ों को जारी करने की कोई योजना नहीं है। 2021 में सुप्रीम कोर्ट में दायर एक शपथ पत्र में केंद्र ने कहा, 'साल 2011 में जो सामाजिक आर्थिक और जातिगत जनगणना करवाई गई, उसमें कई कमियां थीं। इससे जो आंकड़े हासिल हुए थे वे गलतियों से भरे और अनुपयोगी थे।'

सामाजिक अंतर्विरोध

विशेषज्ञ मानते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना देर सवेर होनी ही है। इस सवाल को राजनीति से अलग रखकर देखना भी मुश्किल है। राज्य सरकारें कई तरह की अपेक्षाओं के साथ जातिगत जनगणना करा रही हैं। जब उनकी राजनीतिक अपेक्षाएं सही नहीं उतरती हैं, तब जनगणना से मिले आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया जाता है। बिहार से पहले कर्नाटक में भी जातिगत जनगणना हुई थी, पर उसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए। इसी तरह की एक जनगणना नब्बे के दशक में उत्तर प्रदेश में भी हो चुकी है। दुनिया के तमाम देश ‘एफर्मेटिव एक्शन’ के महत्व को स्वीकार करते हैं। ये कार्यक्रम केवल शिक्षा से ही जुड़े नहीं हैं। इनमें किफायती आवास, स्वास्थ्य और कारोबार से जुड़े कार्यक्रम शामिल हैं। अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, मलेशिया, ब्राजील आदि अनेक देशों में ऐसे सकारात्मक कार्यक्रम चल रहे हैं। इनके अच्छे परिणाम भी आए हैं। सामाजिक शोध बताते हैं कि अमेरिका में गोरों की तुलना में कम अंक और ग्रेड लेकर विशिष्ट संस्थानों में प्रवेश करने वाले अश्वेतों ने कालांतर में अपने गोरे सहपाठियों की तुलना में बेहतर स्थान पाया। भारत के संदर्भ में अर्थशास्त्री विक्टोरिया नैटकोवस्का, अमर्त्य लाहिड़ी और सौरभ बी पॉल ने 1983 से 2005 तक पाँच राष्ट्रीय सैंपल सर्वे के आँकड़ों विश्लेषण से साबित किया कि अनुसूचित जातियों, जनजातियों के प्रदर्शन में सुधार हुआ है।

Wednesday, April 19, 2023

विश्वमंच पर ‘शोकेस’ होगा कश्मीर

 


देस-परदेश

श्रीनगर और लेह में जी-20 कार्यक्रमों के आयोजन पर पाकिस्तान की आपत्ति को खारिज करते हुए भारत ने कहा है कि इन दोनों जगह जी-20 कार्यक्रमों का आयोजन स्वाभाविक है, क्योंकि ये भारत के अभिन्न अंग हैं. दूसरी तरफ पाकिस्तान और चीन इन आयोजनों का विरोध कर रहे हैं. कश्मीर को लेकर इन दोनों देशों की वैश्विक-डिप्लोमेसी की धार का पता भी इस दौरान लगेगा. जी-20 देश खामोश हैं और ओआईसी ने भी अभी तक कुछ कहा नहीं है.   

कश्मीर और लद्दाख की इन बैठकों के पहले एक बैठक अरुणाचल की राजधानी ईटानगर में 26 मार्च को हो चुकी है. अब श्रीनगर में 22 से 24 मई तक जी-20 टूरिज्म वर्किंग ग्रुप की बैठक होने वाली है. उसके पहले 26 से 28 अप्रेल तक लेह में यूथ इंगेजमेंट समूह की बैठक होगी. कुल मिलाकर देश के 55 केंद्रों में 215 कार्यक्रम होंगे, पर सारी निगाहें श्रीनगर और लेह पर लगी हैं.  

अटूट अंग

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने पिछले गुरुवार अपने मंत्रालय की ब्रीफिंग के दौरान एक सवाल के जवाब में कहा, जी-20 कार्यक्रम पूरे देश में हो रहे हैं. हर क्षेत्र में इनका आयोजन किया जा रहा है. जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में इनका आयोजन बहुत स्वाभाविक है, क्योंकि वे भारत के अभिन्न अंग हैं. अरुणाचल की बैठक को लेकर चीन की आपत्ति पर उन्होंने कहा कि अरुणाचल भारत का अटूट अंग था, है और रहेगा.

पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने मंगलवार 11 अप्रेल को इन बैठकों के आयोजन पर तीव्र आक्रोश व्यक्त किया था. उन्होंने भारत के इस कदम को गैर-जिम्मेदार बताया और कहा था कि इस तरह से भारत, संरा प्रस्तावों की अनदेखी करते हुए जम्मू-कश्मीर पर अपने अवैध कब्जे को वैध बनाने का प्रयास कर रहा है.

चीन को जवाब

गृहमंत्री अमित शाह सोमवार 10 अप्रैल को दो दिन के दौरे पर अरुणाचल पहुंचे और वहाँ एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, भारत सुई की नोक पर भी अतिक्रमण स्वीकार नहीं करेगा. गृहमंत्री के दौरे को अपनी संप्रभुता का उल्लंघन बताते हुए चीन ने धमकी दी थी कि यह दौरा शांति के लिए खतरा पैदा कर सकता है. बीजिंग में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक मीडिया ब्रीफ में दावा किया कि अरुणाचल चीन का हिस्सा है, और वहां भारत के किसी अधिकारी और नेता का दौरा हमारी संप्रभुता का उल्लंघन है.