Sunday, April 9, 2023
केवल मुग़लों पर क्यों ठिठकी शिक्षा की बहस?
Friday, April 7, 2023
पाकिस्तान में सांविधानिक-संकट का खतरा
पाकिस्तान में सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और सरकार के बीच तलवारें खिंच गई हैं। मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में तीन जजों को बेंच ने 14 मई को पंजाब में चुनाव कराने का आदेश दिया है, जिसे मानने से सरकार ने इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने केवल पंजाब में चुनाव कराने की तारीख दी है, खैबर पख्तूनख्वा के बारे में कोई निर्देश नहीं दिया है, जबकि वहाँ भी चुनाव होने हैं। गुरुवार 6 अप्रेल को राष्ट्रीय असेंबली ने प्रस्ताव पास करके प्रधानमंत्री से कहा है कि इस फैसले को मानने की जरूरत नहीं है।
चुनाव आयोग ने हुकूमत के एतराज़ के बावजूद चुनाव
का कार्यक्रम जारी कर दिया है। उधर सुप्रीम कोर्ट के भीतर न्यायाधीशों की
असहमतियाँ भी खुलकर सामने आ रही हैं, जिनसे लगता है कि पाकिस्तान की न्यायपालिका
पर राजनीतिक रंग चढ़ता जा रहा है। हालांकि पाकिस्तान की न्यायपालिका की भूमिका
अतीत में बदलती रही है, पर ऐसा पहली बार हो रहा है, जब उसके फैसले को सरकार ने
मानने से इनकार कर दिया है।
इसके पहले 4 अप्रेल को मुख्य न्यायाधीश उमर अता बंदियाल की अध्यक्षता वाले तीन सदस्यीय पीठ ने
पंजाब में 14 मई को चुनाव कराने का निर्देश दिया था। पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) द्वारा दायर
याचिका पर फैसले की घोषणा करते हुए, शीर्ष अदालत ने
30 अप्रैल से 8 अक्टूबर तक पंजाब और केपी में चुनाव स्थगित करने के पाकिस्तान के
चुनाव आयोग (ईसीपी) के फैसले को अमान्य और शून्य घोषित कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि 22
मार्च, 2023 को ईसीपी के आदेश को असंवैधानिक घोषित
किया गया है। पाकिस्तान के उर्दू मीडिया के शब्दों में अदालत ने इलेक्शन कमीशन के
आठ अक्तूबर को इंतख़ाबात करवाने के 22 मार्च के हुक्मनामे को 'गैर-आईनी क़रार देते हुए कहा है कि इलेक्शन कमीशन ने अपने दायरा इख़्तियार
से तजावुज़ (सीमोल्लंघन) किया। चुनाव आयोग ने पंजाब में 8 अक्टूबर को चुनाव कराने
का ऐलान किया था। इस दौरान वर्तमान पाकिस्तानी राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट के
चीफ जस्टिस बंदियाल दोनों ही अपनी कुर्सी से हट जाएंगे। ये दोनों ही इमरान खान के
समर्थक माने जाते हैं।
संघीय कैबिनेट के सूत्रों ने कहा, सुप्रीम कोर्ट का फैसला अल्पमत का फैसला है, इसलिए
कैबिनेट इसे खारिज करती है। पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज (पीएमएल-एन) की वरिष्ठ
उपाध्यक्ष और मुख्य आयोजक मरियम नवाज ने ट्विटर पर लिखा कि आज का फैसला उस साजिश
का आखिरी झटका है, जो पीठ के चहेते इमरान खान को संविधान
को फिर से लिखकर और पंजाब सरकार को थाली में पेश करके शुरू किया गया था। अब देश
में मार्शल लॉ का खतरा फिर से मंडराने लगा है।
पाकिस्तानी मीडिया का कहना है कि सेना प्रमुख जनरल
असीम मुनीर अभी चुनाव कराने के पक्ष में नहीं हैं। ऐसे में अब कई विश्लेषक आशंका
जता रहे हैं कि देश में या तो आपातकाल लग सकता है या फिर मार्शल लॉ। सुप्रीम कोर्ट
का फैसला आने के एक दिन पहले विदेशमंत्री बिलावल भुट्टो ने कहा था कि देश में
मार्शल लॉ लग सकती है। सेना जल्द चुनाव के लिए तैयार नहीं है, तो चुनाव कराना
असंभव होगा। पाकिस्तानी अखबार डॉन के अनुसार जनरल मुनीर जल्दी या अलग-अलग चुनाव
कराने के पक्ष में नहीं हैं। वे चाहते हैं कि पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा के चुनाव शहबाज़
शरीफ सरकार का कार्यकाल खत्म होने के बाद एक साथ कराए जाएं।
चुनाव कार्यक्रम घोषित होने के बावजूद अब तक यह
स्पष्ट नहीं है कि पाकिस्तान के सबसे बड़े सूबे में इंतख़ाबात मुकर्रर वक़्त पर हो
पाएँगे या नहीं। संघीय सरकार मानती है कि अदालत ने यह फैसला 10 सदस्यों की पूर्ण
पीठ के माध्यम से किया होता, तब उसे स्वीकार किया जा सकता था, पर जिस तरीके से
मुख्य न्यायाधीश ने इस मसले को स्वतः संज्ञान (अज़खु़द नोटिस) में लिया और बेंच में
रद्दोबदल किया, उससे न्यायालय पर से विश्वास उठ गया है। शासन मानता है कि देश में
सभी चुनाव एकसाथ होने चाहिए।
वस्तुतः पद से हटाए जाने के बाद से इमरान खान
की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। सरकार को डर है कि वे फिर से चुनाव जीतकर आ
जाएंगे। अभी यह भी स्पष्ट नहीं है कि इमरान खान चुनाव लड़ पाएंगे या नहीं। उनपर
गिरफ्तारी की छाया है। इतना ही नहीं पिछले साल अक्तूबर में चुनाव आयोग ने उन्हें
पाँच साल तक के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित कर दिया था। इमरान ने इस फैसले के
खिलाफ अदालत में याचिका दायर की है। इमरान खान पर देश की सेना को बदनाम करने और
आर्थिक-संकट पैदा करने वगैरह के आरोप भी हैं।
सरकार की रणनीति है कि यदि सूबों के चुनाव चल
जाएं, तो फिर राष्ट्रीय असेंबली के चुनाव टालना आसान हो जाएगा। इस साल जनवरी में
पंजाब विधानसभा भंग हो गई थी। संविधान के अनुसार इसके बाद 90 दिन के भीतर चुनाव
होने चाहिए, पर देश का चुनाव आयोग मानता था कि किन्हीं कारणों से चुनाव टालने
होंगे। इसपर सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यों की बेंच ने 14 मई को चुनाव कराने का
आदेश दिया है। इस साल मध्य-अक्तूबर के पहले राष्ट्रीय असेंबली के चुनाव भी होने
हैं। पिछले साल अप्रेल में सरकार से बाहर हुए पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान फौरन
चुनाव कराने की माँग करते रहे हैं। पंजाब विधानसभा पर भी उनकी पार्टी पाकिस्तान
तहरीके इंसाफ (पीटीआई) का बहुमत था। केंद्र पर दबाव बनाने के लिए उन्होंने पंजाब
विधानसभा को समय से पहले भंग करा दिया था। पंजाब के अलावा खैबर पख्तूनख्वा सूबे
में भी चुनाव होने हैं।
मंगलवार 4 अप्रेल को जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला
आया, संघीय सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि हम इस फैसले को नहीं मानेंगे। यह इमरान खान
समर्थक जजों का फैसला है। यह केवल तीन जजों की बेंच थी। छह जज इसमें शामिल होने से
इनकार कर चुके थे।
Wednesday, April 5, 2023
अमेरिकी राजनीति में नई नज़ीरों को जोड़ेंगे डोनाल्ड ट्रंप पर मुकदमे
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एकबार फिर से खबरों में हैं. न्यूयॉर्क ग्रैंड ज्यूरी ने गत गुरुवार 30 मार्च को उनके 2016 के राष्ट्रपति अभियान के दौरान एक पोर्न स्टार को पैसे देने के आरोप में आपराधिक केस चलाने को मंजूरी दे दी है, ऐसे अपराध के लिए, जिसमें एक साल या उससे अधिक की कैद हो सकती है.
अमेरिका के इतिहास में आपराधिक आरोपों का सामना
करने वाले वे पहले पूर्व राष्ट्रपति बन गए हैं. कहा जा रहा था कि यदि वे मंगलवार
को अदालत के सामने पेश नहीं हुए, तो उन्हें गिरफ्तार भी किया जा
सकता है. बहरहाल वे अदालत के सामने पेश हो चुके हैं और उन्हें औपचारिक रूप से
गिरफ्तार भी माना गया है. इस मामले में अगली सुनवाई 4 दिसंबर को होगी.
उन्हें 34 मामलों में आरोपी बनाया गया है.
ट्रंप ने अदालत में कहा, मैंने कोई अपराध नहीं किया है और न अपने बिजनेस रिकार्ड
में कोई गड़बड़ी नहीं की है. 57
मिनट चली पेशी के बाद ट्रंप कोर्ट से बाहर आए और फ्लोरिडा के लिए रवाना हो गए.
अंततः उन्हें सजा हो या नहीं हो, लगता है कि ट्रंप इस मौके का फायदा उठाने को
तैयार हैं.
राजनीतिक साज़िश
वे इस मुकदमे को अपने खिलाफ बड़ी राजनीतिक
साजिश बता रहे हैं. मैनहटन डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी के दफ्तर का कहना है कि ट्रंप से
समर्पण के सिलसिले में बात की गई है. खबरें हैं कि वे अपने निजी विमान में बैठकर
न्यूयॉर्क जाएंगे. जब आप इन पंक्तियों को पढ़ रहे हैं, तब तक वे न्यूयॉर्क पहुँच
चुके होंगे.
ट्रंप ने कुछ समय पहले ही कह दिया था कि उनपर
मुकदमा चलेगा और वे राष्ट्रपति पद के अगले चुनाव के लिए लगातार धन-संग्रह कर रहे
हैं. कोई दूसरा राजनेता होता, तो इससे उसका करियर तबाह हो जाता, पर अमेरिकी
राजनीति और समाज के ध्रुवीकरण को देखते हुए लगता है कि ट्रंप इसे अपने पक्ष में
मोड़ने की कोशिश करेंगे.
चुनाव की तैयारी
वे सज-धज के साथ मुकदमे में भाग लेने के लिए आए. आरोप सिद्ध होने या आरोप लगने के बाद भी अगर वे राष्ट्रपति चुनाव लड़ना
चाहेंगे तो लड़ सकते हैं. अमेरिकी संविधान के मुताबिक़ राष्ट्रपति होने के लिए
उम्मीदवार का आपराधिक रिकॉर्ड साफ़ होना ज़रूरी नहीं है. व्यक्ति जेल में रहते हुए
भी चुनाव लड़ सकता है.
प्रताड़ना के आरोप के कारण पार्टी में ट्रंप की
स्थिति बेहतर हो जाती है. 2020 के चुनाव के समय ही रिपब्लिकन पार्टी में ट्रंप विरोधी
तबका भर आया था, पर उनके समर्थक भी कम नहीं हैं. पार्टी में रॉन डेसेंटिस उनके
मुख्य प्रतिस्पर्धी के रूप में उभर कर आए हैं. पार्टी के कुछ बड़े नेता ट्रंप की
नाटकबाज़ी को पसंद नहीं करते हैं, पर जनता के बीच उनकी पैठ है. सवाल है कि सब कुछ
होने के बाद भी क्या राष्ट्रपति पद के लिए वे रिपब्लिकन पार्टी के प्रत्याशी बनने
में सफल होंगे?
धन का भुगतान
हालांकि आरोपों को सार्वजनिक रूप से घोषित नहीं
किया गया है, पर मामला 2016 में पोर्न स्टार स्टॉर्मी डेनियल्स नाम की महिला को (जिनका असली नाम है स्टेफनी क्लिफर्ड), एक लाख
तीस हजार डॉलर के भुगतान की जांच से जुड़ा है. आरोप सीलबंद हैं और मंगलवार को औपचारिक
रूप से अदालत में उन्हें सुनाया जाएगा. 2016 में पोर्न स्टार ने मीडिया के सामने कहा
था कि 2006 में ट्रंप और उनके बीच अफेयर था. इसके बाद ट्रंप की टीम ने स्टॉर्मी को
मुँह बंद रखने के लिए एक लाख तीस हजार डॉलर का भुगतान किया.
स्टॉर्मी को पैसों का भुगतान गैरकानूनी नहीं था,
लेकिन जिस तरीके से भुगतान हुआ, उसे गैरकानूनी माना गया. ट्रंप के तत्कालीन वकील माइकल
कोहेन ने गुपचुप तरीके से स्टॉर्मी को दी थी. जबकि ऐसे दिखाया गया जैसे ट्रंप की
एक कंपनी ने भुगतान एक वकील को किया है. इसे बाद में चुनावी प्रचार के खर्च में
दिखा दिया गया था.
6 जनवरी का कांड
इसी लेनदेन को अपराध माना गया है, जिसकी जांच
ट्रंप के राष्ट्रपति पद पर रहते हुए ही शुरू हो गई थी. इस मुकदमे को अमेरिका में
चुनाव कानूनों के खिलाफ करीब बीस मामले तैयार हो चुके हैं. उनके खिलाफ सबसे बड़ा
मामला है 6 जनवरी, 2021 को अमेरिकी संसद पर हुए हमले का केस. क्या इस केस के कारण
उन्हें भविष्य में चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किया जा सकता है?
इसके अलावा 2020 के चुनाव से जुड़ा एक और केस
है. फुल्टन काउंटी, जॉर्जिया में चुनाव परिणामों की घोषणा में हस्तक्षेप का मामला,
जो काफी गंभीर है. फुल्टन काउंटी में भी एक ग्रैंड ज्यूरी उनके मामले की पड़ताल कर
रही है. मामला 11,780 वोटों का है, जिनकी वजह से ट्रंप की बहुत मामूली अंतर से
वहाँ हार हो गई थी.
सामाजिक ध्रुवीकरण
अमेरिका में अतीत में राष्ट्रपति या पूर्व
राष्ट्रपति आरोपों के घेरे में आए भी, तो किसी न किसी तरीके से बच गए. इस समय बात
केवल न्याय की नहीं राजनीति की है. अब महत्वपूर्ण यह नहीं है कि ट्रंप ने गलती की
है या नहीं. करीब-करीब आधा देश चाहता है कि उन्हें सजा दी जाए. आधा देश मानता है
कि ट्रंप को प्रताड़ित किया जा रहा है. यह आधा देश मानने को तैयार नहीं कि ट्रंप
के साथ न्याय होगा.
ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी के पीछे परंपरावादी
अमेरिका है. कोई और मौका होता, तो वे ट्रंप को ऐसे अपराध के लिए माफ नहीं करते, पर
इस वक्त वे 2020 की हार से कुंठित हैं. तकरीबन ऐसे ही मामले को लेकर उन्होंने बिल
क्लिंटन के खिलाफ महाभियोग का समर्थन किया था. और उस समय डेमोक्रेटिक पार्टी के जो
समर्थक क्लिंटन का बचाव कर रहे थे, वे इस समय मान रहे हैं कि ट्रंप के खिलाफ मामला
बनता है.
कानूनी स्थिति
मैनहटन की अदालत में कसौटी पर नैतिकता,
आचार-व्यवहार और पाखंड से जुड़े सवाल नहीं हैं, बल्कि यह है कि एक महिला को किया
गया एक लाख तीस हजार डॉलर का भुगतान चुनाव की आचार-संहिता का उल्लंघन था या नहीं.
अमेरिका में चुनाव के लिए धन-संग्रह की व्यवस्था बहुत उदार है और उससे जुड़े नियमन
बहुत कठोर नहीं हैं, इसीलिए देखना होगा कि अदालत का रुख अब क्या होगा.
अमेरिका की अदालत से यह उम्मीद न करें कि वह
अपने फैसले को इस आधार पर तय करेगी कि अभियुक्त का रुतबा क्या है और इस मसले पर जनता की राय क्या है. बहरहाल ट्रंप के
पक्ष और विरोध की दलीलों पर गौर करें. उनके पुराने वकील माइकल गोहेन साहब अपनी
गलती मान चुके हैं कि उन्होंने चुनाव-अभियान से जुड़े वित्तीय-नियमों का उल्लंघन
किया है. वे यह भी मान चुके हैं कि उन्होंने संसद के सामने झूठ बोला.
तब क्या वकील सारी गलती वकील की मानी जाएगी? इस रकम को चुनाव-प्रचार के भुगतान की रकम बताना अपराध है. फिर भी सब
कुछ जज पर निर्भर करेगा कि वे इस मामले को किस तरह से देखते हैं. चुनाव-प्रचार के
लिए धन-संग्रह संघीय-कानून के दायरे में आता है और लेनदेन का विवरण राज्य-कानून के
दायरे में. दोनों को किस तरह जोड़ा जाएगा? फिर भी आम जनता के मन में इस केस को लेकर दो तरह की बातें हैं. बहुत
से लोग मानते हैं कि उन्हें बेवजह फँसाया जा रहा है.
नई नज़ीर
दुनिया के अनेक देशों में पूर्व राष्ट्रपतियों
और प्रधानमंत्रियों पर मुकदमे चले हैं और उन्हें सजाएं भी हुई हैं, पर अमेरिका का
राष्ट्रपति अभी तक सबसे अलग माना जाता रहा है. इटली के सिल्वियो बर्लुस्कोनी और
फ्रांस के निकोलस सरकोज़ी हाल की घटनाएं हैं. सिद्धांत यह है कि राष्ट्रपति या
प्रधानमंत्री भी आखिर सामान्य नागरिक है.
पिछले एक दशक में दक्षिण कोरिया के तीन पूर्व प्रधानमंत्रियों
और दो पूर्व राष्ट्रपतियों को सजाएं हुई हैं. निकोलस सरकोज़ी के अलावा फ्रांस के
पूर्व प्रधानमंत्री फ्रांस्वा फिलन को सज़ा हुई है. अमेरिका में अभी तक किसी पूर्व
राष्ट्रपति को सजा नहीं हुई है. वॉटरगेट कांड के बावजूद रिचर्ड निक्सन को मुकदमे
की जिल्लत से बख्श दिया गया. क्या डोनाल्ड ट्रंप इस परंपरा को तोड़ेंगे?
आवाज़ द वॉयस में प्रकाशित लेख का संवर्धित संस्करण
Sunday, April 2, 2023
हेट स्पीच पर राष्ट्रीय-बहस भी होनी चाहिए
सुप्रीम कोर्ट में गत 29 मार्च को जस्टिस केएम जोसफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने हेट स्पीच मामले पर सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि जिस दिन राजनीति और धर्म अलग हो जाएंगे, और नेता राजनीति में धर्म का उपयोग करना बंद कर देंगे, उसी दिन नफरत फैलाने वाले भाषण भी बंद हो जाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि हम अपने हाल के फैसलों में भी कह चुके हैं कि पॉलिटिक्स को राजनीति के साथ मिलाना लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। वहीं, जस्टिस बीवी ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी की मिसाल देते हुए कहा, 'वाजपेयी और नेहरू को याद कीजिए, जिन्हें सुनने के लिए लोग दूर-दराज से एकत्र होते थे। हम कहां जा रहे हैं?' इसके पहले अदालत कह चुकी है कि खबरिया चैनलों के एंकर अपने कार्यक्रमों के माध्यम से हेट स्पीच परोसते रहे हैं। खंडपीठ ने नफरती भाषण देने वाले लोगों पर सख्त आपत्ति जताते हुए सवाल किया है कि लोग खुद को काबू में क्यों नहीं रखते हैं? यह ‘काबू’ शब्द भी विचारणीय है। हेट स्पीच क्या बेकाबू होकर होती है या जो बाला जाता है वह सोचा-समझा होता है?
किसकी हेट स्पीच?
सुप्रीम कोर्ट में इस
प्रश्न पर चल रही बहस को गौर से सुनने की जरूरत है। इस बहस के साथ देश की राजनीति,
प्रशासन और सामाजिक व्यवस्था के बेहद महत्वपूर्ण प्रश्न जुड़े हैं। ऐसे तमाम
प्रश्नों पर हमें विचार करना चाहिए। केरल के पत्रकार शाहीन
अब्दुल्ला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके मांग की है कि वह देशभर में हुई
हेट स्पीच की घटनाओं की निष्पक्ष, विश्वसनीय और स्वतंत्र जांच के लिए
केंद्र सरकार को निर्देशित करें। भारत में मुसलमानों को डराने-धमकाने के चलन को
तुरंत रोका जाए। हालांकि, कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या मुसलमान
ऐसे बयान नहीं दे रहे हैं?
और कुछ सवाल
अदालत की टिप्पणी पर केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि केंद्र चुप नहीं है। केरल जैसे राज्य चुप थे, जब मई 2022 में पीएफआई (प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया) की एक रैली में हिंदुओं और ईसाइयों के खिलाफ नरसंहार के आह्वान किए गए थे। उन्होंने आश्चर्य जताया कि जब अदालत इस बारे में जानती थी, तो उसने स्वत: संज्ञान क्यों नहीं लिया। उन्होंने अदालत को यह भी बताया कि तमिलनाडु में डीएमके के एक प्रवक्ता ने कहा था, ‘जो भी पेरियार कहते थे, वह किया जाना चाहिए… यदि आप स्वतंत्रता चाहते हैं तो आपको सभी ब्राह्मणों की हत्या करनी होगी।’ इस पर जैसे ही जस्टिस जोसफ हँसे, मेहता ने कहा, ‘यह हँसी की बात नहीं है। मैं इसे हँसी में नहीं उड़ाऊँगा। इस आदमी के खिलाफ एफआईआर नहीं हुई है। इतना ही नहीं, वे एक मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के प्रवक्ता बने हुए हैं।’
Thursday, March 30, 2023
सोमवार को चेन्नई में दिखाई पड़ेगी विरोधी दलों की एकता
साभार सतीश आचार्य का पुराना कार्टून
कर्नाटक विधानसभा के चुनाव की घोषणा होने और
राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता जाने के साथ विरोधी दलों की एकता के प्रयासों में
फिर से तेजी आ गई है। सोमवार 3 अप्रेल को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने
16 विरोधी दलों की बैठक बुलाई है। जिन दलों को निमंत्रण दिया गया है, उनमें बीजू
जनता दल और वाईएसआर कांग्रेस भी शामिल है। वे
आएंगे या नहीं इसे लेकर कयास हैं। ये दोनों दल अभी तक विरोधी दलों के किसी भी
गठबंधन में शामिल होने से बचते रहे हैं।
वाईएसआर कांग्रेस ने गुरुवार को कहा भी है कि
हमें बुलाया नहीं गया है और हम शामिल भी नहीं होंगे। बीजद ने भी बैठक में भाग लेने
के बारे में कुछ भी नहीं कहा है। अलबत्ता इस सम्मेलन के आयोजनकर्ताओं का कहना है
कि बीजद के राज्यसभा मुख्य सचेतक सस्मित पात्रा बैठक में शामिल होंगे। विरोधी दलों
के नेता यह भी मानते हैं कि ये दोनों दल एनडीए के करीब रहते हैं। इंडियन
एक्सप्रेस की खबर के अनुसार जब सस्मित पात्रा से संपर्क किया गया, तो उन्होंने
कहा कि मैं कह नहीं सकता कि बीजद इस बैठक में शामिल होगा या नहीं। मेरे पास इसमें
हिस्सा लेने के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
एकता के सूत्र
बहरहाल बैठक के आयोजकों के अनुसार डीएमके की इस बैठक में शामिल होने के लिए कांग्रेस, जेएमएम, राजद, जेडीयू, तृणमूल कांग्रेस, सपा, वाईएसआरसीपी, बीजद, नेकां, बीआरएस, कम्युनिस्ट पार्टी, माकपा, राकांपा, आम आदमी पार्टी, आईयूएमएल, एमडीएमके को आमंत्रित किया गया है। अब पहली बार मोदी विरोध के नाम पर ही सही कम से कम 14 या 15 दल अब एक साथ बैठने को तैयार नज़र आ रहे हैं।