Monday, April 19, 2021

भारत-सऊदी तेल-डिप्लोमेसी में तल्ख़ी


भारत, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा खनिज-तेल आयातक देश है। ईरान पर अमेरिकी पाबंदियों के कारण वाजिब कीमत पर तेल की खरीद को धक्का लगा था, पर सऊदी अरब का सहारा था। इस तेल-डिप्लोमेसी ने सऊदी अरब के साथ हमारे दीगर-रिश्ते भी सुधारे थे। अब तेल की कीमतों की गर्मी में ये रिश्ते पिघलते दिखाई पड़ते हैं।  

पिछले छह महीनों से अंतरराष्ट्रीय तेल-बाजार में सुर्खी आने लगी है। इस वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था को नुकसान होने लगा। इस तेजी के पीछे है ओपेक प्लस देशों का उत्पादन घटाने का फैसला। इसमें खासतौर से सऊदी अरब की भूमिका है। पिछले साल अप्रेल से दिसम्बर के बीच भारत ने औसतन 50 डॉलर से कम कीमत पर तेल खरीदा था। पर पिछले महीने कीमत 60 डॉलर के ऊपर पहुँच गई।

पेट्रोल पर भारी टैक्स के कारण भारत के खुले बाजार में पेट्रोल की कीमत 100 प्रति लिटर से ऊपर चली गई है। इससे सरकार की फज़ीहत होने लगी है। ब्रेंट-क्रूड की कीमतें पिछले साल अक्तूबर में 40 डॉलर प्रति बैरल थीं, जो इस महीने 64 डॉलर के आसपास आ गईं। भारत जैसे विकासशील देशों को महामारी के इस दौर में इसकी वजह से अपनी अर्थव्यवस्थाओं को पटरी पर लाने में दिक्कतें पैदा होने लगी हैं।

Sunday, April 18, 2021

कैसे रोकें ‘दूसरी लहर’ का प्रवाह?


कोरोना की दूसरी लहर को लेकर कई प्रकार की आशंकाएं हैं। हम क्या करें? वास्तव में संकट गहरा है, पर उसका सामना करना है। क्या बड़े स्तर पर लॉकडाउन की वापसी होगी? पिछले साल कुछ ही जिलों में संक्रमण के बावजूद पूरा देश बंद कर दिया गया था। दुष्परिणाम हमने देख लिया। तमाम नकारात्मक बातों के बावजूद बहुत सी सकारात्मक बातें हमारे पक्ष में हैं। पिछले साल हमारे पास बचाव का कोई उपकरण नहीं था। इस समय कम से कम वैक्सीन हमारे पास है। जरूरत निराशा से बचने की है। निराशा से उन लोगों का धैर्य टूटता है, जो घबराहट और डिप्रैशन में हैं।

लॉकडाउन समाधान नहीं

लॉकडाउन से कुछ देर के लिए राहत मिल सकती है, पर वह समाधान नहीं है। अब सरकारें आवागमन और अनेक गतिविधियों को जारी रखते हुए, ज्यादा प्रभावित-इलाकों को कंटेनमेंट-ज़ोन के रूप में चिह्नित कर रही हैं। अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी ने हाल में लिखा है कि पिछले साल के लॉकडाउन ने सप्लाई चेन को अस्त-व्यस्त कर दिया, उत्पादन कम कर दिया, बेरोजगारी बढ़ाई और करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी छीन ली। सबसे ज्यादा असर प्रवासी मजदूरों पर पड़ा था। पिछले साल के विपरीत प्रभाव से मजदूर अभी उबरे नहीं हैं।

Saturday, April 17, 2021

दूसरी लहर में बहुत ज्यादा है संक्रमण का पॉज़िटिविटी रेट

 


भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर में संक्रमण बहुत तेजी से बढ़ा है और जिन लोगों को संक्रमण हुआ है, उनका प्रतिशत बहुत ज्यादा यानी पॉज़िटिविटी रेट बहुत ज्यादा है। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक हफ्ते में हुए टेस्ट में 13.5 फीसदी से ज्यादा लोग पॉज़िटिव पाए गए हैं। इतना ऊँचा पॉज़िटिविटी रेट इसके पहले नहीं रहा है। यह बात इस बात की सूचक है कि प्रसार बहुत ज्यादा है।

सबसे बड़ी बात है कि यह प्रसार पिछले एक-डेढ़ महीने में हुआ है, जबकि पिछले साल संक्रमण इतनी तेजी से नहीं हुआ था। पिछले वर्ष जुलाई के महीने में पॉज़िटिविटी रेट सबसे ज्यादा था। हालांकि संक्रमणों की संख्या सितम्बर तक बढ़ी थी, पर पॉज़िटिविटी रेट कम होता गया था। जुलाई तक देश में करीब पाँच लाख टेस्ट हर रोज हो रहे थे। उस महीने के अंत में टेस्ट की संख्या बढ़ी और अगस्त के तीसरे सप्ताह तक दस लाख के आसपास प्रतिदिन हो गई थी।

इस वक्त देश में सितम्बर की तुलना में करीब ढाई गुना संक्रमण के मामले हर रोज सामने आ रहे हैं। जबकि टेस्ट लगभग उतने ही हो रहे हैं, जितने सितम्बर-अक्तूबर में हो रहे थे। महाराष्ट्र में पहले भी पॉज़िटिविटी रेट 15 फीसदी के आसपास रहा है, पर उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में यह राष्ट्रीय औसत से कम था। इस समय छत्तीसगढ़ का पॉज़िटिविटी रेट महाराष्ट्र से भी ज्यादा है। इसकी वजह शायद यह है कि लोगों का आपसी सम्पर्क बढ़ा है और यह भी कि वायरस का नया स्ट्रेन ज्यादा तेजी से संक्रमित हो रहा है। 

Friday, April 16, 2021

कैसे रुकेगी दूसरी लहर?


भारत में कोरोना की पहली लहर 16 सितम्बर 2020 को अपने उच्चतम स्तर पर पहुँची और उसके बाद उसमें कमी आती चली आई। फिर फरवरी के तीसरे सप्ताह से दूसरी लहर आई है, जिसमें संक्रमितों की संख्या दो लाख के ऊपर चली गई है। यह संख्या कहाँ तक पहुँचेगी और इसे किस तरह रोका जाए? इस आशय के सवाल अब पूछे जा रहे हैं। अखबार द हिन्दू की ओर से पत्रकार आर प्रसाद ने गौतम मेनन और गिरिधर बाबू से इस विषय पर बातचीत की, जिसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है:  

आपको क्या लगता है, दूसरी लहर कब तक अपने उच्चतम स्तर (पीक) पर होगी? और जब यह पीक होगी, तब दैनिक संक्रमणों की संख्या क्या होगी?

गौतम मेनन: यह बताना बहुत मुश्किल है। पहले यह जानकारी होनी चाहिए कि फिर से इंफेक्शन का स्तर क्या है और बीमारी से बाहर निकलने वालों का इम्यून स्तर क्या है।  अलबत्ता इतना स्पष्ट है कि नए वेरिएंट काफी तेजी से फैल रहे हैं और उनका प्रसार पिछली बार से ज्यादा तेज है। मुझे लगता है कि स्थितियाँ सुधरने के पहले काफी बिगड़ चुकी होंगी। हमें हर रोज करीब ढाई लाख नए केस देखने पड़ेंगे। इसका उच्चतम स्तर इस महीने के त या अगले महीने के पहले हफ्ते में होगा।

तमाम राज्यों में आवागमन पर बहुत कम रोक हैं। क्या संक्रमण रोकने के लिए आवागमन पर रोक लगनी चाहिए?

गौतम मेनन: हमें अंतर-राज्य आवागमन पर रोक लगानी चाहिए। पर यह रोक तभी लगाई जा सकेगी, जब पता हो कि नए वेरिएंट का प्रसार कितना है। मेरी समझ से नए मामलों की संख्या नए वेरिएंट के कारण है। यदि उनका प्रसार हो चुका है, तो यात्रा पर रोक लगाने से भी कुछ नहीं होगा। हमें डेटा की जरूरत है। इसके अलावा मास्किंग, धार्मिक और राजनीतिक कार्यक्रमों की फिक्र करनी होगी, जिनपर पूरी तरह रोक लगनी चाहिए। मेरी समझ से अंतर-राज्य और राज्य के भीतर भी लोगों के आवागमन को रोकना चाहिए।

गिरिधर बाबू: मुझे लगता है कि हमने देर कर दी है। फरवरी के पहले और दूसरे हफ्ते में हमने देख लिया था कि संक्रमण संख्या बढ़ रही है। हमें पता था कि किन जगहों पर ऐसा हो रहा है। हमें वहीं पर जेनोमिक सीक्वेंसिंग और एपिडेमियोलॉजिकल जाँच करनी चाहिए थी। बावजूद इसके कि जेनोमिक सीक्वेंसिंग के परिणाम हालांकि मार्च के तीसरे सप्ताह में मिल गए थे।  

Thursday, April 15, 2021

अफगानिस्तान में शांति-स्थापना के अपने प्रयास जारी रखेगा अमेरिका: बाइडेन


अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अंततः अफगानिस्तान से अमेरिकी फौजों की वापसी की घोषणा बुधवार को कर दी। उन्होंने कहा कि यह अफगानिस्तान में अमेरिका की सबसे लंबी लड़ाई को खत्म करने का समय आ गया है। यह ऐसी जिम्मेदारी है जिसे मैं अपने उत्तराधिकारी पर नहीं छोड़ना चाहता। उन्होंने देश के नाम अपने संबोधन में कहा कि अमेरिका इस जंग में लगातार अपने संसाधन झोंक नहीं सकता। इस घोषणा के बाद अब अफगानिस्तान को लेकर वैश्विक राजनीति का एक नया दौर शुरू होगा।

बाइडेन ने इस बात पर जोर दिया है कि उनका प्रशासन अफगान सरकार और तालिबान के बीच शांति-वार्ता का समर्थन करता रहेगा और अफगान सेना को प्रशिक्षित करने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों में मदद करेगा। अब 1 मई से सेना को अफगानिस्तान से निकालना शुरू किया जाएगा, पर हम जल्दबाजी नहीं करेंगे। तालिबान को पता होना चाहिए कि अगर वे हम पर हमला करते हैं तो हम पूरी ताकत के साथ अपना और साथियों का बचाव करेंगे। उन्होंने यह भी कहाहम इस इलाके के अन्य देशों खास तौर पर पाकिस्तानरूसचीनभारत और तुर्की से और समर्थन की उम्मीद रखते हैं। अफगानिस्तान के भविष्य निर्माण में इनकी भी अहम भूमिका होगी। उनके इस बयान में तालिबान को परोक्ष चेतावनी पर ध्यान दें। साथ ही उन्होंने जिन देशों के समर्थन की आशा व्यक्त की है उसमें  ईरान का नाम नहीं है।