।।चार।।
अगस्त 1947 में
विभाजन के पहले ही कश्मीर के भविष्य को लेकर विमर्श शुरू हो गया था। कांग्रेस की
इच्छा थी कि कश्मीर का भारत में विलय हो और मुस्लिम लीग का कहना था कि रियासत में
रहने वाले ज्यादातर मुसलमान हैं, इसलिए उसे पाकिस्तान का हिस्सा बनना चाहिए। तमाम तरह
के विमर्श के बावजूद महाराजा हरिसिंह अक्तूबर के तीसरे सप्ताह तक फैसला नहीं कर
पाए। फिर जब स्थितियाँ उनके नियंत्रण से बाहर हो गईं, तब उन्होंने भारत में विलय का
फैसला किया। उन परिस्थितियों पर विस्तार से हम किसी और जगह पर विचार करेंगे, पर
यहाँ कम से कम तीन घटनाओं का उल्लेख करने की जरूरत है। 1.जम्मू में मुसलमानों की
हत्या. 2.गिलगित-बल्तिस्तान में महाराजा के मुसलमान सैनिकों की बगावत और 3.पश्चिम
से कबायलियों का कश्मीर पर हमला।
हाल में मेरी इस
सीरीज के दूसरे भाग को जब मैंने फेसबुक पर डाला, तब एक मित्र ने बीबीसी की एक रिपोर्ट के
हवाले से लिखा, ‘कुछ
लोग सवाल उठाते हैं कि पाकिस्तान से आने वाले ये कबायली हमलावर थे या वे मुसलमानों की हिफ़ाज़त के लिए आए
थे? जम्मू-कश्मीर में मुसलमान
बहुसंख्यक थे, जबकि उसके शासक
महाराजा हरि सिंह हिंदू थे। 1930 के बाद से अधिकारों के लिए मुसलमानों के आंदोलनों
में बढ़ोतरी हुई। अगस्त 1947 में देश के बंटवारे के बाद भी यह रियासत हिंसा की आग
से बच नहीं पाई… जम्मू में हिंदू अपने मुसलमान पड़ोसियों के ख़िलाफ़ हो गए। कश्मीर
सरकार में वरिष्ठ पदों पर रह चुके इतिहासकार डॉ. अब्दुल अहद बताते हैं कि पश्तून कबायली
पाकिस्तान से मदद के लिए आए थे, हालांकि उसमें कुछ 'दुष्ट
लोग' भी शामिल थे।… उधर,
प्रोफ़ेसर सिद्दीक़ वाहिद इस बात पर
सहमत होते हैं कि पाकिस्तानी कबायलियों का हमला जम्मू में जारी अशांति का जवाब था।’
ऑस्ट्रेलिया के
लेखक क्रिस्टोफर स्नेडेन ने अपनी किताब ‘कश्मीर द अनरिटन हिस्ट्री’ में भी इस बात को लिखा है।
हालांकि उनकी वह किताब मूलतः पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के बारे में है, पर उन्होंने
किताब की शुरुआत में ही लिखा है कि इस सिलसिले में प्राप्त ज्यादातर विवरणों में
बताया जाता है कि पाकिस्तान से आए पश्तून कबायलियों ने स्थिति को बिगाड़ा, इस
किताब में बताया गया है कि जम्मू के लोगों ने इसकी शुरुआत की। विभाजन के बाद जम्मू
के इलाके में तीन काम हुए। पहला था, पश्चिमी जम्मू प्रांत के पुंछ इलाके में
मुसलमानों ने महाराजा हरिसिंह के खिलाफ बगावत शुरू की। दूसरे, पूरे जम्मू-प्रांत में साम्प्रदायिक
हिंसा शुरू हो गई, तीसरे पश्चिमी जम्मू क्षेत्र में बागियों ने एक इलाके पर कब्जा
करके उसे ‘आज़ाद’ जम्मू-कश्मीर के नाम से स्वतंत्र
क्षेत्र घोषित कर दिया। पूरी रियासत साम्प्रदायिक टुकड़ों में बँटने लगी। यह सब 26
अक्तूबर, 1947 के पहले हुआ और लगने लगा कि पूरे जम्मू-कश्मीर को किसी एक देश के
साथ मिलाने का फैसला लागू करना सम्भव नहीं होगा। इस घटनाक्रम पर भी हम आगे जाकर
विचार करेंगे, पर पहले उस ऑपरेशन गुलमर्ग का विवरण देते हैं, जिसका उल्लेख पिछले
आलेख में किया था।