Wednesday, December 23, 2020

बृहन्मुंबई महानगरपालिका चुनाव में गठबंधन को लेकर कांग्रेस की दुविधा


मुंबई कांग्रेस के नव-निर्वाचित प्रमुख अशोक उर्फ ​​भाई जगताप ने रविवार 20 दिसंबर को संकेत दिया कि पार्टी 2022 के मुंबई नगर निकाय चुनाव में सभी 227 सीटों पर लड़ेगी। उनका यह बयान मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के इस बयान के बाद आया है कि शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सभी स्थानीय निकाय-चुनावों में मिलकर लड़ेगा। इसमें उन्होंने मुंबई नगर महापालिका भी शामिल है। उनका यह बयान नवंबर के अंतिम सप्ताह में तब आया था, जब अघाड़ी सरकार ने एक साल पूरा किया था। उन्होंने कहा था कि महा विकास अघाडी (एमवीए) के सहयोगी दल बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के चुनाव सहित सभी चुनाव मिलकर लड़ेंगे।

हाल में हुए विधान परिषद में एमवीए के दलों ने मिलकर बीजेपी को शिकस्त भी दी है। अब कांग्रेस के मुंबई अध्यक्ष का यह बयान कुछ सवाल खड़े करता है। इससे कांग्रेस के भीतर भ्रम और दुविधा की स्थिति का पता भी लगता है। जगताप ने पुणे जिले के जेजुरी में पत्रकारों से कहा, "सीटों का बंटवारा करना एक मुश्किल काम है, इसलिए, हमें एक पार्टी के रूप में उन लोगों के बारे में सोचना चाहिए, जो पार्टी के झंडे को अपने कंधों पर लेकर चलते हैं और बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के आगामी चुनाव में सभी 227 सीटों पर लड़ना चाहिए।"

Tuesday, December 22, 2020

प्रियंका गांधी के प्रयास से संभव हुई कांग्रेस के असंतुष्टों के साथ बैठक


इंडियन एक्सप्रेस की खबर है कि प्रियंका गांधी के हस्तक्षेप से कांग्रेस पार्टी के 23 असंतुष्टों के साथ सोनिया गांधी की
मुलाकात के रास्ते खुले। अखबार ने पार्टी सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि प्रियंका का पत्र लिखने वाले नेताओं में से एक के साथ सम्पर्क बना हुआ था। वे प्रयास कर रही थीं कि मामला किसी तरह से सुलझे, क्योंकि पार्टी के भीतर टकराव के रहते भारतीय जनता पार्टी के साथ मुकाबला करना आसान नहीं होगा।

उधर 23 नेता भी संवाद चाहते थे, पर अगस्त में उस पत्र के सामने आने के बाद उनपर जिस किस्म के हमले हुए उससे उनका रुख भी कड़ा होता गया। उसके बाद बात गाली-गलौज तक पहुँच गई और नेतृत्व की ओर से उनकी बात को समझने की कोई कोशिश दिखाई नहीं पड़ी।

भारी औद्योगीकरण की अनुपस्थिति की देन है पंजाब का किसान आंदोलन


दिल्ली के आसपास चल रहे किसान आंदोलन के संदर्भ में सोमवार 21 दिसंबर के इंडियन एक्सप्रेस में धनमंजिरी साठे का ऑप-एड लेख प्रकाशित हुआ है, जिसमें लेखिका का कहना है कि यह आंदोलन पंजाब में हरित-क्रांति के बावजूद वहाँ औद्योगीकरण न हो पाने के कारण जन्मा है। लेखिका सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र की प्राध्यापक हैं।

इन्होंने लिखा है, मुख्यतः पंजाब के किसानों के इस आंदोलन ने विकासात्मक-अर्थशास्त्र (डेवलपमेंट-इकोनॉमिक्स) से जुड़े प्रश्नों को उभारा है। विकास-सिद्धांत कहता है कि किस तरह से एक पिछड़ी-खेतिहर अर्थव्यवस्था औद्योगिक (जिसमें सेवा क्षेत्र शामिल है) अर्थव्यवस्था बन सकती है। इसके अनुसार औद्योगिक-क्रांति की दिशा में बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था में कृषि-क्रांति होनी चाहिए। यानी कि खेती का उत्पादन और उत्पादकता इतनी बड़ी मात्रा में होने लगे कि खेती में लगे श्रमिक उद्योगों में लग सकें और औद्योगिक श्रमिकों को खेतों में हो रहे अतिरिक्त उत्पादन से भोजन मिलने लगे।  

पंजाब में साफ तौर पर कृषि-क्रांति (हरित-क्रांति) हो चुकी है। वहाँ काफी मात्रा में अतिरिक्त अन्न उपलब्ध है। यदि पंजाब स्वतंत्र देश होता, तो कृषि-क्रांति के बाद समझदारी इस बात में थी कि पहले दौर में आयात पर रोक लगाकर, औद्योगीकरण को प्रोत्साहन दिया जाता। ऐसे में खेती के काम में लगे अतिरिक्त श्रमिकों को उद्योगों में लगाया जा सकता था। पर पंजाब एक बड़े देश का हिस्सा है। इसलिए उसकी खेती के लिए देश के दूसरे क्षेत्रों में आसान बाजार उपलब्ध है। पंजाब न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर भारतीय खाद्य निगम को गेहूँ बेचता रहा है। पंजाब में एमएसपी और एपीएमसी मंडियों के विकास के कारण वहाँ के किसानों की स्थिति देश के दूसरे इलाकों के किसानों से काफी बेहतर है। एमएसपी और बेहतर तरीके से चल रही मंडियाँ केंद्र की एक सुनियोजित योजना के तहत विकसित हुई हैं, जिसका उद्देश्य है देश में पहले खाद्य-उत्पादन के क्षेत्र में आत्म-निर्भरता और उसके बाद अतिरिक्त अनाज भंडारण की स्थिति हासिल की जाए, ताकि साठ के मध्य-दशक जैसी स्थिति फिर पैदा न हो। यह स्थिति वृहत स्तर पर कुछ समय पहले हासिल की जा चुकी है। हालांकि इसका मतलब यह नहीं कि देश में कुपोषण की स्थिति नहीं है।

खेती की आय बढ़ने से औद्योगिक-उत्पादों की माँग बढ़ी। जैसे कि ट्रैक्टर, कार, वॉशिंग मशीन वगैरह। ये चीजें उन राज्यों में तैयार होती हैं, जिन्होंने अपने यहाँ औद्योगिक हब तैयार कर लिए हैं। जैसे कि तमिल नाडु, महाराष्ट्र और कर्नाटक। संक्षेप में पंजाब में कृषि-क्रांति हुई, पर चूंकि उसके अनाज के लिए देश का बड़ा बाजार खुला हुआ था, इसलिए वह औद्योगिक-क्रांति की दिशा में नहीं बढ़ा। 

एक अर्थव्यवस्था के भीतर एक प्रकार का भौगोलिक-विशेषीकरण होना चाहिए, जो प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता और जमीन की उर्वरता वगैरह से जुड़ा हो। जैसे कि सहज रूप से खानें झारखंड में हैं। इसी आधार पर पंजाब को हरित-क्रांति के लिए चुना गया था। इस बात की उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि हरेक राज्य, हरेक सामग्री के उत्पादन में कुशल होगा। पर पंजाब का मामला विस्मयकारी है। सवाल है कि विकास की इकाई क्या हो?

कृषि-क्रांति से जो दूसरी परिघटना होती है, वह है खेती से मुक्त हुए मजदूरों को उद्योगों में लगाया जा सकता है। पर पंजाब में खास औद्योगीकरण नहीं हुआ। पंजाब कृषि-प्रधान राज्य बना रहा और दुर्भाग्य से उसे इस बात पर गर्व है। बुनियादी तौर पर वर्तमान आंदोलन, औद्योगीकरण की कमी को व्यक्त कर रहा है। बिहार में भी औद्योगीकरण नहीं हुआ है, इसलिए वहाँ के सीमांत और छोटे किसान दूसरे राज्यों में जा रहे हैं। पर पंजाब में इस वर्ग के लोग उतने गरीब नहीं हैं, जितने बिहार के प्रवासी हैं, पर वे उतने अमीर भी नहीं हैं, जितने पंजाब के किसान हैं।

कोई वजह नहीं है जो पंजाब को औद्योगिक-क्रांति से रोके। पर पंजाब की नीतियों में ठहराव है। जब तक किसानों को उनके अनाज की एमएसपी के सहारे उचित कीमत मिल रही है और लोग पर्याप्त संतुष्ट और सम्पन्न हैं, वहाँ की राज्य सरकार पर वर्षों से कुछ करने का दबाव नहीं है। 

उम्मीद है कि वर्तमान संकट का संतोषजनक समाधान निकल आएगा, पर बुनियादी दरार बनी रहेगी। पंजाब में शहरी आबादी करीब 40 फीसदी है। वृहत स्तर पर औद्योगीकरण के सहारे यह संख्या बढ़नी चाहिए।

वर्तमान आंदोलन एक तरह से पंजाब के नीति-निर्धारकों को जगाने की कोशिश है। भारतीय अर्थव्यवस्था खाद्य-संकट के स्तर से उबर कर कुछ फसलों में अतिरिक्त उपज के स्तर पर आ चुकी है। जाहिर है कि कोई भी सरकार हरेक उपज (यहाँ गेहूँ) के लिए खुली एमएसपी जारी नहीं रख सकती। वस्तुतः अस्सी के दशक में शरद जोशी और वीएम दांडेकर के बीच इसी बिन्दु पर बहस थी।

कुछ बड़े किसान स्थायी सरकारी कर्मचारी की तरह बन चुके हैं और वे अपनी आय को सुरक्षित बनाकर रहना चाहते हैं-यह उनका अधिकार है। यह स्पष्ट नहीं है कि बीजेपी ने इन कानूनों को पास करने में जल्दबाजी क्यों की। भारत में आमतौर पर उम्मीद की जाती है कि सरकारें अलोकप्रिय बदलावों को खामोशी के साथ करती हैं, घोषणा करके नहीं करतीं।

बहरहाल सरकार को बफर स्टॉक बनाए रखने और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए कुछ अनाज एमएसपी पर खरीदना होगा। इसलिए पंजाब में और इसी किस्म की खेती वाले दूसरे राज्यों में किसानों और सरकार को बीच का रास्ता खोजना होगा। इसके साथ ही जैसा कि दुनिया के दूसरे देशों में सरकारें करती हैं, सब्सिडी देनी होगी, पर निजी क्षेत्र के विस्तार को भी बढ़ावा देना होगा। बड़े किसानों की क्षमता है और वे गैर-गेहूँ, गैर-धान फसलों की ओर जा सकते हैं।

पंजाब का औद्योगीकरण मुश्किल नहीं है। वहाँ कानून-व्यवस्था की बेहतरीन स्थिति है। लोग उद्यमी, मेहनती, शिक्षित और स्वस्थ हैं। पंजाब को बांग्लादेश और वियतनाम से सीखना चाहिए और ऐसे औद्योगीकरण की ओर जाना चाहिए, जिसमें श्रमिकों की खपत हो। पंजाब ही नहीं पूरे देश को उनसे सीखने की जरूरत है। सरकार छोटे और मध्यम दर्जे के उद्योगों की दिशा में काफी कुछ कर सकती है। इन्हीं उद्योगों को बड़ा बनने का मौका दिया जाए। पंजाब इस मामले में रास्ता दिखा सकता है।

 


Monday, December 21, 2020

जन. नरवणे की अरब-यात्रा की पृष्ठभूमि में है भावी आर्थिक-सहयोग

भारत के थलसेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे मंगलवार 8 दिसंबर को एक हफ़्ते के लिए संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब के दौरे पर जब रवाना हुए, तब कुछ पर्यवेक्षकों का माथा ठनका था। उन्हें यह बात अटपटी लगी। वे भारत और मुस्लिम देशों के रिश्तों को पाकिस्तान के संदर्भ में देखते हैं, जबकि यह नजरिया अधूरा और गलतियों से भरा है। कोविड-19 के कारण यह यात्रा प्रस्तावित समय के बाद हुई है। अन्यथा इसे पहले हो जाना था। इसलिए इसके पीछे किसी तात्कालिक घटना को जोड़कर देखना उचित नहीं होगा।

सच यह है कि पश्चिम एशिया में राजनीतिक-समीकरण बदल रहे हैं। खासतौर से इजरायल के साथ अरब देशों के रिश्तों में बदलाव नजर आ रहा है। हाल में ईरान के नाभिकीय वैज्ञानिक मोहसिन फ़ख़रीज़ादेह की हत्या के बाद से भी इस इलाके में तनाव है। हत्या के पीछे ईरान ने इजरायल का हाथ बताया है, पर तनाव की गर्म हवाएं सऊदी अरब तक भी पहुँची हैं। स्वाभाविक रूप से ये बातें भी पृष्ठभूमि में होंगी।

Sunday, December 20, 2020

अयोध्या में मस्जिद निर्माण की सकारात्मक पहल


 अयोध्या में राम मंदिर के समानांतर मस्जिद की स्थापना का कार्यक्रम जिस सकारात्मकता के साथ सामने लाया गया है उसका स्वागत होना चाहिए। उम्मीद करनी चाहिए कि यह कार्यक्रम धार्मिक संस्थाओं की सामाजिक भूमिका की दिशा में एक बड़ा कदम होगा। मस्जिद और उससे जुड़ी दूसरी इमारतों में आधुनिक स्थापत्य तथा डिजायन का इस्तेमाल सोच-विचार की नई दिशा को बता रहा है। 

मंदिर-मस्जिद विवाद के फैसले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत उ.प्र. सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या के धन्नीपुर गांव में प्रदेश सरकार द्वारा दी गई पांच एकड़ जमीन पर मस्जिद के निर्माण की तैयारी शुरू हो गई है। इस निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इंडो-इस्लामिक फाउंडेशन के नाम से एक ट्रस्ट गठित किया है।

इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन ट्रस्ट ने शनिवार 19 दिसंबर को अयोध्या प्रस्तावित उस मस्जिद के ब्लूप्रिंट को जारी किया, जो उस जमीन पर बनेगी, जो अयोध्या से जुड़े मुकदमे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मिली है। राज्य सरकार ने अयोध्या के धन्नीपुर गाँव में पाँच एकड़ जमीन इस काम के लिए दी है।