Sunday, November 8, 2020

भारतीय दृष्टि में जो बिडेन

 


डेमोक्रेटिक पार्टी के जो बिडेन अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव जीत चुके हैं। अब उनकी टीम और उनकी नीतियों को लेकर बातें हो रही हैं। हमारी दृष्टि से पहला सवाल यह बनता है कि वे भारत के लिए कैसे राष्ट्रपति साबित होंगे? हमारे देश के ज्यादातर लोग समझना चाहते हैं कि भारत के प्रति उनका नजरिया कैसा होगा। क्या वे हमारे मित्र साबित होंगे? इस सवाल का सीधा जवाब है कि वे साबित होंगे या नहीं, यह दीगर बात है, वे पहले से भारत के मित्र माने जाते हैं।

वे बराक ओबामा के कार्यकाल में उप राष्ट्रपति थे और भारत के साथ अच्छे रिश्ते बनाने के जबर्दस्त समर्थक थे। उन्होंने पहले सीनेट की विदेशी मामलों की समिति के अध्यक्ष के रूप में और बाद में उप राष्ट्रपति के रूप में अमेरिका की भारत-समर्थक नीतियों को आगे बढ़ाया। वस्तुतः उपराष्ट्रपति बनने के काफी पहले सन 2006 में उन्होंने कहा था, मेरा सपना है कि सन 2020 में अमेरिका और भारत दुनिया में दो निकटतम मित्र देश बनें।

कश्मीर के लिए शुभ है नई राजनीतिक पहल



जम्मू कश्मीर के राजनीतिक दलों के गुपकार गठबंधन ने जिला विकास परिषद के चुनावों में मिलकर उतरने की घोषणा करके राजनीतिक गतिविधियों में जान डाल दी है। देखना होगा कि ये राजनीतिक दल जनता के साथ किस हद तक जुड़ते हैं। साथ ही यह भी देखना होगा कि पाकिस्तान परस्त हुर्रियत कांफ्रेंस की भूमिका क्या होगी। चूंकि हुर्रियत चुनाव के बहिष्कार की घोषणा करती है, जिसके कारण मतदान कम होता है। यदि कश्मीर की मुख्यधारा के राजनीतिक दलों का प्रभाव बढ़ेगा, तो कश्मीर में हालात सामान्य करने में आसानी होगी।

कुछ समय पहले तक ये दल जम्मू-कश्मीर को पुराना स्टेटस बहाल न होने तक किसी भी राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल न होने की बात कह रहे थे। अब शनिवार 7 नवंबर को उन्होंने एकजुट होने की घोषणा करके एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है। कांग्रेस पार्टी शुरू में गुपकार गठबंधन की बैठकों में शामिल हुई थी, पर उसने इसमें शामिल होने की घोषणा नहीं की है। अलबत्ता पार्टी ने चुनाव में शामिल होने की घोषणा जरूर की है। अलबत्ता रविवार को फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि कांग्रेस हमारे साथ मिलकर डीडीसी के चुनाव लड़ेगी, जबकि प्रदेश कांग्रेस के पदाधिकारी कह रहे हैं कि हम अलग रहकर चुनाव लड़ेंगे।

अमेरिकी ‘बीरबल की खिचड़ी’

अमेरिकी चुनाव-व्यवस्था बीरबल की खिचड़ीसाबित हो रही है। हालांकि जो बिडेन ने राष्ट्रपति बनने के लिए जरूरी बहुमत हासिल कर लिया है, पर लगता है कि औपचारिक रूप से अंतिम परिणाम आने में समय लगेगा। जॉर्जिया ने फिर से गिनती करने की घोषणा की है। कुछ दूसरे राज्यों में ट्रंप की टीम ने अदालतों में अर्जियाँ लगाई हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि न्यायिक प्रक्रिया में कितना समय लगेगा, पर सन 2000 में केवल फ्लोरिडा का मामला अदालत में गया था, जिसका फैसला होने 12 दिसंबर को हो पाया था। इसबार तो ज्यादा मामले हैं।

 डोनाल्ड ट्रंप चुनाव हार चुके हैं। परिणाम आने में देर इसलिए भी हुई, क्योंकि डाक से भारी संख्या में मतपत्र आए हैं। ऐसा कोरोना के कारण हुआ है। डाक से आए ज्यादातर वोट बिडेन के पक्ष में हैं, क्योंकि ट्रंप ने अपने वोटरों से कहा था कि वे कोरोना से घबराएं नहीं और मतदान केंद्र में जाकर वोट डालें, जबकि बिडेन ने डाक से वोट देने की अपील की थी।

Saturday, November 7, 2020

ईओएस-01 उपग्रह का प्रक्षेपण


भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने आज 7 नवंबर को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से अपने पीएसएलवी-सी49 प्रक्षेपण यान की सहायता से 10 उपग्रहों को कक्षा में स्थापित किया। इनमें भारत का नवीनतम भू-पर्यवेक्षण उपग्रह ईओएस-01 और नौ विदेशी उपग्रह शामिल हैं। इन्हें प्रक्षेपण के बाद सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित कर दिया गया।

इस साल 23 मार्च को राष्ट्रव्यापी कोरोनावायरस लॉकडाउन शुरू होने के बाद से यह राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी का पहला प्रक्षेपण है। लॉन्च 26 घंटे की उलटी गिनती के बाद दोपहर 3.12 बजे हुआ। उड़ान मार्ग में मलबा आने के कारण प्रक्षेपण में 10 मिनट की देरी हुई।

राजनीतिक प्रक्रियाओं के रास्ते बढ़ता ध्रुवीकरण


अमेरिका के चुनाव परिणाम जिस समय आ रहे हैं, उस वक्त दुनिया में चरम राष्ट्रवाद की हवाएं बह रही हैं। पर क्यों? यह क्रिया की प्रतिक्रिया भी है। फ्रांस में जो हो रहा है, उसने विचार के नए दरवाजे खोले हैं। समझदारी के उदाहरण भी हमारे सामने हैं। गत 15 मार्च को न्यूज़ीलैंड के क्राइस्टचर्च शहर की दो मस्जिदों में हुए हत्याकांड ने दो तरह के संदेश एकसाथ दुनिया को दिए। इस घटना ने गोरे आतंकवाद के नए खतरे की ओर दुनिया का ध्यान खींचा था, वहीं न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न ने जिस तरह से अपने देश की मुस्लिम आबादी को भरोसा दिलाया, उसकी दुनियाभर में तारीफ हुई।

दुनिया में ह्वाइट सुप्रीमैसिस्टों और नव-नाजियों के हमले बढ़े हैं। अमेरिका में 9/11 के बाद हाल के वर्षों में इस्लामी कट्टरपंथियों के हमले कम हो गए हैं और मुसलमानों तथा एशियाई मूल के दूसरे लोगों पर हमले बढ़ गए हैं। यूरोप में पिछले कुछ दशकों से शरणार्थियों के विरोध में अभियान चल रहा है। ‘मुसलमान और अश्वेत लोग हमलावर हैं और वे हमारे हक मार रहे हैं।’ इस किस्म की बातें अब बहुत ज्यादा बढ़ गईं हैं। पिछले साल श्रीलंका में हुए सीरियल विस्फोटों के बाद ऐसे सवाल वहाँ भी उठाए जा रहे हैं।