Saturday, November 7, 2020

राजनीतिक प्रक्रियाओं के रास्ते बढ़ता ध्रुवीकरण


अमेरिका के चुनाव परिणाम जिस समय आ रहे हैं, उस वक्त दुनिया में चरम राष्ट्रवाद की हवाएं बह रही हैं। पर क्यों? यह क्रिया की प्रतिक्रिया भी है। फ्रांस में जो हो रहा है, उसने विचार के नए दरवाजे खोले हैं। समझदारी के उदाहरण भी हमारे सामने हैं। गत 15 मार्च को न्यूज़ीलैंड के क्राइस्टचर्च शहर की दो मस्जिदों में हुए हत्याकांड ने दो तरह के संदेश एकसाथ दुनिया को दिए। इस घटना ने गोरे आतंकवाद के नए खतरे की ओर दुनिया का ध्यान खींचा था, वहीं न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न ने जिस तरह से अपने देश की मुस्लिम आबादी को भरोसा दिलाया, उसकी दुनियाभर में तारीफ हुई।

दुनिया में ह्वाइट सुप्रीमैसिस्टों और नव-नाजियों के हमले बढ़े हैं। अमेरिका में 9/11 के बाद हाल के वर्षों में इस्लामी कट्टरपंथियों के हमले कम हो गए हैं और मुसलमानों तथा एशियाई मूल के दूसरे लोगों पर हमले बढ़ गए हैं। यूरोप में पिछले कुछ दशकों से शरणार्थियों के विरोध में अभियान चल रहा है। ‘मुसलमान और अश्वेत लोग हमलावर हैं और वे हमारे हक मार रहे हैं।’ इस किस्म की बातें अब बहुत ज्यादा बढ़ गईं हैं। पिछले साल श्रीलंका में हुए सीरियल विस्फोटों के बाद ऐसे सवाल वहाँ भी उठाए जा रहे हैं।

Friday, November 6, 2020

नियंत्रण रेखा पर चीनी धौंसपट्टी चलने नहीं देंगे

 


वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर भारत और चीन के बीच तनाव की खबरें कुछ समय से पृष्ठभूमि में चली गईं थी, पर आज (शुक्रवार 06 नवंबर) को चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल विपिन रावत की चेतावनी के साथ बातें फिर से ताजा हो गईं हैं। यह सिर्फ संयोग नहीं है कि आज से ही दोनों देशों के बीच सीमा पर तनाव कम करने के बातचीत का आठवाँ दौर शुरू हो रहा है।

जनरल रावत ने कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर यथास्थिति को बदलने की चीनी कोशिशों को हम स्वीकार नहीं करेंगे। भारतीय सेना की दृढ़ता और संकल्प-शक्ति के कारण चीनी सेना को इस क्षेत्र में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। नेशनल डिफेंस कॉलेज द्वारा आयोजित एक वेबिनार में जनरल रावत ने कहा कि चीन के साथ बड़े संघर्ष को खारिज नहीं किया जा सकता है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि फिलहाल इसकी संभावना कम है, पर चीन और पाकिस्तान की मिलीभगत के कारण टकराव बढ़ने (यानी एस्केलेशन) और क्षेत्रीय अस्थिरता पैदा होने का खतरा है।

अमेरिका में बीरबल की खिचड़ी

 


अब करीब-करीब साफ होता जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप यह चुनाव हार चुके हैं। इस बात को भी पहले से कहा जा रहा था कि इसबार परिणाम आने में देर लगेगी, क्योंकि डाक से आए मतपत्रों की गिनती करने में देर होगी। अमेरिका में डाक से मतपत्र भेजने की व्यवस्था अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है। ट्रंप का आरोप है कि मतदान पूरा हो जाने के बाद डाक से आए मतपत्रों को लेना बंद कर देना चाहिए।

उन्होंने पेंसिल्वेनिया, मिशीगन और जॉर्जिया तीन राज्यों की अदालतों में देर से आए मतपत्रों को गणना में शामिल किए जाने की शिकायत की है। उन्हें मिशीगन और जॉर्जिया में सफलता नहीं मिली, पर पेंसिल्वेनिया में मिली है। इस मिश्रित सफलता से भी निर्णायक लाभ उन्हें नहीं मिलेगा, क्योंकि मतगणना रोकने की नहीं परिणाम उनके पक्ष में घोषित किए जाने से ही कुछ हासिल हो सकेगा। नेवादा, जॉर्जिया, पेंसिल्वेनिया और नॉर्थ कैरलीना के परिणाम आने हैं।

मुझे लगता है कि ट्रंप चार-छह वोट से हारेंगे। बिडेन जीत जाएंगे, पर यह जीत बेहद मामूली होगी। इससे साबित यह भी होता है कि अमेरिकी मीडिया अभी तक जो दावे कर रहा था, वे आंशिक रूप से ही सही थे। कहाँ, बिडेन को तीन सौ से ऊपर के दावे थे, कहाँ एकदम निर्णायक रेखा पर जाकर रेस खत्म हो रही है। इनमें मिशीगन, जहाँ ट्रंप काफी समय तक आगे थे, उन्हें मिल जाता, तो ट्रंप की जीत हो जाती।

बहरहाल जीत और हार राजनीति का हिस्सा है। चुनाव केवल राष्ट्रपति पद का ही नहीं हुआ है। प्रतिनिधि सदन और सीनेट का भी हुआ है। लगता है कि सीनेट में रिपब्लिकन पार्टी की बढ़त बनी रहेगी और प्रतिनिधि सदन में डेमोक्रेट्स की। बिडेन के राष्ट्रपति बन जाने के बाद सीनेट में उन्हें दिक्कतें होंगी।

इन सब बातों से ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि इस चुनाव ने अमेरिका के ध्रुवीकरण को बढ़ाया है। डेमोक्रेट्स को केवल राजनीतिक सफलता मिली है। इसे नैतिक सफलता नहीं कह सकते। देखना होगा कि वे अमेरिका के उन तमाम नागरिकों को क्या संदेश देते हैं, जो ट्रंप का समर्थन कर रहे थे। देश के चुनाव में इसबार जैसा भारी मतदान हुआ है, वह ध्रुवीकरण की ओर भी इशारा कर रहा है। चुनाव परिणाम फिलहाल बीरबल की खिचड़ी की तरह आ रहे हैं। पूरे परिणाम आने के बाद हम इनके निहितार्थ पर ज्यादा अच्छे तरीके से बात कर पाएंगे।

 

 

Thursday, November 5, 2020

अंतरिक्ष में ऊर्जा का यह विस्फोट कैसा है?


अंतरिक्ष की गतिविधियों पर नजर रखने वाले वैज्ञानिकों ने एकबार फिर से रेडियो इनर्जी की रहस्यमय भारी वर्षा को दर्ज किया है। इसका स्रोत हमारी आकाशगंगा के भीतर ही है। यह पहला मौका है, जब हमारी आकाशगंगा में ऐसा विस्फोट देखा गया है।

अंतरिक्ष में होने वाले फास्ट रेडियो बर्स्ट या एफआरबी आमतौर पर एक सेकेंड से भी छोटी अवधि में होते हैं, पर वे हमारे सूर्य से करोड़ों गुना ज्यादा ऊर्जा पैदा करते हैं। इतने विशाल ऊर्जा स्फोट के बावजूद यह पता नहीं लग पाता है कि उनका स्रोत क्या है।

अमेरिका में 120 साल बाद रिकॉर्ड मतदान



अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में भारी मतदान के संदर्भ में जो शुरुआती जानकारी मिली है, उसके अनुसार 1900 के बाद अमेरिका में इतना जबर्दस्त मतदान हुआ है। फ्लोरिडा विवि के प्रोफेसर माइकेल मैक्डोनाल्ड ने ट्वीट किया है कि 120 साल बाद अमेरिका में सबसे ज्यादा मतदान हुआ है। उनका अनुमान है कि इसबार करीब 16 करोड़ यानी 66.9 प्रतिशत मतदाताओं ने वोट डाले हैं। सन 1900 में 73.2 फीसदी वोट पड़े थे। हालांकि इसबार का मतदान के प्रतिशत अभी शुरुआती अनुमान ही है, क्योंकि डाक के मत अभी आ ही रहे हैं।  


दुनियाभर के देशों के मतदाताओं और मतदान से जुड़ा डेटा रखने वाली संस्था इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस के अनुसार भारत के मुकाबले अमेरिकी मतदान कहीं नहीं है। अमेरिका में करीब 21 करोड़ मतदाता पंजीकृत हैं वहीं भारत के पिछले लोकसभा चुनाव में 91 करोड़ से ज्यादा मतदाता पंजीकृत थे। इंडोनेशिया दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जहाँ 2019 में 19.29 करोड़ मतदाता पंजीकृत थे। भारत में मतदान पूरा होने में करीब डेढ़ महीने का समय लगता है, जबकि अमेरिका और इंडोनेशिया में यह एक दिन में ही पूरा होता है। इनके अलावा ब्राजील, रूस, बांग्लादेश, पाकिस्तान और जापान में 10 करोड़ से ज्यादा मतदाता हैं।