Monday, November 2, 2020

कोरोना की एक और लहर से सावधान!

दुनिया के कई देशों, खासकर यूरोप और अफ्रीका में कोरोना की एक और लहर ने दस्तक दी है। फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी में फिर लॉकडाउन, कर्फ्यू समेत कई तरह की बंदिशें लगाई जा रही हैं। अलबत्ता भारत में लॉकडाउन खत्म हो रहा है। कोरोना के हालात सुधरे हैं। नए केसों की संख्या कम हो रही है, रिकवरी रेट बढ़ा है और मरने वालों की संख्या कम हुई है। तीनों पैमानों पर सुधार के बावजूद अंदेशा है कि अगले दो-एक महीनों में एक लहर और आ सकती है। ठंड बढ़ने, त्योहारी भीड़ बढ़ने और बिहार-चुनाव के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग के लगातार उल्लंघनों के कारण इस अंदेशे को बल मिला है।

चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर और हांगकांग का रिकॉर्ड फिलहाल सबसे अच्छा है। दुनिया की सबसे सघन आबादी एशिया में रहती है, फिर भी पश्चिमी देशों की तुलना में यहाँ का रिकॉर्ड अच्छा है। इसके पीछे छिपे अनेक कारणों में से एक यह भी है इस इलाके के लोगों ने टीकाकरण को बेहतर तरीके से अपनाया है। पश्चिमी देशों में टीकों का विरोध होता है।

भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने मंगलवार 20 अक्तूबर को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट जारी की, जिसके मुताबिक यूके, यूएस, स्पेन, फ्रांस समेत दुनिया के कई देशों में कोरोना की दूसरी लहर शुरू हो चुकी है। यहां संक्रमितों की संख्या में तेजी देखी गई है। न्यू एंड इमर्जिंग रेस्पिरेटरी वायरस थ्रैट्स एडवाइजरी ग्रुप के अध्यक्ष एवं ब्रिटेन सरकार के सलाहकार पीटर हॉर्बी ने कहा है कि बढ़ते मामले को देखते हुए एक बार फिर राष्ट्रीय लॉकडाउन लगाया जा सकता है।

Sunday, November 1, 2020

कैसा अंधेर था कश्मीर के रोशनी कानून का?

 


जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने रोशनी भूमि योजना में कथित घोटाले की जांच जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट की ओर से सीबीआई को सौंपे जाने के तीन सप्ताह बाद शनिवार को कहा कि इस योजना के तहत की गई सभी कार्रवाई को रद्द करेगा और छह महीने के अंदर सारी जमीन को फिर से हासिल करेगा।

 रोशनी एक्ट सन 2001 में फारूक अब्दुल्ला सरकार ने लागू किया था। हाल में जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय ने इस कानून को असंवैधानिक करार दिया। उच्च न्यायालय ने टिप्पणी की कि सरकारी भूमि पर नेताओं और अफसरों का कब्जा जायज नहीं ठहराया जा सकता है। कोर्ट ने निर्देश दिया था कि 25,000 करोड़ रुपये की भूमि आवंटन योजना की जांच सीबीआई को दी जाए।

केरल को छोड़ सीपीएम बाकी जगह कांग्रेस के साथ


मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की सेंट्रल कमेटी ने शनिवार 31 अक्तूबर को तय किया कि पश्चिम बंगाल विधानसभा के आगामी चुनाव में पार्टी तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के मुकाबले में कांग्रेस के साथ गठबंधन में शामिल होगी। बंगाल में दोनों पार्टियाँ अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं।

इस प्रकार फिलहाल सीपीएम बंगाल में कांग्रेस के साथ दोस्ती और केरल में टकराव की अपनी नीति पर चलेगी। केरल में भी बंगाल के साथ-साथ आगामी मई में चुनाव होने वाले हैं। पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी का कहना है कि केरल की जनता इतनी समझदार और प्रौढ़ है कि दोनों पार्टियों की इस जरूरत को अच्छी तरह से महसूस कर सके।

असम में भी, जहाँ विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, सीपीएम सेक्युलर पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव में हिस्सा लेगी। इन पार्टियों कांग्रेस भी शामिल है। तमिलनाडु में पार्टी द्रमुक के साथ उस गठबंधन में शामिल होगी, जिसका एक घटक कांग्रेस भी है।

सीपीएम पोलित ब्यूरो ने पिछले रविवार यानी 25 अक्तूबर को बंगाल में कांग्रेस के साथ सहयोग करने के प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी थी। पार्टी की केरल शाखा अपने राज्य में कांग्रेस के साथ गठबंधन में शामिल होना नहीं चाहती, पर उसने बंगाल में गठबंधन का विरोध नहीं किया।

केरल की राजनीति में दोनों पार्टियाँ एक-दूसरे की कट्टर दुश्मन हैं। इन दिनों भी वहाँ कई मुद्दों को लेकर टकराव चल रहा है। इनमें एक मुद्दा सीपीएम के राज्य महासचिव कोडियेरी बालकृष्णन के पुत्र बिनीश की ड्रग से जुड़े एक मनी लाउंडरिंग मामले में गिरफ्तारी का है। दूसरा मुद्दा सोने की तस्करी को लेकर है, जिसमें मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन के पूर्व प्रमुख सचिव एम शिवशंकर को गिरफ्तार किया गया है।

 

 

 

खतरा कट्टरता की लहर का

एक महीने के भीतर फ्रांस में गला काटने की तीन घटनाओं ने दुनियाभर का ध्यान खींचा है। इन हत्याओं को लेकर एक तरफ फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कड़ी चेतावनी दी है, वहीं तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोआन, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और मलेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने फ्रांस पर मुसलमानों के दमन का आरोप लगाया है। दुनिया के मुसलमानों के मन में पहले से नाराजगी भरी है, जो इन तीन महत्वपूर्ण राजनेताओं के बयानों के बाद फूट पड़ी है।

दूसरे देशों के अलावा भारत में भी फ्रांस विरोधी प्रदर्शन हुए हैं। भारत सरकार ने फ्रांस के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया है। हिंसक कार्रवाई का समर्थन किसी रूप में नहीं किया जा सकता। ऐसा पहली बार हो रहा है, जब तुर्की और पाकिस्तान सरकार खुलकर हिंसा का समर्थन कर रहे हैं। इससे उनके देशों के कट्टरपंथी तबकों को खुलकर सामने आने का मौका मिल रहा है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि प्रदर्शनकारी अपने पैगम्बर के अपमान से आहत हैं। पर गर्दन काटने का समर्थन कैसे किया जाए?

Saturday, October 31, 2020

कहाँ जा रहा है तुर्की?


अमेरिकी डॉलर की तुलना में तुर्की के लीरा की कीमत लगातार गिरती जा रही है। शुक्रवार 30 अक्तूबर को एक डॉलर में 8.35 लीरा मिल रहे थे। इस साल अगस्त में एक डॉलर में 7.6 मिल रहे थे। तब गोल्डमैन सैक्स का अनुमान था कि एक साल बाद एक डॉलर में 8.25 लीरा हो जाएंगे, पर इस महीने ही वह सीमा पार हो चुकी है। बोलीविया की मुद्रा बोलीविया बोलिवियानो के बाद शायद लीरा ही इस वक्त दुनिया की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा बन गई है। देश के राष्ट्रपति एर्दोआन ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को चुनौती दी थी कि वे और प्रतिबंध लगाकर देखें। अमेरिका ही नहीं उन्होंने यूरोप के साथ भी अपने रिश्ते खराब कर लिए हैं।

दस साल पहले तुर्की के तत्कालीन विदेशमंत्री अलमत दावुतुगोलू ने पड़ोसी देशों के साथ जीरो प्रॉब्लम्स नीति पर चलने की बात कही थी। पर आज यह देश पड़ोसियों के साथ जीरो फ्रेंडली रह गया है। तमाम देशों के साथ उसके रिश्ते सुधर गए थे और वह अफगानिस्तान से लेकर फलस्तीन समस्याओं के समाधान में मध्यस्थ बनता जा रहा था। यहाँ तक कि अमेरिका और ईरान के रिश्तों को सुधारने का जिम्मा भी तुर्की ने अपने ऊपर ले लिया था। पर अब सीरिया, लीबिया और आर्मेनिया-अजरबैजान के झगड़े तक में तुर्की ने हिस्सा लेना शुरू कर दिया है। हर जगह वह हस्तक्षेप कर रहा है।

तुर्की की नई विदेश नीति पश्चिम विरोधी है। वह यक़ीन करता है कि विश्व में पश्चिमी देशों का प्रभाव अब घट रहा है और तुर्की को चीन और रूस जैसे देशों के साथ अपने ताल्लुकात बढ़ाने चाहिए। हाल में फ्रांस में हुए हत्याकांड और राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के बयान के बाद तुर्क राष्ट्रपति एर्दोआन ने मुस्लिम देशों से कहा है कि वे फ्रांसीसी सामान का बहिष्कार करें। हाल के महीनों में तुर्की की विदेश नीति के मुखर आलोचक रहे मैक्रों पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा, ‘फ्रांस की बागडोर जिनके हाथों में है वह राह भटक गए हैं। वह सोते जागते बस एर्दोआन के बारे में सोचते हैं। आप अपने आपको देखें कि आप कहां जा रहे हैं।’

सऊदी अरब के साथ तुर्की की प्रतिद्वंद्विता जगजाहिर है। पर तमाम बातें स्पष्ट नहीं हैं। एक तरफ वह रूस से एस-400 हवाई सुरक्षा प्रणाली खरीद रहा है, जिसके कारण अमेरिका उससे नाराज है, वहीं वह आर्मेनिया के खिलाफ अजरबैजान का साथ दे रहा है, जिसमें रूस आर्मेनिया के साथ खड़ा है। हालांकि तुर्की अभी नेटो का सदस्य है, पर लगता है कि उसे नेटो छोड़ना होगा।