Sunday, July 26, 2020

कांग्रेसी नेतृत्व का रसूख दाँव पर

राजस्थान में कांग्रेस पार्टी का जो संकट खड़ा हुआ है, वह है क्या? क्या यह कि अशोक गहलोत की सरकार बचे? या यह कि कांग्रेस बचे? अशोक गहलोत इसे अपने ऊपर आए संकट के रूप में भले ही देख रहे हों, पर यह संकट कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व और खासतौर से गांधी-नेहरू परिवार पर है। गहलोत सरकार बच भी गई, तो इस बात की गारंटी नहीं कि कांग्रेस का पराभव रुक जाएगा। पार्टी संकट में है। वह फिर से खड़ी होने की कोशिश में डगमगा रही है। और यह संकट केवल कांग्रेस पार्टी पर ही नहीं है, बल्कि यूपीए के गठबंधन पर भी है।

राजस्थान का विवाद जम्मू-कश्मीर के अब्दुल्ला परिवार के साथ किस तरह जुड़ गया, क्या हमने इसके बारे में सोचा है? महाराष्ट्र में एनसीपी कांग्रेस के साथ हैं, पर वह कब धोखा दे दे, इसका ठिकाना नहीं। हाल में चीन के संदर्भ में शरद पवार ने राहुल गांधी को सचेत किया कि मोदी की आलोचना ठीक नहीं। ये बातें संगठनात्मक कौशल के साथ-साथ वैचारिक भटकाव की ओर भी इशारा कर रही हैं। इनका दूरगामी असर यूपीए के स्वास्थ्य पर पड़ेगा।

Monday, July 20, 2020

पायलटों पर लगी वैश्विक पाबंदियों से गिरी पाकिस्तान की साख

गरीबी, अशिक्षा और कोरोना जैसी महामारी के दुष्प्रभाव से लड़ते जूझते दक्षिण एशिया में जब भारत और पाकिस्तान के रिश्तों पर नजर डालते हैं, तो बेहद निराशाजनक तस्वीर उभर कर आती है। हाल में खबरें हैं कि पाकिस्तान ने कश्मीर मामले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने के लिए अपने प्रयास बढ़ा दिए हैं। दूसरी तरफ वह एफएटीएफ की काली सूची में जाने से वह इसलिए बच गया, क्योंकि कोरोना के कारण दुनिया के पास इन बातों के लिए वक्त नहीं है। भारत के साथ रिश्तों को सुधारने की बात करने का मतलब पाकिस्तान में पाप माना जाता है, जबकि जरूरत इस बात की है कि दोनों देश मिलकर आर्थिक-सामाजिक बदहाली से लड़ाई लड़ें।

कुछ समय पहले इमरान खान ने ट्वीट किया कि हमने कोरोना महामारी के दौर में नौ हफ्तों में देश के एक करोड़ परिवारों को 120 अरब रुपये की सहायता पहुँचाई है। भारत चाहे, तो हम उसे मदद पहुँचाने का तरीका बता सकते हैं और पैसे से मदद भी कर सकते हैं। उनके इस ट्वीट का पाकिस्तान में ही काफी मजाक बना। दूसरी तरफ खबरें हैं कि पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था नीचे गिरने के नए प्रतिमान स्थापित कर रही है। वहाँ से सत्ता परिवर्तन की अफवाहें भी आती रहती हैं। खासतौर से इमरान खान के नेतृत्व को लेकर सवाल हैं। इसी संदर्भ में ‘माइनस वन’ फॉर्मूला भी चर्चित हुआ है। इसका मतलब है इमरान खान को हटाकर सरकार के वर्तमान स्वरूप को बनाए रखना।

गिरती साख

हाल में देश का बजट पेश हुआ। उसके पहले पेश की गई आर्थिक समीक्षा में चेतावनी दी गई कि नैया डूब रही है। विदेशी कर्जा जीडीपी का 88 फीसदी हो गया है। करीब 60 फीसदी आबादी गरीबी की रेखा के नीचे जाने का अंदेशा है। अर्थव्यवस्था लगातार विदेशी कर्ज के सहारे है। कब तक कर्ज मिलेगा? देश की साख वैश्विक मंच पर लगातार गिर रही है। ऐसे में एक खराब खबर नागरिक उड्डयन के क्षेत्र से मिली है। पाकिस्तानी पायलटों के विमान संचालन पर तकरीबन पूरी दुनिया में रोक लग गई है।

Sunday, July 19, 2020

कांग्रेसी कश्ती में फिर दरार

कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई की एक बैठक में दिए गए राहुल गांधी के बयान को दो तरह से पढ़ा गया है। एक यह कि जो जाना चाहता है, वह जा सकता है। दूसरा यह कि जिसे पार्टी छोड़कर जाना है वह जाएगा ही, आप लोगों को घबराना नहीं है। जब कोई बड़ा नेता पार्टी छोड़कर जाता है तो आप जैसे लोगों के लिए रास्ते खुलते हैं। बाद में कांग्रेस पार्टी की ओर से कहा गया कि बैठक में ऐसी कोई बात नहीं हुई थी, पर खबर तो पार्टी के भीतर से ही आई थी। राहुल गांधी की बात में विसंगति है। युवाओं के लिए रास्ते तभी खुलते हैं, जब बुजुर्ग लोग उनके लिए रास्ते खोलते हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट का प्रसंग बता रहा है कि पार्टी के युवा नेता नाराज हैं। यह पार्टी इतनी दुविधा और संशय में इसके पहले कभी नहीं रही। दूसरी तरफ उसके विरोधी खंडहर की ईंटें हिलाने का मौका छोड़ नहीं रहे हैं।

Monday, July 13, 2020

संकट में ओली और असमंजस में नेपाल


नेपाल का राजनीतिक संकट खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। पिछले तीन महीने का असमंजस निर्णायक मोड़ पर आता दिखाई पड़ रहा है, पर यह मोड़ क्या होगा, यह साफ नहीं है। तीन-चार संभावित रास्ते दिखाई पड़ रहे हैं। एक, ओली अध्यक्ष पद छोड़ दें और प्रधानमंत्री बने रहें। दूसरे वे अध्यक्ष बने रहें और प्रधानमंत्री पद छोड़ें। तीसरा रास्ता है, पार्टी का विभाजन। पार्टी में विभाजन हुआ, तब देश फिर से बहुदलीय असमंजस का शिकार हो जाएगा और नेपाली कांग्रेस की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाएगी। इन सब बातों की पृष्ठभूमि में नेपाल पर भारत और चीन के राजनीतिक प्रभाव की भी परीक्षा है। फिलहाल तो यही लगता है कि नेपाल पर चीन का प्रभाव है। इस हफ्ते भारत के निजी समाचार चैनलों पर रोक लगना भी इस बात की गवाही दे रहा है।

विदेश-नीति के मोर्चे पर प्रधानमंत्री केपीएस ओली की सरपट चाल के उलट परिणाम अब सामने आ रहे हैं। पुष्प दहल के साथ समझौता करके क्या वे अपनी सरकार बचा लेंगे? हालांकि यह बात मुश्किल लगती है, पर ऐसा हुआ भी तो यह स्थायी हल नहीं है। ओली साहब के सामने विसंगतियाँ कतार लगाए खड़ी हैं। संकट को टालने में चीनी राजदूत होऊ यांछी के हड़बड़ प्रयास भी चर्चा का विषय बने हैं। उन्होंने दोनों खेमों के नेताओं से मुलाकात करके समाधान की जो कोशिशें कीं, उससे इतना साफ हुआ कि चीन खुलकर नेपाली राजनीति में हस्तक्षेप कर रहा है। उन्होंने 3 जुलाई को राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी से भी मुलाकात की, जो खुद इस टकराव में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं।

चीन-मुखी नीति को लेकर सवाल

औपचारिक शिष्टाचार के अनुसार ऐसी मुलाकातों के समय विदेश मंत्रालय के अधिकारियों को भी उपस्थित रहना चाहिए, पर ऐसा हुआ नहीं। पता नहीं उन्हें जानकारी थी भी या नहीं। इसके पहले होऊ ने अप्रेल और मई में भी हस्तक्षेप करके पार्टी को विभाजन के रास्ते पर जाने से बचाया था। चीन ने भारत के विरुद्ध नेपाली राष्ट्रवाद के उभार का भी लाभ उठाया। नक्शा प्रकरण इसका उदाहरण है। ओली की चीन-मुखी विदेश नीति को लेकर भी अब सवाल उठने लगे हैं। मंगलवार को नेपाली कांग्रेस और जसपा की बैठक शेर बहादुर देउबा के निवास पर हुई, जिसमें विदेश नीति के झुकाव और लोकतांत्रिक संस्थाओं के क्षरण पर नाराजगी व्यक्त की गई।

Sunday, July 12, 2020

जनता के रोष को पढ़िए

विकास दुबे की मौत की खबर आने के फौरन बाद एक पत्रकार ने ट्वीट किया, विकास दुबे नहीं मरता तो शायद ये होता, 1.डर के मारे कोई उसके खिलाफ गवाही नहीं देता, 2.अपने समाज का बड़ा नेता बन जाता, 3.सन 2022 में विधायक/मंत्री होता, 4.जो पुलिस उसे पकड़ के ला रही थी, वो उसकी सुरक्षा में होती, 5.और हमलोग उसके बंगले के गेट पर उसकी बाइट लेने खड़े होते इस ट्वीट का जवाब एक और पत्रकार ने दिया, प्रक्रिया हमें थकाती है, फ्रस्ट्रेट करती है, निराश भी करती है लेकिन किसी नागरिक को हमेशा क़ानूनी प्रक्रिया के साथ ही होना चाहिए क्योंकि वही प्रक्रिया उसकी सुरक्षा भी करती है…।
दोनों बातों में ज्यादा बड़ा सच क्या है? किसी ने लिखा, पकड़ा जाता तो कुछ लोगों के नाम बताता। इसके जवाब में किसी ने लिखा, सैयद शहाबुद्दीन, गाजी फकीर, मुन्ना बजरंगी और अतीक अहमद ने किसका नाम बताया? सच तो यह भी है कि विकास दुबे ने थाने में घुस कर एक राज्यमंत्री की सरेआम हत्या कर दी थी। तीस पुलिस वालों में से एक ने भी गवाही नहीं दी। जमानत पर छूटकर बाहर आ गया।
यूपी के इस डॉन की मौत किन परिस्थितियों में हुई, यह विचार का अलग विषय है। सच यह है कि बड़ी संख्या में लोग इस कार्रवाई से खुश हैं। उन्हें लगता है कि जब कुछ नहीं हो सकता, तो यही रास्ता है। पिछले साल के अंत में जब हैदराबाद में चार बलात्कारियों की मौत पुलिस मुठभेड़ में हुई, तब जनता ने पुलिस वालों का फूल मालाओं से स्वागत किया था। क्यों किया था? ऐसा नहीं कि लोग फर्जी मुठभेड़ों को सही मानते हैं। सब मानते हैं कि कानून का राज हो, पर कैसे? न्याय-व्यवस्था की सुस्ती और उसके भीतर के छिद्र उसे नाकारा बना रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि सरकारें पुलिस सुधार से बच रही हैं। राजनीतिक कारणों से मुकदमे वापस लिए जाते हैं और राजनीतिक कारणों से मुकदमे चलाए भी जाते हैं। सिर्फ न्यायपालिका को दोष देना भी गलत है। सरकार समझती है कि अपराधियों को ठोकने से काम चल जाएगा, तो वह गलत सोचती है।