Sunday, December 22, 2019

क्यों डरा रहे हैं मुसलमानों को?


तीन तरह की ताकतें मुसलमानों को डरा रहीं हैं। एक, सत्ता की राजनीति। इसमें दोनों तरह के राजनीतिक दल शामिल हैं। जो सत्ता में हैं और जो सत्ता हासिल करना चाहते हैं। दूसरे, मुसलमानों के बीच अपने नेतृत्व को कायम करने की कोशिश करने वाले लोग। और तीसरे कुछ न्यस्त स्वार्थी तत्व, जिनका हित अराजकता पैदा करने से सधता है। समाज को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने के बाद ये लोग अपनी रोटियाँ सेंकते हैं। नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में जब पूर्वोत्तर का आंदोलन थमने लगा था, दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रों का आंदोलन अचानक शुरू हुआ। और अब दिल्ली और उत्तर प्रदेश में एक लहर सी उठी है, जिसमें आधिकारिक रूप से 6 और गैर-सरकारी सूत्रों के अनुसार इससे कहीं ज्यादा लोगों की मौत हुई है। असम और पूर्वोत्तर के आंदोलनों के पीछे के कारण वही नहीं हैं, जो दिल्ली, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में नजर आ रहे हैं। यह आंदोलन मुसलमानों के मन में भय बैठाकर खड़ा किया गया है। उन्हें भरोसा दिलाने की जरूरत है कि उनका अहित नहीं होगा। पर उन्हें डराया गया है। कहीं न कहीं राजनीतिक ताकतें सक्रिय हैं। क्या वजह है कि राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब और मध्य प्रदेश में आंदोलन खड़े नहीं हुए?
भारत के मुसलमानों की हिफाजत की जिम्मेदारी बहुसंख्यक समुदाय की है। उनके साथ अन्याय नहीं होना चाहिए, पर यह भी देखना होगा कि कोई ताकत है, जो हमें भीतर से कमजोर करना चाहती है। क्या वजह है कि जो आंदोलनकारी नागरिकता संशोधन विधेयक और नागरिकता रजिस्टर के बारे में कुछ नहीं जानते, वे रटी-रटाई बातें बोल रहे हैं कि सीएए+एनआरसी से मुसलमानों को खतरा है। शुक्रवार को दिन में जब मीडिया प्रतिनिधि दिल्ली में जामा मस्जिद के पास जमा भीड़ से बात कर रहे थे, तब लोग कह रहे थे कि 370 हटाया गया, हमसे तीन तलाक छीन लिया गया और बाबरी मस्जिद पर कब्जा कर लिया गया। अब हमें निकालने की साजिश की जा रही है।

Saturday, December 21, 2019

सार्वजनिक उद्योगों के पास खाली क्यों पड़ी है इतनी जमीन?


अर्थव्यवस्था को ठीक बनाए रखने और औद्योगिक संवृद्धि को तेज करने के इरादे से सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों के विनिवेश  में तेजी लाने का फैसला किया है। इसके साथ-साथ सरकार ने नौ सार्वजनिक उद्योगों की जमीन और भवनों को बेचने का कार्यक्रम भी बनाया है। देश के सार्वजनिक उद्योगों के पास काफी जमीन पड़ी है, जिसका कोई इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। सरकार के पास भी शायद इस बात की पूरी जानकारी भी नहीं है कि कितनी जमीन इन उद्योगों के पास है। अब इस संपदा को बेचने के लिए सरकार वैश्विक कंपनियों की सलाह ले रही है।
कानपुर को औद्योगिक कब्रिस्तान कहा जाता है। आप शहर से गुजरें तो जगह-जगह बंद पड़े परिसर नजर आएंगे। यह जगह कभी गुलज़ार रहा करती थी। शहर के बंद पड़े सार्वजनिक उद्योगों, मुम्बई के वस्त्र उद्योग और बेंगलुरु के एचएमटी इलाके में ऐसी खाली जमीन को देखा जा सकता है। देश के अनेक शहरों में ऐसे दृश्य देखे जा सकते हैं। अक्तूबर 2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत सरकार के पास 13,505 वर्ग किलोमीटर जमीन है। भूमि का यह परिमाण दिल्ली के क्षेत्रफल (1.483 वर्ग किलोमीटर) का नौगुना है। देश के 51 केंद्रीय मंत्रालयों में से 41 और 300 से ऊपर सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों में से 22 से प्राप्त विवरणों पर यह जानकारी आधारित थी।

Thursday, December 19, 2019

न्याय में विलंब और गैर-जिम्मेदार राजनीति



राजनीतिक दलों को अधिकार है कि वे किसी भी मामले को राजनीतिक नजरिए से देखें, पर सामान्य नैतिकता का तकाज़ा है कि कम से कम बलात्कार जैसे जघन्य अपराध को वे मानवीय दृष्टि से देखें। हाल के वर्षों में कई बार ऐसा हुआ है, जब बलात्कार को लेकर हुई बहस बेवजह राजनीतिक मोड़ ले लेती है। हाल में उन्नाव कांड पर लोकसभा में चर्चा के दौरान केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के साथ दुर्व्यवहार को लेकर कांग्रेस के दो सदस्यों के विरुद्ध प्रस्ताव रखा जाना इस दुखद पहलू का नवीनतम उदाहरण है। इस संबंध में संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने सदन में प्रस्ताव रखा और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि वह इस विषय पर न्यायपूर्ण निर्णय करेंगे। कांग्रेस के दो सदस्यों पर केवल दुर्व्यवहार की आरोप ही नहीं था, बल्कि शुक्रवार 6 दिसंबर को आसन की ओर से निर्देश के बावजूद दोनों सदस्यों ने माफी नहीं मांगी।
इस प्रकरण को अलग कर दें, तब भी बलात्कार जैसे प्रकरण पर बहस का रुख अपराध और उसके निराकरण पर होना चाहिए। पूरा देश पहले हैदराबाद और फिर उन्नाव की घटना को लेकर बेहद गुस्से में है। यह गुस्सा अपराधियों और अपराध की ओर केंद्रित होने के बजाय राजनीतिक प्रतिस्पर्धी की ओर होता है, तो ऐसी राजनीति पर शर्म आती है। संसद में गंभीर टिप्पणियों का जवाब गंभीर टिप्पणियों से ही दिया जाना चाहिए। रोष की मर्यादापूर्ण अभिव्यक्ति के लिए भी कोशों में शब्दों की कमी नहीं है। कम से कम ऐसे मौकों पर हमारे स्वर एक होने चाहिए।

Wednesday, December 18, 2019

किसने हाईजैक किया इस छात्र आंदोलन को?


नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में जब पूर्वोत्तर का आंदोलन थमने लगा था, दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रों का आंदोलन अचानक शुरू हुआ और उसने देशभर का ध्यान अपनी ओर खींचा है. यह आंदोलन अब देश के दूसरे इलाकों में भी शुरू हो गया है. आंदोलन से जुड़ी, जो तस्वीरें सामने आई हैं, उनसे इसके दो पहलू उजागर हुए हैं. पहला है कि आगजनी और हिंसा का और दूसरा है पुलिस की  कठोर कार्रवाई का. इस मामले ने भी सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी है. वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तो तैयार है, पर चीफ जस्टिस शरद अरविंद बोबडे ने हिंसा को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की और कहा कि हिंसा रुकने पर ही सुनवाई होगी.

छात्रों का कहना है कि हिंसा हमने नहीं की है, बल्कि बाहरी लोग हैं. कौन हैं बाहरी लोग? वे कहाँ से आए हैं और विश्वविद्यालय में उनकी दिलचस्पी क्यों है? लोकतांत्रिक व्यवस्था में शांतिपूर्ण विरोध हमारा सांविधानिक अधिकार है, पर इस अधिकार का इस्तेमाल सांविधानिक तरीके से ही होना चाहिए. सार्वजनिक परिवहन से जुड़ी बसों और निजी वाहनों को आग लगाना कहाँ का विरोध प्रदर्शन है? उधर ममता बनर्जी कोलकाता में प्रदर्शन कर रहीं हैं. उनके पास भी इस बात की जवाब नहीं है कि ट्रेनों में आग लगाने का काम कौन लोग कर रहे हैं? रेल की पटरियाँ कौन उखाड़ रहा है?  दिल्ली से खबरें मिल रही हैं कि जामिया का आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से ही शुरू हुआ था, पर अचानक यह हिंसक हो गया. किसी ने इसे हाईजैक कर लिया. किसने हाईजैक कर लिया और क्यों?

Tuesday, December 17, 2019

क्या पुलिस को विवि कैम्पस में प्रवेश का अधिकार है?


नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में जब पूर्वोत्तर का आंदोलन थमने लगा था, दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रों का आंदोलन अचानक शुरू हुआ और उसने देशभर का ध्यान अपनी ओर खींचा है. यह आंदोलन अब देश के दूसरे इलाकों में भी शुरू हो गया है. रविवार को दिल्ली में कम से कम चार बसें, एक दर्जन कारें और दर्जनों बाइकें स्वाहा होने के बाद सवाल उठे हैं. मंगलवार को दिल्ली के सीलमपुर इलाके में भी करीब-करीब इस हिंसा की पुनरावृत्ति हुई. क्या वजह है इस हिंसा की? सीलमपुर में प्रदर्शन क्यों हुआ? आंदोलन से जुड़ी, जो तस्वीरें सामने आई हैं, उनसे इसके दो पहलू उजागर हुए हैं. पहला है कि आगजनी और हिंसा का और दूसरा है जामिया में पुलिस की कठोर कार्रवाई का. इस मामले ने भी सुप्रीम में दस्तक दी है. इंदिरा जयसिंह की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस शरद बोबडे ने हिंसा को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की और कहा कि हिंसा रुकने पर ही सुनवाई होगी. वहाँ सुनवाई हुई भी है. दिक्कत यह है कि एक पक्ष केवल छात्र आंदोलन पर बात करना चाहता है, तो दूसरा पक्ष केवल हिंसा पर. क्या दोनों बातों पर एकसाथ बात नहीं होनी चाहिए?