किसी देश का गौरव किन बातों पर निर्भर करता है? दूसरे शब्दों में पूछें, तो वे कौन सी बातें हैं, जिन्हें लेकर दुनिया हमें तारीफ भरी नजरों से देखती
है? आमतौर पर हम अपने राष्ट्रीय दिवसों
यानी 15 अगस्त और 26 जनवरी को इन गौरव-अनुभूतियों से ओत-प्रोत होते हैं।
क्यों होते हैं? साल का कोई ऐसा दिन नहीं
होता, जब हमारा नकारात्मक बातों से
सामना न होता हो। अपराध, भ्रष्टाचार, बेईमानी, साम्प्रदायिकता वगैरह-वगैरह का बोलबाला है। तब फिर हम किस बात पर गर्व करें?
राष्ट्रीय पर्व ऐसे अवसर होते हैं जब लाउड स्पीकर पर देशभक्ति के गीत बजते हैं।
क्या वास्तव में हम देशभक्त हैं?
क्या हम जानते हैं कि देशभक्त माने होता क्या है? ऐसे ही सवालों से जुड़ा सवाल यह है कि आजाद होने के
बाद पिछले 72 साल में हमने हासिल क्या
किया है? कहीं हम पीछे तो नहीं चले गए
हैं?
सवाल पूछने वालों से भी सवाल पूछे जाने चाहिए। निराशा के इस गंदे गटर को बहाने
में आपकी भूमिका क्या रही है? ऐसे सवाल हमें कुछ देर
के लिए विचलित कर देते हैं। यह भावनात्मक मामला है। भारत जैसे देश को बदलने और एक नई
व्यवस्था को कायम करने के लिए 72 साल काफी नहीं होते।
खासतौर से तब जब हमें ऐसा देश मिला हो, जो औपनिवेशिक दौर में बहुत कुछ खो चुका था।
अधूरी कहानी…
आजादी के ठीक दस साल बाद रिलीज हुई थी महबूब खान की फिल्म ‘मदर इंडिया।’ यह फिल्म
उन गिनी-चुनी फिल्मों में से एक है,
जो आज भी हमारे दिलो-दिमाग पर छाई हैं और 15 अगस्त को कुछ चैनलों पर दिखाई जाती है। यह फिल्म देशभक्ति
की थीम पर नहीं है, बल्कि एक जमाने के सामाजिक
यथार्थ पर आधारित फिल्म है। शायद भारत के गाँवों में अब सुक्खी लाला नहीं हैं। शायद
‘डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी)’ जैसी स्कीमों, जन-धन और मुद्दा जैसी योजनाओं और मनरेगा जैसे कार्यक्रमों
ने कहानी को काफी बदल दिया है, पर कहानी अभी अधूरी है।