इस साल स्वतंत्रता दिवस ऐसे मौके पर मनाया जा रहा है, जब कश्मीर पर पूरी
दुनिया की निगाहें हैं. स्वतंत्रता के बाद कई मायनों में यह हमारी व्यवस्था की
सबसे बड़ी परीक्षा है. आजादी के दो महीने बाद ही पाकिस्तानी सेना ने कबायलियों की
मदद से कश्मीर पर हमला बोला था. वह लड़ाई तब से लगातार चल रही है. तकरीबन 72 साल
बाद भारत ने कश्मीर में एक निर्णायक कार्रवाई की है. क्या हम इस युद्ध को उसकी
तार्किक परिणति तक पहुँचाने में कामयाब होंगे?
तमाम विफलताओं के बावजूद
भारत की ताकत है उसका लोकतंत्र. सन 1947 में भारत का एकीकरण इसलिए ज्यादा दिक्कत
तलब नहीं हुआ, क्योंकि भारत एक अवधारणा के रूप में देश के लोगों के मन में पहले से
मौजूद था. इस नई मनोकामना की धुरी पर है हमारा लोकतंत्र. पर यह निर्गुण लोकतंत्र
नहीं है. इसके कुछ सामाजिक लक्ष्य हैं. स्वतंत्र भारत ने अपने नागरिकों को तीन
महत्वपूर्ण लक्ष्य पूरे करने का मौका दिया है. ये लक्ष्य हैं राष्ट्रीय एकता, सामाजिक न्याय और गरीबी का उन्मूलन.
भारतीय राष्ट्र-राज्य अभी
विकसित हो ही रहा है. कई तरह के अंतर्विरोध हमारे सामने आ रहे हैं और उनका समाधान
भी हमारी व्यवस्था को करना है. कश्मीर भी एक अंतर्विरोध और विडंबना है. उसकी बड़ी
वजह है पाकिस्तान, जिसका वजूद ही भारत-विरोध की मूल-संकल्पना पर टिका है. बहरहाल
कश्मीर के अंतर्विरोध हमारे सामने हैं. घाटी का समूचा क्षेत्र इन दिनों प्रतिबंधों
की छाया में है. कोई नहीं चाहता कि वहाँ प्रतिबंध हों, पर क्या हम जानते हैं कि अनुच्छेद
370 के फैसले के बाद वहाँ सारी व्यवस्थाएं सामान्य नहीं रह सकती थीं.