Monday, August 12, 2019

पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस 15 से 14 अगस्त क्यों हुआ?



भारत और पाकिस्तान अपने स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। दोनों के स्वतंत्रता दिवस अलग-अलग तारीखों को मनाए जाते हैं। सवाल है कि भारत 15 अगस्त, 1947 को आजाद हुआ, तो क्या पाकिस्तान उसके एक दिन पहले आजाद हो गया था? इसकी एक वजह यह बताई जाती है कि माउंटबेटन ने दिल्ली रवाना होने के पहले 14 अगस्त को ही मोहम्मद अली जिन्ना को शपथ दिला दी थी। दिल्ली का कार्यक्रम मध्यरात्रि से शुरू हुआ था।
शायद इस वजह से 14 अगस्त की तारीख को चुना गया, पर व्यावहारिक रूप से 14 अगस्त को पाकिस्तान बना ही नहीं था। दोनों ही देशों में स्वतंत्रता दिवस के पहले समारोह 15 अगस्त, 1947 को मनाए गए थे। सबसे बड़ी बात यह है कि स्वतंत्रता दिवस पर मोहम्मद अली जिन्ना ने राष्ट्र के नाम संदेश में कहा, स्वतंत्र और सम्प्रभुता सम्पन्न पाकिस्तान का जन्मदिन 15 अगस्त है।
14 अगस्त को पाकिस्तान जन्मा ही नहीं था, तो वह 14 अगस्त को अपना स्वतंत्रता दिवस क्यों मनाता है? 14 अगस्त, 1947 का दिन तो भारत पर ब्रिटिश शासन का आखिरी दिन था। वह दिन पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस कैसे हो सकता है? सच यह है कि पाकिस्तान ने अपना पहला स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त, 1947 को मनाया था और पहले कुछ साल लगातार 15 अगस्त को ही पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस घोषित किया गया। पाकिस्तानी स्वतंत्रता दिवस की पहली वर्षगाँठ के मौके पर जुलाई 1948 में जारी डाक टिकटों में भी 15 अगस्त को स्वतंत्रता पाकिस्तानी दिवस बताया गया था। पहले चार-पाँच साल तक 15 अगस्त को ही पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता था।
अलग दिखाने की चाहत
अपने को भारत से अलग दिखाने की प्रवृत्ति के कारण पाकिस्तानी शासकों ने अपने स्वतंत्रता दिवस की तारीख बदली, जो इतिहास सम्मत नहीं है। पाकिस्तान के एक तबके की यह प्रवृत्ति सैकड़ों साल पीछे के इतिहास पर भी जाती है और पाकिस्तान के इतिहास को केवल इस्लामी इतिहास के रूप में ही पढ़ा जाता है। पाकिस्तान के अनेक लेखक और विचारक इस बात से सहमत नहीं हैं, पर एक कट्टरपंथी तबका भारत से अपने अलग दिखाने की कोशिश करता है। स्वतंत्रता दिवस को अलग साबित करना भी इसी प्रवृत्ति को दर्शाता है।
11 अगस्त, 2016 को पाक ट्रिब्यून में प्रकाशित अपने लेख में सेवानिवृत्त कर्नल रियाज़ जाफ़री ने अपने लेख में लिखा है कि कट्टरपंथी पाकिस्तानियों को स्वतंत्रता के पहले और बाद की हर बात में भारत नजर आता है। यहाँ तक कि लोकप्रिय गायिका नूरजहाँ के वे गीत, जो उन्होंने विभाजन के पहले गए थे, उन्हें रेडियो पाकिस्तान से प्रसारित नहीं किया जाता था। उनके अनुसार आजाद तो भारत हुआ था, पाकिस्तान नहीं। पाकिस्तान की तो रचना हुई थी। उसका जन्म हुआ था।    

Sunday, August 11, 2019

प्रधानमंत्री की साफगोई


जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 370 की छाया से मुक्त करने के बाद गुरुवार की रात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्र के नाम संदेश की सबसे बड़ी बात है कि इसमें संदेश में न तो याचना है और न धमकी। सारी बात सादगी और साफ शब्दों में कही गई है। कई सवालों के जवाब मिले हैं और उम्मीद जागी है कि हालात अब सुधरेंगे। साथ ही इसमें यह संदेश भी है कि कुछ कड़े फैसले अभी और होंगे। इसमें पाकिस्तान के नाम संदेश है कि वह जो कर सकता है वह करे। जम्मू-कश्मीर का भविष्य अब पूरी तरह भारत के साथ जुड़ा है। अब पुरानी स्थिति की वापसी संभव नहीं। पर उनका जोर इस बात पर है कि कश्मीर के युवा बागडोर संभालें विकास के साथ खुशहाली का माहौल तैयार करें।
स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले के संबोधन की तरह इस संबोधन को देश में ही नहीं, दुनिया भर में बहुत गौर से सुना गया। इस भाषण में संदेश कठोर है, और साफ शब्दों में है। उन्होंने न तो अतिशय नरम शब्दों का इस्तेमाल किया है और न कड़वी बात कही। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी के प्रायः उधृत इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत सिद्धांत का एक बार भी हवाला नहीं दिया। खुद दो साल पहले उन्होंने लालकिले से कहा था ना गोली से, ना गाली से, कश्मीर समस्या सुलझेगी गले लगाने से। पर इस बार ऐसी कोई बात इस भाषण में नहीं थी।

Saturday, August 10, 2019

370 के चक्रव्यूह में फँसी कांग्रेस


कांग्रेस पार्टी कर्नाटक के पचड़े और राहुल गांधी के इस्तीफे के कारण पैदा हुए संकट से बाहर निकली भी नहीं थी कि अनुच्छेद 370 को लेकर विवाद पैदा हो गया है। यह विवाद पार्टी के भीतर का मामला है और एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय प्रश्न पर पार्टी के भीतर से निकल रहे दो प्रकार के स्वरों को व्यक्त कर रहा है। एक मायने में इसे अच्छे स्वास्थ्य का लक्षण कहा जा सकता है, क्योंकि मतभेद होना कोई गलत बात तो नहीं। अलबत्ता कांग्रेस की परम्परा, नेतृत्व शैली और आंतरिक संरचना को देखते हुए यह अटपटा है।
पिछले सोमवार को अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को मिली स्वायत्तता को समाप्त करने का समाचार मिलने के बाद पूर्व सांसद जनार्दन द्विवेदी ने जब राम मनोहर लोहिया को उधृत करते हुए अपना समर्थन व्यक्त किया, तो इसमें ज्यादा हैरत नहीं हुई। द्विवेदी इस वक्त अपेक्षाकृत हाशिए पर हैं और इससे पहले आरक्षण को लेकर अपनी स्वतंत्र राय व्यक्त कर चुके हैं। हैरत ज्योतिरादित्य सिंधिया के ट्वीट पर हुई, जिसमें उन्होंने कहा, मैं जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को लेकर किए गए फैसले का समर्थन करता हूं। साथ ही भारत में इसके पूर्ण एकीकरण का भी समर्थन करता हूं।
अनेक असहमतियाँ
उन्होंने लिखा कि बेहतर होता कि सांविधानिक प्रक्रिया का पालन किया जाता, तब इस मामले पर कोई भी सवाल नहीं उठाया जा सकता था। फिर भी, यह हमारे देश के हित में है और मैं इसका समर्थन करता हूं। सिंधियाजी राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं और यह बात हवा में है कि पार्टी अध्यक्ष के सम्भावित उम्मीदवारों में उनका नाम भी है। उनसे पहले मिलिंद देवड़ा, अनिल शास्त्री और दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी करीब-करीब ऐसी ही राय व्यक्त की थी।

Thursday, August 8, 2019

एक विलक्षण राजनेता की असमय विदाई


सौम्य, सुशील, सुसंस्कृत, संतुलित और भारतीय संस्कृति की साक्षात प्रतिमूर्ति. सुषमा स्वराज की गणना देश के सार्वकालिक प्रखरतम वक्ताओं और सबसे सुलझे राजनेताओं में और श्रेष्ठतम पार्लियामेंटेरियन के रूप में होगी. जैसे अटल बिहारी वाजपेयी के भाषणों को लोग याद करते हैं, वैसे ही उनके भाषण लोगों को रटे पड़े हैं. संसद में जब वे बोलतीं, तब उनके विरोधी भी ध्यान देकर उन्हें सुनते थे. सन 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा का उनका भाषण हमेशा याद रखा जाएगा, जिसमें उन्होंने पाकिस्तान के आतंकी प्रतिष्ठान की धज्जियाँ उड़ा दी थीं.
सन 2014 में मोदी सरकार में जब वे शामिल हुई, तब तमाम कयास और अटकलें थीं कि यह उनकी पारी का अंत है. पर उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा को एक नया आयाम दिया. विदेशमंत्री पद को अलग पहचान दी. वे देश की पहली ऐसी विदेशमंत्री हैं, जिन्होंने प्रवासी भारतवंशियों की छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान किया. एक जमाने में देश का पासपोर्ट लेना बेहद मुश्किल काम होता था. आज यह काम बहुत आसानी से होता है. इसका श्रेय उन्हें जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वपूर्ण दौरों के पहले वे तमाम देशों की यात्राएं करके भारत के पक्ष में जमीन तैयार करती रहीं.

Tuesday, August 6, 2019

पहली चुनौती है कश्मीर में हालात सामान्य बनाने की


भारतीय राष्ट्र राज्य के लिए इतना बड़ा फैसला पिछले कई दशकों में नहीं हुआ है। सरकार ने बड़ा जोखिम उठाया है। इसके वास्तविक निहितार्थ सामने आने में समय लगेगा। फिलहाल लगता है कि सरकार ने प्रशासनिक और सैनिक स्तर पर इतनी पक्की व्यवस्थाएं कर रखी हैं कि सब कुछ काबू में रहेगा। अलबत्ता तीन बातों का इंतजार करना होगा। सरकार के इस फैसले को अदालत में चुनौती दी जाएगी। हालांकि सरकार ने सांविधानिक व्यवस्थाओं के अंतर्गत ही फैसला किया है, पर उसे अभी न्यायिक समीक्षा को भी पार करना होगा। खासतौर से इस बात की व्याख्या अदालत से ही होगी कि केंद्र को राज्यों के पुनर्गठन का अधिकार है या नहीं। इस फैसले के राजनीतिक निहितार्थों का इंतजार भी करना होगा। और तीसरे राज्य की व्यवस्था को सामान्य बनाना होगा। घाटी के नागरिकों की पहली प्रतिक्रिया का अनुमान सबको है, पर बहुत सी बातें अब भी स्पष्ट नहीं हैं। इन तीन बातों के अलावा अंतरराष्ट्रीय जनमत को अपने नजरिए से परिचित कराने की चुनौती है। सबसे ज्यादा पाकिस्तानी लश्करों की गतिविधियों पर नजर रखने की जरूरत है।