Wednesday, July 5, 2017

गांधी का लेख 'यहूदी लोग'


इस बात को लेकर बहस चल निकली है कि गांधी ने इस्रायल का समर्थन किया था या नहीं। सन 1938 के उनके इस लेख से इतना जरूर पता लगता है कि वे चाहते थे कि यहूदी लोग बंदूक के जोर पर इस्रायल बनाने के बजाय अरबों की सहमति से अपने वतन वापस आएं। व्यावहारिक सच यह भी है कि इस लेख के लिखे जाने के कुछ साल बाद वे धर्म के आधार पर बने पाकिस्तान को रोक नहीं पाए। नीचे मैंने इस लेख का अंग्रेजी प्रारूप भी दिया है। गांधी समग्र के खंड 68 में यह लेख हिंदी में पढ़ा जा सकता है। 

Monday, July 3, 2017

प्रणब के प्रति मोदी की कृतज्ञता क्या कहती है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को पिता-तुल्य बताना पहली नजर में सामान्य औपचारिकता लगती है. प्रणब दा के विदा होने की बेला है. ऐसे में औपचारिक बातें ही होती हैं. पर दूसरी नजर में दोनों नेताओं का एक दूसरे की तारीफ करना कुछ बातों की याद दिला देता है.  

रविवार के राष्ट्रपति भवन में एक पुस्तक के विमोचन समारोह में नरेंद्र मोदी ने कहा, जब मैं दिल्ली आया, तो मुझे गाइड करने के लिए मेरे पास प्रणब दा मौजूद थे. मेरे जीवन का बहुत बड़ा सौभाग्य रहा कि मुझे प्रणब दा की उँगली पकड़ कर दिल्ली की जिंदगी में खुद को स्थापित करने का मौका मिला.

Sunday, July 2, 2017

जीएसटी के समर्थन-विरोध का ‘तमाशा’


कांग्रेस पार्टी जीएसटी को लेकर संविधान संशोधन लेकर कभी आई नहीं, पर सच यह भी है कि भारतीय जनता पार्टी या गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने जीएसटी के विरोध में स्वर उठाए थे। उनका कहना था कि जीएसटी की संरचना ऐसी है कि बिना आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर बनाए यह लागू नहीं हो सकता। यह भी सच है कि जीएसटी की परिकल्पना सन 1999 में अटल बिहारी सरकार ने की थी। सन 2003 में केलकर समिति उसने ही बनाई थी। बाद में यूपीए सरकार ने सन 2010 तक उसे लागू करने का बीड़ा उठाया, पर जीएसटी कमेटी से असीम दासगुप्त के इस्तीफे के बाद वह काम रुक गया। मार्च 2011 में एक संविधान संशोधन पेश किया गया, जिसपर आगे विचार नहीं हुआ।

एनडीए सरकार ने जब इस काम को शुरू किया तो कांग्रेस ने ना-नुकुर करना शुरू कर दिया। इससे क्या निष्कर्ष निकाला जाए? यही कि व्यावहारिक-राजनीति तमाम ऐसे कार्यों में अड़ंगा लगाती है, जो सामान्य हित से जुड़े होते हैं। एनडीए को इस संविधान संशोधन को पास कराने और लागू कराने का श्रेय जाता है। इसके लिए कांग्रेस तथा दूसरे दलों को मनाने का श्रेय भी उसे जाता है। जीएसटी कौंसिल के रूप में एक संघीय व्यवस्था कायम करने का भी।

जीएसटी अभी लागू होना चाहिए था या नहीं? उसके लिए पर्याप्त तैयारी है या नहीं? क्या इसबार भी नोटबंदी जैसी अफरा-तफरी होगी? ऐसे तमाम सवाल हवा में हैं। जो लोग इस वक्त यह सवाल कर रहे हैं उन्हें पिछले साल 16 सितम्बर को संसद से संविधान संशोधन पास होते वक्त यह सवाल करना चाहिए था। संविधान संशोधन के अनुसार एक साल के भीतर जीएसटी को लागू होना है। यानी 16 सितम्बर तक उसे लागू करना ही है। अब इस सवाल को बीजेपी या कांग्रेस के नजरिए से नहीं देखना चाहिए। देश के नागरिक होने के नाते हमें उस प्रवृत्ति को दूर करने की कोशिश करनी चाहिए, जिसे बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने मौका आने पर अपनाया है। इस वक्त भी तमाशा हुआ है तो दोनों और से हुआ है।  

कांग्रेस को जीएसटी समारोह पर आपत्ति है। पर समारोह हो ही गया तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा। जब संविधान संशोधन पास कराने में उसकी भूमिका थी, तो इस समारोह के वक्त वह भी इस सहयोग का श्रेय ले सकती थी। अंततः यह कानून भारत का है, बीजेपी का नहीं। इस मामले को देश की स्वतंत्रता से जोड़ने की कोशिश निहायत बचकाना है। देश को आजादी एक वृहत आंदोलन और बदलती ऐतिहासिक स्थितियों के कारण मिली है। कांग्रेस के भीतर भी कई प्रकार की धारणाएं थीं। वही कांग्रेस आज नहीं है। सन 1969 के बाद कांग्रेस बुनियादी रूप से बदल चुकी है। देश के राजनीतिक दलों के स्वरूप और भूमिका को लेकर यहाँ बहस करने का कोई मतलब नहीं है। इस वक्त जो सरकार है, वह देश की प्रतिनिधि सरकार है। जीएसटी कानून एक सांविधानिक प्रक्रिया से गुजर कर आया है। बेहतर हो कि संसद के भीतर और बाहर उसे लेकर बहस करें।

Thursday, June 29, 2017

मोदी के इसी बयान का था इंतजार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गो-भक्ति के नाम पर हो रही हत्याओं पर बयान देने में कुछ देर की है. उन्होंने कहा है कि गो-रक्षा के नाम पर हिंसा बर्दाश्त नहीं की जा सकती. उनके इस बयान का पिछले कुछ समय से इंतजार था. खासतौर से दिल्ली के पास बल्लभगढ़ में एक किशोर जुनैद की हत्या के बाद देश का नागरिक समाज गो-रक्षा के नाम पर हिंसा फैलाने वालों से नाराज है.

ऐसा नहीं कि अतीत में प्रधानमंत्री इस विषय पर कुछ बोले नहीं हैं. उत्तर प्रदेश के दादरी में अखलाक की हत्या से लेकर गुजरात के उना में दलितों की पिटाई तक की उन्होंने आलोचना की. पर अब जरूरत इस बात की है कि वे अपनी बात को कड़ाई से कहें और गो-रक्षा के नाम पर बढ़ती जा रही अराजकता को रुकवाएं. अन्यथा यह घटनाक्रम राजनीतिक रूप से नुकसानदेह साबित होगा.

Tuesday, June 27, 2017

कश्मीर पर इंटरनेट सामग्री

कश्मीर को लेकर हाल में इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री को मैने एक जगह सूचीबद्ध किया है। यदि आपकी दिलचस्पी इस संग्रह को और बेहतर बनाने में है तो आप इसके कमेंट सेक्शन में लिंक लगा सकते हैं। मैं उन्हें मुख्य आलेख में लगा दूँगा।






Kashmir Questions By AG Noorani

Kashmir talks: Reality & Myth

Post cold war US Policy on Kashmir

Security Council Resolution 47

मुशर्रफ ने कहा, हमने जनमत संग्रह के प्रस्ताव से किनारा कर लिया है
AG Noorani

Arundhati Roy


Kashmir : The unwritten history

Guardian's report on BalochistanCurfew without end


Three generations of Azadi