ब्रेक्जिट के बवंडर में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड केमरन को अपना पद
छोड़ने की घोषणा करनी पड़ी. दुनिया भर के शेयर बाजार इस फैसले से स्तब्ध हैं.
विशेषज्ञ समझने की कोशिश कर रहे हैं इसका भारत पर क्या असर पड़ेगा. बेशक यह जनता
का सीधा फैसला है. पर क्या इस प्रकार के जनमत संग्रह को उचित ठहराया जा सकता है? क्या जनता इतने बड़े
फैसले सीधे कर सकती है? क्या ऐसे फैसलों में व्यावहारिकता के ऊपर भावनाएं हावी होने का खतरा नहीं है? क्या दुनिया ‘डायरेक्ट डेमोक्रेसी’ के द्वार पर खड़ी है? पश्चिमी देशों की जनता
अपेक्षाकृत प्रबुद्ध है. उसके पास सूचनाओं को जाँचने-परखने के बेहतर उपकरण मौजूद
हैं. फिर भी ऐसा लगता है कि संकीर्ण राष्ट्रवाद सिर उठा रहा है. ब्रेक्जिट के बाद
यूरोप में विषाद की छाया है. कुछ लोग खुश हैं तो पश्चाताप भी कम नहीं है.
Monday, June 27, 2016
Sunday, June 26, 2016
एनएसजी का कड़वा सबक
इस साल यदि एनएसजी की एक और बैठक होने वाली है, तो इसका मतलब यह हुआ कि भारत की सदस्यता का मामला रंग पकड़ रहा है। बैठक नहीं भी हो तब भी कमसे कम इतना हुआ कि एनएसजी ने अनौपचारिक रूप से इस बात को आगे बढ़ाने के लिए अर्जेंटीना के राजदूत राफेल गोसी को अपना प्रतिनिधि नियु्क्त किया है। इस प्रकार के समूहों में सदस्यता पाना इतना सरल नहीं है, जितना हम मानकर चल रहे हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह समूह भारत के पहले अणु विस्फोट की प्रतिक्रिया में ही बना था। फिर भी यह कहा जा सकता है कि भारत सरकार ने इसका जितना प्रचार किया, उसे देखते हुए लगता है कि भारत की कोई बड़ी हार हो गई है। जबकि ऐसा कुछ है नहीं।
Sunday, June 19, 2016
बहुत देर कर दी हुज़ूर आते-आते
दिल्ली के सियासी हलकों में खबर
गर्म है कि कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री पद की
प्रत्याशी के रूप में पेश कर सकती हैं। शुक्रवार को उनकी सोनिया गांधी के साथ
मुलाकात के बाद इस सम्भावना को और बल मिला है। इसमें असम्भव कुछ नहीं। शीला
दीक्षित कांग्रेस के पास बेहतरीन सौम्य और विश्वस्त चेहरा है। उत्तर प्रदेश में
कांग्रेस को जैसा चेहरा चाहिए वैसा ही। गुलाम नबी आजाद को उत्तर प्रदेश का गुलाम प्रभारी बनाना
पार्टी का सूझबूझ भरा कदम है।
कांग्रेस का आखिरी दाँव
कांग्रेस के पास अब
कोई विकल्प नहीं है। राहुल गांधी की सफलता या विफलता भविष्य की बात है, पर उन्हें अध्यक्ष बनाने के
अलावा पार्टी के पास कोई रास्ता नहीं बचा। सात साल से ज्यादा समय से पार्टी उनके
नाम की माला जप रही है। अब जितनी देरी होगी उतना ही पार्टी का नुकसान होगा। हाल के
चुनावों में असम और केरल हाथ से निकल जाने के बाद ‘डबल’ नेतृत्व से चमत्कार की उम्मीद करना बेकार है। सोनिया गांधी
अनिश्चित काल तक कमान नहीं सम्हाल पाएंगी। राहुल गांधी के पास पूरी कमान होनी ही चाहिए।
राहुल के अध्यक्ष बनने के बाद अब प्रियंका गांधी को
लाने की माँग भी नहीं उठेगी। शक्ति के दो केन्द्रों का संशय नहीं होगा। कांग्रेस
अब ‘बाउंसबैक’ करे तो श्रेय राहुल को और
डूबी तो उनका ही नाम होगा। हालांकि कांग्रेस की परम्परा है कि विजय का श्रेय
नेतृत्व को मिलता है और पराजय की आँच उसपर पड़ने से रोकी जाती है। सन 2009 की जीत
का श्रेय मनमोहन सिंह के बजाय राहुल को दिया गया और 2014 की पराजय की जिम्मेदारी
सरकार पर डाली गई।
Wednesday, June 15, 2016
इमेज बदलती भाजपा
भारतीय जनता पार्टी का फिलहाल सबसे बड़ा एजेंडा है ‘पैन-इंडिया इमेज’ बनाना। उसे साबित करना है कि वह
केवल उत्तर भारत की पार्टी नहीं है। पूरे भारत की धड़कनों को समझती है। हाल के घटनाक्रम ने उम्मीदों को काफी बढ़ाया है। एक
तरफ उसे असम की जीत से हौसला मिला है, वहीं मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस गहराती
घटाओं से घिरी है। भाजपा के बढ़ते आत्मविश्वास की झलक इलाहाबाद में हुई राष्ट्रीय
कार्यकारिणी की बैठक में देखने को मिली, जहाँ एक राजनीतिक प्रस्ताव में कहा गया कि
अब देश में केवल बीजेपी ही राष्ट्रीय आधार वाली पार्टी है। वह तमाम राज्यों में
स्वाभाविक सत्तारूढ़ पार्टी है। कांग्रेस दिन-ब-दिन सिकुड़ रही है। शेष दलों की
पहुँच केवल राज्यों तक सीमित है।
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