आज उफा में भारत और पाकिस्तान के एकसाथ शंघाई सहयोग संगठन में शामिल होने की घोषणा होगी. रूस और चीन दोनों का आग्रह और समर्थन इनकी सदस्यता को लेकर है. मई की चीन यात्रा के बाद से घटनाक्रम काफी बदला है. खासतौर से पाकिस्तान के बरक्स चीन और रूस दोनों के रिश्तों में बदलाव आया है. शायद वैश्विक राजनीति की धारा बदल रही है, पर देखना यह है कि भारत एक ओर अमेरिका और जापान के साथ और दूसरी ओर रूस-चीन के साथ रिश्तों का मेल किस तरह बैठाएगा. हालांकि अभी काफी बातें साफ नहीं हैं, पर लगता है कि रूस और चीन की धुरी बन रही है. देखते ही देखते चीन का रूस से पेट्रोलियम आयात कहाँ से कहाँ पहुँच गया है. दोनों देश अब मध्य एशिया में सक्रिय हो रहे हैं. अफगानिस्तान में भी दोनों की दिलचस्पी है. शंघाई सहयोग संगठन की बैठक के बाद उफा में ब्रिक्स देशों का सातवाँ शिखर सम्मेलन होने जा रहा है. यह संगठन वैश्विक आर्थिक-राजनीतिक गतिविधियों का नया केंद्र बनेगा. इसे पूरी तरह रूस-चीन धुरी का केंद्र नहीं कह सकते, पर इसके तत्वावधान में बन रहा विकास बैंक एक नई समांतर व्यवस्था के रूप में जरूर उभरेगा. उधर चीन ने एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (एआईआईबी) की आधारशिला डालकर एशिया विकास बैंक और अमेरिकी-जापानी प्रभुत्व को चुनौती दे दी है. इन व्यवस्थाओं से लाभ यह होगा कि विकासशील देशों में पूँजी निवेश बढ़ेगा और खासतौर से आधार ढाँचा मजबूत होगा, पर सामरिक टकराव भी बढ़ेंगे. भारतीय विदेश नीति में 'एक्ट ईस्ट' के बाद 'कनेक्ट सेंट्रल एशिया' की योजना भी नरेंद्र मोदी की इस विदेश-यात्रा के दौरान सामने आई है.
वैश्विक राजनीति और अर्थ-व्यवस्था में तेजी से बदलाव आ रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मध्य एशिया और रूस की इस यात्रा पर गौर करें तो इस बदलाव की झलक देखने को मिलेगी. इस यात्रा के तीन अलग-अलग पहलू हैं, जिनका एक-दूसरे से सहयोग का रिश्ता है और आंतरिक टकराव भी हैं. इसका सबसे बड़ा प्रमाण आज 9 जुलाई को रूस के उफा शहर में देखने को मिलेगा, जहाँ शंघाई (शांगहाई) सहयोग संगठन (एससीओ) का शिखर सम्मेलन है. इसमें भारत और पाकिस्तान को पूर्ण सदस्य का दर्जा मिलने वाला है. यह राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक सहयोग का संगठन है. इसमें भारत और पाकिस्तान का एकसाथ शामिल होना निराली बात है. इसके बाद उफा में ब्रिक्स देशों का सातवाँ शिखर सम्मेलन है. ब्रिक्स देश एक नई वैश्विक संरचना बनाने में लगे हैं, जो पश्चिमी देशों की व्यवस्था के समांतर है.
विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के समांतर एक नई व्यवस्था कायम होने जा रही है. यह व्यवस्था ऐसे देश कायम करने जा रहे हैं, जिनकी राजनीतिक और आर्थिक संरचना एक जैसी नहीं है और सामरिक हित भी एक जैसे नहीं हैं, फिर भी वे सहयोग का सामान इकट्ठा कर रहे हैं. यह व्यवस्था पश्चिमी देशों के नियंत्रण वाली व्यवस्था के समांतर है, बावजूद इसके यह उसके विरोध में नहीं है. ब्रिक्स में भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका की राजनीतिक व्यवस्था पश्चिमी देशों के तर्ज पर उदार है, वहीं चीन और रूस की व्यवस्था अधिनायकवादी है. बावजूद इसके सहयोग के नए सूत्र तैयार हो रहे हैं. इससे जुड़े कुछ संशय भी सामने हैं.
वैश्विक राजनीति और अर्थ-व्यवस्था में तेजी से बदलाव आ रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मध्य एशिया और रूस की इस यात्रा पर गौर करें तो इस बदलाव की झलक देखने को मिलेगी. इस यात्रा के तीन अलग-अलग पहलू हैं, जिनका एक-दूसरे से सहयोग का रिश्ता है और आंतरिक टकराव भी हैं. इसका सबसे बड़ा प्रमाण आज 9 जुलाई को रूस के उफा शहर में देखने को मिलेगा, जहाँ शंघाई (शांगहाई) सहयोग संगठन (एससीओ) का शिखर सम्मेलन है. इसमें भारत और पाकिस्तान को पूर्ण सदस्य का दर्जा मिलने वाला है. यह राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक सहयोग का संगठन है. इसमें भारत और पाकिस्तान का एकसाथ शामिल होना निराली बात है. इसके बाद उफा में ब्रिक्स देशों का सातवाँ शिखर सम्मेलन है. ब्रिक्स देश एक नई वैश्विक संरचना बनाने में लगे हैं, जो पश्चिमी देशों की व्यवस्था के समांतर है.
विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के समांतर एक नई व्यवस्था कायम होने जा रही है. यह व्यवस्था ऐसे देश कायम करने जा रहे हैं, जिनकी राजनीतिक और आर्थिक संरचना एक जैसी नहीं है और सामरिक हित भी एक जैसे नहीं हैं, फिर भी वे सहयोग का सामान इकट्ठा कर रहे हैं. यह व्यवस्था पश्चिमी देशों के नियंत्रण वाली व्यवस्था के समांतर है, बावजूद इसके यह उसके विरोध में नहीं है. ब्रिक्स में भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका की राजनीतिक व्यवस्था पश्चिमी देशों के तर्ज पर उदार है, वहीं चीन और रूस की व्यवस्था अधिनायकवादी है. बावजूद इसके सहयोग के नए सूत्र तैयार हो रहे हैं. इससे जुड़े कुछ संशय भी सामने हैं.