बीबीसी की एमक्यूएम को भारतीय फंडिंग की 'धमाकेदार' रिपोर्ट पाकिस्तान के मुख्यधारा और सोशल मीडिया पर छाई हुई है. पिछले कुछ महीनों से पाकिस्तानी सेना और सरकार ने भारत के खुफिया संगठन रॉ पर पाकिस्तान में आतंकवादी गतिविधियाँ चलाने के आरोप लगाए हैं. वे आरोप पाकिस्तानी सरकार ने लगाए थे. बीबीसी की रिपोर्ट का नाम सुनने से लगता है कि यह बीबीसी की कोई स्वतंत्र जाँच रिपोर्ट है, पर यह पाकिस्तानी सरकार के सूत्रों पर आधारित है. पाकिस्तान सरकार के आरोपों को बीबीसी की साख का सहारा जरूर मिला है. भारत सरकार ने इस ख़बर में किए गए दावों को 'पूरी तरह आधारहीन' करार दिया है. एमक्यूएम के एक वरिष्ठ सदस्य ने बीबीसी की ख़बर को 'टेबल रिपोर्ट' क़रार दिया.
बीबीसी वेबसाइट पर इस ख़बर के जारी होते ही पाकिस्तान के मुख्यधारा के चैनलों ने इसे 'ब्रेकिंग न्यूज़' की तरह चलाना शुरू कर दिया और जल्दी ही विशेषज्ञों के साथ लाइव फ़ोन-इन लिए जाने लगे. एक रिपोर्ट में पत्रकारों और विश्लेषकों ने बीबीसी को एक 'विश्वसनीय' स्रोत करार देते हुए कहा कि अगर संस्था (बीबीसी) को लगता कि यह ख़बर ग़लत है तो वह इसे नहीं चलाते.
पाकिस्तान के विपरीत भारतीय मीडिया ने इस खबर को कोई तवज्जोह नहीं दी. आमतौर पर भारतीय प्रिंट मीडिया ऐसी खबरों पर ध्यान देता है. खासतौर से हमारे अंग्रेजी अखबारों के सम्पादकीय पेज ऐसे सवालों पर कोई न कोई राय देते हैं. पर आज के भारतीय अखबारों में यह खबर तो किसी न किसी रूप में छपी है, पर सम्पादकीय टिप्पणियाँ बहुत कम देखने को कम मिलीं. हिन्दी अखबार आमतौर पर ज्वलंत विषयों पर सम्पादकीय लिखना नहीं चाहते. आज तो ज्यादातर हिन्दी अखबारों में शहरी विकास पर टिप्पणियाँ हैं जो मोदी सरकार के स्मार्ट सिटी कार्यक्रम पर है. यह विषय प्रासंगिक है, पर इसमें राय देने वाली खास बात है नहीं. दूसरा विषय आज एनडीए सरकार के सामने खड़ी परेशानियों पर है. इस मामले में कुछ कड़ी बातें लिखीं जा सकती थीं, पर ऐसा है नहीं.
बहरहाल बीबीसी की रपट को लेकर आज केवल इंडियन एक्सप्रेस में ही सम्पादकीय देखने को मिला. इसमें दोनों देशों की सरकारों से आग्रह किया गया है कि वे एक-दूसरे से संवाद बढ़ाएं. हालांकि पाकिस्तानी मीडिया में इन दिनों भारत के खिलाफ काफी गर्म माहौल है. वहाँ की सरकार अब वहाँ होने वाली तमाम आतंकवादी गतिविधियों की जिम्मेदारी भारतीय खुफिया संगठन रॉ पर डाल रही है. इस माहौल में जिन अखबारों के सम्पादकीय अपेक्षाकृत संतुलित हैं, वे नीचे पेश हैं-
बीबीसी वेबसाइट पर इस ख़बर के जारी होते ही पाकिस्तान के मुख्यधारा के चैनलों ने इसे 'ब्रेकिंग न्यूज़' की तरह चलाना शुरू कर दिया और जल्दी ही विशेषज्ञों के साथ लाइव फ़ोन-इन लिए जाने लगे. एक रिपोर्ट में पत्रकारों और विश्लेषकों ने बीबीसी को एक 'विश्वसनीय' स्रोत करार देते हुए कहा कि अगर संस्था (बीबीसी) को लगता कि यह ख़बर ग़लत है तो वह इसे नहीं चलाते.
पाकिस्तान के विपरीत भारतीय मीडिया ने इस खबर को कोई तवज्जोह नहीं दी. आमतौर पर भारतीय प्रिंट मीडिया ऐसी खबरों पर ध्यान देता है. खासतौर से हमारे अंग्रेजी अखबारों के सम्पादकीय पेज ऐसे सवालों पर कोई न कोई राय देते हैं. पर आज के भारतीय अखबारों में यह खबर तो किसी न किसी रूप में छपी है, पर सम्पादकीय टिप्पणियाँ बहुत कम देखने को कम मिलीं. हिन्दी अखबार आमतौर पर ज्वलंत विषयों पर सम्पादकीय लिखना नहीं चाहते. आज तो ज्यादातर हिन्दी अखबारों में शहरी विकास पर टिप्पणियाँ हैं जो मोदी सरकार के स्मार्ट सिटी कार्यक्रम पर है. यह विषय प्रासंगिक है, पर इसमें राय देने वाली खास बात है नहीं. दूसरा विषय आज एनडीए सरकार के सामने खड़ी परेशानियों पर है. इस मामले में कुछ कड़ी बातें लिखीं जा सकती थीं, पर ऐसा है नहीं.
बहरहाल बीबीसी की रपट को लेकर आज केवल इंडियन एक्सप्रेस में ही सम्पादकीय देखने को मिला. इसमें दोनों देशों की सरकारों से आग्रह किया गया है कि वे एक-दूसरे से संवाद बढ़ाएं. हालांकि पाकिस्तानी मीडिया में इन दिनों भारत के खिलाफ काफी गर्म माहौल है. वहाँ की सरकार अब वहाँ होने वाली तमाम आतंकवादी गतिविधियों की जिम्मेदारी भारतीय खुफिया संगठन रॉ पर डाल रही है. इस माहौल में जिन अखबारों के सम्पादकीय अपेक्षाकृत संतुलित हैं, वे नीचे पेश हैं-