Wednesday, May 20, 2015

दिल्ली का अस्पष्ट प्रशासनिक विभाजन, ऊपर से राजनीति का तड़का

जिस बात का अंदेशा था वह सच होती नज़र आ रही है. दिल्ली में मुख्यमंत्री और उप-राज्यपाल के बीच अधिकारों का विवाद संवैधानिक संकट के रूप में सामने आ रहा है. अंदेशा यह भी है कि यह लड़ाई राष्ट्रीय शक्ल ले सकती है. उप-राज्यपाल के साथ यदि केवल अहं की लड़ाई होती तो उसे निपटा लिया जाता. विवाद के कारण ज्यादा गहराई में छिपे हैं. इसमें केंद्र सरकार को फौरन हस्तक्षेप करना चाहिए. दूसरी ओर इसे राजनीतिक रंग देना भी गलत है. रविवार की शाम तक कांग्रेस के नेता केजरीवाल पर आरोप लगा रहे थे. टीवी चैनलों पर बैठे कांग्रेसी प्रतिनिधियों का रुख केजरीवाल सरकार के खिलाफ था. उसी शाम पार्टी के वरिष्ठ नेता अजय माकन ने इस संदर्भ में भारतीय जनता पार्टी पर आरोप लगाकर इसका रुख बदल दिया है. सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने केजरीवाल का समर्थन किया. लगता है कि सम्पूर्ण विपक्ष एक साथ आ रहा है. 

एक तो अस्पष्ट प्रशासनिक व्यवस्था ऊपर से अधकचरी राजनीति। इसमें नौकरशाही के लिपट जाने  के बाद सारी बात का रुख बदल गया है. खुली बयानबाज़ी से मामला सबसे ज्यादा बिगड़ा है. अरविन्द केजरीवाल को विवाद भाते हैं. सवाल यह भी है कि क्या वे अपने आप को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए नए विवादों को जन्म दे रहे हैं? विवाद की आड़ में राजनीतिक गोलबंदी हो रही है. क्या यह बिहार में होने वाले विवाद की पूर्व-पीठिका है? विपक्षी एकता कायम करने का भी यह मौका है. पर यह सवाल कम महत्वपूर्ण नहीं है कि राज्य सरकार को क्या अपने अफसरों की नियुक्तियों का अधिकार भी नहीं होना चाहिए? क्या उसके हाथ बंधे होने चाहिए? चुनी हुई सरकार को अधिकार नहीं होगा तो उसकी प्रशासनिक जवाबदेही कैसे तय होगी?  मौजूदा विवाद पुलिस या ज़मीन से ताल्लुक नहीं रखता, जो विषय केंद्र के अधीन हैं. 

Monday, May 18, 2015

राज्यसभा भी हमारी व्यवस्था का जरूरी हिस्सा है

भारतीय संविधान में राज्यसभा की ख़ास जगह क्यों?

  • 17 मई 2015

अरुण जेटली

राज्यसभा में विपक्ष से हलकान मोदी सरकार के वित्तमंत्री अरुण जेटली ने एक साक्षात्कार में कहा कि जब एक चुने हुए सदन ने विधेयक पास कर दिए तो राज्यसभा क्यों अड़ंगे लगा रही है?
जेटली के स्वर से लगभग ऐसा लगता है कि राज्यसभा की हैसियत क्या है?
असल में भारत में दूसरे सदन की उपयोगिता को लेकर संविधान सभा में काफी बहस हुई थी.
आखिरकार दो सदन वाली विधायिका का फैसला इसलिए किया गया क्योंकि इतने बड़े और विविधता वाले देश के लिए संघीय प्रणाली में ऐसा सदन जरूरी था.
धारणा यह भी थी कि सीधे चुनाव के आधार पर बनी एकल सभा देश के सामने आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए नाकाफी होगी.

क्या राज्यसभा चुनी हुई नहीं?


राज्यसभा

ऐसा नहीं है. बस इसके चुनाव का तरीका लोकसभा से पूरी तरह अलग है.
इसका चुनाव राज्यों की विधान सभाओं के सदस्य करते हैं. चुनाव के अलावा राष्ट्रपति द्वारा सभा के लिए 12 सदस्यों के नामांकन की भी व्यवस्था की गई है.

Sunday, May 17, 2015

चीन के साथ संवाद

नरेन्द्र मोदी की चीन यात्रा का महत्वपूर्ण पहलू है कुछ कठोर बातें जो विनम्रता से कही गईं हैं। भारत और चीन के बीच कड़वाहट के दो-तीन प्रमुख कारण हैं। एक है सीमा-विवाद। दूसरा है पाकिस्तान के साथ उसके रिश्तों में भारत की अनदेखी। तीसरे दक्षिण चीन तथा हिन्द महासागर में दोनों देशों की बढ़ती प्रतिस्पर्धा। चौथा मसला अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का है। भारत लगातार  आतंकवाद को लेकर पाकिस्तानी भूमिका की शिकायत करता रहा है। संयोग से पश्चिम चीन के शेनजियांग प्रांत में इस्लामी कट्टरतावाद सिर उठा रहा है। चीन को इस मामले में व्यवहारिक कदम उठाने होंगे। पाकिस्तानी प्रेरणा से अफगानिस्तान में भी चीन अपनी भूमिका देखने लगा है। यह भूमिका केवल इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण तक सीमित नहीं है, बल्कि अफगान सरकार और तालिबान के बीच मध्यस्थता से भी जुड़ी है।   

Saturday, May 16, 2015

रिटेल में विदेशी पूँजी यानी विसंगति राजनीति की

यूपीए सरकार ने 2012 में कई शर्तों के साथ बहु-ब्रांड खुदरा में 51 फीसदी एफडीआई को अनुमति दी थी। उस नीति के तहत विदेशी कंपनियों को अनुमति देने या नहीं देने का फैसला राज्यों पर छोड़ दिया गया था। राजनीतिक हल्कों में यह मामला पहेली ही बना रहा। चूंकि यूपीए सरकार की यह नीति थी, इसलिए भारतीय जनता पार्टी को इसका विरोध करना ही था। और अब जब एनडीए सरकार यूपीए सरकार की अनेक नीतियों को जारी रखने की कोशिश कर रही है तो उसके अपने अंतर्विरोध सामने आ रहे हैं। पिछले साल चुनाव के पहले और जीतने के बाद एनडीए ने रिटेल कारोबार में विदेशी पूँजी निवेश के मामले पर अपने विचार को कभी स्पष्ट नहीं किया।  

Thursday, May 14, 2015

चीनी जादूनगरी से क्या लाएंगे मोदी?

अपनी सरकार की पहली वर्षगाँठ के समांतर हो रही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा के अनेक निहितार्थ हैं. सरकार महंगाई, किसानों की आत्महत्याओं और बेरोजगारी की वजह से दबाव में है वहीं वह विदेशी मोर्चे पर अपेक्षाकृत सफल है. चीन यात्रा को वह अपनी पहली वर्षगाँठ पर शोकेस करेगी. देश के आर्थिक रूपांतरण में भी यह यात्रा मील का पत्थर साबित हो सकती है. वैश्विक राजनीति तेजी से करवटें ले रही है. हमें एक तरफ पश्चिमी देशों के साथ अपने रिश्तों को परिभाषित करना है वहीं चीन और रूस की विकसित होती धुरी को भी ध्यान में रखना है.